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निर्जला एकादशी आज, व्रत की कथा, इतिहास और महत्व, उपवास में ध्यान रखें ये बातें

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Nirjala Ekadashi 2023: निर्जला एकादशी, हिन्दू धर्म में महत्वपूर्ण एक पर्व है जो हर साल जून माह के 'शुक्ल पक्ष की एकादशी' को मनाया जाता है। इस दिन लोग निर्जला उपवास करते हैं, जिसमें एक दिन तक निर्जला अर्थात् बिना पानी पीए रहना शामिल होता है। इस लेख में हम निर्जला एकादशी के बारे में जानेंगे, इसका महत्व समझेंगे, उपवास करने की कथा सुनेंगे, उपवास के दौरान ध्यान रखने योग्य बातें जानेंगे और इसे विशेष बनाने के लिए कुछ तथ्यों को शामिल करेंगे।

Nirjala Ekadashi

निर्जला एकादशी को सबसे कठोर और चुनौतीपूर्ण एकादशी व्रतों में से एक माना जाता है। अन्य एकादशी के दिनों के विपरीत, जहाँ उपवास में एक निश्चित अवधि के लिए भोजन और पानी से परहेज करना शामिल है, निर्जला एकादशी उपवास में पूरे दिन और रात के लिए निर्जल उपवास शामिल है। भक्तों का मानना ​​है कि इस व्रत को करने से उन्हें साल भर में अन्य सभी एकादशियों के व्रत करने के बराबर आशीर्वाद मिलता है।

निर्जला एकादशी, जिसे "भीम एकादशी" के नाम से भी जाना जाता है, ज्येष्ठ (मई-जून) महीने के शुक्ल पक्ष के 11वें दिन मनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण हिंदू धार्मिक अनुष्ठान है। इस दिन उपवास करने से सारे व्रतों के लाभ मिलते हैं और यह एकादशी अन्य एकादशी व्रतों की तुलना में अधिक फलदायी मानी जाती है। यह भक्तों द्वारा मनाए जाने वाले सबसे शुभ और चुनौतीपूर्ण एकादशी व्रतों में से एक माना जाता है। ये व्रत मानसिक एवं शारीरिक स्वास्थ्य के नज़रिए से भी बहुत महत्त्वपूर्ण है। 

"एकादशी का व्रत भगवान विष्णु की आराधना" को समर्पित होता है। अन्य एकादशी व्रतों के विपरीत, निर्जला एकादशी में भोजन और पानी से परहेज सहित पूर्ण उपवास शामिल है। इस दिन विधिपूर्वक जल कलश का दान करने वालों को पूरे साल की एकादशियों का फल मिलता है। इस प्रकार जो इस पवित्र एकादशी का व्रत करता है, वह समस्त पापों से मुक्त हो जाता है। निर्जला एकादशी का महत्व अत्यंत उच्च होता है और यह उपवास करने वालों के लिए बड़ी तपस्या का प्रतीक माना जाता है।

निर्जला एकादशी का महत्व

निर्जला एकादशी हिंदुओं में अत्यधिक धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व रखती है। यह एक पवित्र दिन माना जाता है जिसमें उपवासी अपने मन और शरीर को शुद्ध करके भगवान के श्री चरणों में बिना अन्ना जल के नतमस्तक हो जाते हैं। हिन्दू पंचाग अनुसार वृषभ और मिथुन संक्रांति के बीच शुक्ल पक्ष की एकादशी निर्जला एकादशी कहलाती है। ऐसा माना जाता है कि इस व्रत को पूरी श्रद्धा और ईमानदारी के साथ करना साल भर की सभी एकादशियों के व्रत करने के बराबर है। इस व्रत को भीमसेन एकादशी या पांडव एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। 

निर्जला एकादशी पर उपवास करने से मनुष्य के पापों का नाश होता है और वह अपने जीवन में सुख, शांति और समृद्धि की प्राप्ति करता है। पौराणिक मान्यता है कि पाँच पाण्डवों में एक भीमसेन ने इस व्रत का पालन किया था और वैकुंठ को गए थे। इसलिए इसका नाम 'भीमसेनी एकादशी 'भी हुआ। इस दिन किये गए उपासना और पूजन से मनुष्य की आध्यात्मिकता और श्रद्धा बढ़ती है, और वह अपने आप को भगवान के पास निकटतम महसगी करता है।

