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उत्तराखण्ड पृथक राज्य हेतु आन्दोलन, गठित संगठन स्थाई राजधानी गैरसैंण में बनाने के प्रयास

उत्तराखण्ड पृथक राज्य हेतु आन्दोलन राज्य आंदोलन के दौरान गठित संगठन स्थाई राजधानी गैरसैंण में बनाने के प्रयास पृथक राज्य बनाने सम्बंधी मांग सर्वप्रथम

उत्तराखण्ड  पृथक राज्य हेतु आन्दोलन राज्य आंदोलन के दौरान गठित संगठन स्थाई राजधानी गैरसैंण में बनाने के प्रयास

उत्तराखण्ड पृथक राज्य हेतु आन्दोलन, गठित संगठन स्थाई राजधानी गैरसैंण में बनाने के प्रयास

हिमालय की गोद में स्थित गढ़वाल और कुमाऊँ क्षेत्र को मिलाकर एक पृथक राज्य बनाने सम्बंधी मांग सर्वप्रथम 5-6मई 1938 को श्रीनगर ( गढ़वाल ) में आयोजित भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के विशेष अधिवेशन में उठाई गई थी.स्थानीय नेताओं के इस मांग को अधिवेशन की अध्यक्षता कर रहें जवाहर लाल नेहरू ने समर्थन किया था । 

1938 में पृथक राज्य की मांग हेतु श्रीदेव सुमन में दिल्ली में ' गढ़देश सेवा संघ ' नाम से एक संगठन बनाया । बाद इस संगठन का नाम ' हिमालय सेवा संघ हो गया ।

1946 में हल्द्वानी में बद्रीदत्त पांडे की अध्यक्षता में हुए कांग्रेस के एक सम्मेलन में उत्तरांचल के पर्वतीय भू - भाग को विशेष वर्ग में रखने की मांग उठाई गई । 

इसी सम्मेलन में अनुसूयाप्रसाद बहुगुणा ने गढ़वाल - कुमाऊँ के रूप में गठित करने की मांग की थी । 

संयुक्त प्रांत के भू - भाग को एक अलग क्षेत्रीय भौगोलिक इकाई के तत्कालीन प्रीमियर गोविंद बल्लभ पंत ने इन मांगो को ठुकरा दिया था ।

ये भी देखें : -

 1950 में हिमाचल और उत्तरांचल को मिलाकर एक वृहद् हिमालयी राज्य बनाने के उद्देश्य से पर्वतीय विकास जन समिति नामक संगठन का गठन किया गया ।

1955 में फजल अली आयोग ने उ.प्र . के पुनर्गठन की बात इस क्षेत्र के पृथक राज्य बनाने के दृष्टिकोण से की थी , लेकिन उ.प्र . के नेताओं ने इसे स्वीकार नहीं किया ।

 1957 में टिहरी रियासत के अपदस्थ नरेश मानवेन्द्रशाह ने पृथक राज्य आंदोलन को अपने स्तर से शुरू किया । 

 24 व 25 जून 1967 में रामनगर में आयोजित सम्मेलन में पर्वतीय राज्य परिषद् का गठन किया गया । इसके अध्यक्ष दया कृष्ण पांडे , उपाध्यक्ष गोविन्द सिंह मेंहरा और महासचिव नारायण दत्त सुंद्रियाल थे

1969 में तत्कालीन प्रदेश सरकार ने इस क्षेत्र के विकास को ध्यान में रखते हुए पर्वतीय विकास परिषद का गठन की ।

3 अक्टूबर 1970 को भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव पी . सी . जोशी ने कुमाऊँ राष्ट्रीय मोर्चा का गठन किया और पृथक उत्तराखण्ड राज्य की माँग दुहराई । इसी वर्ष नैनीताल में उत्तरांचल परिषद का भी गठन किया गया ।

1972 में उत्तरांचल परिषद के कार्यकर्ताओं ने नई दिल्ली स्थित वोट क्लब पर धरना किया । पुनः 1973 में इस परिषद ने दिल्ली चलों का नारा दिया और चमोली के विधायक प्रताप सिंह नेगी के नेतृत्व में बद्रीनाथ से वोट क्लब ( दिल्ली ) तक की पदयात्रा की गई।

