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बोधकथा- जिह्वा को वश में रखना | jihva ko vash me rakhna

BodhKatha : अति प्रीतिकर की लत हो जाना स्वाभाविक है और लत का अति में तब्दील हो जाना भी, जो भली हो ही नहीं सकती ।


हिंदी बोध कथा, Moral Stories in Hindi,बोधकथा


बोधकथा- जिह्वा को वश में रखना Best Moral Story 


महादेव गोविन्द रानाडे प्रसिद्ध समाजसेवी नेता थे । उनके यहां उनके किसी मित्र ने एक दिन अच्छे आम भेजे । उनकी पत्नी ने आम धो - धो कर काट कर रानाडे के सम्मुख रख दिए । एक - दो टुकड़े खाकर उन्होंने स्वाद की प्रशंसा की और कहा, 'इसे तुम भी खाकर देखो और सेवकों को भी दे देना ।' 


पत्नी ने देखा कि पति ने केवल दो - तीन टुकड़े ही आम के खाए हैं । उन्होंने पूछा, 'आपका स्वास्थ्य तो ठीक है ?"


रानाडे हंसे, बोले, 'तुम यही तो पूछना चाहती हो कि आम स्वादिष्ट हैं फिर भी मैंने अधिक क्यों नहीं खाए ? देखो, ये मुझे बहुत स्वादिष्ट लगे , इसलिए मैं अधिक नहीं लेता ।'


'यह अच्छा उत्तर है कि स्वादिष्ट लगे, इसलिए अधिक नहीं लेना है ।' पति की यह अटपटी बात पत्नी समझ नहीं पाई । रानाडे ने फिर कहा, 'देखो, बचपन में जब मैं बम्बई में पढ़ता था, तब मेरे पड़ोस में एक महिला रहती थी । 


वह पहले सम्पन्न परिवार की सदस्या रह चुकी थी, किन्तु भाग्य के फेर से सम्पत्ति नष्ट हो गई थी । किसी प्रकार अपने और पुत्र के निर्वाह लायक आय रह गई थी । 


अनेक बार जब वह अकेली होती, तब स्वयं से कहा करती थी- मेरी जीभ बहुत चटोरी हो गई है, इसे बहुत समझाती हूं कि अब चार - छह साग मिलने के दिन गए । अनेक प्रकार की मिठाइयां अब दुर्लभ हैं । 


पकवानों का स्मरण करने से कोई लाभ नहीं । फिर भी मेरी जीभ मानती ही नहीं । मेरा बेटा रूखी - सूखी खाकर पेट भर लेता है । किन्तु दो - तीन साग खाए बिना मेरा पेट नहीं भरता । ' 


रानाडे ने यह घटना सुना कर बताया ‘पड़ोस में रहने के कारण उस महिला की बातें मैंने अनेक बार सुनी थीं । मैंने तभी से नियम बना लिया कि जीभ जिस पदार्थ को पसंद करे, उसे बहुत ही थोड़ा खाना । 


जीभ के वश में न होना । यदि उस महिला के समान दुख न भोगना हो तो जीभ को वश में रखना चाहिए ।' -


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