अफगान के हालत में हम सभी के लिए एक सीख है अगर 20 साल के अमेरिकी नियंत्रण वाली सरकारों और हथियारों पर अरबों डॉलर खर्च के बावजूद अफगानिस्तान , तालिबान के कुछ हजार लड़ाकों के आने पर आत्मसमर्पण कर देता है तो इसे गहराई से समझना होगा ।
आज के दौर में किसी समाज में प्रजातंत्र की चेतना विकसित करने के लिए दो दशक कम नहीं हैं । अमेरिका ने यही गलती की कि नियंत्रण को महज अपनी शक्ति के खौफ तक सीमित रखा और प्रजातांत्रिक संस्थाओं के विकास की कोशिश नहीं की ।
दरअसल संस्थाओं का विकास और जनचेतना का उत्क्रमण एक - दूसरे से जुड़े हैं । शिक्षा , टेक्नोलॉजी , महिलाओं की सहभागिता , मजबूत विधायिकाओं और उनके प्रतिनिधियों का प्रजातांत्रिक मूल्यों के प्रति रुझान , स्वतंत्र न्यायपालिका व विधिसम्मत काम करने वाली पुलिस व्यवस्था आदि किसी देश में शासन की जड़ें मजबूत करने की मूल शर्ते हैं ।
अमेरिका ने अपनी फौज पर तो खर्च किया लेकिन अफगानी फौजें सशक्त सैन्य शक्ति नहीं बन पाईं । लिहाजा जब सरकार का मुखिया अमेरिकियों के जाने के क्रम में देश से भागा तो दूसरा कोई नेता स्वतः उसकी जगह नहीं ले सका । अंग्रेजों ने भारत में संस्थाएं जरूर विकसित की , सेना को प्रोफेशनल बनाया , विधायिका और न्यायपालिका का मजबूत ढांचा खड़ा किया लेकिन समाज के बड़े वर्ग में ' प्रजातांत्रिक चेतना ' विकसित नहीं कर सके ।
लिहाजा मंत्री से लेकर संतरी तक भ्रष्टाचारी हो गए और जनता को जाति , धर्म , भाषा और क्षेत्र में बांट दिया । पाकिस्तान में धार्मिक कट्टरता ने संस्थाओं को कब्जे में लेकर एक ख़ास ढांचे में ढाल दिया । अफगानी हालात हम सभी के लिए एक सीख है ।
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