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जमशेदजी टाटा जीवनी | निधन के 118 साल बाद भी दुनिया के सबसे बड़े दानदाता

Jamsetji Tata Biography in Hindi: जमशेदजी टाटा निधन के 117 साल बाद भी दुनिया के सबसे बड़े दानदाता वसीयत में लिखवाया था मेरे क्रिया-कर्म पर दो हजार रु. से ज्यादा खर्च मत करना


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जमशेदजी टाटा जीवनी Jamsetji Tata Biography in Hindi 


जमशेदजी टाटा का जन्म 3 मार्च 1839 में गुजरात जिले के एक छोटे से क्षेत्र (कस्बे ) नवसारी में हुआ था, इनके पिता का नाम नुसीरवानजी टाटा एवं उनकी माता का नाम जीवनबाई टाटा था। जमशेदजी नुसीरवानजी के इकलौते पुत्र थे। टाटा जी का जन्म एक पारसी परिवार में हुआ था। परिवार में पुश्तों से पारसी प्रीस्टहुड (नावर) का चलन था। लेकिन नुसीरवानजी ने व्यापार का रास्ता चुना। इनके पिता अपने खानदान में नुसीरवानजी पहले व्यवसायी थे। 


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नुसीरवानजी ने गुजरात से मुंबई आना का फैसला लिया जहाँ उन्होंने अपना बिज़नेस की शुरुआत की। मात्र 14 साल की उम्र में ही जमशेदजी ही व्यवसाय में अपने पिताजी का साथ देने लगे। यही से उनकी भारत देश के सबसे बड़े उद्योगपति बनने की शुरुआतहुई। जमशेदजी ने इंग्लैंड के ग्रीन स्कॉलर एल्फिंस्टन इंस्टिट्यूट शिक्षा प्राप्त की और पढ़ाई के समय ही इन्होने हीरा बाई दबू से विवाह किया था। 1858 में अपनी ग्रेजुएशन पूरी करलेने के बाद पूरी तरह से अपने पिता के व्यवसाय से जुड़ कर आगे बढ़ाने लगे 


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टाटा समूह एक ब्रांड ही नहीं देश की पहचान भी है, भारत में सबसे धनवान समूह में इनका नाम शामिल है। 2011 में किये गए एक सर्वे (इक्विटीमास्टर के एक सर्वे ) में 61% लोगों की पसंद टाटा को सबसे विश्वास कंपनी घोषित किया, जो की बहुत दुर्लभ है। कोई समूह सबसे धनवान भी हो और विश्वासनीय भी,लेकिन यही तो टाटा की पहचान है। जब भी देश में कोई विपप्ति आयी हो टाटा समूह ने सर्वप्रथम आगे रहकर देश के साथ खड़े हुए है, यही उसकी साख है और टाटा ब्रांड का जादू है, जमशेदजी ने 29 साल की उम्र तक अपने अपने पिता नुसीरवानजी टाटा के साथ मिलकर काम किया।


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कंपनी की स्थापना 


जमशेदजी दृढ़ इच्छा शक्ति वाले व्यक्ति थे और खुद से परिश्रम कर आगे बढ़ने की दृढ़ इच्छा उनके अंदर थी, तो 1857 में हांगकांग जाकर जमशेदजी एंड आर्देशिर नाम से फर्म बनाई।सन 1868 में इन्होंने 21000 लेकर अपना खुद टाटा समूह का व्यवसाय शुरू किया। सर्प्रथम उन्होंने में एक दिवालिया तेल कारखाना ख़रीदा और उसे एक रुई के कारखाने में तब्दील कर दिया। 


उसे बाद उसका फेक्ट्री का नाम बदल कर रखा-एलेक्जेंडर मिल दो साल तक कारखाने को अच्छे से Stable करने बाद उन्होंने इसे अच्छे-खासे मुनाफ़े के साथ बेच दिया। इस पैसे के साथ उन्होंने नागपुर (चिंचपोकली) में 1874 में एक रुई का कारखाना लगाया। और कारखाने का नाम कारखाने का नाम इम्प्रेस्स मिल रखा। 