1976 में उत्तराखण्ड युवा परिषद का गठन किया गया । परिषद के सदस्यों ने व्यापक रुप से आन्दोलन चलाया । 1978 में इसके सदस्यों ने संसद का भी घेराव करने की कोशिश की और गिरफ्तारियां दी ।

ये भी देखें : - 

1979 में जनता पार्टी सरकार के सांसद त्रेपन सिंह नेगी के नेतृत्व में उत्तरांचल राज्य परिषद् की स्थापना की गई और 23 जुलाई को वोट क्लब पर रैली का आयोजन हुआ ।रैली के बाद प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई को अलग राज्य की मांग के लिए एक ज्ञापन दिया गया ।

इसी वर्ष 25 जुलाई को मंसूरी में आयोजित पर्वतीय जन विकास सम्मेलन में उत्तराखण्ड क्रान्ति दल का गठन किया गया । 

इसके प्रथम अध्यक्ष कुमाऊँ विश्वविद्यालय के तत्कालीन कुलपति डॉ . देवीदत्त पंत बनाए गये । 

इस दल का केवल एक लक्ष्य राज्य की समस्याओं का निराकरण करते हुए 8 पर्वतीय जिलों को मिलाकर अलग राज्य की स्थापना करना था ।

1984 में ऑल इंडिया स्टूडेन्ट फेडरेशन ने राज्य की मांग को लेकर गढ़वाल में 900 किमी . की साइकिल यात्रा के माध्यम से जन जागरूकता फैलाया । 

1987 में उत्तराखण्ड क्रांतिदल का विभाजन हो गया और दल की बागडोर युवा नेता काशी सिंह ऐरी के हाथ में आ गई । इस दल के नेतृत्व में 9 मार्च को पौड़ी में आयोजित रैली में 10,000 अधिक लोगों ने भाग लिया ।

9 सितम्बर को दल ने उत्तराखण्ड बंद का विभाजन किया फिर 23 नवम्बर को वोट क्लब दिल्ली में विशाल प्रदर्शन किया और राष्ट्रपति को ज्ञापन सौंपा । ज्ञापन के द्वारा पहली बार हरिद्वार को उत्तराखण्ड में शामिल करने की मांग की गई । 

1987 में ही 23 अप्रैल को एक विशेष घटना तब घटी जब उक्रांद उपाध्यक्ष त्रिवेन्द्र पंवार ने राज्य की मांग को लेकर संसद में एक पत्र बम  फेंका । इसके लिए उन्हें भारी यातनाएं दी गयी ।

1987 में ही भाजपा ने लालकृष्ण आडवाणी की अध्यक्षता में अल्मोड़ा के पार्टी सम्मेलन मेंउत्तर प्रदेश के पर्वतीय क्षेत्र को अलग राज्य का वर्जा देने की मांग को स्वीकार किया गया , लेकिन प्रस्तावित राज्य का नाम उत्तराखण्ड के बजाए उत्तरांचल स्वीकार किया गया । 

1988 में भाजपा के शोबन सिंह जीमा की अध्यक्षता में ' उत्तरांचल उत्थान परिषद ' का गठन किया गया ।

फरवरी 1989 में सभी संगठनों ने संयुक्त आंदोलन चलाने के लिए ' उत्तरांचल संयुक्त संघर्ष समिति का गठन किया और 11-12 फरवरी को रैली आयोजित किया । .

1990 में जसवंत सिंह विष्ट ने उत्तराखंड क्रांति दल के विधायक के रुप में उ.प्र . विधानसभा में पृथक राज्य का पहला प्रस्ताव रखा । 

1991 के चुनावों में भाजपा ने पृथक राज्य की स्थापना को अपने घोषणा पत्र में शामिल किया और वायदे के अनुरुप 20 अगस्त 1991 को प्रदेश की भाजपा सरकार ने पृथक उत्तरांचल का प्रस्ताव केन्द्र सरकार के पास भेज दिया , लेकिन केन्द्र की कांग्रेस सरकार ने इस पर कोई निर्णय नहीं लिया । 

जुलाई , 1992 में उत्तराखण्ड क्रांतिदल ने पृथक राज्य के संबंध में एक महत्वपूर्ण दस्तावेज जारी किया तथा गैरसैंण को प्रस्तावित राज्य की राजधानी घोषित कर दिया । इस दस्तावेज को उत्तराखण्ड क्रांति दल का पहला ब्लू प्रिंट माना गया । 

