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कहानी 'आशीर्वाद' | Aashirwad Hindi Kahani

Hindi Story Reading: उसके कानों में मर्दाना आवाज़ में गाए जाने वाले गाने के कुछ शब्द पड़े। वह अभी घर की दहलीज तक ही आ पाई थी। उसके बढ़ते कदम वहीं ठिठककर थम गए। तभी पड़ोस की उसकी हमउम्र एक औरत उसका हाथ पकड़कर उसे बाहर खींच लाई।


कहानी- आशीष दलाल


Hindi Kahaniyan, moral shory in hindi


कहानी 'आशीर्वाद' | Aashirwad Hindi Kahaniyan


घर के बाहर खुली जगह में भरी दोपहर को महफिल जम चुकी थी। ढोलक की थाप पर नाच-गाना चल रहा था। महिलाओं से घिरी मोहिनी अपने चार महीने के बच्चे को गोद में लेकर थपकियां दे रही थी, लेकिन शोरगुल से बच्चा परेशान होकर रोए जा रहा था। हारकर मोहिनी उसे लेकर घर के अंदर चली गई।


बच्चे को दूध पिलाकर मोहिनी ने पास ही रखे झूले में डाल दिया और लोरी गाते हुए उसे सुलाने का यत्न करने लगी। थोड़ी ही देर में बच्चे के रोने का स्वर बंद हो गया। मोहिनी ने उसके पैरों पर चद्दर ओढ़ा दी और वहीं कमरे की खिड़की के पास खड़ी होकर बाहर चल रहे नाच-गाने का आनंद लेने लगी। कुछ सोचते हुए वह पुरानी यादों में खो गई।


'नन ठन चली बोलो ए जाती रे जाती रे..." गाना पूरा होने के बाद जैसे ही राजेश ने ठुमका लगाया तो वहां मौजूद सभी लड़के-लड़कियों के चेहरों पर हंसी छा गई। कॉलेज के वार्षिकोत्सव में किए जाने वाले कार्यक्रमों में स्टूडेंट्स का एक ग्रुप डांस भी था, जिसमें लड़की के किरदार में राजेश डांस कर रहा था।


'वाह राजेश! क्या बात है तेरे ठुमके तो लड़कियों को भी पीछे छोड़ देते हैं। क्या नजाकत पाई है। जो तू लड़की होता न तो मैं तुझे भगाकर ले जाता।' सुनील ने राजेश को चिढ़ाते हुए कहा। 'ओये सुनील, खबरदार जो तूने मेरे राजेश की ओर आंख भी उठाई तो। कहे देती हूं...।' राजेश कुछ कहता, इससे पहले मोहिनी ने बीच


में पड़ते हुए सुनील को धमकाया। 'मजाक कर रहा हूं मोहिनी। हम सभी को पता है राजेश पर तेरा पेटेंट है, पर है कमाल का डांसर। हर किरदार का डांस मिनटों में ही सीखकर कर लेता है। एक दिन यह जरूर कुछ अनूठा करेगा।' सुनील ने मोहिनी की बात का जवाब दिया और सभी एक बार फिर हंस पड़े।


राजेश को याद करते हुए उसकी आंखों में आंसू आ गए। मोहिनी ने राजेश को बचपन से अपने आसपास ही पाया था। किशोरावस्था और यौवनकाल की संधि पर आकर खड़े हुए राजेश का दिन भी मोहिनी से शुरू होता और पूरा भी होता तो मोहिनी के नाम से अपने घर की खिड़की पर मोहिनी सुबह होते ही एक बार आकर अवश्य खड़ी होती और सामने वाले घर . के दरवाजे पर राजेश की एक झलक पाकर फिर अपने दिन के बाकी कामों की शुरुआत करती। 


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लड़कियों से सदैव घिरे रहते राजेश को देखकर उसके हमउम्र दोस्तों को उससे जलन जरूर होती, लेकिन फिर मोहिनी और उसके बीच दोस्ती के साथ पनपते अहसास को देखकर वे खुद ही ठंडी आह भरते हुए उन्हें अकेले मिलने का हरसंभव मौका दे देते।