निर्जला एकादशी का व्रत न केवल आध्यात्मिक लाभ प्रदान करता है, बल्कि इसके स्वास्थ्य सम्बन्धी भी कई लाभ होते हैं। यह एक प्रकार का उपवास होता है जिसमें व्यक्ति बिना पानी पिए रहता है। इससे उनका शरीर पूरी तरह से प्रशांत रहता है और शरीर के अन्दर जमे अवशेष तत्वों का निकाला जाता है। इस तरीके से शरीर की सफाई होती है और सारे अनावश्यक पदार्थ शरीर से बाहर निकल जाते हैं। यह शरीर को शुद्ध करके अच्छे स्वास्थ्य को बनाए रखने में मदद करता है। 

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निर्जला एकादशी की कथा/कहानी और इतिहास

निर्जला एकादशी की कथा

जब वेदव्यास ने पांडवों को चारों पुरुषार्थ- धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष देने वाले एकादशी व्रत का संकल्प कराया था। तब युधिष्ठिर ने कहा - जनार्दन! ज्येष्ठ मास के शुक्लपक्ष में जो एकादशी पड़ती हो, कृपया उसका वर्णन कीजिए। भगवान श्रीकृष्ण ने कहा हे राजन् ! इसका वर्णन परम धर्मात्मा व्यासजी करेंगे, क्योंकि ये सम्पूर्ण शास्त्रों के तत्त्वज्ञ और वेद वेदांगों के पारंगत विद्वान् हैं।

तब वेदव्यासजी कहने लगे- कृष्ण और शुक्ल पक्ष की एकादशी में अन्न खाना वर्जित है। द्वादशी को  स्नान करके पवित्र होकर फूलों से भगवान केशव की पूजा करें। फिर पहले ब्राह्मणों को भोजन देकर अन्त में स्वयं भोजन करें। यह सुनकर भीमसेन बोले- परम बुद्धिमान पितामह! मेरी उत्तम बात सुनिए। राजा युधिष्ठिर, माता कुन्ती, द्रौपदी, अर्जुन, नकुल और सहदेव, ये एकादशी को कभी भोजन नहीं करते तथा मुझसे भी हमेशा यही कहते हैं कि भीमसेन एकादशी को तुम भी न खाया करो परन्तु मैं उन लोगों से यही कहता हूँ कि मुझसे भूख नहीं सही जाएगी।
 
भीमसेन की बात सुनकर व्यासजी ने कहा- यदि तुम नरक को दूषित समझते हो और तुम्हें स्वर्गलोक की प्राप्ति अभीष्ट है और तो दोनों पक्षों की एकादशियों के दिन भोजन नहीं करना।
 
भीमसेन बोले महाबुद्धिमान पितामह! मैं आपके सामने सच कहता हूँ। मुझसे एक बार भोजन करके भी व्रत नहीं किया जा सकता, तो फिर उपवास करके मैं कैसे रह सकता हूँ। मेरे उदर में वृक नामक अग्नि सदा प्रज्वलित रहती है, अत: जब मैं बहुत अधिक खाता हूँ, तभी यह शांत होती है। इसलिए महामुनि ! मैं पूरे वर्षभर में केवल एक ही उपवास कर सकता हूँ। जिससे स्वर्ग की प्राप्ति सुलभ हो तथा जिसके करने से मैं कल्याण का भागी हो सकूँ, ऐसा कोई एक व्रत निश्चय करके बताइये। मैं उसका यथोचित रूप से पालन करुँगा।
 
व्यासजी ने कहा- भीम! ज्येष्ठ मास में सूर्य वृष राशि पर हो या मिथुन राशि पर, शुक्लपक्ष में जो एकादशी हो, उसका यत्नपूर्वक निर्जल व्रत करो। केवल कुल्ला या आचमन करने के लिए मुख में जल डाल सकते हो, उसको छोड़कर किसी प्रकार का जल विद्वान् पुरुष मुख में न डालें, अन्यथा व्रत भंग हो जाता है। एकादशी को सूर्योदय से लेकर दूसरे दिन के सूर्योदय तक मनुष्य जल का त्याग करे तो यह व्रत पूर्ण होता है। इसके बाद द्वादशी को प्रभातकाल में स्नान करके ब्राह्मणों को विधिपूर्वक जल और सुवर्ण का दान करे। 