एक निर्णय के तहत 21 जुलाई , 1992 को काशी सिंह ऐरी ने गैरसैंण में प्रस्तावित राजधानी की नींव डाली और उसका नाम चंद्रनगर घोषित किया ।

जनवरी 1993 में मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने नगर विकास मंत्री रमाशंकर कौशिक की अध्यक्षता में उत्तराखंड राज्य की संरचना और राजधानी पर विचार करने के लिए एक कैबिनेट समिति का गठन किया ।

कौशिक समिति ने मई 1994 में अपना रिपोर्ट प्रस्तुत किया । रिपोर्ट में तत्कालीन पर्वतीय जिलों को मिलाकर पृथक उत्तराखण्ड राज्य और उसकी राजधानी गैरसैंण में बनाने की सिफारिश किया गया 

मुलायम सिंह यादव सरकार ने कौशिक समिति की सिफारिशों को 21 जून , 1994 को स्वीकार कर लिया और अगस्त , 1994 में 8 पहाड़ी जिलों को मिलाकर पृथक उत्तराखंड राज्य के गठन से सम्बंधित प्रस्ताव को विधानसभा में सर्वसम्पति से पास कर केन्द्र सरकार के पास भेजा गया । 

1994 में ही विनोद बड़थ्वाल की अध्यक्षता में समिति का गठन किया था । इस कमेटी को बुद्धिजीवियों और गैर - राजनीतिक लोगों के विचारो के आधार पर पृथक उत्तराखण्ड राज्य की अनिवार्यता पर सुझाव देना था । 

1994 के जून माह में मुलायम सिंह यादव सरकार ने सरकारी नौकरियों एवं शिक्षण संस्थाओ में आरक्षण की नयी व्यवस्था लागू की , जिसमें कुल सीटों के 50 % सीट ( 27 % BC + 21 % SC + 2 % ST ) आरक्षित होने की व्यवस्था थी ।

नई आरक्षण नीति में अन्य पिछड़ी जातियों के आरक्षण के विरूद्ध राज्य में आन्दोलन शुरू हो गया । पौढ़ी के वयोवृद्ध नेता इंद्रमणि बडोनी ( उत्तराखण्ड के गांधी ) अपने 7 सहयोगियों के साथ 7 अगस्त को आमरण अनशन पर बैठ गयें ।

अनशनकारियों पर पुलिस ने लाठी चार्ज किया । 15 अगस्त को काशी सिंह ऐरी के नेतृत्व में नैनीताल में आमरण अनशन शुरू हुआ । 

1 सितम्बर 1994 को ऊधमसिंह नगर के समीटा में पुलिस द्वारा छात्रों तथा पूर्व सैनिकों की रैली पर गोली चलाने से 25 लोग मारे गये । 

इस घटना के दूसरे दिन मंसूरी में झूलाघर पर विरोध प्रकट करने के लिए आयोजित रैली में उत्तेजित लोगों ने पीएसी तथा पुलिस पर हमला कर दिया ।

इस घटना में पुलिस उपधीक्षक उमाकांत त्रिपाठी मारे गये । फिर पुलिस द्वारा गोली चलाने पर 8 आंदोलनकारी मारे गये । इनमें दो महिलाएं हंसा धनाई व बेलमती चौहान भी मरी थीं ।

7 सितम्बर , 1994 को एक सर्वदलीय बैठक में 27 % आरक्षण को उत्तराखण्ड में लागू करने पर सहमति हुई । 

इसके बाद राज्य के छात्रों ने 18 सितम्बर को रामनगर में एक सम्मेलन किया और सम्मेलन के दौरान छात्र युवा संघर्ष समिति का गठन किया गया । इस सम्मेलन में 1-2 अक्टूबर को दिल्ली में प्रदर्शन करने का किया गया था ।

सितम्बर 1994 के अंतिम सप्ताह में दिल्ली रैली में भाग लेने जा रहे आंदोलनकारियों पर रामपुर तिराहे ( मुजफ्फरनगर ) में उत्तर प्रदेश पुलिस ने अमानुषिक अत्याचार किया । उसके बाद मुजफ्फरनगर में महिलाओं के साथ पुलिस कर्मियों ने दुराचार किया और पुलिस फायरिंग में 8 लोगों की मृत्यु हो गई ।