नागपुर में कॉटन फैक्टरी लगाने का कारण 


नागपुर में कॉटन फैक्टरी लगाने का कारण था की कपास का अधिकतम उत्पादन उसी क्षेत्र में होता था एवं पानी व् ईंधन की आवशयकता अनुसार अच्छी थी और रेलवे स्टेशन पास में ही था। उनको इस काम के लिए लोगों से आलोचना भी हुए परन्तु वह अपना काम करते रहे। लोगों की नजर में पहले टाटा परिवार (सन 1869 तक) को एक छोटा व्यापारी समझा जाता था, इन्होने उनके इसी भ्र्म को तोड़ते हुई इम्प्रेस्स मिल  स्थापना की थी। यह कंपनी टाटा समूह की पहली बड़ी औद्योगिक कंपनी थी। जिस समय इन्होने नागपुर में अपना उधोग शुरू किया था तब मुंबई को टेक्सटाइल नगरी जाना जाता था। क्योंकि तब अधिकांश कॉटन मिल्स मुंबई में ही स्थित थी।  


कारोबारी जीवन के शुरुआती समय


कारोबारी जीवन के शुरुआती समय में ही जमशेदजी को काफी संकटो का सामना करना पड़ा था उन्हें अपना माकन व् अपनी जमीन-जायदाद तक बेचनी पड़ी थी। उन्हें यह आर्थिक झटका बिजनेसमैन साझेदार प्रेमचंद्र रे का कर्ज उतारने के लिए करना पड़ा।परन्तु कहते है ना कि अगर आपमें हिम्मत,लगन, हौसला,और सब कुछ कर गुजरने की और मन में दृढ़ निश्चय हो तो आप सब कुछ हासिल कर सकते हो, वे आर्थिक संकट से गिरे रहे परन्तु हार नहीं मानी और सभी संकटों से उभरते हुए देश और विदेश में टाटा समुह को पहुंचाया।


दूरदर्शी व्यक्तित्व 


जमशेदजी एक अलग ही दूरदर्शी व्यक्तित्व के धनी थे। उन्होंने श्रम नीतियों में बदलाव किया जिससे अपने कारखानों में काम करने वाले श्रमिकों सोहिलियत और बिज़नेस में मुनाफा हो, क्योकि अगर आपके काम करने वाले मैन पॉवर खुश रहे तो कार्य में प्रगति और अच्छे से होती ही। 


उनके भले के लिए जमशेदजी ने अनेक नयी व बेहतर श्रम-नीतियाँ अपनाईं। इस नज़र से भी वे अपने समय में कहीं आगे थे। इन्होने कभी भी सफलता को कभी केवल अपनी ज़ागीर नहीं समझा, बल्कि उनके लिए उनकी सफलता उन सब की थी जो उनके लिए काम करते थे। जमशेदजी के अनेक राष्ट्रवादी और क्रान्तिकारी नेताओं से नजदीकी सम्बन्ध थे, इनमें प्रमुख थे, दादाभाई नौरोजी और फिरोजशाह मेहता। जमशेदजी पर और उनकी सोंच पर इनका काफी प्रभाव था।


वे चार सपने जो उन्होंने देखे थे 


उनका मानना था कि आर्थिक स्वतंत्रता ही राजनीतिक स्वतंत्रता का आधार है। जमशेदजी के दिमाग में चार बड़े सपने  थे पहला विज्ञान, कला और उद्योग के लिए यूनिवर्सिटी ऑफ एडवांस रिसर्च की स्थापना। यही 1909 में इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस बना। इसके लिए उन्होंने पूरी कमाई का एक तिहाई हिस्सा और 30 लाख रुपए भी दान किए। दूसरा लोहा व स्टील कम्पनी खोलना, व तीसरा जलविद्युत परियोजना लगाना।


