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डॉ. ज्ञान वत्सलस्वामी: उपदेश नहीं काम से मिसाल पेश करें | Dr. Gyan Vatsalaswamy Motivational Speech in Hindi

Dr. Gyan Vatsalaswamy Motivational Speech: उपदेशक बनना सरल है। सलाह देने में सबको रसपान सा आनंद मिलता है, क्योंकि इसमें कष्ट नहीं उठाना पड़ता। पर इसका प्रभाव पानी में बुलबुले की आयु जितना अल्प होता है। 

आचरण की पुकार इतनी तेज और आकर्षक होती है कि वाणी का शोर उसमें गुम हो जाता है। सरल शब्दों में कहें तो वाणी से ज्यादा आचरण का प्रभाव अधिक पड़ता है।

डॉ. ज्ञान वत्सलस्वामी motivational speaker in hindi,,डॉ. ज्ञान वत्सलस्वामी

वाणी नहीं व्यवहार की भाषा बोलेंगे तो सफलता तो ज्यादा मिलेगी ही. साथ में आत्मिक संतोष भी होता है. आचरण लोगों के ह्रदय को छू जाता है और परिवर्तन के आंदोलन को झंकृत करता है. -डॉ. ज्ञान वत्सलस्वामी

Set an example by work, not preaching- Gyan Vatsalaswamy

उपदेश नहीं काम से मिसाल पेश करें- डॉ. ज्ञान वत्सलस्वामी

Dr. Gyan Vatsalaswamy Motivational Speech in Hindi

एक बार लाल बहादुर शास्त्री ने अपने बेटे से कहा तुम बड़े बुजुर्गों के पैर छूते हो। पर मेरा अवलोकन है कि तुम ठीक ढंग से झुककर चरण स्पर्श नहीं करते। युवावस्था के जोरवश पुत्र ने जवाब दिया कि मैं तो सही ढंग से ही नमन करता हूं पिताजी, हो सकता है कि आपके देखने में कोई त्रुटि हो रही है।

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शास्त्री जी ने बेटे को जो जवाब दिया उसे वह आजीवन नहीं भूल सका। शास्त्री जी के बेटे ने याद करते हुए बताया कि यदि पिताजी कहते कि वह सही हैं और मैं गलत। तो वह मुझे सामान्य पिता की भांति लगते। उन्होंने उस वक्त मुझे जिस अंदाज में समझाया, वह अन्य पिताओं से अलग खड़े हो गए। 

पिताजी मेरे पास आए और सही ढंग से झुककर मेरे पैर छू लिए। ऐसा करते हुए कहा कि बेटा, अगर तुम इस तरह बड़ों का अभिवादन करते हो तो सही हो, फिर मुझे माफ कर देना और अगर इस तरह अभिवादन नहीं करते हो तो आगे से ऐसा करना शुरू कर देना। 

शास्त्रीजी ने शब्दों से नहीं व्यवहार से बेटे का हृदय जीत लिया। संभवतः इस जीवंत सीख के बाद कभी भी उन्हें बेटे को बड़ों के प्रति सम्मान प्रकट करने की सही रीत के बारे में टोकना सिखाना नहीं पड़ा होगा। महान व्यक्तित्व की यह विशेषता होती है कि वे लंबे भाषण नहीं देते अपितु छोटी-छोटी क्रियाओं के माध्यम से जीवन के अमूल्य पाठ सिखाते हैं। 

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उपदेशक बनना सरल है। दूसरी ओर वाणी के मुकाबले उदाहरण पेश करने में कष्ट उठाना होता है, लेकिन इसके जो संस्कार पड़ते हैं वे हृदय की संवेदनाओं तक को झंकृत कर जाते हैं और संदेश पाने वाले को भी अनुसरण की प्रेरणा देते हैं। 

सरल शब्दों में कहें तो वाणी से ज्यादा आचरण का प्रभाव अधिक पड़ता है। संक्षेप में बात उपदेशक बनने की नहीं, उदाहरण प्रस्तुत करने की है। प्रमुख स्वामी महाराज की यह विशेषता थी कि वे हमेशा आचरण से संदेश देते थे, वार्तालाप करते थे। 

साल 1960 की बात है। सारंगपुर में एकादशी का उत्सव हुआ। आस्था धाम में पधारे श्रद्धालुओं ने विदाई लेना शुरू की। दोपहर चढ़ने लगी थी तो थकेहारे संत भक्तजन विश्राम करने लगे। प्रमुख स्वामी महाराज भी सभामंडप में विश्राम कर रहे थे। कुछ पल ही बीते कि सहायक संत की अचानक नींद टूटी उन्होंने देखा कि प्रमुख स्वामी महाराज का बिछौना खाली है। 

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मन में त्वरित सवाल उठा प्रमुख स्वामी कहां गए? संत खोजते-खोजते मंदिर के पिछले हिस्से में जा पहुंचे, जहां उत्सव की अवधि के लिए जमीन में छोटे-छोटे गड्ढे कर अस्थाई शौचालय बने हुए थे। संत वहां का दृश्य देखकर अवाक् रह गए। प्रमुख स्वामी महाराज अकेले ही अस्थाई शौचालयों की साफ-सफाई में जुटे थे वह भी तपती दोपहर में। विश्राम का त्यागकर और किसी को भी बताए-सूचना दिए बिना। ऐसे अनेक उदाहरण हैं। 

गुरुजन का ऐसा व्यवहार शिष्य-श्रद्धालुओं को सहज सेवा की प्रेरणा देता है। भव्य-विशाल उत्सव आयोजनों में स्वयं सेवकों को निःस्वार्थ भाव से छोटे-छोटे कार्य करते देख लोगों को अचरज होता है कि आखिर ऐसी सेवा भावना कहां से आती होगी? 

इस सेवाभाव का मुख्य स्रोत है प्रमुख स्वामी महाराज का व्यवहार से सीख देने का दर्शन। उन्होंने उदाहरण देकर ही हमेशा लोगों को सिखाया समझाया। उनका बर्ताव हमेशा इतना श्रेष्ठ था कि उनके शब्दों को वजन पड़ता था। 

वाणी नहीं व्यवहार की भाषा बोलेंगे तो सफलता जो ज्यादा मिलेगी ही। साथ में आत्मिक संतोष भी होता है। आचरण लोगों के हृदय को छू जाता है और परिवर्तन के आंदोलन को झंकृत करता है। आइए प्रमुख स्वामी महाराज के जीवन से प्रेरणा लें कि वाणी के बजाय आचरण की भाषा के एक्सप्रेस-वे पर सरपट आगे बढ़ें। मिसाल बनें।

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