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रक्षाबंधन का पर्व उन रिश्तों की तलाश भी पूरी कर देता है , जो मन के पास होते हैं , भले रहते दूर हों ।

रक्षाबंधन की मिठास ही इसकी खूबी है । एक रेशम का धागा जब बंधता है , तो मन की सा गिरहें खुल जाती हैं । बचपन में जिस बहन की चोटी खींचकर उसे सताया था ,

Raksha Bandhan 2022: रक्षाबंधन की मिठास ही इसकी खूबी है । एक रेशम का धागा जब बंधता है , तो मन की सा गिरहें खुल जाती हैं । बचपन में जिस बहन की चोटी खींचकर उसे सताया था , आ उसके सामने बैठकर राखी बंधवाना शान का सबब बन जाता है । 


जिन्होंने बचपन से इसे नहीं जिया , उनके लिए राखी दिन उस कमी की याद दिला जाता है ।भाई - बहन के बचपन के लड़ाई - झगड़े ही एक ऐसी लड़ाई है जिससे हर इंसान बाद में मिस करता है ।


रक्षाबंधन का त्यौहार ,रक्षाबंधन का त्यौहार क्यों मनाते हैं

बेशक कोई बहुत बड़े हवेलीनुमा घर में रह रहा हो , पास बहुत बड़ी गाड़ी हो , सोशल  मीडिया में हजारों दोस्त हों लेकिन मन की बात कहने के लिए आज भी मन , भाई या बहन को ही ढूंढता है । ऐसा रिश जिसमें छोटे - छोटे झगड़े हों , बड़ी बातें साझा हों , और जो जीवन के हर मोड़ पर बिन कहे हमारी बात समझ ले , जो हम रुचि , पसंद - नापसंद को जानता हो , सुख - दुःख में जिसकी याद सबसे पहले आए । 


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अगर इस रिश्ते में कुछ अधूरापन भाई है , बहन नहीं या बहन है , भाई नहीं तो अपनी रिश्तेदारी या क़रीबियों में इसकी तलाश कर लेना बहुत बेहतर होगा । त्योहार को मनाने भर के लिए नहीं , बल्कि जीवन - भर के अटूट रिश्ते के लिए ।


अकेली बेटी , इकलौते बेटे , दो बहनों , दो भाइयों का परिवार राखी वाले दिन अनमना हो जाता है । भाई कलाई तकता है , तो बहन भाई के बुलावे की बाट जोहती है । लेकिन यह इंतजार क्यों ? 


किसीका माथा क्यों सूना रहे ... किसी की थाली क्यों इंतज़ार करे .. 


सुहाना है यह रक्षा पर्व 


"सावन का महीना बहनों के घर आने की बेला होती है । ' अबके बरस भेज भैया को बाबुल सावन में लीजो बुलाय ... "


 आज सुबह ही रेडियो पर ये गीत सुना तो बचपन की सखियां , मायका और भाई , सब याद आ गए और आखें भीग गईं । कितनी मिठास है इन गीतों में , कितनी मधुरता है हमारे त्योहारों में । हमारे देश में हर त्योहार किसी न किसी रिश्ते को गहरा करता है । 


बरस भर जीवन की आपाधापी में उलझते हुए , खुद को खपाते हुए बेटियां सावन की प्रतीक्षा करती हैं कि कब सावन आए , कब मायके से संदेश आए , कब भाई लेने आए , कब वह बाबुल के अंगना में डोलती फिरे , बचपन की सखियों से जा मिले , पेड़ों पर लगे झूलों का आनंद ले , हरी साड़ी , हरी चूड़ियों से सजे । 


पर्व को मनाएं , बिताएं नहीं 


"भाई - बहन के रिश्ते में जहां प्रेम है , दुलार है , नोकझोंक है तो वहीं मित्रता का भी भाव होता है । बड़ी बहन मां जैसी तो बड़ा भाई पिता तुल्य समझे जाते हैं और छोटे हमेशा मित्र जैसे होते हैं ।" 