इस प्रकार सब कार्य पूरा करके जितेन्द्रिय पुरुष ब्राह्मणों के साथ भोजन करें। वर्षभर में जितनी एकादशियां होती हैं, उन सबका फल इस निर्जला एकादशी  से मनुष्य प्राप्त कर लेता है, इसमें तनिक भी सन्देह नहीं है। शंख, चक्र और गदा धारण करनेवाले भगवान केशव ने मुझसे कहा था कि ‘यदि मानव सबको छोड़कर एकमात्र मेरी शरण में आ जाय और एकादशी को निराहार रहे तो वह सब पापों से छूट जाता है।\"

कुन्तीनन्दन! निर्जला एकादशी के दिन श्रद्धालु स्त्री पुरुषों के लिए जो विशेष दान और कर्त्तव्य विहित हैं, उन्हें सुनो। उस दिन जल में शयन करने वाले भगवान विष्णु का पूजन और जलमयी धेनु यानी पानी में खड़ी गाय का दान करना चाहिए, सामान्य गाय या घी से बनी गाय का दान भी किया जा सकता है। इस दिन दक्षिणा और कई तरह की मिठाइयों से ब्राह्मणों को सन्तुष्ट करना चाहिए। उनके संतुष्ट होने पर श्रीहरि मोक्ष प्रदान करते हैं। 
 
जिन्होंने श्रीहरि की पूजा और रात्रि में जागरण करते हुए इस निर्जला एकादशी का व्रत किया है, उन्होंने अपने साथ ही बीती हुई सौ पीढ़ियों को और आने वाली सौ पीढ़ियों को भगवान वासुदेव के परम धाम में पहुँचा दिया है। निर्जला एकादशी के दिन अन्न, वस्त्र, गौ, जल, शैय्या, सुन्दर आसन, कमण्डलु तथा छाता दान करने चाहिए। जो श्रेष्ठ तथा सुपात्र ब्राह्मण को जूता दान करता है, वह सोने के विमान पर बैठकर स्वर्गलोक में प्रतिष्ठित होता है। जो इस एकादशी की महिमा को भक्तिपूर्वक सुनता अथवा उसका वर्णन करता है, वह स्वर्गलोक में जाता है। चतुर्दशीयुक्त अमावस्या को सूर्यग्रहण के समय श्राद्ध करके मनुष्य जिस फल को प्राप्त करता है, वही फल इस कथा को सुनने से भी मिलता है। 

भीमसेन! ज्येष्ठ मास में शुक्ल पक्ष की जो शुभ एकादशी होती है, उसका निर्जल व्रत करना चाहिए। उस दिन श्रेष्ठ ब्राह्मणों को शक्कर के साथ जल के घड़े दान करने चाहिए। ऐसा करने से मनुष्य भगवान विष्णु के समीप पहुँचकर आनन्द का अनुभव करता है। इसके बाद द्वादशी को ब्राह्मण भोजन कराने के बाद स्वयं भोजन करे। जो इस प्रकार पूर्ण रूप से पापनाशिनी एकादशी का व्रत करता है, वह सब पापों से मुक्त हो आनंदमय पद को प्राप्त होता है। यह सुनकर भीमसेन ने भी इस शुभ एकादशी का व्रत आरम्भ कर दिया।

निर्जला एकादशी व्रत का इतिहास

एकादशी व्रत हिंदू संस्कृति में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है और सदियों से मनाया जाता रहा है। एकादशी व्रत का इतिहास प्राचीन शास्त्रों और किंवदंतियों में देखा जा सकता है, जो इस प्रथा से जुड़े गहरे आध्यात्मिक महत्व को दर्शाता है।

एकादशी व्रत की उत्पत्ति प्राचीन भारतीय महाकाव्य महाभारत में मानी जाती है। शास्त्रों के अनुसार, पांडव, जो महाकाव्य के केंद्रीय पात्र थे, ने ऋषि व्यास से मुक्ति प्राप्त करने और एक धार्मिक जीवन जीने के बारे में मार्गदर्शन मांगा।

ऋषि व्यास ने उन्हें आध्यात्मिक शुद्धि प्राप्त करने और ब्रह्मांड के पालनहार भगवान विष्णु से आशीर्वाद प्राप्त करने के साधन के रूप में एकादशी व्रत का पालन करने की सलाह दी। उन्होंने समझाया कि एकादशी हिंदू कैलेंडर में चंद्र पखवाड़े (वैक्सिंग या वानिंग) का शुभ ग्यारहवां दिन है और इसे आध्यात्मिक साधनाओं के लिए एक पवित्र दिन माना जाता है।

