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लघुकथा: बहू की जगह | Bahu ki Jagah Short Story

लघुकथा: सास को खुश करने की हर संभव कोशिश करने के बाद भी जब सुना कि बहू क्या होती है, तो दिल दुख गया था....

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लघुकथा- बहू की जगह

ये बात उस समय कि है जब मेरी शादी को एक साल हो चुका था। मन में सास का डर तो था, पर सारे कार्यों में कुशल होने से एक विश्वास-सा बन गया था कि मैं धीरे-धीरे सबका दिल जीत लूंगी। हालांकि, शादी को एक साल बीतने और हर काम को कुशलतापूर्वक कर लेने के बावजूद मैंने सास के मुंह से अपने लिए तारीफ़ का एक शब्द भी नहीं सुना था सो मन में उनके लिए थोड़ी कड़वाहट आने लगी थी. 

उन्हीं दिनों सास से मिलने कुछ रिश्तेदार आए और मेरे बारे में उनकी राय जानने को पूछने लगे कि छोटी बहू कैसी है? तो मेरी सास बोलीं, 'बिलकुल नमक के जैसी।' मैं चाय लेकर आ रही थी, तो मैंने उन लोगों की यह बात सुन ली।

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सुनकर बहुत बुरा लगा और मैं अनमनी-सी होकर सबके पैर छूकर आ गई और कमरे में आकर रो पड़ी। रात को खाना खाने का भी मन नहीं हुआ। खाना ठीक से नहीं खाते देख कर सास ने पूछा, 'क्या बात है, तुम बहुत उदास लग रही हो और खाना भी नहीं खाया। तबियत तो ठीक है ना तुम्हारी?' इतना सुन मैं फिर रो पड़ी और जो सुना था सब बता दिया।  

सास हंसते हुए बोलीं, 'बस, इतनी सी बात। तुमने मेरी बात का ग़लत मतलब निकाल लिया। उसका मतलब है कि बहू नमक के समान होती है जिसका कर्ज कभी नहीं चुकाया जा सकता क्योंकि वो हमारे लिए अपना सब कुछ छोड़कर आती है और जिसके बिना हर चीज बेस्वाद लगती है जैसे बिना नमक के सब बेस्वाद लगता है। और घर की इज्जत तो बहू से ही होती है। 

मेरी सास का ये नजरिया जानकर मैं दंग रह गई थी। मेरी उनके प्रति सोच बदल गई थी। आज सास के रूप में मुझे एक मां और मिल गई।

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