हरिमन शर्मा apple nursery | गर्म इलाकों में उगने वाले सेब को मिली सरकारी मान्यता
- पॉजिटिव खबर गर्म इलाकों में उगने वाले सेब को मिली सरकारी मान्यता
- कोहरे से आम का बाग खत्म हुआ तब सेब उगाए , 29 राज्य उगा रहे इनकी पेटेंट किस्
हरिमन शर्मा apple nursery | गर्म इलाकों में उगने वाले सेब को मिली सरकारी मान्यता
हिमाचल प्रदेश वर्ष 1999 की बात है । उस समय हिमाचल में बहुत कोहरा पड़ा था । हिमाचल के सीमावर्ती जिले बिलासपुर में रहने वाले हरिमन शर्मा का खुद का पूरा बगीचा खत्म हो गया था । इस इलाके में आम की फसल होती है , लेकिन कोहरे का असर ऐसा हुआ कि सौ - सौ साल पुराने पेड़ भी नहीं बचे ।
सबकुछ खत्म हो गया , लेकिन हरिमन ने हार नहीं मानी । और सेब की फसल के बारे में सोचा । वैसे हिमाचल प्रदेश के ऊपरी इलाके जैसी ठंडी जगह में सेब अच्छी खासी संख्या में होते हैं , लेकिन पंजाब से सटे बिलासपुर में आमतौर पर मौसम गर्म रहता है और सेब उगाने के बारे में कोई सपने में भी नहीं सोचता था ।
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हरिमन शर्मा के इरादे सुनकर लोगों को लगा कि ये सोचना भी बेवकूफी है । अब हरिमन शर्मा की गर्म इलाकों में पैदा होने वाली सेब की किस्म हरिमन यानि ' HRMN 99 ' को तीन , सप्ताह पहले भारत सरकार ने 29 राज्यों के लिए रिलीज किया है ।
हरिमन की सेब की इस किस्म के पेटेंट में सात साल का वक्त लगा । देश के साथ - साथ बांग्लादेश , नेपाल , जर्मनी , जांबिया में भी इसकी खेती सफलतापूर्वक हो रही है । हरिमन बताते हैं कि उनको शुरू से कुछ अलग करने की ललक थी ।
जब बागवानी के लिए सरकारी नौकरी छोड़ी तो बहुत से लोग नाराज हुए क्योंकि वह पेंशन वाली जॉब थी । घर चलाने के लिए पत्थर तोड़ने का काम भी करना पड़ा । पानी के लिए कोशिश की तो भूजल नहीं था । लेकिन धीरे - धीरे सफलता मिलनी शुरू हुई ।
रास्ता उस समय थोड़ा आसान हुआ तो किसी के जरिए तत्कालीन सीएम प्रेम कुमार धूमल से मिले । इसके बाद एग्रीकल्चर व हार्टीकल्चर डिपार्टमेंट के अधिकारियों से मुलाकात हुई । नेशनल इनोवेशन फाउंडेशन ( एनआईएफ ) में संपर्क किया ।
इन दिनों हरिमन देश के कई राज्यों में किसानों और बागवानों को फोन के जरिए मदद देते हैं । मणिपुर में इसके लिए नर्सरी भी बननी शुरू हो गई है ।
48 डिग्री तापमान में भी उग सकते हैं ये विशेष सेब
हरिमन शर्मा के नाम से पहचानी जाने वाले सेब की किस्म HRMN - 99 , 48 डिग्री तापमान वाले इलाकों भी उग सकती है । पौधा लगाने के दो से तीन साल में ये फल देना शुरू कर देता है । सात साल में इसका उत्पादन एक क्विंटल प्रति पेड़ रहता है ।
एनआईएफ ने प्रायोगिक तौर पर 1190 किसानों को 10 हजार पौधे दिए थे । इसकी मॉलीक्युलर स्टडी भी कराई गई , जिसमें इसको कम सर्दी में होने वाली अन्ना और डॉरसेट गोल्डन एप्पल से बेहतर पाया गया है ।
कर्नाटक , राजस्थान , उत्तर प्रदेश , हिमाचल प्रदेश , उत्तराखंड , दिल्ली , मध्य प्रदेश , हरियाणा और मणिपुर में भी इसके ट्रायल सफल हुए हैं । बेंगलुरु में तो किचन गार्डन में लोग इसको ड्रम्स में लगा रहे हैं ।
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