एकादशी व्रत के अभ्यास को समय के साथ प्रमुखता मिली, विभिन्न क्षेत्रों के भक्तों ने इससे जुड़े अनुष्ठानों को अपनाया और अनुकूलित किया। विभिन्न शास्त्र, जैसे पद्म पुराण, विष्णु पुराण और स्कंद पुराण, एकादशी व्रत के महत्व और अनुष्ठानों का विस्तृत विवरण प्रदान करते हैं।

निर्जला एकादशी व्रत के लिए तैयारी Preparations for Nirjala Ekadashi in Hindi

निर्जला एकादशी को सफलतापूर्वक मनाने के लिए उचित तैयारी करना आवश्यक है। व्रत के दिन की तैयारी मन, शरीर और आत्मा के संतुलन को ध्यान में रखते हुए करनी चाहिए। इसके लिए निम्नलिखित बातों का ध्यान रखें: इस शुभ दिन की तैयारी में आपकी मदद करने के लिए यहां कुछ सुझाव दिए गए हैं:

  • मानसिक और शारीरिक तैयारी: निर्जला एकादशी के व्रत के दिन को मानसिक और शारीरिक रूप से तैयारी करें। शारीर को पूरी तरह से साफ और स्वस्थ रखने के लिए व्रत से पहले एक अच्छी नींद लें। इसके साथ ही, मन को शांत और स्थिर रखने के लिए ध्यान या मेडिटेशन करें। इससे व्रत के दौरान मन का समाधान और ध्यान स्थिर रहेगा।
  • आहार संबंधी सोचवट: निर्जला एकादशी के दिन व्रत रखते समय आहार संबंधी कुछ महत्वपूर्ण बातें ध्यान में रखें। इस व्रत में आपको पानी नहीं पीना होगा, इसलिए शरीर को पोषण देने के लिए उपवासी भोजन में ध्यान दें। साधारणतया, उपवासी अदरक, लहसुन, प्याज़, हरी सब्जियाँ, आलू, चावल, दूध, दही आदि का सेवन नहीं करते हैं। इसके साथ ही, आहार में स्वस्थ और पौष्टिक तत्वों का समावेश करें जैसे कि फल, सब्जियाँ, दाल, चीज़ें, द्रियों, नट्स, और मिल्क प्रोडक्ट्स।
  • अपने कार्यक्रम की योजना बनाएं: ऊर्जा संरक्षण के लिए अपने दिन को किसी भी ज़ोरदार शारीरिक गतिविधियों या व्यस्तताओं से मुक्त रखें।
  • मार्गदर्शन लें: यदि आपको कोई संदेह या चिंता है, तो मार्गदर्शन के लिए किसी जानकार पुजारी या आध्यात्मिक सलाहकार से सलाह लें।
  • भक्ति संबंधी वस्तुओं का स्टॉक करें: प्रार्थना के लिए एक शांतिपूर्ण और अनुकूल वातावरण बनाने के लिए आवश्यक भक्ति सामग्री जैसे फूल, अगरबत्ती और पवित्र ग्रंथ इकट्ठा करें।
  • प्रियजनों को सूचित करें: अपने परिवार और करीबी दोस्तों को अपने उपवास के बारे में बताएं ताकि वे आपकी सहायता कर सकें और घर में अनुकूल माहौल बना सकें।

निर्जला एकादशी के सफल व्रत के उपाय Tips for Successful Fasting on Nirjala Ekadashi in Hindi

निर्जला एकादशी पर उपवास करना एक चुनौतीपूर्ण लेकिन आध्यात्मिक रूप से पुरस्कृत अनुभव हो सकता है। सफल और पूर्ण व्रत सुनिश्चित करने के लिए यहां कुछ सुझाव दिए गए हैं:-

