Essay on Cow in Hindi : संसार के सभी देश आरोग्यदात्री गाय का महत्त्व समझते हैं । आयुर्वेद में गाय से प्राप्त होने वाले पंच तत्त्व दूध, दही, घी, गौमूत्र और गोबर की औषधीय उपयोगिता का विस्तृत वर्णन है । वैज्ञानिकों ने अपने अनुसंधानों से यह निष्कर्ष निकाला है कि गाय अपने आहार में जो वनस्पति आदि पदार्थों का सेवन करती है उसका विषाक्त भाग स्वयं आत्मसात कर लेती है और दूध में वह विषाक्त अंश नहीं आ पाता ।
इसीलिए गाय का दूध माता के दूध के समान अमृततुल्य माना गया है । जहरीला अंश गाय के शरीर में मांस , चर्बी आदि में समाहित हो जाता है , इसलिए गोमास खाना वर्जित माना गया है ।
दूध- गाय का दूध स्वाद में मीठा होता है । इसकी तासीर ठंडी होती है । गाय का दूध मस्तिष्क के ज्ञान तंतुओं को बल देता है । स्मरणशक्ति बढ़ाता है तथा बच्चों और वृद्धों के लिए सुपाच्य आहार है । हृदय के लिए गुणकारी तथा हृदय के रोगों में लाभदायक होता है । इसके सेवन से खून की खराबी नष्ट होती है ।
दही - यह पेट की बीमारियों में बड़ा ही लाभदायक होता है । पेट दर्द, आंतों में सूजन, आंव, पेचिस, संग्रहणी आदि रोगों को दूर करता है। दही की लस्सी पित्त को नष्ट करती है तथा बलवर्द्धक एवं धातुवर्द्धक होती है। यह पाचनशक्ति को बढ़ाता है ।
घी- इसकी तासीर शीतल होती है । वायु, पित्त एवं कफ से छुटकारा दिलाता है। गाय का घी नेत्रों के लिए हितकर , स्मरणशक्ति को बढ़ाने वाला, मानसिक शक्तिवर्द्धक, धातुवर्द्धक तथा चेहरे के लिए कांतिदायक तथा यौवनशक्ति को बढ़ाने वाला होता है ।
गोमूत्र- इसकी तासीर गरम है। यह स्वाद में कड़वा , चरपरा तथा कसैला होता है। यह वायु एवं कफ दोष को नष्ट करता है। गोमूत्र का सेवन पेट की बीमारियों में विशेष लाभकारी होता है। यह आंतों की सूजन, पेट के दर्द, जिगर एवं तिल्ली की खराबी आदि बीमारियों में भी लाभदायक होता है । यह गुर्दे की बीमारियों में अति हितकारी होता है ।
खून की खराबी में बहुत कम मात्रा में सेवन करने से खून को साफ करता है। कैंसर रोग में भी इसका चमत्कारी प्रभाव होता है । गोमूत्र को अच्छी तरह से छानकर 15 बूंद से 1 चम्मच की मात्रा में दिन में दो बार लिया जा सकता है। विभिन्न प्रकार के चमड़ी के रोगों दाद, खाज, खुजली में इसके द्वारा रोगग्रस्त भाग को ठीक प्रकार से साफ करना चाहिए ।
शरीर में सूजन होने पर गोमूत्र को गर्म करके किसी कपड़े या रूई से ग्रस्त भाग को सेंक करने से सूजन समाप्त हो जाती है । गोमूत्र प्रसूति रोगों को भी दूर करता है तथा संक्रमण को रोकता है। इसलिए प्रसूताओं को गोमूत्र पिलाने की परम्परा है । धार्मिक कार्यों में शरीर शुद्धि के लिए भी गौमूत्र का उपयोग किया जाता है ।
गोबर- गाय का मल खेतों में खाद के काम आता है। यह सुखाकर ईंधन के काम आता है । शरीर पर गोबर लगाने से चमड़ी के अनेक रोग नष्ट हो जाते हैं। उपलों को जला कर बनाई हुई राख कीटनाशक है । शरीर पर इसे मलने से शरीर की शुद्धि होती है और जूं, लीक आदि नष्ट होती हैं। घर की दीवारों, आंगन और छत गोबर के द्वारा लीपने से कीटाणुओं का नाश होता है व वातावरण शुद्ध होता है ।