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Kabirvani: दिल को छूने वाली अनमोल विचारधारा, इसे सुनने के बाद आपकी जिंदगी होगी बदल जाएगी!

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Kabirvani: हिंदी साहित्य के एक महान और प्रभावशाली कवि कबीर की रचनाएं (Kabir Das Poet) और उनकी वाणी, जिन्हें हम 'कबीरवाणी' के रूप में जानते हैं, उसका महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। कबीर का नाम हिंदी साहित्य और संस्कृति में महानता के प्रतीक के रूप में माना जाता है। इसलिए, इस लेख में हम कबीरवाणी के विषय पर चर्चा करेंगे,कबीर दिल को छूने वाली अनमोल विचारधारा, कबीर की जीवनी, उनके सिद्धांत और उनके द्वारा लिखे गए प्रसिद्ध 'दोहे' के बारे में विस्तृत जानकारी मिलेगी। इसे सुनने के बाद आपकी जिंदगी होगी बदल जाएगी! 


कबीर का जीवन


Sant Kabir Das एक भारतीय संत-कवि थे जो 15वीं और 16वीं सदी के बीच वाराणसी, भारत में रहते थे। उनकी जन्मभूमि और मातृभूमि दोनों ही विवादित है, लेकिन वे मुस्लिम और हिन्दू धर्मों की संस्कृति को आपस में मिलाने के लिए प्रसिद्ध हुए हैं।


कबीर की शिक्षाएं


भगवान और धर्म 


कबीर की वाणी में भगवान और धर्म के प्रति उनके दृष्टिकोण का महत्वपूर्ण स्थान है। उन्होंने अलग-अलग धर्मों के प्रशंसा और अनुयायों को निन्दा करने के बजाय सभी मानवों को साथ लेने के लिए कहा है। उनके अनुसार, भगवान सबका निर्माता है और वह व्यक्ति के धर्म से अधिक महत्वपूर्ण है।


सामाजिक मुद्दों पर


कबीर ने सामाजिक मुद्दों पर भी अपने दृष्टिकोण रखे हैं। उन्होंने जातिवाद, अंतर-धर्मी विवाद, और महिला सशक्तिकरण जैसे मुद्दों पर अपनी वाणी का प्रयोग किया है। उनके द्वारा लिखे गए दोहों में उन्होंने समाज को आपसी भाईचारे और समानता की ओर आमंत्रित किया है।


आंतरिक आध्यात्मिक यात्रा पर


Kabirvani में आंतरिक आध्यात्मिक यात्रा के महत्वपूर्ण तत्व भी हैं। उन्होंने अपने दोहों के माध्यम से अंतरंग सुख और परम सत्य की प्राप्ति के लिए मार्गदर्शन किया है। उन्होंने अपने शब्दों में आत्मा के महत्व को बताया है और योग्य मार्ग के बारे में बताया है जो अंतरंग शांति और संगठन लाता है।


कबीर का प्रभाव और विरासत


भक्ति आंदोलन पर प्रभाव


कबीर की वाणी का अस्तित्व भक्ति आंदोलन पर गहरा प्रभाव डाला है। उनके द्वारा व्यक्त की गई सीधी और सरल भाषा ने आम लोगों को धार्मिकता के मार्ग पर आमंत्रित किया। उनकी वाणी ने समाज को धार्मिक और सामाजिक सुधार की ओर प्रेरित किया है।


साहित्य और संगीत पर प्रभाव


कबीर की वाणी ने हिंदी साहित्य और संगीत को भी गहरा प्रभाव डाला है। उनकी रचनाएं लोक संगीत के रूप में प्रसिद्ध हुई हैं और आज भी उनकी दोहे, भजन और कविताएं लोगों के द्वारा गाई जाती हैं। इसके अलावा, कबीर के द्वारा लिखे गए साहित्यिक कृतियों ने हिंदी साहित्य को आरंभिक काल से ही अद्वितीय मान्यता प्रदान की है।


कबीर के दर्शन और संदेश आज भी प्रभावशाली हैं। उनकी वाणी आज की पीढ़ी को भी प्रेरित कर रही है और उनके संदेश समाज के विभिन्न मुद्दों पर चर्चा को उत्साहित कर रहे हैं। उनकी दोहों का महत्वपूर्ण योगदान भारतीय संस्कृति और मानवता के लिए आज भी अमूल्य है।