  1. उपवास से पहले हाइड्रेटेड रहें: अपने शरीर को हाइड्रेटेड रखने के लिए निर्जला एकादशी से पहले के दिनों में खूब पानी पिएं।
  2. हल्का और सात्विक भोजन करें: उपवास के एक दिन पहले अपने शरीर को कठोर उपवास के लिए तैयार करने के लिए हल्का और आसानी से पचने वाला भोजन करें।
  3. आध्यात्मिक साधनाओं में व्यस्त रहें: भगवान विष्णु के साथ अपने संबंध को गहरा करने के लिए प्रार्थना, ध्यान और पवित्र भजनों का पाठ करने में दिन बिताएं।
  4. आराम और आराम बनाए रखें: अत्यधिक शारीरिक परिश्रम से बचें और सुनिश्चित करें कि आपको ऊर्जा बचाने के लिए पर्याप्त आराम मिले।
  5. व्रत को सावधानी से तोड़ें: उपवास पूरा करने के बाद, अपने शरीर को नियमित खाने में वापस लाने के लिए इसे फल, मेवे और दूध जैसे सरल, सात्विक खाद्य पदार्थों से तोड़ें।

निर्जला एकादशी व्रत करने के नियम और दिशा निर्देश, ध्यान रखें ये बातें

निर्जला एकादशी का व्रत करने के लिए अत्यंत समर्पण और अनुशासन की आवश्यकता होती है। निर्जला एकादशी व्रत के आचरण में कुछ नियम और रीति-रिवाज होते हैं, जिन्हें व्रती को पालन करना चाहिए। ये नियम और रीति-रिवाज हैं:

  • निर्जला एकादशी से पहले व्रती को उपवास की तैयारी करनी चाहिए। इसमें व्रत के दिन के लिए अनाज, घी, दूध, मांस और अन्य अस्वीकार्य आहार सामग्री का त्याग करना शामिल है।
  • व्रत की पूर्व संध्या या पूर्वाह्न में जल की अर्पणा करें। इसके बाद से व्रत शुरू होगा और जल का सेवन नहीं किया जाएगा।
  • व्रत के दिन सुबह उठकर स्नान करें। यह स्नान शुद्धता और पवित्रता के लिए महत्वपूर्ण है।
  • पूरे दिन और रात बिना कुछ खाए-पिए उपवास पूरा करें।
  • दिनभर कम बोलें और हो सके तो मौन रहने की कोशिश करें।
  • पूरे व्रत के दौरान स्वच्छ और शुद्ध मन की स्थिति बनाए रखें।
  • दिनभर न सोएं।
  • व्रती को निर्जला एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा करनी चाहिए। इसके लिए विष्णु जी की मूर्ति, फूल, दीप, धूप आदि की आवश्यकता होती है। पूजा के दौरान व्रती को विष्णु सहस्त्रनाम स्तोत्र या विष्णु चालीसा का पाठ करना चाहिए।
  • ब्रह्मचर्य का पालन करना बहुत जरुरी है। 
  • नकारात्मक विचारों, वाणी या कार्यों में उलझने से बचें।
  • व्रती को निर्जला एकादशी के दिन विष्णु मन्त्र या मन्त्र जाप करना चाहिए। इसके अलावा व्रती को ध्यान और मेडिटेशन के लिए समय निकालना चाहिए।
  • झूठ न बोलें, गुस्सा और विवाद न करें।
  • भगवान विष्णु से आशीर्वाद लें और अपने और प्रियजनों की भलाई के लिए प्रार्थना करें।
  • निर्जला एकादशी के दिन व्रती को भ्रमण या यात्रा करने से बचना चाहिए। इसे एक अच्छी आध्यात्मिक और धार्मिक व्रत माना जाता है, इसलिए शांति और चिंतन में ध्यान केंद्रित करना चाहिए।
  • इस दिन धर्मार्थ कार्य करना और जरूरतमंद लोगों की मदद करना शुभ माना जाता है।
  • व्रती को निर्जला एकादशी के दिन सूर्यास्त के बाद या अगले दिन सूबह सूर्योदय के समय व्रत खोलना चाहिए। व्रत खोलते समय व्रती को भगवान विष्णु का ध्यान करना चाहिए और फलाहार सेवन करना चाहिए।
  • अन्य लोगों की सेवा करें और उन्हें भोजन दें। दरिद्र लोगों की मदद करें और उन्हें भोजन, वस्त्र या धनराशि दें।

निर्जला एकादशी का व्रत करने से स्वास्थ्य लाभ

निर्जला एकादशी का व्रत धार्मिक महत्व के अलावा कई स्वास्थ्य लाभ भी देता है। इस कठोर उपवास से जुड़े कुछ फायदे इस प्रकार हैं:

