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देश को एक कर देने वाले नारों की कहानियां: आजादी की शब्द क्रांति

देश को एक कर देने वाले नारों की कहानियां: आजादी की शब्द क्रांति - देश की स्वतंत्रता के लिए अपना सबकुछ समर्पित कर देने वाले स्वतंत्रता सेनानियों ने समय - समय पर ऐसे नारे दिए , जो आज भी देश के जेहन में जोश और जज़्बा पैदा करते हैं । आइए जानते हैं ऐसे ही  कुछ नारों के बारे में , जो हमारी आजादी के हथियार और शब्द क्रांति के वाहक बन गए थे 


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आजादी कभी मिलती नहीं है इसे हासिल करना पड़ता है इंसान उसी वक्त से आजाद होने लगता है जब वह आजाद होने का संकल्प लेता है


मारो फिरंगी 


इस नारे से शुरू हुई थी आजादी की पहली लड़ाई 


1857 के मार्च की 29 तारीख ... इसी दिन इसी नारे से आजादी की पहली लड़ाई शुरू हुई थी । बैरकपुर छावनी में उस दिन मंगल पांडे ने यह नारा लगाते हुए विद्रोह कर दिया था । मंगल पांडे ने दो अंग्रेज अफसरों पर हमला किया । उनके खिलाफ मुकदमा चलाया गया और फांसी की सजा सुनाई गई । इसके लिए 18 अप्रैल की तारीख तय की गई । लेकिन अंग्रेजों को डर था कि अब विद्रोह देशभर में फैल सकता है , इसलिए 10 दिन पहले 8 अप्रैल 1857 को ही उन्हें फांसी दे दी गई । इसके बाद मेरठ , कसौली , कांगड़ा समेत कई जगहों पर सिपाहियों ने विद्रोह कर दिया । 


वंदे मातरम् 


संन्यासी आंदोलन का गीत आजादी का सबसे बड़ा नारा


1870 में बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय ने बंगाली भाषा में एक गीत लिखा , शुरुआत के दो शब्द थे- वंदे मातरम् । वंदे मातरम यानी भारत मां , मैं तेरे सामने नतमस्तक हूं । इस गीत को उन्होंने 1882 में प्रकाशित अपने उपन्यास आनंदमठ में इस्तेमाल किया । उपन्यास 1770 के दशक में अंग्रेजों के खिलाफ संन्यासियों के विद्रोह की कहानी थी । पहली बार राजनीतिक संदर्भ में रबींद्रनाथ टैगोर ने वंदे मातरम् भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के 1896 के सत्र में गाया । यह तुरंत आंदोलन का सबसे प्रभावी नारा बन गया । घबराई अंग्रेज सरकार इसे बैन करने पर विचार करने लगी ।


स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है...


स्वराज की मांग पर तिलक को हुई थी जेल की सजा 


1908 में लोकमान्य बाल गंगाधर  तिलक को राजद्रोह के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया था । उन्होंने अपने अखबार केसरी में स्वराज के आह्वान में सख्त लेख लिखा था , जिसे अंग्रेज सरकार बर्दाश्त नहीं कर सकी । स्वराज की मांग करने वाले वे पहले कुछ लोगों थे । तिलक को 6 साल के लिए बर्मा जेल भेज दिया गया । जेल में तिलक ने 400 पन्नों की किताब गीता रहस्य लिख डाली । जब वे रिहा हुए तो उन्होंने होम रूल लीग की शुरुआत की और नारा दिया ' स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर रहूंगा । ' 


सत्यमेव जयते 


मुंडकोपनिषद का यह नारा राष्ट्र का आदर्श वाक्य बना


1918 में पंडित मदन मोहन मालवीय ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अधिवेशन  के अपने अध्यक्षीय संबोधन में इस नारे का इस्तेमाल किया था । यह मुंडकोपनिषद से लिया गया है । पूरा श्लोक है-


 सत्यमेव जयते नानृतं सत्येन पन्था विततो देवयानः । 
येनाक्रमत्यूषयो ह्याप्तकामो यत्र तत्सत्यस्य परमं निधानम् ॥

भावार्थ है- सत्य की हमेशा जीत होता है , असत्य की नहीं । इसी मार्ग से हर लक्ष्य हासिल होता है । आजादी के बाद यह राष्ट्र का आदर्श वाक्य बना और इसे राष्ट्रीय प्रतीक चिह्न के नीचे अंकित किया गया ।


साइमन गो बैक 


लाला लाजपत राय पर लाठी अंग्रेजों के ताबूत की कील बनी 


1928 में अंग्रेजों ने भारत को कुछ अधिकारी देने के लिए साइमन कमीशन बनाया था । इसमें एक भी भारतीय नहीं था , इसलिए साइमन गो बैक का नारा बुलंद हुआ । लाहौर में प्रदर्शन में लाला लाजपत राय की मौत ब्रिटिश पुलिस के लाठी चार्ज से हो गई । लाला लाजपत राय ने तब कहा था- मेरे सिर पर लाठी का प्रहार अंग्रेजी शासन के ताबूत में कील साबित होगा । बदला लेने के लिए राजगुरु , सुखदेव और भगतसिंह ने ब्रिटिश अफसर जॉन स्कॉट पर हमला किया , जिसमें सांडर्स की मौत हो गई ।


कर मत दो ( ना - कर ) 


