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सकारात्मक सोच की शक्ति: सीखना चाहें तो बच्चों से दरख्तों से भी सीख सकते हैं

The Power of Positive Thinking: यह बहुत महत्वपूर्ण नहीं है कि आप कहां जाएं, यह बहुत महत्वपूर्ण है कि आपके भीतर सीखने का दृष्टिकोण, एटिट्यूट ऑफ लर्निंग है या नहीं? अगर भीतर सीखने की क्षमता है, तो सारा जीवन ही सत्संग हो जाता है। उठना-बैठना, पक्षी और पौधे भी सत्संग बन जाते हैं। 


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सामान्य मनुष्य भी सत्संग बन जाते हैं। सत्संग किसी और पर नहीं आपके होने पर निर्भर है आपके जीवन के ढंग पर खुली हुई आंख होनी चाहिए तो पूरा जीवन ही सत्संग है, पूरा जीवन एक शिक्षण है। लेकिन लोगों का सत्संग के बारे में ख्याल है कि किसी गुरु के पास जाकर बैठे और उससे सीखें। 

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इस धारणा के कारण सीखने वाला तो कम महत्वपूर्ण हो गया और सिखाने वाला ज्यादा महत्वपूर्ण हो गया। आप, आपकी सीखने और देखने की दृष्टि, खुला हुआ मन मायने रखता है। और तब फिर किसी व्यक्ति का सवाल नहीं है। जीवन में जहां भी आप हैं, सब तरफ सीखने को बहुत है। 


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जिंदगी चारों तरफ बहुत बड़ी शिक्षा है। चारों तरफ बहुत बड़ा सत्य है। जिंदगी चारों तरफ रोज रोज खड़ी है, हमारी आंखें बंद हैं और हम पूछते हैं; सत्संग करने कहां जाएं? और हम पूछते हैं; किसके चरण पकड़ें, किसको गुरु बनाएं? जिंदगी में सब कुछ ऐसा है कि जिससे सीखा जा सके, पाया जा सके, जाना जा सके।


कोई दृष्टि खुल जाए कोई अंतर्दृष्टि खुल जाए। अपने बच्चे से सीखें अपने नौकर से, अपने घर के बाहर खड़े भिखारी से, चारों तरफ दरख्तों से, पौधों से जो सीख सकते हैं, जो जान सकते हैं, वे कहीं से भी जान लेते हैं। एक दरख्त से सूखा गिरा हुआ पत्ता भी दृष्टि को खोल सकता है; आंख खुल सकती है। लेकिन उसकी तैयारी चाहिए। और उस तैयारी में गुरु का कोई भी मूल्य नहीं है, इस तैयारी में हमेशा उसका मूल्य है, जो खोज पर निकला है।- ओशो की किताब 'जीवन जीने की कला' से साभार


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