  1. विषहरण: उपवास शरीर के विषेलेपदार्थों और सफाई में मदद करता है, विषाक्त पदार्थों को खत्म करता है और समग्र कल्याण को बढ़ावा देता है।
  2. बेहतर पाचन: नियमित भोजन के सेवन से ब्रेक पाचन तंत्र को आराम और फिर से जीवंत करने की अनुमति देता है, जिससे पाचन में सुधार होता है।
  3. वजन प्रबंधन: उपवास वसा हानि को बढ़ावा देने और चयापचय दक्षता में वृद्धि करके वजन प्रबंधन में सहायता कर सकता है।
  4. मानसिक स्पष्टता: उपवास के दौरान आवश्यक अनुशासन और ध्यान मानसिक स्पष्टता और आध्यात्मिक जागरूकता को बढ़ा सकता है।
  5. मजबूत प्रतिरक्षा: उपवास को प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करने के लिए दिखाया गया है, जिससे शरीर रोगों के प्रति अधिक लचीला हो जाता है।

निर्जला एकादशी व्रत के बाद

निर्जला एकादशी व्रत के बाद व्रती को यह ध्यान देना चाहिए कि उन्हें व्रत खोलने से पहले पहले दिन महीने का पानी पीना चाहिए और धीरे-धीरे आहार शुरू करें। जीरा पानी, नारियल पानी और फलों का सेवन करने से पहले पानी पीना शुरू करें। उपवासी को अच्छे से पहले भोजन करने के लिए खाने की बातें चयन करनी चाहिए और भोजन को स्वस्थ और पौष्टिक बनाने के लिए खाने के साथ गर्म जल पीना चाहिए।

निष्कर्ष

निर्जला एकादशी उपवास का एक पवित्र दिन है जो हिंदू संस्कृति में अत्यधिक धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व रखता है। इस कठोर व्रत को करने से भक्त आशीर्वाद, पवित्रता और आध्यात्मिक विकास की कामना करते हैं। भीम के दृढ़ संकल्प की कहानी लाखों लोगों को इस चुनौतीपूर्ण यात्रा पर जाने के लिए प्रेरित करती है। निर्जला एकादशी का उपवास करते समय, एक सकारात्मक मानसिकता बनाए रखना, नियमों का पालन करना और भक्ति अभ्यास में संलग्न होना महत्वपूर्ण है। इस शुभ दिन के माध्यम से, भक्त दिव्य आशीर्वाद, अच्छे स्वास्थ्य और समग्र कल्याण की कामना करते हैं।

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इस लेख में हमने निर्जला एकादशी के बारे में सब कुछ जाना है - निर्जला एकादशी आज, व्रत की कथा, इतिहास और महत्व, उपवास में ध्यान रखें ये बातें. इसे पूरी श्रद्धा और आदर के साथ अपने धार्मिक और आध्यात्मिक साधनाओं में शामिल करें। 
FAQs:
क्या हर कोई निर्जला एकादशी का पालन कर सकता है?

निर्जला एकादशी का व्रत अत्यधिक कठोर माना जाता है और सभी के लिए उपयुक्त नहीं है। यह अच्छे स्वास्थ्य और मजबूत दृढ़ संकल्प वाले व्यक्तियों के लिए सबसे उपयुक्त है। बीमार लोगों, गर्भवती महिलाओं और छोटे बच्चों को आम तौर पर सलाह दी जाती है कि वे इस सख्त उपवास का पालन न करें।

मैं निर्जला एकादशी व्रत के दौरान क्या खा सकता हूं?

चूंकि निर्जला एकादशी के लिए बिना पानी या भोजन के पूर्ण उपवास की आवश्यकता होती है, उपवास की अवधि क दौरान किसी भी खपत की अनुमति नहीं होती है। हालांकि, विशिष्ट चिकित्सीय स्थितियों या आहार संबंधी आवश्यकताओं वाले व्यक्तियों को उपवास से पहले एक स्वास्थ्य देखभाल पेशेवर से परामर्श करना चाहिए।

क्या निर्जला एकादशी के व्रत के कोई अपवाद हैं?

