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भारतीय पौराणिक कथा मातृ पितृ भक्त श्रवण कुमार की कहानी एक प्रेणा स्रोत

Bhakt Shravan Kumar ki Kahani: भक्त श्रवण कुमार का नाम इतिहास में मातृभक्ति और पितृभक्ति के लिए अमर रहेगा। इनके माँ-बाप अंधे थे। Shravan Kumar के पिता का नाम शांतनु एवम् माता का नाम ज्ञानवंती था। वह दिन भर उनकी सेवा करते कभी काम के कारण शिकायत न करता। सुबह उठ कर माता-पिता के लिए नदी से पानी भर कर लाता। 



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जंगल से लकड़ियाँ लाता। चूल्हा जलाकर खाना बनाता। माँ उसे मना करती 'बेटा श्रवण, तू हमारे लिए इतनी मेहनत क्यों करता है? भोजन तो मैं बना सकती हूँ। इतना काम करके तू थक जाएगा। 'परंतु श्रवण कहता, 'नहीं माँ, तुम्हारे और पिता जी का काम करने में मुझे जरा भी थकान नहीं होती। मुझे आनंद मिलता है।


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'हे भगवान! हमारे श्रवण जैसा बेटा हर माँ-बाप को मिले। उसे हमारा कितना ख्याल है। 'माता-पिता श्रवण को आशीर्वाद देते न थकते। श्रवण के माता-पिता को बेटे के विवाह की चिंता हुई। अंत में एक लड़की के साथ श्रवण कुमार का विवाह हो गया। 


श्रवण की पत्नी का स्वभाव अच्छा नहीं था। उसे अंधे माता पिता की सेवा करना अच्छा नहीं लगता था। अकसर माता-पिता को लेकर वह श्रवण से झगड़ा करती। वह अपने लिए अच्छा भोजन बनाती, पर श्रवण के मा पिता को रूखा सूखा खाना देती। एक दिन श्रवण ने देखा उसके माता-पिता नमक से रोटी खा रहे हैं और उसकी पत्नी पूरी और मालपुए का भोजन कर रही है। 


श्रवण को क्रोध आ गया। दोनों के बीच झगड़ा इतना बढ़ा कि वह श्रवण को छोड़ कर चली गई। अपना दुख भुलाकर श्रवण फिर बूढ़े माता-पिता की सेवा में जुट गया। एक दिन श्रवण के माता-पिता ने कहा- 'बेटा, तुमने हमारी सारी इच्छाएँ पूरी की हैं। अब एक इच्छा बाकी रह गई है। 'कौन सी इच्छा माँ? क्या चाहते हैं पिता जी? आप आज्ञा दीजिए। प्राण रहते आपकी इच्छा पूरी करूँगा।' 


हमारी उमर हो गई अब हम भगवान के भजन के लिए तीर्थ यात्रा पर जाना चाहते हैं बेटा। शायद भगवान के चरणों में हमें शांति मिले। 'श्रवण सोच में पड़ गया। उन दिनों यातायात की सुविधा नहीं थी। वे लोग ज़्यादा चल भी नहीं सकते थे। श्रवण को एक उपाय सूझ गया। श्रवण ने दो बड़ी-बड़ी टोकरियाँ लीं। उन्हें एक मज़बूत लाठी के दोनों सिरों पर रस्सी से बाँध कर लटका दिया। 


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फिर उसने माता-पिता को गोद में उठा कर एक एक टोकरी में बिठा दिया और माता-पिता को तीर्थ यात्रा कराने चल पड़ा। वे लोग हरिद्वार, अयोध्या, गया, काशी, प्रयाग सब जगह गए। माता पिता देख नहीं सकते थे, इसलिए श्रवण उन्हें तीर्थ के बारे में सारी बातें सुनाता। एक दोपहर श्रवण और उसके माता-पिता अयोध्या के पास एक जंगल में विश्राम कर रहे थे। माँ को प्यास लगी। श्रवण कमंडल लेकर पानी लाने चला गया। अयोध्या के राजा दशरथ जंगल में शिकार खेलने आए हुए थे। 


श्रवण ने जल भरने के लिए कमंडल को पानी में डुबोया। बर्तन में पानी भरने की आवाज़ सुनकर राजा दशरथ को लगा कि कोई जानवर पानी पीने आया है। राजा दशरथ आवाज़ सुनकर अचूक निशाना लगा सकते थे। आवाज़ के आधार पर उन्होंने तीर मारा। तीर सीधा श्रवण के सीने में जा लगा। श्रवण के मुंह से 'आह' निकल गई। राजा जब शिकार को लेने पहुंचे तो उन्हें अपनी भूल मालूम हुई। अनजाने में उनसे इतना बड़ा अपराध हो गया। उन्होंने श्रवण से क्षमा माँगी और पूछा "बताइए मैं आपके लिए क्या कर सकता हूँ?"


'राजन, जंगल में मेरे माता पिता प्यासे बैठे हैं। आप जल ले जाकर उनकी प्यास बुझा दीजिए। मेरे विषय में उन्हें कुछ न बताइएगा। यही मेरी विनती है।" इतना कहते-कहते श्रवण ने प्राण त्याग दिए। 


राजा दशरथ, जल लेकर श्रवण के माता पिता के पास पहुंचे। राजा के पैरों की आहट सुन वे चौंक गए। 'कौन है? हमारा बेटा श्रवण कहाँ है?' 


माँ, अनजाने में मेरा चलाया बाण श्रवण के सीने में लग गया। उसने मुझे आपको पानी पिलाने भेजा है। मुझे क्षमा कर दीजिए। "हाय मेरा बेटा माँ चीत्कार कर उठी। बेटे का नाम रो रोकर लेते हुए, दोनों ने प्राण त्याग दिए। पानी को उन्होंने हाथ भी नहीं लगाया। प्यासे ही उन्होंने इस संसार से विदा ले ली। सचमुच श्रवण कुमार की माता पिता के प्रति भक्ति अनुपम थी। 

जो पुत्र माता-पिता की सच्चे मन से सेवा करते हैं, उन्हें श्रवण कुमार कहकर पुकारा जाता है। सच है, माता पिता की सेवा सबसे बड़ा धर्म है।


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