दुर्भाग्यवश! उनके अपने जीवन काल में इन तीन में से कोई भी सपना पूरा न हो सका, पर वे नीव तो डाल ही चुके थे,उम्मीद और नई दिशा का बीज बौ दिया था,एक ऐसा बीज जिसकी जड़ें उनकी आने वाली पीढ़ी ने अनेक देशों में फैलायीं। उनका चौथा और एक मात्र सपना जो उन्होंने पूरा होते हुए देखा वह था होटल ताजमहल उनका चौथा सपना एशिया का सबसे बड़ा होटल ताजमहल बनाना था,जो की उनकी मृत्यु के पांच महीने पहले बन कर तैयार हुआ था। 


यह दिसम्बर1903 में 4,21,00,000 रुपये के शाही खर्च से तैयार हुआ। जमशेदजी सच्चे राष्ट्रभक्त और राष्ट्रवादी थे, उन्होंने अपनी राष्ट्रवादी सोंच को दिखाया भी था। उन दिनों स्थानीय भारतीयों को बेहतरीन यूरोपियन होटलों में घुसने नही दिया जाता था। ताजमहल होटल इस दमनकारी नीति का करारा जवाब था।


औद्योगिक विकास में अहम्  योगदान


भारतीय औद्योगिक क्षेत्र में जमशेदजी का अहम्  योगदान व् असाधारण महत्त्व रखता है। इन्होंने भारतीय उधोग को एक अलग दिशा और दृष्टि प्रदान की। और ऐसे समय देश का मार्ग प्रशस्त किया जब केवल औद्योगिक क्षेत्र में यूरोपियन और अंग्रेजों का एक छत्र राज था, और केवल यूरोपीय, विशेषत: अंग्रेज ही औद्योगिक क्षेत्र में कुशल समझे जाते थे। इंग्लैड से लौटकर इन्होंने चिंचपोकली नागपुर में एक तेल मिल कारखाने को कॉटन मिल में स्थानांतरित किया और औद्योगिक जीवन काकी स्थापना की।


उनकी महत्वाकांक्षा यही पर समाप्त नहीं हुई और इस सफलता से उन्हें पूर्ण सन्तोष भी न मिला। तो एक बार फिर से इंग्लैंड की यात्रा की। वहाँ जाकर वस्त्र उद्योग की सम्पूर्ण विधि का अध्ययन कर के फिर से भारत आये। नागपुर में सूत मिलों की स्थापना की। 


स्टील क्षेत्र में दिखता था भविष्य 


क्लीन एनर्जी के पैरोकार रहे, स्टील में उन्हें भविष्य दिखता था। बॉम्बे में चिमनियों से निकलता धुंआ जमशेदजी को परेशान करता था। कई वीकेंड वह ताजी हवा लेने के लिए बॉम्बे से बाहर निकल जाते। वे चाहते थे कि ऊर्जा के विकल्प खोजे जाएं। अपनी कपड़ा मिल के लिए नई मशीनरी लेने इंग्लैंड गए जमशेदजी ने वहां थॉमस कार्लाइल का एक भाषण सुना। 


इसमें कार्लाइल ने कहा था- "जिस देश के पास स्टील होगा, उसके पास सोना होगा।' स्टील ही उनका ध्येय बन गया। उसके बाद उन्होंने बेटे को हिदायत दी कि फैक्ट्री लगाने के साथ-साथ वे शहर को भी विकसित करें, सड़कें बड़ी हों, खेलने के लिए मैदान हों, प्रार्थना-घर बनवाए जाएं। 


टाटा स्टील खड़ा करने का उनका ये सपना उनकी मृत्यु के तीन साल बाद (1907) पूरा हुआ। टाटा समूह को इस्पात उद्योग के लिए जाना जाता है। देश के सफल औद्योगीकरण के लिए उन्होंने इस्पात कारखानों की स्थापना की महत्त्वपूर्ण योजना बनायी,और उस योजना पर काम करने से बिहार के जंगलों में सिंहभूमि जिले में वह स्थान खोज निकाला।