'राजू, हम कितने नसीबदार हैं न जो बचपन से साथ हैं और सारी जिंदगी ही साथ रहेंगे।' कॉलेज से घर आते वक्त रास्ते में राजेश के साथ चलते हुए मोहिनी ने कहा।


'मोहिनी, अभी शादी के सपने देखना बंद करो। हमारे मम्मी-पापा इस बात के लिए तैयार हैं, इसका मतलब यह नहीं कि कॉलेज की पढ़ाई पूरी होने के बाद तुम्हारी मंजिल बस शादी ही हो।' राजेश ने जैसे इस वक्त मोहिनी के मन में उठते अरमानों का गला घोंटते हुए जवाब दिया।


'तुम बड़े ही निर्दयी हो। पढ़ाई पूरी करने के बाद कौन-सा काम बाकी रह जाता है? तुम नौकरी करोगे और फिर हमारी शादी हो जाएगी। कितना मजा आएगा न जब मैं शाम को दरवाजे पर खड़ी तुम्हारे आने का इंतजार करूंगी।' मोहिनी अभी भी अपने सपनों की दुनिया से बाहर नहीं आना चाहती थी।


 'मोहिनी, मुझे डांसर बनना है। बीकॉम तो मैं मम्मी-पापा का मान रखने के लिए कर रहा हूं। मेरी मंजिल नौकरी नहीं है। मेरा सपना है कि मेरी डांस एकेडमी हो। मैं मुम्बई जाकर ट्रेनिंग लेना चाहता हूं।' राजेश ने अपने मन में आकार ले रहे सपनों से अवगत कराते हुए मोहिनी से कहा। 'मैं तुम्हारे बिना एक पल भी नहीं रह सकती।' कहते हुए मोहिनी ने राजेश का हाथ कसकर पकड़ लिया।


 'अरे, मैं अभी थोड़े ही जा रहा हूं। दो महीने बाद हमारी फाइनल ईयर की परीक्षा है। वह खत्म होते ही अपने सपनों को साकार करने मुम्बई की ओर निकल जाऊंगा। फिर कुछ बनकर वापस आकर तुम्हें अपने सपनों की राजकुमारी से हकीकत की रानी बना लूंगा।' राजेश उसे देखकर हंस दिया।


तभी बाहर से आती नाच-गाने की आवाजें बंद हो गईं और एक मर्दाना स्वर कौंधा, 'बच्चे को लेकर आओ, आशीर्वाद देना है।' 


आंखों में उभर आए आंसुओं को पोंछकर मोहिनी खिड़की के पास से हटकर वापस अपने बच्चे के झूले के पास आकर खड़ी हो गई।


 'बहू। चल, लल्ला को लेकर बाहर आ।' तभी उसकी सास ने कमरे में झांकते हुए कहा और वहां से जाने लगी।


 "पर मम्मी, दीप तो सो रहा है।' 


तो क्या हुआ । उठ जाएगा। ऐसे लोगों का आशीर्वाद जिस बच्चे को मिल जाता है, वह जीवन में बहुत तरक्की करता है। कहते हैं ये किन्नर लोग माता के सच्चे भक्त और पवित्र होते हैं।' सास ने उसे समझाते हुए कहा।


'अब खड़ी क्या है? और सुन अपनी न पहनी हुई एक नई साड़ी भी निकाल लेना। रुपयों के साथ उन्हें सौगात में साड़ी भी दे देंगे।' मोहिनी को अब भी यूं ही खड़ा देख सास ने फिर से टोका और वहां से चली गई।


 मन मसोसते हुए उसने अपनी आलमारी खोली और उसमें से अपनी शादी के वक्त राजेश के घर से आई लाल रंग की साड़ी बाहर निकाल ली। राजेश के मुम्बई जाने के बाद अगले तीन सालों तक उसकी कोई खोज-खबर न आने से उसके सारे अरमान बिखरकर रह गए थे। अपने अधूरे रह गए सपनों पर किसी ओर का घर संवारने वह जिंदगी और समाज के दस्तूर के साथ आगे बढ़ गई। राजेश की मम्मी ने उसकी विदाई के वक्त रोते हुए उसके हाथों में यह साड़ी रख दी थी, पर वह उसे कभी पहनने की हिम्मत नहीं कर पाई।