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प्रसिद्ध कबीर दोहे Kabir Das Poet


कबीरा खड़ा बाज़ार में, मांगे सबकी खैर।
ना कोई ना तेरी खैर, से काँटा लगाये॥

साईं इतना दीजिये, जा में कुटुंब समाये।
मैं भी भूखा न रहूँ, साधु न भूखा जाये॥

पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय।
ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय॥

माटी कहे कुम्हार से, तू क्या रौंदे मोय।
एक दिन ऐसा आएगा, मैं रौंदूँगा तोय॥

दुख में सुमिरन सब करे, सुख में करैं न कोय।
जो सुख में सुमिरन करे, दुख काहे को होय॥

बुरा जो देखन मैं चला, बुरा ना मिलिया कोय।
जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा ना कोय॥

दुख भया दोय नहीं माने, सुख से नहीं कोय।
जो सुख में सुमिरन करे, दुख काहे को होय॥

जो तो करे करावट, सो तो फल खाए।
जो तो नहीं करावट, सो तो बिन भोग भाए॥

माया मरी ना मन मरा, मर मर गए शरीर।
जो मन मरा ना मन माना, तो काहे करे विचार॥

चाहे गुण गहने गोयी, चाहे तीरथ बरम्बार।
जो मन करे न चिताये, तो सब बैरी उबार॥

कबीरा खड़ा बाजार में, सब की मांगे खैर।
न खड़ा वो जो घट मांगे, दूसरे को दे न लें॥

कबीरा सोइ निर्मला, जैसे गंगा नीर।
पीछे पीछे हर फिरे, मुड़ मरे देर॥

कबीरा ते नर अंध है, गुरु को कहते और।
हरी राख दे मोहे कोई, नहीं बढ़े संसार॥

साईं इतना दीजिये, जा मे कुटुम समाय।
मैं भी भूखा न रहूँ, साधु ना भूखा जाय॥

कबीरा खड़ा बाजार में, मांगे सबकी खैर।
ना कहिये दान धर्म का, चांदनी का भी भैर॥

गुरु गोबिंद दोऊ खड़े, काके लागू पांय।
बलिहारी गुरु आपने, गोविंद दियो मिलाय॥

मोहे रोग गरब का निवारो, गुन ग्रास गहे न जाय।
बिरला जो कोई करे, तो घाट घाट हो जाय॥

जो जाने तत्त्व विचारी, सोइ गुरु कहलाए।
बैरी जो करे पूजा, सोइ नारक को जाए॥

ज्ञानी जन के संग सों, राम रतन धन पाय।
चंदन मानिक मोती के, मोती जानें सबकोय॥

एक दिन कबीरा माता के घर गया था।
तब उन्होंने घट देखा, जिसमें देने बहुत था॥

कबीरा ते मटका फूटा, मिटी ना मन की हाय।
लट पट देहु राम पधारे, जब लटक ना पाय॥

जो कुछ पावे सोई लेखा, जो कुछ न पावे तोय॥
जीवन देखा बिसरिया, निर्मल न जीवन होय॥

रोई रोई अँखियाँ, मेरे साजना निरंजना सोय॥
मोती देते तो चुगे मूँगे, चढ़िया न लैये खोय॥

मैं व्याकरण पढ़ाया नहीं, पंडित खोजी लाय।
तीन लोग मिले दान दें, तीनों कागज चढ़ाय॥

कबीरा था निमीष में गया, मरा नहीं कोय।
बूड़ा करम हुआ, मोहि जाने कोय॥

कबीरा जो जन संत न पूजे, मोको नारक होय॥
जो पूजे संत जन की, सो नरक नहिं होय॥

चाहे घट बिछावे, चाहे मुर्ख राखे।
चाहे सौंदर्य संपत्ति, जो सम्पत्ति सब खाए॥

ज्ञानी सो अंध संसार, गुरु को कहते और।
चारों जोग जला चुका, चारों वेद पढ़ते ओर॥

चारों वेद मैं पड़ी रही, चारों पढ़ते जाय।
चारों मुख रहे मेरे, चारों विद्या जाय॥

जीव धरा सगर में होता, जीव होता चंद्रमा समान।
सूरज चंद्र ज्यों मंदिर में, रहते सबके पास॥

