The Power of Positive Thinking: मैं सुरक्षित हूं, यह भावना अतीत से निकलने में मदद करती है,एक महिला को सड़क दुर्घटना में गंभीर चोट आई। उसे सालों तक पीठ दर्द होता रहा। एक समय ऐसा आया जब उसका उठना-बैठना भी मुश्किल हो गया। महिला का अधिकांश समय इधर-उधर टहलने में गुजरता।
एक दिन उसके फिजियोथेरेपिस्ट ने उसे दिन में कम से कम एक बार एक्सरसाइज बॉल पर तब तक बैठने के लिए कहा जब तक कि वह सहन कर सके, लेकिन दर्द के कारण महिला इतनी डरी हुई थी कि वह मुश्किल से एक या दो सेकंड ही बैठ पाती। इस पर फिजियोथेरेपिस्ट ने महिला को समझाया कि जब आप बॉल पर बैठो तो यह दोहराओ कि 'मैं ठीक हूं।'
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क्योंकि दुर्घटना में घायल हुआ आपका अधिकांश शरीर अब ठीक हो चुका है। आप काफी हद तक ठीक हो, लेकिन लंबे समय से शरीर में बना यह दर्द और दोबारा चोट लगने का डर आपके इस गंभीर दर्द का कारण बना हुआ है। महिला ने धीरे-धीरे इस बात पर विश्वास करना शुरू कर दिया। पहले एक मिनट, फिर पांच मिनट और फिर 10 मिनट तक वह संतुलन बनाने लगी।
निष्कर्ष यह है कि खुद को सकारात्मक वर्तमान की पहचान कराने से आपका मन शरीर को ठीक करने में मदद करना शुरू कर देता है। यह तकनीक बुरी यादों से जुड़ी भावनाओं और शरीर से संबंधित गंभीर दर्द दोनों के लिए समान रूप से काम करती है। दरअसल कई बार हमारा दिमाग अतीत की यादों को ऐसे पकड़ लेता है जैसे कि वे वर्तमान में भी सच हों।
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ऐसे में कभी-कभी मस्तिष्क को एक ही बात बार-बार और प्यार से याद दिलाने की जरूरत होती। इसके बाद वह खुद-ब-खुद विचारों को बदलने में मदद करने लगता है। इसका सीधा असर शरीर पर पड़ता है। हालांकि यदि आप किसी प्रकार के ट्रॉमा से पीड़ित हैं या फिर भूतकाल में हुई घटनाएं आज भी आपको प्रभावित कर रही हैं तो साइकोलॉजी अथवा साइकोथेरेपी के विशेषज्ञ की सहायता जरूर लें।
कई बार पीड़ा पहुंचाने वाली यादें इतनी आसानी से पीछा नहीं छोड़तीं, लेकिन यह भी उतना ही सही है कि सोचने का यह सकारात्मक तरीका हमारी खराब भावनाओं और शारीरिक दर्द से छुटकारा दिलाने में बहुत मददगार है । सुसान बियाली हास के 'जीवन के नुस्खें' से साभार
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