जिस परिवार में बहन - भाई दोनों होते हैं उसे पूरा समझा जाता है , लेकिन ऐसे परिवार भी हैं जहां बहनों के भाई नहीं हैं या ऐसे भी भाई हैं जिनकी बहन नहीं है । वे इस दिन खुद को अकेला महसूस करते हैं । त्योहार के दिन वे मोबाइल या टीवी से चिपके रहते हैं या सारा दिन जानबूझकर सोते रहते हैं कि किसी भी दिन गुजर जाए । 


लेकिन ऐसा क्यों होना चाहिए ? बेहतर है वे बुआ , मौसी , मामा , चाचा या ताऊ के बेटे या बेटी के पास चले जाएं । आप पहल क्यों करें , यह सवाल मन में आ सकता है , तो जवाब है कि खुशी पाने के लिए खुशी देनी भी पड़ती है ।


ज़रूरी और अच्छा है 


"पहल करना आज के दिन माता - पिता से तो कभी ईश्वर से इस बात की नाराजगी व्यक्त करते हुए आंखें छलछला जाती हैं कि हमें भाई या बहन क्यों नहीं मिली ।" 


बहुत लाजमी है यह शिकायत । दूसरे घरों में बहनों के नाज या भाइयों का लाड़ देखते हैं , बहनों के हाथ में रची मेहंदी , उनका दुकान - दुकान घूमकर भाई के लिए राखी तलाशना या बहन को देने के लिए भाई की उपहार की तलाश दिखती है , तो ख़ालीपन का एहसास और बढ़ जाता है । 


पर सच तो यह है कि इससे प्रेरणा मिलनी चाहिए , परिवार या मित्र के घर में भाई या बहन के लिए यह पहल करने के लिए । कोई ख़ास है , जिसे आप ख़ास महसूस करा सकते हैं । पहल करना इसलिए भी जरूरी है कि इससे रिश्ते बनाना , निभाना और बनाए रखना सीखा जा सकता है । 


मन पुकारेगा , तो सुनवाई होगी 


अपने आसपास देखिए , कोई मामा , बुआ , ताऊ जरूर होंगे जिनकी बेटी का कोई भी सगा भाई नहीं होगा या फिर किसी चाचा के दो बेटों की कोई सगी बहन नहीं होगी । इस रक्षाबंधन क्यों ना उन्हें याद किया जाए । 


उन्हें बताया जाए कि बचपन में जब नानी के गांव में हम सब मिलते थे तो कितना मजा आता था , चलो बक्सर वाली चाची की दोनों बेटियों को इस राखी पर फोन करें । 


जयपुर वाली बुआ के बेटे को इस बार बता ही देना चाहिए कि तुम सिर्फ भाई नहीं , दोस्त , गाइड और मेंटर भी हो । चलो रायपुर वाली बुआ की बेटी को बताते हैं कि जब - जब भी मैं मुसीबत में पड़ा तुमने मुझे हर बार बड़ी जीजी की तरह संभाला है । इस बार अपनी भावनाओं को व्यक्त कीजिए । यही तो त्योहारों का महत्व है ।


चलो जोड़ते हैं स्नेह बधन 


ये त्योहार , ये रिश्ते ही हमारा जीवन हैं । सूख गए , रूठ गए , खुरदरे हो गए रिश्तों को फिर से प्रेम और आत्मीयता के लेप से कोमल करते हैं । थोड़ी - सी तुरपाई की जाए । थोड़ा - सा सावन सावन हुआ जाए । रिश्ते कहीं नहीं जाते , बस उन पर जिंदगी की टेलमपेल अपनी धूल चढ़ा देती है । सावन की बौछारें धूल हटाने के लिए ही आती हैं । चलिए कुछ हरियाली बोते हैं । 


कुछ सावन से सीखते हैं । कुछ टूटे पुल जोड़ते हैं । किसी को अपना बना लेते हैं , किसी को अपना कहते हैं । किसी सूखी डाली को हटा करते हैं । चलिए इस राखी पर कुछ नया जोड़ा जाए ।