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बीके शिवानी: अपने जीवन को प्रतिस्पर्धा न बनाएं | bk shivani motivational speech

अपने जीवन को प्रतिस्पर्धा न बनाएं, विचारों पर भी ब्रेक लगाना जरूरी है-  बीके शिवानी, आध्यात्मिक वक्ता और लेखिका

BK Shivani, Spiritual Speaker and Author: जब जीवन नदी की तरह अविरल और निर्बाध बहता रहता है, तो सारे पड़ावों का आनंद उठा सकते हैं। लेकिन जब मन में प्रतिस्पर्धा का भाव घर कर जाता है, फिर चाहे वह पड़ोसी से हो, रिश्तेदारों से हो या राह में चलते किसी वाहन से... हम रास्ते या कहें जीवन यात्रा का आनंद उठाना भूल जाते हैं। अपने जीवन को प्रतिस्पर्धा न बनने दें

BK Shivani, Spiritual Speaker and Author


BK Shivani Motivational Speech  In Hindi |अपने जीवन को प्रतिस्पर्धा न बनाएं

ब्रह्मकुमारी शिवानी: मन की गति को अगर हम धीमा नहीं करते हैं तो इसका प्रभाव हमारे शरीर पर पड़ने लगता है। शुरुआत में बरती गई ढिलाई के परिणाम जीवन के उत्तरार्ध में भुगतने ही पड़ते हैं। तब खुद-ब-खुद हमें समय निकालना पड़ता है। तब डॉक्टर बोलेगा कि अब आपको रोज एक घंटा मॉर्निंग वॉक करनी ही पड़ेगी, तब हम शुरू हो जाते हैं। कई बार तो हम उसको भी गंभीरता से नहीं लेते हैं और कहते हैं कि अभी हमारे पास वॉक करने के लिए भी समय नहीं है। लेकिन फिर कुछ न कुछ ऐसा हो जाता है कि हमें फुलस्टॉप लगाना ही पड़ता है। हम कभी अपने आपसे रुककर यह नहीं पूछते हैं कि हम अपने साथ ऐसा क्यों कर रहे हैं? किस चीज के लिए भाग रहे हैं, इसका क्या कारण है। कहीं ऐसा तो नहीं कि सब भाग रहे हैं तो हम भी भाग रहे हैं। 

हम सभी लोगों ने जीवन को एक प्रतिस्पर्धा बना दिया है। आप एक बार सोचो, हमारे बच्चों का कॉम्पिटीशन है, हमारा भी कॉम्पिटीशन है, रिश्तेदारी में भी कॉम्पिटीशन है, बिजनेस में भी कॉम्पिटीशन है। आपने डिनर में कितनी सब्जियां बनाईं, आप जब अगली बार मेरे घर पर आओगे तो मैं कितनी सब्जियां बनाऊंगी उसमें भी कॉम्पिटीशन है। अब इस प्रतिस्पर्धा का कोई लेबल तो होता नहीं है। जितना कॉम्पिटीशन होता है उतना चिड़चिड़ापन होता है। और यह जीवन के हर क्षेत्र में है। उदाहरण के तौर पर मान लो कि हम मुंबई से पुणे के बीच एक्सप्रेस-वे पर अपनी- अपनी गाड़ी लेकर चल रहे हैं। हमें अपनी-अपनी गाड़ी की क्षमता मालूम है। अपनी गाड़ी की अधिकतम गति मालूम है, लेकिन इसमें सबसे महत्वपूर्ण है कार चलाने का तरीका। 

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कुछ लोगों को गाड़ी 50, 80, 100 और कुछ लोगों को तो इससे भी अधिक गति पर चलाना अच्छा लगता है। यह हमारे जीवन का बहुत ही महत्वपूर्ण समय है, जब हम अपनी गाड़ी में अपने परिवार के साथ हंसते-खेलते. खाते-पीते, गाने सुनते हुए अपनी यात्रा पर जा रहे हैं। थोड़ी देर बाद एक गाड़ी हमारी गाड़ी से आगे निकलती है। उसी समय हम सोचते हैं कि चलो रेस करते हैं। रेस थी नहीं, लेकिन हमारे एक विचार ने इसे रेस बना दिया। हम भी उसी सड़क पर थे, उसी गाडी में थे. उसी परिवार के साथ थे, दूरी भी वही थी लेकिन हमारे एक विचार ने इसे रेस का रूप दे दिया। अब हमारी यात्रा कैसी होगी? अब हमारा ध्यान परिवार से हटकर गाड़ी की गति पर चला जाएगा। अब पत्नी या बच्चे कुछ बोलेंगे तो उनको डांट पड़ जाएगी। क्योंकि पहले हमारा ध्यान गाड़ी की गति के बजाए परिवार पर था। अब सारा ध्यान गाड़ी की रेस पर चला गया।

आप भले रुकना न चाहें, पर एक समय हमें फुलस्टॉप लगाना ही पड़ता है। हम कभी अपने आपसे रुककर यह नहीं पूछते हैं कि हम अपने साथ ऐसा क्यों कर रहे हैं? किस चीज के लिए भाग रहे हैं, इसका क्या कारण है। कहीं ऐसा तो नहीं कि सब भाग रहे हैं तो हम भी भाग रहे हैं।

अपनी क्षमताएं पता होनी चाहिए 

अब हो सकता है कि उनकी गाड़ी की क्षमता हमारी गाड़ी से कई गुना ज्यादा हो। हमारी गाड़ी मारुति का कोई बेसिक मॉडल हो और उनकी गाड़ी मर्सिडीज़ हो । मैंने मारुति की सारी स्पीड को क्रॉस कर लिया फिर भी उनकी गाड़ी को क्रॉस नहीं कर पाए। फिर आता है एक जंक्शन, ट्राफिक सिग्नल, नियम और तरीके, अब यही मौका है उनसे आगे जाने का। तब हम अपने मूल्यों, सिद्धांतों और नैतिकता से समझौता करना शुरू कर देते हैं, क्योंकि अब यह यात्रा से बदलकर रेस बन गया है। अगर मैं पहले नहीं पहुंचूंगा तो वो पहले पहुंच जाएंगे। कुछ भी कर के मैं आगे पहुंचना चाहता हूं। 

आगे हम पहुंच जाएंगे, अंततः हम पुणे पहुंच जाएंगे और वो भी। ऐसा नहीं है कि एक पहुंचेगा और दूसरा नहीं पहुंचेगा। लेकिन सवाल है कि यात्रा कैसी रही? उस यात्रा पर हमने ओवर स्पीडिंग भी की होगी। हमने कहीं गलत साइड से ओवरटेक भी किया होगा। हो सकता है कि कहीं करते-करते एक-आध एक्सीडेंट भी हो चुके होंगे, वो भी सिर्फ एक विचार के कारण। जीवन को दूसरों को देखकर ना जीएं इसे अपनी क्षमता के हिसाब से सेट करें। अपने जीवन को कभी भी कॉम्पिटीशन का रूप ना दें। जीवन की यात्रा का आनंद लें।

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