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दिल छू लेने वाली कहानी- कह दे तो क्या बुरा है

अपने घर के सदस्य कि बाहर वालों से बुराई कर लेना सबसे आसान क्यों लगता है! सीधे सदस्य से कह दे, तो क्या बुरा है?


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कह दे तो क्या बुरा है?Kah De to kya Bura 


कामिनी रसोई में थी तो आवाज आई 'मम्मी मम्मी...।'आर्यन, उनका बेटा बुला रहा था। उन्हें थोड़ा गुस्सा आया।


'रोज इस लड़के का यही काम है। शादी हो गई है फिर भी हमेशा मुझे ही आवाज देकर बुलाता रहता है। शादी के पहले तो मेरे पल्ले को पकड़े रखता था, शादी के बाद भी मुझे ही परेशान करता है....' दुखी होते हुए वे बाथरूम की तरफ गईं। 'क्यों भाई आर्यन, क्या हुआ, क्यों बुलाया ?'.


'मम्मी, तौलिया भूलकर आ गया प्लीज मुझे दे दो।' 'अरे यह क्या बात हुई! यह मुझसे ही मांगेगा? अब तो तेरी पत्नी आ गई है ना उसको बुलाता।' वह बोलीं।


'नहीं मम्मी वह लैपटॉप में कुछ काम कर रही है, बेडरूम में है। उसे बुलाऊं तो भी सुनाई नहीं देगा। इसलिए मैंने आपको 'बुलाया।'


उसे तौलिया देते हुए वह मुड़ीं तो बेडरूम में बिस्तर पर तकिए के ऊपर लैपटॉप को गोद में रखकर कुछ काम कर रही शालू को खिड़की से देखा ।


'हां... यह तो महारानी है। सुबह-सुबह से ही लैपटॉप खोलकर बैठ गई। समय होते ही खाना खाने आ जाएगी। मुझे ही खाना तैयार करना पड़ेगा।' इस तरह सोचते हुए कामिनी रसोई में चली गई।


कल शाम को मंदिर में उनकी सहेली विमला ने अपनी बहू के बारे में जो बातें बोलीं, वो उन्हें याद आने लगीं।


'मेरी बहू तो मेरे पैरों को धरती पर भी लगने नहीं देती। सब घर के कामों को भंवरे जैसे घूम-घूमकर स्वयं ही करती है। यह भी अच्छी बात है कि मेरे बेटे ने तुम्हारे बेटे जैसे काम करने वाली लड़की को पसंद नहीं किया। नहीं तो तुम्हारे जैसे मुझे भी यही कहना पड़ेगा... मेरी बहू कुछ भी नहीं करती।'


'हां, उसने जो कहा वह सच ही तो है। मेरी बहू शालू को आए पांच महीने हो गए, आज तक भी रसोई की तरफ़ झांकने भी नहीं आई। चाय तक नहीं बनाई। घर के कोई भी काम वह नहीं करती है। कभी भगवान के सामने का दीपक भी नहीं जलाती। सुबह उठकर नाश्ता करके अपना लंच जो मैं तैयार करके रखती हूं उसको उठाकर ले जाती है। टाटा, बाय-बाय कहा और ये चली। रात को आती है तो आते ही खाना खाकर अपने कमरे में चली जाती है। बेटे से पूछो तो कहता है, 'उसका काम ऐसा ही है मम्मी ।' शहर में और लोगों की बहुएं भी तो नौकरी करती हैं? सुबह जल्दी उठकर सारा खाना बनाकर सारे घर के काम करके फिर ही वे अपनी ड्यूटी पर जाती हैं। शाम को आकर फिर काम में लग जाती हैं...' सोचते-सोचते कामिनी को गुस्सा आने लगा।


'बेटे की वजह से मुझे सब सहन करना पड़ेगा। फिर यह सोचकर गहरी सांस ली।


अचानक एक दिन आधी रात को कामिनी को ठंड लगकर बहुत तेज बुखार आ गया। सुबह वह उठ नहीं पाईं। बेटे ने रात को दवाई दी थी बस वही उन्हें याद रहा। जब सुबह उनकी आंखें खुलीं तो सामने बहू शालू खड़ी थी। कामिनी ने उठकर बैठने की कोशिश की परंतु शरीर ने साथ नहीं दिया। बहू ने उन्हें पकड़कर बैठाया। 'अभी आप कैसा महसूस कर रही हैं मम्मी ?” ने बहू ने पूछा।


"अभी कुछ ठीक लग रहा है। परंतु शरीर बहुत टूट रहा है।' कामिनी बोलीं। 'मैंने आपके लिए अदरक और तुलसी डालकर चाय बनाई है इसे पी लीजिए आराम मिलेगा। ये गोली भी ले लीजिएगा।' शालू बोली।


'चाय ?' आश्चर्य से चाय को हाथ में पकड़ते हुए उसकी आंखें बेटे को ढूंढने लगीं।


'मम्मी, आर्यन तो जरूरी मीटिंग होने की वजह से ऑफिस चले गए। मैंने आज छुट्टी ले ली है। मैंने उन्हें कह दिया, आज मैं आपके साथ रहूंगी। आप जैसे उठ जाएं तो उन्होंने कहा कि मैं उन्हें फोन कर दूं। अभी मैं उनको फोन करती हूं।'


उन्हें तुरंत लगा कि बेटे ने खाना खाया कि नहीं। उन्हें फ़िक्र लगी। उन्हें यह भी लगा कि घर बहुत गंदा पड़ा होगा। ऐसे सोचकर कुछ परेशान भी हुईं। पर क्या करें तबीयत अचानक ख़राब हो गई। ठीक होने के बाद सब कुछ देख लूंगी। चाय पीने के बाद फिर उसकी आंखें नींद से बोझिल हो गई और वह लेट गईं। शाम को जब उठीं, तो कुछ बेहतर महसूस हुआ। किसी तरह उठकर कमरे से बाहर आई। उन्हें लगा वे सपना देख रही हैं।