इस कृत्य की क्रूर शासक की क्रूर साजिश कहकर पूरे विश्व में निन्दा हुई । इस कांड के विरोध में 3 अक्टूबर , 1994 को पूरे उत्तराखंड क्षेत्र में हिंसक प्रदर्शन हुआ । 

7 दिसम्बर 1994 को उत्तराचल प्रदेश संघर्ष समिति के अध्यक्ष सांसद भुवन सिंह खंडूरी के संयोजन में दिल्ली में भाजपा के एक रैली का आयोजन और भाजपा सदस्यों द्वारा संसद के दोनों सदनों से वाकआउट किया गया । 

1995 में 25 जनवरी को उत्तरांचल आंदोलन संचालन समिति ने उच्चतम न्यायालय से राष्ट्रपति भवन तक ' संविधान बचाओं यात्रा ' निकाली । 

1995 में 10 नवम्बर को श्रीनगर स्थित टापू पर आमरण अनशन पर बैठे आंदोलनकारियों पर पुलिस लाठी चार्ज से यशोधार बेंजवाल और राजेश रावत की मौत ।

15 अगस्त 1996 को लालकिले की प्राचीर से तत्कालीन प्रधानमंत्री एच . डी . देवगौड़ा ने उत्तराखंड राज्य का निर्माण करने की घोषणा की ।

1998 में केन्द्र में भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार ने राष्ट्रपति के माध्यम से उत्तराखंड राज्य सम्बन्धी विधेयक उत्तर प्रदेश विधान सभा को सहमति के लिए भेजा । इस विधेयक में कुल 26 संशोधन करने के बाद उ.प्र . सरकार ने केन्द्र को भेज दिया जिसे भाजपा सरकार ने 22 दिसम्बर को लोकसभा में पेश किया , लेकिन सरकार केगिर जाने से पास न हो सका । 

भाजपा के सत्ता में पुनः आ जाने के बाद इस विधेयक को एक बार फिर से उ.प्र . सरकार को भेजा गया और उ.प्र . सरकार द्वारा इसे पास कर  केन्द्र को भेजने के बाद 27 जुलाई 2000 को उ.प्र . पुनर्गठन विधेयक 2000 के नाम से लोकसभा में प्रस्तुत किया गया । 

29 जुलाई को जार्ज कमेटी के सदस्यों ने पंतनगर का दौरा किया और ऊधमसिंहनगर को प्रस्तावित राज्य में शामिल करने का निर्णय लिया । 

1 अगस्त 2000 को विधेयक लोकसभा में व 10 अगस्त को राज्यसभा में पारित किया गया और 28 अगस्त को राष्ट्रपति के . आर . नारायणन ने उत्तर प्रदेश पुनर्गठन विधेयक को अपनी मंजूरी प्रदान की । इसे सरकारी गजट में कानून संख्या 28 के रूप में इंगित किया गया ।

09 नवम्बर , 2000 को देश की 27 वें राज्य के रुप में ( उ.प्र . के 13 उत्तरी- प . जिलों को काटकर ) उत्तरांचल राज्य का गठन किया गया और देहरादून को इसका अस्थाई राजधानी बनाया गया । उसी दिन प्रदेश के पहले अंतरिम मुख्यमंत्री श्री नित्यानंद स्वामी ने पद एवं गोपनीयता की शपथ ली ।

दिसम्बर 2006 में उत्तरांचल ( नाम परिवर्तन ) विधेयक 2006 संसद के दोनों सदनों मेंपारित करने के बाद नाम परिवर्तन की आधिकारिक अधिसूचना 29 दिसम्बर 2006 को जारी की गई , जिसके अनुसार 1 जनवरी 2007 से इसका नाम उत्तराखंड हो गया ।

परीक्षा दृष्टि से उपयोगी

 

उत्तरांचल पृथक राज्य की मांग सर्वप्रथम उठाई गयी -1938 में

1938 में देवसुमन ने पृथक राज्य की मांग को लेकर गठित की - गढ़देश सेवा संघ की

हिमाचल और उत्तरांचल को मिलाकर एक वृहद् हिमालयी राज्य बनाने के उद्देश्य से पर्वतीय विकास जन समिति नामक संगठन का गठन किया गया - 1950 में

