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Gyanvardhan Swami motivational speech in Hindi | ज्ञानवत्सल स्वामी- जीवन में अपूर्णता को स्वीकार कीजिए

ज्ञानवत्सल स्वामी भारत में स्थित एक आध्यात्मिक गुरु और प्रेरक वक्ता हैं। ये BAPS स्वामीनारायण संस्था से जुड़े हुए है, जो एक हिंदू संगठन है जो आध्यात्मिक और सामाजिक विकास पर ध्यान केंद्रित करता है। तो आइये जानते है -  Gyanvardhan Swami motivational speech in Hindi, ज्ञानवत्सल स्वामी- जीवन में अपूर्णता को स्वीकार कीजिए

महान व्यक्तित्व इस सत्य को स्वीकार करते हैं कि समूचे जगत में कोई व्यक्ति सम्पूर्ण नहीं होता है। 'मैं स्वयं पूर्ण नहीं हूं' इस दृष्टि के साथ वह दूसरे की अपूर्णता को भी सहजता के साथ स्वीकार करते हैं। वह मध्यमार्ग का रास्ता अपनाते हैं, जिससे वे जीवन की सुगंध को बरकरार रख पाते हैं।-ज्ञानवत्सल स्वामी, प्रेरक वक्ता और विचारक
ज्ञानवत्सल स्वामी, प्रेरक वक्ता और विचारक, Gyanvardhan Swami motivation

ज्ञानवत्सल स्वामी- जीवन में अपूर्णता को स्वीकार कीजिए 

Gyanvatsal Swami Best Speech in Hindi:किसी घटना के बाद अक्सर हम सोचते हैं कि अगर अपनी बात को किसी और तरीके से रखते तो उसका बेहतर प्रभाव पड़ता । हमेशा घटनाएं घट जाने के बाद ही इंसान को इस तरह के विचार सहजता से आते हैं, यह अच्छी बात है। , दरअसल, हम सब अपने जीवन में अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन देना चाहते हैं। हम सब परफेक्ट बनने का प्रयास करते हैं लेकिन हमें इस बात का भी ख्याल रखना चाहिए कि परफेक्शन एक ऐसी धारणा है, जिसका कोई अंत नहीं है। समाज में आज श्रेष्ठता साबित करने की निर्दयी प्रतियोगिता चल रही है। यह भी सच है कि कोई आठ अरब की विश्व जनसंख्या में एक सेर को दूसरा सवा सेर देर-सबेर मिल ही जाता है।

पूर्णता के साथ जितना भी अच्छा कार्य करें, वह हमेशा 'परफेक्ट' होता है। लेकिन वहीं अगर हम यह मानें कि इस कार्य से अधिक अच्छा कुछ हो ही नहीं सकता तो ऐसा दावा करना आत्म-विनाशकारी होता है। इसलिए जहां तक परफेक्शन स्वयं में सुधार करने हेतु होती है, तब तक ये धारणा आशीर्वाद की तरह काम करती है। लेकिन जब यह खुद को समाज में श्रेष्ठ साबित करने की दौड़ बन जाती है तो यह आपके जीवन को हताशा, तनाव और अफसोस से भर देती है।

यदि आप परफेक्शनिस्ट बन जाते हैं तो आपकी आंखें समूचे संसार में सिर्फ खामियां ही तलाशती हैं। अगर सामने वाले व्यक्ति ने अपने समर्पण-भाव से, मेहनत और समय देकर अच्छा काम किया होता है, तो भी आप उस व्यक्ति की सराहना नहीं कर पाते हैं। अंततः लोगों को यह लगने लगेगा कि आपके पास से प्रशंसा या प्रोत्साहन की अपेक्षा रखना व्यर्थ है।

हमारे जीवन की यात्रा अनेक गलतियों की संभावनाओं को समेटे हुए है। ऐसे में परफेक्ट होने का प्रयास करें, लेकिन ऐसा न करें कि परफेक्शन की चाहत का नशा हमारी और दूसरे की जिंदगी का आनंद ही सोखता रहे।-ज्ञानवत्सल स्वामी, प्रेरक वक्ता और विचारक

भारत के पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम साहब के बचपन का एक सुंदर प्रसंग याद आता है। वह लिखते हैं कि एक रात भोजन के समय उनकी माता ने पिता और उनके भांजे की थाली में सब्जी और जली हुई रोटी परोस दी। उस वक्त मेरी निगाह पिता की प्रतिक्रिया पर थी, लेकिन उन्होंने कुछ नहीं कहा। थोड़ी देर बाद मां ने रोटी के जलने के बदले माफी मांगी। पिता ने सहजता से कहा 'मुझे तो जली हुई रोटी भाती है, तुम बिल्कुल चिंता मत करो।' मैंने उस रात पिता से सच्चाई जानने के लिए प्रश्न किया, 'क्या सच में आपको जली हुई रोटी. भाती है?' सवाल सुनकर उन्होंने मुझे पास बिठाया और प्रेमपूर्वक समझाते हुए कहा कि 'देखो बेटा, जली हुई रोटी दिल को नहीं जलाती, लेकिन तीखे बोल हृदय को जरूर झुलसा जाते हैं।'

इसी से जुड़ा एक प्रसंग गांधीनगर में रहने वाले एक लड़के का है। उसका नाम अक्षरेश था। उसके माता- पिता नहीं होने की वजह से वह अपने दादाजी के साथ रहता था। उज्ज्वल भविष्य की कामना के साथ दादाजी 'ने उसका विद्यानगर छात्रालय में दाखिला करवाया था। उसने 16-17 की उम्र में फीस के पैसे मौजमस्ती में उड़ा दिए। शिक्षा संस्थान के संचालक की ओर से जब फीस के बारे में पूछा गया तो वह फंस गया। उसे भूल का पछतावा हुआ। उसने प्रमुख स्वामी महाराज को पत्र लिखकर अपनी उलझन व्यक्त की, अपने किए के लिए क्षमा मांगते हुए भविष्य में ऐसा न करने के लिए कटिबद्धता दर्शाई।

प्रमुख स्वामी महाराज ने इस विद्यार्थी को जवाबी पत्र लिखकर पढ़ाई में ध्यान लगाने को कहा, पुनः ऐसी भूल न होने के लिए सजग रहने की प्रेमपूर्ण सीख दी। अक्षरेश बताते हैं कि इस घटना के बाद शिक्षा संस्थान में किसी ने उससे फीस नहीं मांगी। आश्चर्य तब हुआ, जब वो दो साल बाद घर गया, तो दादाजी ने एक पत्र पढ़ने को दिया। प्रमुख स्वामी महाराज ने यह पत्र दादाजी को लिखा था। पत्र में लिखा था कि 'ठाकोरभाई! आपके बच्चे से भूल हुई है, लेकिन उसे भूल का एहसास है, उसे माफ कर दीजिएगा और फीस की चिंता तो बिल्कुल नहीं कीजिएगा। भगवान सब अच्छा करेंगे।' प्रमुख स्वामी महाराज तो पूर्ण पुरुष थे, बावजूद इसके वे दूसरे की अपूर्णता को स्वीकार करने में निस्संकोची थे। इसीलिए लोग उन्हें चाहते थे।

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