भारतीय संस्कृति मातृ देवो भवः पितृ देवो भवः अर्थाथ माता,पिता एवं अतिथि को देव तुल्य मानना उनकी सेवा करनी चाहिए। जीवन में माता का स्थान है धरती का और पिता सूरज के समान है। सृष्टि जगत पृथ्वी से जन्म पा कर सूरज से ऊर्जा ले पनपता और जीवन यापन करता है। सूरज सौर परिवार का पिता है। हम प्रतिदिन की प्रार्थना में ईश्वर से कहते हैं "तुम्ही हो माता, पिता तुम्ही हो' अर्थात् परमात्मा को भी निकटता का एहसास दिलवाने के लिए उसकी तुलना माता-पिता से करते हैं।
सुख व गुण देने वाली हर वस्तु को हम माँ पुकारते हैं और सबका पालन करने वाले ईश्वर को जगत पिता कहते हैं। इन सबका भाव हुआ कि दुनिया में माता-पिता से श्रेष्ठ कोई संबंध नहीं। तयोपनिषद् में तो साफ कहा गया है कि 'मातृ देवो भवः पितृ देवो भव: आचार्य देवो भवः अतिथि देवो भवः।'
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बुजुर्गों की उपेक्षा बढ़ रही है। संपत्ति के लिए उन पर अपनी ही औलाद के अत्याचार होने शुरू हो चुके हैं। जीवन की संध्या में इन बेसहारों को एकाकी जीवन जीना पड़ रहा है। समाज में बढ़ रहे वृद्धाश्रम हमारी संस्कृति पर कैंसर के फफोले हैं अगर इनको बढ़ने से न रोका गया और इलाज न किया गया तो हमारा अमीर सभ्याचार दम तोड़ जाएगा।
इस लेख के माध्यम से हमारा छोटा सा प्रयास है समाज को उस संस्कृति व विरासत से अवगत करवाने का जिसमें माता-पिता का अहम स्थान है। हमारे इस प्रयास से अगर एक बुजुर्ग को भी राहत मिलती है तो हम इसे अपना अहोभाग्य समझेंगे।
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जब वह अंतिम सांस ले, तुम उनके पास ही रहना
माता - पिता की भक्ति Parental Devotion
गुरुशुश्रूषया त्वेवं ब्रह्मलोकं समश्नुते ।।
माता की भक्ति से मनुष्य इस लोक को, पिता की भक्ति से मध्य लोक को और की गुरु भक्ति से ब्रह्म लोक को प्राप्त कर लेता है। इनकी सेवा बालक के लिये परम तप कही गयी है, क्योंकि यह परम धर्म है, शेष सब उपधर्म है। -मनु 2- 233
माता-पिता की सेवा
न तस्य निष्कृतिः शक्या कर्तुं वर्षशतैरपि ।। ( - मनु . 2-227 )
मनुष्य की उत्पत्ति के समय जो क्लेश माता-पिता सहते हैं, उसका बदला सौ वर्षों में भी उनकी सेवादि करके नहीं चुकाया जा सकता। इसलिये बालकों को नित्य मातापिता के चरणों में नमस्कार, उनकी आज्ञा का पालन और उनकी सेवा अवश्य करनी चाहिये।
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माता पिता पर कविता मेरा आसमाँ
घनी छाँव है मेरी माँ यहीं है मेरा आसमाँ
पिता का है प्यार अनोखा, जैसे शीतल हवा का झोंका
माँ की ममता सबसे प्यारी, सबसे सुन्दर, सबसे न्यारी
हाथ पकड़ चलना सिखलाते, पिता हमको खूब घुमाते
माँ मलहम बनकर लग जाती, जब भी हमको चोट सताती।
माँ पापा बिन दुनिया सूनी, जैसे तपती आग की धूनी
जिनके कंधों पर घूमा हूं, हर खुशियों को चूमा हूं,
मेरी खुशियों के लिए, जीवन परेशानी में काटा है,
ग़लत राह पकड़ने पर, हर पल हमको डांटा है,
ऐसे राह दिखाने वाले का, क्या हक अदा कर सकूँगा?
सोच भी कैसे सकता हूं, माँ-बाप का सम्मान नहीं करूँगा।
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