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विभिन्न विषयों पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का दृष्टिकोण


राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ हिन्दुत्व के दर्शन में विश्वास रखता है जो आध्यात्मिकता पर आधारित है । हिन्दुत्व जीवन के एकात्म और समग्र दृष्टिकोण की अभिव्यक्ति है , जिसे विश्व भर में “ हिन्दू जीवन पद्धति ” ( Hindu way of life ) कहा जाता है ।


विभिन्न विषयों पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का दृष्टिकोण


 व्यक्ति निर्माण 


संघ भेद मुक्त, समता युक्त, शोषण मुक्त निर्दोष समाज का निर्माण करना चाहता है, इसी हेतु संघ का मुख्य कार्य व्यक्ति निर्माण है । समाज से स्वार्थ जाना चाहिए, समाज का आचरण आदर्श उदाहरणों की उपस्थिति में बदलता है । संघ की योजना प्रत्येक गाँव, प्रत्येक गली, प्रत्येक बस्ती में अच्छे स्वयंसेवक खड़े करना है । 


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अच्छे स्वयंसेवक का अर्थ है शुद्ध चरित्र सम्पन्न , विश्वास्पद , सम्पूर्ण समाज को आत्मीय भाव से अपना मानने वाला, किसी के प्रति भेदभाव, शत्रुता का भाव नहीं रखने वाला और इसी आधार पर संघ समाज का स्नेह और विश्वास अर्जित करता है ।

 

हिन्दुत्व 


राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ हिन्दुत्व के दर्शन में विश्वास रखता है जो आध्यात्मिकता पर आधारित है । हिन्दुत्व जीवन के एकात्म और समग्र दृष्टिकोण की अभिव्यक्ति है , जिसे विश्व भर में “ हिन्दू जीवन पद्धति ” ( Hindu way of life ) कहा जाता है । 


संघ का विचार हिन्दुत्व का विचार है लेकिन इसका यह अर्थ नहीं कि संघ ने हिन्दुत्व का आविष्कार किया है । यह तो अपने देश में परम्परा से चलता आया हुआ विचार है । ' हिन्दू ' नाम बाहर से मिला शब्द है क्योंकि भारत के प्राचीन ग्रन्थों में यह शब्द कहीं नहीं मिलता है । आज भी अनेक विद्वान , सन्त हिन्दू शब्द का प्रयोग न कर ' सनातनी ' शब्द का प्रयोग करते हैं, धर्म को सनातन धर्म कहते हैं । 


किन्हीं विशेष परिस्थितियों में ' हिन्दू ' नाम बाद में आया । जैसे किसी व्यक्ति का नाम उसकी अनुमति से नहीं रखा जाता है उसी प्रकार यह हिन्दू नाम हमारे साथ जुड़ गया है, यह हमारे अधिकार क्षेत्र से बाहर है । 


संघ हिन्दू शब्द को आग्रहपूर्वक प्रयोग करता है परन्तु इसका यह अर्थ बिल्कुल नहीं है कि हमें भारत, इंडिक या आर्य शब्दों के प्रयोग से कोई विरोध है । जब हम भारतीय कहते हैं वह केवल भारत नाम के भूगोल का नाम नहीं रहता क्योंकि भारत का भूगोल तो बदलता रहा, कम ज्यादा होता रहा । 


भारत तो एक स्वभाव का नाम है । ये सभी शब्द सामानार्थी हैं , लेकिन इसके भाव या आशय को स्पष्ट रूप से बताने वाला एक शब्द है ' हिन्दू ' । विविधता में एकता हमारा आधार है। 


धर्म / रिलीजन 


धर्म शब्द को लेकर सर्वाधिक भ्रम है क्योंकि यह शब्द केवल भारतीय भाषाओं में ही मिलता है । धम्म या धर्म शब्द भारत की देन है । धर्म / रिलीजन का पर्यायवाची नहीं , धर्म से मिलता जुलता शब्द है ' रिलीजन ' क्योंकि धर्म के साथ कुछ कर्मकाण्ड भी जुड़ा है , विशेष प्रकार का कर्मकाण्ड विशेष प्रकार की पूजा , विशेष प्रकार के ग्रन्थ, विशेष प्रकार के पन्थ प्रवर्तक ( मसीहा ) , उसको रिलीजन कहते हैं । 


जब अपनी भाषा को छोड़कर अंग्रेजी में बोलते हैं तो ' रिलीजन ' कहते हैं और रिलीजन का अर्थ धर्म करते हैं, सारा भ्रम इसके कारण है । 


धर्म किसी एक विशेष देश तथा समाज की बपौती नहीं है , यह पूरे मानव का वैश्विक धर्म है, जिसे हिन्दू धर्म कहते हैं । वास्तव में यह केवल हिन्दुओं का धर्म नहीं है । हिन्दुओं का धर्मशास्त्र ' हिन्दू धर्म शास्त्र ' के नाम से नहीं है, वे सभी मानव धर्म शास्त्र हैं । उनकी रचना हिन्दू शब्द के आने से पहले हुई है । 


