Vat Purnima Vrat 2023: व्रत और त्योहार हमारे जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। ये हमें संस्कृति, परंपरा और धार्मिक आदर्शों को जीवंत रखने का अवसर प्रदान करते हैं। भारतीय संस्कृति में अनेक त्योहार मनाए जाते हैं, जिनमें से एक है "वट पूर्णिमा व्रत"वट या "सावित्री पूर्णिमा"। यह व्रत हिंदू महिलाओं के लिए विशेष महत्व रखता है और मुख्य रूप से स्त्री शक्ति की पूजा का अवसर प्रदान करता है। इस लेख में हम जानेंगे कि वट पूर्णिमा व्रत का महत्व क्या है, इसकी पूजा विधि क्या है और 2023 में वट पूर्णिमा व्रत का सही तारीख और शुभ मुहूर्त कब है।
वट पूर्णिमा व्रत महत्व
वट पूर्णिमा व्रत का महत्व धार्मिक और सामाजिक दोनों ही दृष्टियों से है। इस व्रत को बड़ी श्रद्धा और भक्ति से मान्यता है। इसे पूरे उत्साह और धूमधाम के साथ मनाया जाता है। यह व्रत मुख्य रूप से संतान सुख और अद्भुत सौभाग्य की प्राप्ति के लिए जाना जाता है। यह व्रत भारतीय संस्कृति में स्त्री शक्ति और पतिव्रता का प्रतीक माना जाता है। इस दिन महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र की कामना करती हैं और उनकी सुरक्षा और समृद्धि के लिए प्रार्थना करती हैं।
पूराणिक और ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
वट पूर्णिमा व्रत के पीछे कई पौराणिक और ऐतिहासिक कथाएं हैं। इनमें से दो मुख्य कथाएं हैं - सावित्री और सत्यवान की कथा और राजा दिलीप और रानी सुदाक्षिणा की कथा।
1. सावित्री और सत्यवान की कथा: इस कथा के अनुसार, महाभारत काल में एक राजकुमारी नाम से सावित्री थी। उन्होंने सत्यवान नामक युवक को चुन लिया और उनके साथ विवाह किया। पति की लंबी उम्र के लिए सावित्री ने यमराज से उपवास और तपस्या का व्रत रखा। उन्होंने अपने पति को मृत्यु के हाथ से बचाया और उन्हें जीवित कर दिया। इस कथा के कारण, सावित्री जी को बहुत शक्तिशाली माना जाता है और महिलाएं उन्हें उपासती हैं।
2. राजा दिलीप और रानी सुदाक्षिणा की कथा: इस कथा के अनुसार, राजा दिलीप और रानी सुदाक्षिणा बहुत दयालु और सद्भावनापूर्ण राजकुमारी थीं। एक बार उन्होंने वट पेड़ के नीचे बसे ब्रह्मण को अतिथि के रूप में स्वीकार किया और उन्हें भोजन की सेवा की। इससे प्रसन्न होकर ब्रह्मण ने राजा को एक आशीर्वाद दिया कि उनकी रानी सुदाक्षिणा पुत्र की प्राप्ति करेगी। बाद में रानी सुदाक्षिणा ने एक पुत्र को जन्म दिया। इस कथा के कारण, वट पेड़ को आशीर्वादित माना जाता है और वट पूर्णिमा के दिन इसकी पूजा की जाती है।
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वट पूर्णिमा व्रत तिथि और समय 2023
वट पूर्णिमा व्रत आमतौर पर ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। यह व्रत दिवस और रात्रि दोनों में आचरण किया जाता है। वर्ष 2023 में वट पूर्णिमा व्रत की तारीख 3 जून है। व्रत आरंभ 2 जून की रात्रि से शुरू होता है और 3 जून की पूर्णिमा की रात्रि को समाप्त होता है। जाने वट पूर्णिमा व्रत की तारीख और शुभ मुर्हत-
वट सावित्री व्रत 2023 शनिवार 3 जून।
पूर्णिमा तिथि आरम्भ:- 11.16 AM 2023 शनिवार 3 जून
पूर्णिमा तिथि समाप्ति:- 09.11 AM 2023 शनिवार 4 जून
रस्में और परंपराएं
वट सावित्री पूजा के दिन महिलाएं बड़ी धूमधाम और ध्यान से पूजा करती हैं। पूजा शुरू करने से पहले महिलाएं नहाती हैं और साफ सुथरी वस्त्र पहनती हैं। उनके पास सावित्री माता की मूर्ति, गंध, दीपक, अक्षत, पुष्प, दूध, फल, नारियल और रुपया आदि की वस्तुएं होती हैं। व्रत के दिन महिलाएं उपवास रखती हैं और व्रत के नियमों का पालन करती हैं। व्रत के दौरान महिलाएं परंपरागत भजन, कथा और मंत्रों का जाप करती हैं।
वट पूर्णिमा व्रत विधि
वट पूर्णिमा व्रत की विधि विस्तार से बताई जाती है। व्रत की तैयारी और पूजन सामग्री की संगठन के बाद, महिलाएं व्रत के नियमों के अनुसार पूजा करती हैं। यहां कुछ मुख्य चरणों को देखते हैं:
- पूजा स्थल की सजावट: पूजा स्थल को सुंदरता से सजाया जाता है। उसमें वट की पेड़ी, दीपक, माला, चावल, कुमकुम, दूध, फल और फूलों की आवश्यकता होती है।
- महिलाएं पूजा की शुरुआत करती हैं अर्घ्य, धूप, दीपक और पुष्पों का प्रदान करके।
- मन्त्रों का पाठ: सावित्री माता के मंत्रों का जाप किया जाता है, जिससे पूजा का अर्थ और महत्व समझ में आता है।
- जल से वट वृक्ष को सींच कर तने के चारों और कच्चा सूत लपेटकर घडी की दिशा की और ३ बार पेड़ की परिक्रमा करनी चाहिए
- महिलाएं पूजा के दौरान माता सावित्री के सामर्पण के लिए पुष्प, फल, दूध और अन्य वस्त्रों को चढ़ाती हैं।
- व्रत कथा पढ़ी जाती है जो व्रत की प्राथमिकता को समझाती है और माता सावित्री के शक्तिशाली रूप को दर्शाती है।
- पूजा के अंत में, आरती गाई जाती है और सभी महिलाएं आरती करती हैं और दीपक की प्रदीप्ति के साथ अपने पति की लंबी उम्र की कामना करती हैं।
इस लेख के आधार पर, हमने वट पूर्णिमा व्रत के महत्व, पूजा विधि, महत्वपूर्ण कथाएं और उसकी प्रमुख तिथियों के बारे में चर्चा की। यह एक पवित्र और महत्वपूर्ण धार्मिक पर्व है जो महिलाओं को उनके पति की लंबी उम्र की कामना करने का अवसर देता है। यह एक आदर्श अवसर है जब महिलाएं सावित्री माता और अपने पति की प्रेम और आस्था की भावना को मनाती हैं।
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FAQs:
. वट पूर्णिमा कब मनाई जाती है?
वट पूर्णिमा हिन्दू पंचांग के अनुसार ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को मनाई जाती है।
वट पूर्णिमा का महत्व क्या है?
वट पूर्णिमा का महत्व हिन्दू धर्म में विशेष रूप से मान्यता प्राप्त है। इस व्रत को करने से मातृशक्ति में वृद्धि होती है और स्त्रियों को सम्मान मिलता है। इसके साथ ही, वट पेड़ को आशीर्वादित माना जाता है और इसे पूजने से धर्मिक और आर्थिक वृद्धि होती है।