पृथक राज्य हेतु उत्तराखण्ड युवा परिषद का गठन  - 1976 में किया गया 

 8 पर्वतीय जिलों को मिलाकर एक राज्य गठित करने उद्देश्य से उत्तराखण्ड क्रांति दल का जन्म हुआ  - 1979 में

राज्य आंदोलन के दौरान गठित संगठन 

राज्य आंदोलन के दौरान गठित  निम्लिखित संगठनो  ने राज्य आंदोलन में अपना महत्वपूर्ण भूमिका निभाई जो इस प्रकार है-

  • गढ़देश सेवा संघ
  • गढ़वाल जागृत संस्था
  • पर्वतीय विकास जन समिति
  •  पर्वतीय राज्य परिषद
  •  कुमाऊँ राष्ट्रीय मोर्चा
  •  उत्तरांचल परिषद्
  •  उत्तराखंड क्रान्ति दल
  •  उत्तरांचल उत्थान परिषद्
  •  उत्तराखंड संयुक्त संघर्ष समिति
  •  उत्तराखण्ड मुक्ति मोर्चा
  •  संयुक्त उत्तराखंड राज्य मोर्चा
  •  उत्तराखण्ड पीपुल्स फ्रंट ( यू.पी.एफ. ) 

गढ़देश सेवा संघ - अलग राज्य के उद्देश्य को लेकर 1938 में दिल्ली में इस संघ का गठन सुमन द्वारा किया गया । बाद में इसका नाम हिमालय सेवा संघ हो गया ।

गढ़वाल जागृत संस्था - 1939 में कांग्रेस द्वारा पौड़ी में इस संस्था का गठन किया गया । प्रताप सिंह नेगी और उमानंद बड़थ्वाल इस संस्था के प्रमुख थे ।

पर्वतीय विकास जन समिति - कांगड़ा से अल्मोड़ा तक एक ही हिमालयी राज्य की स्थापना के लिए इस समिति का गठन 1950 में नयी दिल्ली में किया गया था ।

पर्वतीय राज्य परिषद - जून 1967 मे रामनगर के जनसभा में एक पृथक प्रशासनिक इकाई के गठन का प्रस्ताव पारित किया गया और प्रस्ताव के कार्यान्वयन हेतु दयाकृष्ण पाण्डे की अध्यक्षता मे इस परिषद का गठन किया गया ।

1973 में इस संगठन का पुनर्गठन किया गया और दो सांसदो ( प्रताप सिंह नेगी और नरेन्द्र सिंह बिष्ट ) को इसमें शामिल करते हुए इसका नाम पृथक पर्वतीय राज्य परिषद कर दिया गया ।

कुमाऊँ राष्ट्रीय मोर्चा - नये राज्य के उद्देश्य को लेकर अक्टूबर 1970 में कामरेड पी . सी . जोशी द्वारा यह संगठन बनाया गया ।

उत्तरांचल परिषद् -7 जून 1972 को नैनीताल में इस परिषद का गठन स्थानीय समस्याओं पृथक राज्य के लिए संघर्ष करने के उद्देश्य सेकिया गया था ।

उत्तराखंड क्रान्ति दल24 और 25 जुलाई 1979 को मसूरी के सम्मेलन में इस दल की स्थापना की गयी । इसकें प्रथम अध्यक्ष डॉ . देवीदत्त पंत थे ।

उत्तरांचल उत्थान परिषद्30-31 मई 1988 को शोबन सिंह जीना की अध्यक्षता में इस परिषद् का गठन किया गया ।

उत्तराखंड संयुक्त संघर्ष समिति - 11-12 जनवरी 1989 को जनसंघर्ष वाहिनी , उत्तराखण्ड जन परिषद् , उत्तराखण्ड रक्षा मंच और युवा जनता दल ने संयुक्त रूप से दिल्ली में इस संघर्ष समिति का गठन किया । द्वारिका प्रसाद उनियाल समिति के प्रमुख चुने गये थे ।

उत्तराखण्ड मुक्ति मोर्चा - वामपंथी धारा से जुड़े लोगों ने जनवरी 1991 में इस मोर्चा का गठन किया ।