गंभीर बीमारी या किसी चिकित्सकीय आपात स्थिति के मामले में, किसी को निर्जला एकादशी का व्रत रखने से छूट दी जा सकती है। हालांकि, ऐसी स्थितियों में आध्यात्मिक सलाहकार या पुजारी से सलाह लेने की सलाह दी जाती है।

क्या गर्भवती महिलाएं और बच्चे निर्जला एकादशी रख सकते हैं?

गर्भवती महिलाओं और छोटे बच्चों को आमतौर पर उनकी पोषण संबंधी जरूरतों के कारण निर्जला एकादशी का कठोर उपवास रखने की सलाह नहीं दी जाती है। उनके स्वास्थ्य को प्राथमिकता देना और मार्गदर्शन के लिए स्वास्थ्य देखभाल पेशेवर से परामर्श करना महत्वपूर्ण है।

अगर मैं निर्जला एकादशी का व्रत नहीं रख सकता तो मुझे क्या करना चाहिए?

यदि आप स्वास्थ्य कारणों या अन्य बाधाओं के कारण निर्जला एकादशी व्रत का पालन करने में असमर्थ हैं, तब भी आप भक्ति प्रथाओं, प्रार्थनाओं का पाठ, और दान और दया के कार्य करके आशीर्वाद प्राप्त कर सकते हैं।

निर्जला एकादशी का व्रत करने से शरीर को कैसे लाभ होता है?

निर्जला एकादशी पर उपवास करने से कई स्वास्थ्य लाभ मिलते हैं, जिनमें विषहरण, बेहतर पाचन, वजन प्रबंधन, मानसिक स्पष्टता और मजबूत प्रतिरक्षा शामिल हैं। यह समग्र कल्याण को बढ़ावा देने, शरीर को आराम और कायाकल्प करने की अनुमति देता है।

क्या निर्जला एकादशी का उपवास आध्यात्मिक विकास में मदद कर सकता है?

जी हां, निर्जला एकादशी का व्रत करने से आध्यात्मिक विकास और शुद्धि होती है। इसे भगवान विष्णु के साथ गहराई से जुड़ने और उनका आशीर्वाद लेने का अवसर माना जाता है।

क्या निर्जला एकादशी से जुड़ी कोई विशिष्ट रस्में हैं?

भक्त जल्दी उठते हैं, विधिपूर्वक स्नान करते हैं और भगवान विष्णु की पूजा करते हैं। वे मंदिरों में जाते हैं, पवित्र ग्रंथों का पाठ करते हैं, और पूरे दिन भक्ति गतिविधियों में संलग्न रहते हैं।

निर्जला एकादशी के व्रत की अवधि कितनी होती है?

निर्जला एकादशी पर उपवास की अवधि सूर्योदय से शुरू होती है और पूरे 24 घंटों तक जारी रहती है और अगले दिन सूर्योदय पर समाप्त होती है।

क्या मैं निर्जला एकादशी व्रत में पानी पी सकता हूँ?

निर्जला एकादशी व्रत में पानी पीना मना है। इस व्रत में व्रती को पूरी तरह से निर्जला रहना चाहिए, जिसका अर्थ है कि पानी पीने से बचना चाहिए।

क्या निर्जला एकादशी व्रत केवल हिन्दू धर्म के लोग ही रख सकते हैं?

नहीं, निर्जला एकादशी व्रत को हिन्दू धर्म के अलावा अन्य धर्मों के लोग भी रख सकते हैं। यह एक आध्यात्मिक व्रत है जो शारीरिक और मानसिक शुद्धि को प्राप्त करने का उद्देश्य रखता है।

क्या निर्जला एकादशी व्रत में सभी प्रकार के अनाज का सेवन किया जा सकता है?

नहीं, निर्जला एकादशी व्रत में गेहूं, चावल, दाल और अन्य अनाज का सेवन नहीं किया जाता है। इस व्रत में उपवासी केवल फल, सब्जी, द्रियों, नट्स, और मिल्क प्रोडक्ट्स का सेवन कर सकते हैं।

क्या निर्जला एकादशी व्रत के दौरान योगा या मेडिटेशन किया जा सकता है?






हाँ, निर्जला एकादशी व्रत के दौरान योगा और मेडिटेशन करना उपयुक्त है। यह आपको मानसिक शांति, ध्यान और आध्यात्मिक उन्नति में मदद कर सकता है। ध्यान करते समय सही स्थान पर बैठें और शांत और सुरम्य वातावरण में ध्यान केंद्रित करें।

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