 घर एकदम साफ़-सुथरा था। बर्तन मंजे हुए साफ़-सुथरे रखे थे। सब कपड़े धोकर सूखने डाले हुए के कमरे से अगरबत्ती की खुशबू आ रही थी। रसोई में से कुछ बनाने की खुशबू भी आ रही थी।


धीरे से चलकर झांककर देखा। उनकी बहू शालू गुनगुनाते हुए खाना बना रही थी। कामिनी को बड़ा आश्चर्य हुआ और खुशी भी हुई।


यह मेरी बहू है ? यह तो बड़ा आश्चर्य है.. वे सोचने लगीं। 'आइए मम्मी..., आर्यन आकर खाना खाकर फिर आपको क्लीनिक लेकर जाएंगे, ऐसा उन्होंने बोला है। इसलिए डिनर जल्दी रेडी कर रही हूं। मैंने पूड़ी-छोले बना दिए और आपके लिए वेजिटेबल सूप बना रही हूं।' ऐसे कहते हुए बहू को कामिनी ने बड़ी प्रसन्नता से देखा ।


क्लीनिक में डॉक्टर के चेकअप के बाद जैसे ही बाहर आईं तो उन्होंने देखा बहू और बेटे बात कर रहे हैं तो उसे सुनाई दे रहा था। 'क्या बात है.... एकदम से तुम कैसे बदल गईं! यह क्या जादू हो गया!' कहकर आर्यन मजाक कर रहा था।


'क्या कह रहे हो आप? कौंन बदल गया ?'


'हां तुम्हें ही कह रहा हूं। मैंने तो देखा था छुट्टी के दिन भी जल्दी उठती नहीं । काम भी कुछ नहीं करतीं घर का । आज तुम तो सब काम तुमने कर दिया और बहुत बढ़िया ढंग से किया। खाना भी बहुत बढ़िया बनाया। मैं तो सोच रहा था कि तुम्हें खाना बनाना नहीं आता ! जब मैं तुम्हें कहता तो तुम कहतीं मैं बाद में बनाऊंगी। आज भी मैंने ऑनलाइन खाना आर्डर करने की ही सोची! अचानक यह कैसा बदलाव ?"


'अरे! मम्मी की तबीयत ठीक नहीं थी। तब मुझे ही तो घर को संभालना है! इसमें कौन-सी बड़ी बात है ?' 'क्यों इस स्थिति का इंतजार क्यों किया ? पहले ही मदद करती रहतीं, तो कैसा रहता ?"


'मुझे तो सब कुछ करने की बड़ी ही इच्छा होती थी। परंतु मुझे डर लगता था।' 'डर, क्या कह रही हो?"


'हां... हमारे घर भाभी आईं तो शुरू में खाने से लेकर पूजा तक सब कामों को वे देखती थीं। परंतु मेरी मम्मी को ऐसा लगा उनका अधिकार उनसे छिन गया। ऐसा उन्होंने फील किया। इसलिए दोनों के मन में खटास उत्पन्न हो गई। मैं जब यहां पर आई तब से कभी भी मम्मी जी ने मुझे कुछ भी करने के लिए नहीं कहा। इसलिए मैंने सोचा जब उनकी इच्छा नहीं है तो उनके रोजाना के कामों में मैं क्यों डिस्टर्ब करूं? यह सोचकर मैं सिर्फ अपने कामों को ही देखती रही। काम करना मुझे नहीं आता, यह आपको कैसे लगा? मैं बिल्कुल बदली नहीं हूं मैं हमेशा से ऐसी ही हूं। और फिर आपने भी कभी कुछ नहीं कहा, न ही आप मम्मी की मदद करते थे, तो मुझे लगा ऐसा ही रखना होगा। आपकी समझ में आया क्या आर्यन ?' कहकर शालू हंसने लगी। 


इसे सुनकर आर्यन के समझ में आया या नहीं पता नहीं, कामिनी अपनी बहू को अच्छी तरह से समझ गई।


'मेरी बहु मैं परेशान ना होऊं यह सोचकर इतने दिन इस तरह रही। इसे मैं ना जानकर उसके बारे में मन ही मन ग़लत सोच रही थी। मैं उससे क्या अपेक्षा करती हूं, उसी से सीधे कह देती। परंतु मैं ऐसा ना करके सब लोगों से उसके बारे में कमियों को ही गिनाती रही। यह मेरी बहुत बड़ी ग़लती है। आजकल की लड़कियां पढ़ी- लिखी हैं, नौकरी करती हैं फिर भी अपने घर की जिम्मेदारियों को, कर्तव्यों को कभी भूलती नहीं हैं। हम ही इस नई पीढ़ी के लोगों को ठीक से समझ नहीं पाते। प्रेम से, स्नेह से उन लोगों से व्यवहार करके उनके मन को समझना चाहिए। ठीक तो यह भी है कि आर्यन को कोई काम करने की आदत नहीं है। यह सब भी बदलना होगा।


तबीयत ठीक होने के बाद सबसे पहले काम पर जाने वाली अपनी बहू को बहुत-बहुत धन्यवाद कहूंगी और उसकी प्रशंसा करूंगी। मुझे और घर को उसने कितनी अच्छी तरह संभाला इस बारे में सभी को बड़े गर्व के साथ, बहू की तारीफ़ करके बताऊंगी।' कामिनी के मन में उजाला फैल रहा था।


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