संयुक्त उत्तराखंड राज्य मोर्चा - बहादुर राम टम्टा द्वारा संयुक्त उत्तराखण्ड राज्य मोर्चा का गठन अप्रैल , 1994 में किया गया । इसका उद्देश्य राज्य निर्माण में सहयोग करना था ।

उत्तराखण्ड पीपुल्स फ्रंट ( यू.पी.एफ. ) उत्तराखंड पीपुल्स फ्रंट का गठन 16-17 अप्रैल 1994 को किया गया । उत्तराखण्ड छात्र युवा संघर्ष समिति इसका गठन 18 सितम्बर 1994 को किया गया ।

राज्य आन्दोलन में शहीद

 

1 सितम्बर , 1994 के खटीमा कांड के शहीद धर्मानंद भट्ट , गोपीचन्द , रामपाल , भगवान सिंह सिरोला , प्रताप सिंह , परमजीत सिंह और भुवन सिंह

सितम्बर , 1994 के मसूरी कांड के शहीद धनपत सिंह , बेलमती चौहान , रायसिंह बंगारी , हंसा धनाई . मदन मोहन मंमगाई और बलवीर सिंह नेगी

अक्टूबर , 1994 को दिल्ली में आयोजित रैली मे भाग लेने जा रहे आन्दोलनकारियों में से रामपुर तिराहा ( मुजफ्फरनगर ) पर शहीद - गिरीश कुमार भद्री , सतेन्द्र सिंह , रवीन्द्र रावत , सूर्यप्रकाश थपलियाल , राजेश लखेड़ा और अशोक कुमार

पृथक राज्य हेतु उत्तराखण्ड युवा परिषद का गठन  - 1976 में किया गया 

3 अक्टूबर , 1994 को भड़के आंदोलन के शहीद - देहरादून मे राजेश रावत और बलवंत सिंह जंगवाण , कोटद्वार में पृथ्वीसिंह बिष्ट , राकेश देवरानी और नैनीताल में प्रताप सिंह बिष्ट उत्तराखण्ड राज्य के लिए शहीद इनके अतिरिक्त यशोधरा बैंजवाल , श्रीरामलाल , दीपक वालिया , जेठ सिंह बिष्ट आदि भी शहीद हुए

स्थाई राजधानी गैरसैंण में बनाने के प्रयास

ब्रिटिश गढ़वाल के चाँदपुर परगने की लोहबा पट्टी ही वर्तमान गैरसैंण है । इस समय यह चमोली की एक तहसील और विकासखण्ड है । यह दूधातोली और व्यासी पर्वत श्रृंखलाओं से घिरा हुआ है और लगभग सम्पूर्ण राज्य के केन्द्र में स्थित है । 60-70 वर्ग किमी . में फैली इस समतल घाटी की समुद्रतल से ऊँचाई लगभग 5360 फीट है ।

यहाँ से होकर आटागाड़ , पश्चिमी एवं पूर्वी नयार तथा पश्चिमी रामगंगा आदि नदियाँ बहती हैं । साथ ही यहाँ स्थान - स्थान पर प्राकृतिक जल स्रोत भी हैं । 

इस क्षेत्र के चारों तरफ गेवाड़ ,चाँदपुर गढ़ी और बधाण गढ़ी ( ग्वालदम ) आदि गढ़ियां स्थित हैं ।इस क्षेत्र में बिनसर ( विरणेश्वर महादेव ) जैसा धार्मिक स्थल और बेनीताल जैसा प्राकृतिक सौन्दर्य स्थल भी स्थित है ।

 गैरसैंण व देहरादून से राज्य के विभिन्न नगरों की दूरी इस प्रकार है - 

गैरसैण की अन्य जिलों से दुरी

 

 

जिले

गैरसैंण से दूरी (KM) में

देहरादून से दूरी (KM) में

उत्तरकाशी

266 किमी

208 किमी

पौड़ी

150 किमी

182 किमी

नई टिहरी

202 किमी

115 किमी

रुद्रप्रयाग

46 किमी

186 किमी

चमोली

95 किमी

259 किमी

हरिद्वार

255 किमी

55 किमी

पिथौरागढ़

280 किमी

578 किमी

चम्पावत

261 किमी

503 किमी

बागेश्वर

156 किमी

482 किमी

अल्मोड़ा

135 किमी

409 किमी

नैनीताल

155 किमी .