वह किसी एक के लिए नहीं सबके लिए था । भारत में जन्मी सनातनी, बौद्ध, जैन, सिख और आर्यसमाज आदि आध्यात्मिक धाराएँ विश्व कल्याण की बात करती हैं । क्योंकि हमने कभी भी अपने आपको विश्व मानवता से अलग नहीं माना । 


“ स्वदेशो भुवनत्रयम् ” यानि त्रिभुवन हमारा स्वदेश है , सारी पृथ्वी हमारा कुटुम्ब है ( वसुधैव कुटुम्बकम ) । यह हमारी मान्यता है । सबके कल्याण में अपना कल्याण और अपने कल्याण से सबका कल्याण ऐसा जीवन जीने का अनुशासन और सबका कल्याण हो , इसलिए सबके हितों का एक सन्तुलित समन्वय ही हिन्दुत्व है 


भारतवर्ष में जो हैं वे सब संघ की परिभाषा में हिन्दू हैं वे अपने आपको हिन्दू कहें न कहें उन्हें स्वतंत्रता है , या दूसरा कुछ कहें , कोई फर्क नहीं पड़ता , सभी के प्रति हमारा अपनत्व का भाव है । सभी एक पहचान के लोग हैं । राष्ट्र के नाते उस पहचान को हम हिन्दू कहते हैं । 


संघ की दृष्टि से सम्पूर्ण समाज का संगठन हिन्दू संगठन है । जैसे परीक्षा में सबसे सरल प्रश्न का उत्तर पहले दिया जाता है उसी प्रकार संघ पहले उनका संगठन करता है जो अपने आपको हिन्दू कहता है । 


संघ , जो अपने को आज हिन्दू नहीं मानते हैं , हिन्दू नहीं कहते हैं उनके खिलाफ नहीं है । संघ की आकांक्षा उनको समाप्त करने की नहीं है , उनका साथ लेने की है जोड़ने की है । वास्तविक हिन्दुत्व यही है । संघ की आकांक्षा ऐसा जीवन खड़ा करने की है जिसमें सब लोग बराबर से सहभागी हों । हिन्दुत्व के तीन आधार हम मानते हैं देश भक्ति , पूर्वज गौरव और संस्कृति । संघ इसी हिन्दुत्व के आधार पर विचार करता है । 


मातृशक्ति


अपने देश में प्राचीन काल से महिलाओं का समाज में बहुत महत्वपूर्ण स्थान है । वैचारिक रूप से उन्हें शक्तिस्वरूपा माँ जगदम्बा का रूप मानते हैं, लेकिन व्यवहार में अन्तर दिखाई पड़ रहा है । संघ की इच्छा है कि अपने घर से लेकर समाज के प्रत्येक क्षेत्र में सर्वत्र मातृशक्ति जागरण का काम होना चाहिए ।

 

महिला और पुरुष एक दूसरे के पूरक हैं , सार्थक जीवन के लिए दोनों को बराबरी से काम करना होगा अतः निर्णयों से लेकर दायित्वों तक में उनकी सहभागिता बराबरी से होनी चाहिए । राष्ट्र निर्माण में उनकी भी भूमिका महत्वपूर्ण है । संघ के सामान्नतर महिलाओं के लिए “ राष्ट्र सेविका समिति " नाम से अलग संगठन चलता है । 


राजनीति 


संघ ने अपने जन्म से ही निश्चित किया है यह राजनीति से दूर रहेगा । स्पर्धा की राजनीति नहीं करेगा, चुनाव नहीं लड़ेगा , संघ का कोई भी पदाधिकारी किसी भी राजनीतिक दल का पदाधिकारी नहीं बनेगा । संघ चुनाव और वोटों की राजनीति से दूर रहता है परन्तु संघ के विचार के आधार पर नीतियों के बारे में स्वयंसेवकों के मत होते हैं । 


राज्य कौन करे, इसका चयन जनता करती है, परन्तु राष्ट्रहित में सरकार कैसे चले , इस राष्ट्रनीति के बारे में संघ का कुछ मत रहता है जिसे समय - समय पर संघ सार्वजनिक रूप से समाज के समक्ष रखता रहा है । 


उदाहरणार्थ संघ को राजनीति से परहेज है परन्तु इसका यह अर्थ नहीं विदेशी घुसपैठियों के विषय पर संघ कुछ न बोले, यह राष्ट्रीय प्रश्न है । ऐसे अनेक राष्ट्रीय और सामाजिक महत्व के विषय होते हैं जिन पर संघ का अपना मत होता है । 


एक जिम्मेदार संगठन के नाते समाज जीवन से जुड़े विविध बिन्दुओं व प्रश्नों पर संघ मत व्यक्त करे यह संघ का दायित्व है । लोग इसे रिमोट कण्ट्रोल कहें या कुछ भी कहें, वास्तव में संघ अपनी स्पष्ट भूमिका रखने का काम करता आया है और भविष्य में भी करता रहेगा ।


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