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दिलीप कुमार-भारतीय सिनेमा ने खोया अपना बेशकीमती हीरा

Dilip Kumar: मोहब्बत हमने माना जिंदगी बर्बाद कर देती है, ये क्यों कम है कि मर जाने के बाद दुनिया याद करती है ...'मुगल-ए आजम' का यह डायलॉग दिलीप कुमार के जीवन की सच्चाई है। अभिनय के आजम ( महानतम और सर्वश्रेष्ठ ) कहे जाने वाले दिलीप साहब को दुनिया तमाम वजहों से याद करती रहेगी।


दिलीप कुमार-भारतीय सिनेमा ने खोया अपना बेशकीमती हीरा


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दिलीप कुमार को जितना प्यार भारत में  मिलता था उतने ही उनके चाहने वाले पाकिस्तान में भी बहुत है क्योकि दिलीप कुमार यानि यूसुफ़ खान का परिवार पेशावर पाकिस्तान से भारत आये थे। बहरहाल, भारत के साथ ही पाकिस्तान में भी यूसुफ खान उर्फ दिलीप कुमार के जाने का अफसोस हो रहा है। अपनी लंबी अभिनय यात्रा में दिलीप कुमार ने लगभग 60 फिल्मों में ही अभिनय किया। वे हर काम करने के पहले उस पर काफी विचार करते थे।


पढ़ें उनके फिल्मी सफर के ये तीन किस्से ...


फनकार आजम थे ट्रेजडी किंग दिलीप कुमार दिलीप,ट्रेजडी किंग दिलीप कुमार के साथ सबसे ज्यादा 8 दिन में करने वाली एक्ट्रेस की वैजयंती माला


 मुझे ऐसी भोजपुरी सिखाई कि बेस्ट एक्ट्रेस का अवॉर्ड मिला ' 


वैजयंती माला हमने साथ में 8 फिल्मों में काम किया। सारी सक्सेसफुल और हिट फिल्में हैं। हर बार वो मुझसे कहते थे कि हमारी टीम बेस्ट टीम है। हमारी अंडरस्टैंडिंग अपने आप बन गई थी। दिलीप जी के साथ ' देवदास ' मेरी पहली फिल्म थी। इसकी शूटिंग के पहले दिन मैं घबरा गई थी, क्योंकि वे इतने बड़े एक्टर थे और मैं तो डांसिंग स्टार थी। 

हर फिल्म में डांस करते थे, पर इतने ड्रामेटिक रोल जो करना था और वह भी दिलीप साहब के साथ उनके अपोजिट तो मैं बहुत घबरा गई थी। वो हमेशा ही अपने रोल को लेकर काफी डेडिकेटेड रहते थे। मैं उनकी तरह अपने काम को दिल लगा कर किया करती थी। 'गंगा जमुना' फिल्म के लिए मुझे भोजपुरी सिखाने में मदद की। मैं साउथ इंडियन थी।


दिलीप कुमार-भारतीय सिनेमा ने खोया अपना बेशकीमती कोहिनूर


मेरे लिए तो हिंदी बोलना कठिन था और उसके ऊपर से फिल्म में मुझे भोजपुरी भी बोलनी थी। भोजपुरी के लिए मुझे कैसे बोलना है, कैसे वर्ड को लिस्ट करना है, यह सब रिकॉर्ड करके भेजते थे। उन्होंने इस तरह से मेरी बड़ी मदद की। उनकी बदौलत ही 'गंगा जमुना' में धन्नो के कैरेक्टर के लिए मुझे बेस्ट एक्ट्रेस का अवॉर्ड मिला।


नया दौर के वक्त हम आउटडोर भोपाल में शूटिंग कर रहे थे। उनके साथ हमारा एक सॉन्ग था। उसके लिए तांगा चलाने की प्रैक्टिस करने के लिए रोज शाम दिलीप साहब निकल जाते थे। उनका ऐसा डेडिकेशन था। बाद में मैं जब भी मुंबई आती थी, तब मुझे लेने के लिए सायरा जी गाड़ी भेजती थीं। 


हम टाइम स्पेंड करते थे। एक बार उनके घर गई, तब सायरा जी ने उनसे कहा- देखो, कौन आया है। मधुमति जी आई हैं। इस पर उनका कोई रिएक्शन नहीं आया, लेकिन जब सायरा जी ने कहा कि देखो धन्नो आई हैं, तब पता नहीं कैसे एकदम से तुरंत आंखें खोले। उनका यह रिएक्शन मुझे आज भी याद है।