कबीरा खड़ा बाजार में, सब की मांगे खैर।
ना कहिये दान धर्म का, चांदनी का भी भैर॥

आखिरी वार जीवन में, यम बंधी बांक।
मूर्ख कहते मनुष्य, यह जग है कछुवा सांध॥

कबीरा खांड ब्रह्मा का, बिष्टर बैठ राय।
त्रेता जग में जिन्ह धरा, वो अपने खाय॥

कबीरा जो मूर्ख खाए जमा, मोको कहें साथ॥
जो साधु पान खाए जमा, वो सो जगत अधम॥

संसार जिया ते दिल नाहीं, नाहीं दिल सोय॥
जो ग्रह लागे चंद्रजी को, सोय जगत अधम॥

तेरा दीवाना जो करे, वो दीवाना सोय।
विचारी का मंदिर में, आवत होत न कोय॥

साधू मुर्ख जो बिचारें, सो अंध आवे कोय।
नेम करै विचारी को, सो नारक जावे कोय॥

कबीरा ज्यों पांडे जगत में, त्यों धनुष समान।
यह तो नहिं मानिये, तू तो नारक के खान॥

आधी रात जगत उठ रहा, मेरा दिल बेल बजाय।
दुनिया में लोग सोए हुए, मैं सोया बरह ठाय॥

चाँदनी रात में जगत उठे, आपनों देह घर जाय।
चिड़िया बोले कोयल से, नेम करै आवत न पाय॥

जगत जोगी जात न कोई, वेदी उठी न डर।
कबीरा जो जोगी भया, सो क्यों उठा चुग।

जो ज्ञानी जगत जाते हैं, मन को छोड़िये कोय।
जो निर्मल देखे सबको, तजें मन के रोय॥

कबीरा जो ज्ञानी भया, सो बजरंग पाय।
जो बजरंग पाय करे, सो सुखी बन जाय॥

ज्ञानी जोगी जानै है, समय अपार।
कबीरा ज्ञानी भया है, त्यों कबहुं न खाए खर॥

चाहे ब्राह्मण पढ़े वेद, चाहे ब्राह्मणी उतारे।
चाहे जन्म लें ज्ञानी को, त्यों चंड़न देखे जग॥

दुख में सुमिरन सब करे, सुख में करैं न कोय।
जो सुख में सुमिरन करे, दुख काहे को होय॥

मगर पक्षी सो चख सकै, मनुष्य को बिसार।
कबीरा धन न चाहे दे, जो मोहि मिलै सार॥

कबीरा मज्जँटिया बांक, जगत दिया सार।
कबीरा धन न चाहे दे, जो मोहि छिनै प्यार॥

माया न चिड़े चांदनी को, बुझत अँधकार।
कबीरा जो चंदनी बुझै, सो मज्जँटिया प्यार॥

जो गुरु भजे सो जगत भजे, जो गुरु न भजे तो न प्यार॥
जो ज्ञानी जगत जाते हैं, मन को छोड़िये कोय॥

जो ज्ञानी जगत जाते हैं, वेद न पढ़िये कोय।
जो निरंजन देखे सबको, सोइ गुरु आपने नोय॥

जगत जोगी जात न कोई, वेदी उठी न डर।
कबीरा जो जोगी भया, सो क्यों उठा चुग॥

जो ज्ञानी जगत जाते हैं, मन को छोड़िये कोय।
जो निर्मल देखे सबको, तजें मन के रोय॥


ये थे 50+ प्रसिद्ध कबीर दोहे। कबीर जी की बानी में उनके जीवन दर्शन, सामाजिक मुद्दों पर संदेह और आध्यात्मिक साधना की गहराई दिखती है। इन दोहों में उन्होंने जीवन के तत्वों, संबंधों, धर्म, माया और सत्य के विषय में गहरे विचार प्रस्तुत किए हैं।



संक्षेपण


कबीर एक महानतम संत, कवि और साहित्यिक हैं। उनकी वाणी में जीवन के मूल्यों, धर्म, समाज, आंतरिक आध्यात्मिकता और जीवन के असली अर्थ पर बल दिया गया है। उनकी दोहों ने सामाजिक और आध्यात्मिक मानवता को प्रभावित किया है और आज भी उनका महत्व बना हुआ है। कबीर की वाणी ने हमें एक अद्वितीय धार्मिक और सामाजिक संदेश दिया है, जिसे हमें आज भी अपनाना चाहिए।



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