Short Story in Hindi: पिता की बात को अंधविश्वास कहकर नकार दिया था, लेकिन अब आपबीती भी पिता की हिदायत को सही साबित कर रही थी।
लघुकथा-समय नहीं रुकता Samay Nahi Rukta Hindi Kahani
क़रीब दो साल पहले की बात है। घर से दूर दूसरे शहर में रहकर कॉलेज पढ़ता था। एक रात अपने सारे प्रैक्टिकल ख़त्म करके बड़े चैन से सोने जा रहा था, ये सोचकर कि कल पहली बार प्रोफेसर के सामने अपनी पूरी प्रैक्टिकल फाइल चैक कराऊंगा। थका हुआ होने के कारण बड़ी गहरी नींद लगी।
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सुबह नींद अचानक खुली तो अंदर का कुंभकर्ण प्रार्थना करने लगा कि काश, सात न बजा हो। आलस भरी आधी खुली आंखों से सामने दीवार घड़ी में देखा तो सवा पांच हो रहा था। ये क्षण मनुष्य इतिहास के कुछ परमानंदित क्षणों में से एक था। अभी दो घंटे और हैं सोचकर फिर से नींद की गहराइयों में छलांग लगा दी।
कुछ समय बाद फोन की घंटी से नींद खुली। बेहोशी की हालत में फोन उठाया तो दोस्त ने पूछा, 'कहां हो भाई सर आने वाले हैं। 'ये सुनकर नींद के साथ-साथ होश भी उड़ गए। फोन में देखा तो साढ़े नौ बज रहा था।
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दीवार घड़ी पर फिर नजर दौड़ाई तो होश उड़कर हिमालय चला गया। उसमें अब भी सवा पांच ही बज रहा था। फिर याद आया कि वो घड़ी कल से बंद थी। कॉलेज समय से पहुंचने का अब सवाल नहीं था। टेबल पर रखी फाइल को देखते हुए एक याद में खो गया, जब पापा सख़्ती से कहते थे कि घर में बंद घड़ी रखने से अपशकुन होता है।
मैं पूरे विश्वास के साथ उस बात को अंधविश्वास मानता था। उस दिन समझ आया कि भले उस बात को मानने से किसी का फायदा न होता हो, मगर न मानने से नुकसान जरूर हो सकता है।
अंधविश्वास हो या जो भी, मगर पापा की बात मान लेता तो उस दिन अपनी मेहनत पर पानी फिरते न देख रहा होता।
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