357 किमी

ऊधमसिंह नगर

213 किमी

279 किमी

देहरादून

272 किमी

    0 किमी 

24-25 जुलाई 1992 को उत्तराखण्ड क्रान्ति दल के 14 वें महाधिवेशन में बडोनी व काशी सिंह ऐरी ने गैरसैंण का नाम वीर चन्द्रसिंह गढ़वाली के नाम पर चन्द्रनगर रखकर राज्य की राजधानी घोषित किया और शिलान्यास भी किया था ।

1993 में उ.प्र . सरकार द्वारा उत्तराखण्ड राज्य की संरचना और राजधानी पर विचार करने के लिए गठित कौशिक समिति ने मई 1994 में अपने रिपोर्ट में राजधानी के लिए गैरसैंण की सिफारिश की और इसका 68 % लोगों से समर्थन किया था ।

सन् 1998 में गढ़वाल विश्वविद्यालय के मीडिया सेन्टर द्वारा कराए गए सर्वेक्षण में 80 प्रतिशत जनता की राय गैरसैंण को राजधानी बनाने की थी ।

गैरसैंण के पक्ष में 24 सितम्बर , 2000 को उत्तराखण्ड महिला मंच की विशाल रैली में विभिन्न संगठनों के 10 हजार से अधिक प्रतिनिधियों ने भाग लिया और इस मंच द्वारा आहूत करने पर 30 अक्टूबर को उत्तराखण्ड बंद पूर्णतः सफल रहा ।अक्टूबर  2000 में इस मुद्दे पर उत्तराखण्ड संयुक्त संघर्ष समिति द्वारा देहरादून में खबरदार  रैली का आयोजन किया गया था ।

2004 में बाबा मोहन उत्तराखण्डी गैरसैंण सहित 13 स्थानों में कहीं भी राजधानी को स्थापना व कई मुद्दों को लेकर 38 दिनों के आमरण अनशन के बाद 8 अगस्त , 2004 को बेनीताल में शहीद हो गये थे ।

भारतीय जनता पार्टी के पूर्व महामंत्री एवं भू . पू . मुख्यमंत्री भगतसिंह कोश्यारी ने ' उत्तरांचल में राजधानी के लिए गैरसैंण को उपयुक्त बताया गया है ।

11 जनवरी 2001 को अंतरिम भाजपा सरकार ने स्थाई राजधानी चयन आयोग का गठन किया । कुछ ही समय बाद भंग हो जाने के बाद 28 नवम्बर 2002 को कांग्रेस सरकार ने इसे पुनर्जीवित किया ।

1 फरवरी 2003 से आयोग के अध्यक्ष जस्टिस वीरेन्द्र दीक्षित थे , जिन्होंने 17 अगस्त 2008 को मुख्यमंत्री को अपनी रिपोर्ट सौंपी थी ।

इस रिपोर्ट में कई समस्याओं को गिनाकरगैरसैंण को खारिज कर दिया गया था और देहरादून को स्थाई राजधानी बनाने की सिफारिश की गई थी । ध्यातव्य है कि आयोग का कार्यकाल कुल मिलाकर 11 बार बढ़ाया गया था ।

दीक्षित आयोग की रिपोर्ट आने के बाद भी राजधानी हेतु धरने - प्रदर्शनों का क्रम जारी रहा । राजधानी विवाद पर विराम लगाते हुए 03 नव . 2012 को मुख्यमंत्री बहुगुणा ने गैरसैंण में मंत्रिपरिषद की बैठक आयोजित की और विधानसभा भवन बनाने का निर्णय लिया ।

14 जनवरी , 2013 को मुख्यमंत्री बहुगुणा ने भराड़ीसैंण में प्रस्तावित द्वितीय विधानसभा हेतु गैरसैंण में औपचारिक शिलान्यास किया , जबकि 9 नव . 2013 को भराड़ीसैंण में भूमि पूजन कर भवन निर्माण शुरू कराया । इसका निर्माण दो वर्ष के अन्दर किया जाना है ।

उल्लेखनीय है कि जम्मू - कश्मीर व महाराष्ट्र में भी दो - दो विधान सभा भवन हैं

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