 अब आज राजेश को अपनी यादों में से भी मिटा देने के एक फैसले के साथ एक हाथ में उसने वह साड़ी पकड़ी और दूसरे हाथ से बच्चे को उठाकर बाहर की तरफ चली गई।


'बन ठन चली बोलो ए जाती रे जाती रे...' ए मैं तभी उसके कानों में कुछ मर्दाना आवाज में गाए जाने वाले गाने के शब्द पड़े। वह अभी घर की दहलीज तक ही आ पाई थी। उसके बढ़ते कदम वहीं ठिठककर थम गए। तभी पड़ोस की उसकी हमउम्र एक औरत उसका हाथ पकड़कर उसे बाहर खींच लाई। मोहिनी बच्चे को लेकर जगह कर वहां बैठ गई। वह जिन यादों से बाहर निकलना चाह रही थी, उससे जुड़ी बातें उसके सामने आकर उसे बार-बार पीछे की ओर खींचकर ले जा रही थीं।


'देखा, हमारी रजनी के नाच का कमाल ! बहूरानी की आंखें भीग आईं। मातारानी की बड़ी किरपा है हमारी रजनी पर। आज पहली बार खेमे से बाहर निकलकर आई है और पहली बार ही तेरे बच्चे को आशीर्वाद देगी यह।' उसका नाच पूरा होते ही खेमे की मुखिया ने मोहिनी की तरफ देखकर कहा और बच्चे को लेने के लिए उसकी तरफ हाथ बढ़ाए।


मोहिनी ने अपनी सास को देखा और उनकी स्वीकृति पाकर बच्चा उसके हाथों में दे दिया। उसने बच्चे को चूमकर अपने पास खड़ी रजनी को सौंप दिया। उसने पहली बार नजरें उठाकर मोहिनी की तरफ देखा और अपनी आंखों में उभर आए आंसुओं को पोंछते हुए बच्चे के माथे को चूम लिया। होठों पर लगा रखी लाल लिपस्टिक की छाप बच्चे के माथे पर उभर आई।


सहसा मोहिनी उठकर अपनी जगह से खड़ी हुई और उसके नजदीक चली गई। दोनों की नजरें मिलीं। मोहिनी के मन में कुछ कौंधा। तभी उसने बच्चे को मोहिनी के हाथों में सौंप दिया। कुछ कहने को मोहिनी के होंठ अभी खुले ही थे कि वह अपने हाथ जोड़कर उसके और नजदीक आ गई। मोहिनी उसकी आंखों में रही विवशता को एक ही पल में पढ़ गई। 


'री बहू ! चल उसे यह साड़ी, ओढ़ा।' तभी उसकी सास ने बच्चा उसके पास से लेते हुए उसके हाथों में साड़ी थमाते हुए कहा।


कांपते हाथों से उसने साड़ी ले ली, लेकिन वह उसे साड़ी ओढ़ाने की हिम्मत न कर सकी। उसने वह साड़ी उसके हाथों में रख दी और आंसू पोंछते हुए अंदर की ओर दौड़ लगा दी।


सौगात में मिला सामान समेटने के बाद उनका काफिला अगले घर की तरफ जाने लगा और जमा भीड़ छंटने लगी। मोहिनी बच्चे को लेकर एक बार फिर से बाहर आई और उसे दूर जाते हुए देखने लगी। कॉलोनी के गेट तक पहुंचने के बाद उसने एक बार पीछे मुड़कर देखा। दोनों की नजरें फिर से एक हुईं और फिर मोहिनी ने अपने बच्चे के माथे पर हाथ फेर उसे चूम लिया। उसके होंठों पर दर्दभरी आह के साथ एक नाम उभर आया- राजेश।


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