 दिलीप कुमार के साथ हर लम्हे को जिया सायरा बानो ने


दिलीप कुमार-भारतीय सिनेमा ने खोया अपना बेशकीमती कोहिनूर

जब दिलीप कुमार पिछली बार 11 जून को अस्पताल से ठीक होकर घर लौटे थे तो सायरा बानो बेहद खुश थीं। मैंने देखा वह जां दिलीप साहब की सेहत को लेकर बहुत ही फिक्रमंद रहीं, वहां दिलीप साहब के साथ अपनी जिंदगी के हर लम्हे को उन्होंने जी भरकर जिया। 


वह दिलीप साहब की खुशी और उनकी लंबी उम्र के लिए हर वक्त कुछ भी करने को तैयार रहती थीं। जिस तरह वह दिलीप कुमार की देखभाल कर रही थीं, उसे देख लगता था कि दिलीप कुमार अगले बरस अपना 100 वां जन्म दिन जरूर मनाएंगे। हालांकि ऐसा हो न सका। मगर विभिन्न रोगों से ग्रस्त होने के बावजूद यदि वे 98 की उम्र पार कर गए तो इसमें भी सायरा बानो का योगदान सबसे ज्यादा है। 


दिलीप कुमार सायरा बानो 11 अक्तूबर 1966 को वैवाहिक बंधन में बंधे थे। तब दिलीप 44 साल के थे और सायरा 22 की। इन दोनों का अपना तो कोई बच्चा नहीं था। लेकिन अपने वैवाहिक जीवन के ये पिछले 55 बरस सायरा ने पूरी तरह अपने 'साहब' को समर्पित कर दिये। पिछले करीब 10 बरसों से तो सायरा उनकी मां जैसी भूमिका निभा रही थीं। 


सायरा बताती हैं, 'मैं दिलीप साहब को 'साहब' या 'कोहिनूर' कहकर बुलाती हूं। जबकि वह मुझे सायरा कहकर ही बुलाते हैं। साहब के साथ बिताया मेरा हर पल मेरे लिए खुदा की रहमत है। मैंने अपने उन दिनों को अभी तक सहेज कर रखा है, जब साहब और मैं साथ में बैडमिंटन खेलते थे। कभी उनके साथ कार में लॉन्ग ड्राइव पर निकल जाते थे। 


अपने घर की छत पर जब साहब पतंग उड़ाते थे और किसी की पतंग काटने पर वह जिस तरह खुशी में जोर से सीटी बजाते थे, वे लम्हे भुलाए नहीं भूलते। जाहिर है कि 76 साल की सायरा के लिए अब एकाकी जीवन बहुत ही मुश्किल हो जाएगा। उनके कोहिनूर के जाने से उनके बंगले ही नहीं जिंदगी की भी चमक चली गई है। 


101 डिग्री बुखार में भी  बिना ब्रेक शूटिंग की


आखिरी फिल्म के डायरेक्टर उमेश मेहरा ने कुछ यादें साझा की फिल्म 'किला' के राइटर हुमायूं मिर्जा ने दिलीप साहब को जाकर स्क्रिप्ट सुनाई। उन्हें वो पसंद आई। फिर मैं भी उनसे मिलने गया, क्योंकि मेरे पिताजी एफसी मेहरा अपने जमाने के बहुत बड़े प्रोड्यूसर थे। 


मैंने उनसे कहा कि दिलीप साहब आप फिल्म के फ्लोर पर जाने से पहले जितना डिस्कशन करना है कर लें और बाद में मुझे अपनी 6 महीने की डेट्स दे दें। उन्होंने 7 महीने की अपनी डेट्स दी थी और यकीन मानिए कि उन्होंने 6 महीने के भीतर ही शूटिंग पूरी कर ली। दिलीप साहब टेक्निकली भी बहुत दक्ष थे। 


रिकॉर्डिंग स्टूडियो में जब वे अंदर अपनी वॉइस डब कर रहे थे तब हम लोगों ने बाहर से देखा कि वॉइस लेवेल में मॉड्यूलेशन हो रहा था। बाद में हमने महसूस किया कि दिलीप साहब अपनी आवाज में लॉन्ग शॉट, मिड शॉट और क्लोज अप शॉट के मद्देनजर उतार-चढ़ाव कर रहे थे। शूटिंग का पहला दिन था और दिलीप साहब इतनी जबरदस्त एविटंग कर रहे थे कि हम लोग अवाक थे। 


बाद में पता चला कि उन्हें ऑलरेडी 101 डिग्री बुखार है। इसके बावजूद भी उन्होंने शूटिंग से ब्रेक नहीं लिया। शुरू में तो दिलीप साहब ने कहा कि वह सिर्फ सुबह 11 से शाम 5 तक ही शूटिंग करेंगे। बाद में उन्हें मजा आने लग गया और वो लेट नाइट शूट भी करते लगे।'-


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