इस नारे ने अंग्रेजों को लगान घटाने पर किया था मजबूर 


1928 में ही गुजरात में बारडोली सत्याग्रह शुरू हुआ । वल्लभ भाई पटेल ने इसका नेतृत्व किया । उस समय प्रांतीय सरकार ने 30 % लगान बढ़ा दिया था । पटेल ने वृद्धि का जमकर विरोध किया । उन्होंने गुजराती में ना - कर का नारा दिया , जिसे हिंदी में ' कर मत दो ' कहा गया । सरकार ने सत्याग्रह को कुचलने की कोशिश की , लेकिन उसे झुकना पड़ा । कर घटाकर 6 % कर दिया गया । इस आंदोलन के सफल होने के बाद ही वहां की महिलाओं ने वल्लभ भाई पटेल को सरदार की उपाधि दी थी ।


इंकलाब जिंदाबाद


भगत सिंह ने अदालत में लगाया था क्रांति का नारा 


1929 की 6 जून । भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने इस नारे को बुलंद किया था । इंकलाब जिंदाबाद यानी- क्रांति अमर रहे । असेंबली बम धमाका मामले में कोर्ट में सुनवाई के दौरान क्रांतिकारियों ने यह नारा लगाते हुए कहा था- क्रांति की भावना मनुष्य जाति में स्थायी तौर पर रहनी चाहिए , ताकि रूढ़िवादी ताकतें समाज की प्रगति में कभी भी बाधा डालने के लिए संगठित न हो सकें । यह नारा 1921 में शायर हसरत मोहानी ने लिखा था । मोहानी खुद क्रांतिकारी भी थे । उन्हें ' चुपके - चुपके रात दिन आंसू बहाना याद है ' गजल के लिए भी पहचाना जाता है । 


जय हिंद 


स्कूल में बच्चे का लगाया नारा बना युद्ध का जयघोष 


1942 मेंसुभाष चंद्र बोस ने आजाद हिन्द फौज की कमान संभाली और हिंद नारे को अपनी सेना में प्रचलित कर दिया। यह नारा सबसे पहले क्रांतिकारी रामन पिल्लई ने लगाया था । 19 वीं सदी के पहले दशक की बात है । तिरूवनंतपुरम में जन्मे पिल्लई ने अपने स्कूल में यह नारा लगाया तो पुलिस बुला ली गई । बाद में वे और एक दोस्त चेम्पक रमन पिल्लई पढ़ाई के लिए जर्मनी चले गए । आजाद हिन्द फौज की स्थापना के पहले जब बोस जर्मनी पहुंचे तो पिल्लई ने जय हिंद कहकर अभिवादन किया । इस तरह स्कूल का नारा आजादी का जयघोष बन गया । 


करो या मरो , अंग्रेजो भारत छोड़ो ... 


अंग्रेजों को अहसास हुआ अब शासन मुमकिन नहीं 


1942 का साल , 8 अगस्त को भारत  छोड़ो आंदोलन का प्रस्ताव पारित हुआ । ' अंग्रेजो भारत छोड़ो ' का नारा बुलंद होने लगा । तब गांधी जी ने ग्वालिया टैंक मैदान में जनता से ' करो या मरो ' का आह्वान किया । यह एक सामूहिक नागरिक अवज्ञा आंदोलन था । इस बड़े आंदोलन ने साबित कर दिया कि अब अंग्रेजों के लिए भारत पर लंबे समय तक शासन करना मुमकिन नहीं है । । प्रमुख नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया , कांग्रेस पर प्रतिबंध लगा दिया गया और आंदोलन दबाने के लिए सेना को बुला लिया गया । 


तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा 


सिंगापुर , बर्मा में नेताजी ने दिया सबसे ताकतवर नारा 


1943 से 1945 तक आजाद हिन्द  फौज अंग्रेजों से युद्ध करती रही । 1943 में नेताजी ने सिंगापुर में आजाद हिन्द फौज के सुप्रीम कमांडर के रूप में सैनिकों को संबोधित किया और दिल्ली चलो का नारा दिया । 4 जुलाई 1944 को बर्मा में नेताजी ने कहा था- आज मैं आप से एक बड़ी मांग करता हूं । मैं आपसे खून की मांग करता हूं । खून ही दुश्मन से खून का बदला ले सकता है । केवल खुन ही है जो आजादी की कीमत चुका सकता है । तुम मुझे खून दो और मैं तुमसे आजादी का वादा करता हूं । "


पंक्तियां जो आजादी का संकल्प बन गई


दुश्मन की गोलियों का सामना करेंगे , आजाद हैं आजाद रहेंगे चंद्रशेखर आजाद को बचपन में अंग्रेजी सरकार ने 15 कोड़ों का दंड दिया था । तभी उन्होंने प्रण किया कि वे कभी पुलिस के हाथ नहीं आएंगे । वे हमेशा गुनगुनाया करते थे ' दुश्मन की गोलियों का हम सामना करेंगे । आजाद ही रहे हैं , आजाद ही रहेंगे । वे शहीद हुए , पुलिस उन्हें कभी नहीं पकड़ सकी ।


सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है , देखना है ... राम प्रसाद बिस्मिल की जुबान पर यह पंक्तियां हर वक्त रहती थी । 1927 में फांसी पर चढ़ते समय भी वे गा रहे थे - खून से खेलेंगे होली गर वतन मुश्किल में है , सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है , देखना है जोर कितना बाजु - ए कातिल में है । शायर बिस्मिल अजीमाबादी ने इसे लिखा था ।


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