सऊद नदीम शहजाद पक्षी प्रेमी 20 साल में 23 हजार पक्षियों को बचाया
सऊद, नदीम शहजाद, पक्षी प्रेमी 20 साल में 23 हजार पक्षियों को बचाया इन पर बनी डॉक्यूमेंट्री 'ऑल देट ब्रीद्स' इस हफ्ते कान्स फिल्म फेस्टिवल में दिखाई जाएगी.ये कहानी है दिल्ली के दो भाइयों मोहम्मद सऊद नदीम् शहजाद् और उनके पक्षी प्रेम की ..दोनों पिछले दो दशकों से पक्षियों ( खासकर चील ) के बचाव और इलाज में जुटे हैं। आर्थिक समस्याओं के बावजूद उनकी यह मुहिम जारी है।
जब हम पहली चील घर पर लाए, तो मैं देर रात जागकर उसे घूरता रहा। लगा किसी और ग्रह से किसी रेपटाइल को उठा लाया हूं। 'एक घंटे 37 मिनट की डॉक्यूमेंट्री' ऑल देट ब्रीथ्स' में दोनों भाई इस काम की प्रेरणा के बारे में बात करते हैं।
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दिल्ली के फिल्ममेकर शौनक सेन की बनाई यह डॉक्यूमेंट्री 17 मई से शुरू हो रहे कान्स फिल्म फेस्टिवल में दिखाई जाएगी। इससे पहले अमेरिका में संडेन्स फिल्म फेस्टिवल में भी ग्रांड ज्यूरी प्राइज मिल चुका है। नदीम कहते हैं पक्षियों के साथ जीवन के दो दशक बीत चुके हैं।
इन सालों में आर्थिक दिक्कतों के कारण कई बार लगा कि यह काम बंद कर दें। लेकिन फिर दिल नहीं माना। नदीम बताते हैं कि 1995 की बात है, उन्हें और सऊद को गली में घायल चील मिला था। वे इसे नजदीक के पशु चिकित्सालय इलाज के लिए ले गए। लेकिन डॉक्टर्स ने इसे गंदा पक्षी कहकर उपचार से इंकार कर दिया।
मन में सवाल कौंधा कि कोई पक्षी गंदा कैसे हो सकता है। दिल्ली में मटन की ज्यादा दुकानें होने के कारण ऐसे पक्षियों की तादाद ज्यादा रही है। लेकिन ये इकोलॉजिकल हेल्थ के लिए जरूरी हैं, खाद्य श्रृंखला के शीर्ष शिकारी हैं। बस तब से बेजुबानों की मदद करने की ठान ली।
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दिल्ली के वजीराबाद में अपने घर के बेसमेंट में रेस्क्यू सेंटर शुरू किया। चाइनीज मांझे के कारण पक्षियों के घायल होने की सबसे ज्यादा घटनाएं होती हैं। दिल्ली में आम लोगों के अलावा पशु चिकित्सालय भी फोन करके पक्षियों के रेस्क्यू के लिए बुलाते हैं। हमारे पास कोई पशु चिकित्सा से जुड़ी कोई डिग्री नहीं है। लेकिन एक्सपर्ट से सीखकर इनका इलाज और देखभाल करते हैं। इसके लिए पार्टटाइम पशुचिकित्सक भी रखे हुए हैं।
ज्यादातर पक्षी ठीक होकर वापस उड़ जाते हैं, जबकि गंभीर रूप से घायल पक्षी बेहद तनाव में होने के कारण मर जाते हैं । हमने 2010 में 'वाइल्डलाइफ रेस्क्यू' नाम का एनजीओ बनाया। कुछ सालों से आर्थिक मदद मिल रही है, लेकिन यह नाकाफी है। संसाधनों की कमी के कारण काम का दायरा अभी छोटा है। लेकिन उम्मीद है कि बेजुबानों की मदद की यह मुहिम जारी रहेगी।
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