आज वह क्षेत्र इस्पात व् कोयले के लिए प्रशिद्ध है। औद्योगिक विकास कार्यों में जमशेदजी यहीं नहीं रूके।जमशेदजी का सपना स्टील इंफ्रास्ट्रचर के साथ ही हाइड्रो पॉवर के क्षेत्र में अग्निम भूमिका निभाने का सपना था। इसी दम पर वह देश को औद्योगिक रूप से सक्षम बनाना चाहते थे। हाइड्रो पॉवर के लिए बड़ी उल्लेखनीय योजनाओं में पश्चिमी घाटों के तीव्र जलप्रपातो से बिजली उत्पन्न करने के लिए पावर प्लांट लगाए गए। जिसके द्वारा समस्त मुंबई को बिजली सप्लाई मिलने लगी,इसकी शुरुआत 8 फ़रवरी 1911 को लानौली में गवर्नर द्वारा की गई।


इस्पात उद्योग व् हाइड्रो पॉवर के साथ ही टाटा ने पर्यटन के क्षेत्र में काम किया। पर्यटकों की सुविधा को ध्यान में रखते हुए मुंबई में ताजमहल होटल का निर्माण किया। इन विशाल योजनाओं को कार्यान्वित करने के साथ ही टाटा ने पर्यटकों की सुविधा के लिए बम्बई में ताजमहल होटल खड़ा किया जो पूरे एशिया में अपने ढंग का अकेला है। सन 1896 में बॉम्बे के तत्कालीन गवर्नर को लिखे एक न पत्र में जमशेदजी नुसीरवानजी टाटा कहते हैं- 'पर्याप्त धन कमाने के बाद अब उनकी इच्छा देश के जरूरतमंद लोगों की मदद करने 5 की है। कृषिप्रधान देश भारत को औद्योगिक आधार की जरूरत है। 


महादानी जमशेदजी-निधन के 118 साल बाद भी दुनिया के सबसे बड़े दानदाता 


अपनी संपत्ति से सर्वाधिक दान देने की लिस्ट में ये पुरे विश्व में सदी के सबसे बड़े दानदाता घोषित हुए हैं। इन्होने अपनी संपत्ति से 7.60 लाख करोड़ रुपए का दान किया जिसके कारण टाटा जी हुरुन रिसर्च-एडेलगिव फाउंडेशन की सूची में शीर्ष पर हैं। 


जमशेदजी ने जरूरत पड़ने पर हमेशा मदद की, देश ही नहीं विदेश में भी लोगों की मद्दद की। स्कूली शिक्षा, व्यावसायिक शिक्षा, अस्पताल, सूरत में बाढ़ प्रभावित इलाकों में राहत सामग्री पहुंचाई। 1883 में इटली में आये भूकंप से प्रभावित लोगों की मदद के लिए आगे आये थे। प्रसूतिका ग्रह खोलने के लिए भी दान किया। 


ब्यूबोनिक प्लेग से 1898 में मुंबई में बहुत लोगों को अपनी जान गवानी पड़ी थी। इस रोग पर विस्तृत अध्ययन करने के लिए इन्होने अध्ययन कर रहे रूसी डॉक्टर वॉल्देमेर हैफकीन कीउन्होंने हरसंभव मदद की। 1892 में जेएन टाटा दान योजना की शुरुआत की। इसके जरिए भारतीय छात्रों को इंग्लैंड में पढ़ने के लिए इसके छात्रवृत्ति दी जाती थी। 


दिसम्बर 1896 में अपनी वसीयत पर इन्होने इन मुख्य बिंदुओं को शामिल किया इसके अनुसार संपत्ति के बटवारे के बाद बची संपत्ति का एक-एक तिहाई हिस्सा दोनो बेटों रतनजी टाटा और दोराबजी टाटा को दिया बाकि बचा एक तिहाई हिस्सा यूनिवर्सिटी को। अलग से यूनिवर्सिटी के लिए 30 लाख रुपए की घोषणा की। देश का शीर्ष संस्थान आईआईएससी इनकी देन


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