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कैसे पाएं मनचाही संतान | Manchahi santan kaise paye

भारतीय चिंतन गृहस्थ आश्रम को श्रेष्ठ मानते हुए मनुष्य को इसकी मर्यादा में रहते हुए इसे धर्म, काम, अर्थ व मोक्ष प्राप्ति का साधन बताता है । हम काम को कामुकता की दृष्टि से नहीं बल्कि सृजन की दृष्टि से देखते हैं क्योंकि अगर संतानोत्पति नहीं होगी तो समाज चलेगा कैसे । 


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इसीलिए स्वस्थ व संस्कारवान ' समाज के निर्माण के लिए इन्हीं गुणों से परिपूर्ण संतान पैदा करना आवश्यक है । हमारे शास्त्रों में गर्भाधान-क्रिया को न सिर्फ़ ' संस्कार ' ही माना गया है । बल्कि पूरे जीवन के 16 संस्कारों में सबसे पहला होने से सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण संस्कार इस ' गर्भाधान-संस्कार ' को ही माना गया है जिस पर पूरे जीवन की बुनियाद रखी जाती है ।

 

pregnancy mein गर्भवती महिला इन बातों का विशेषकर रखें ध्यान,बरते निम्न सावधानियाँ


यदि दम्पति चाहते हैं कि वे अच्छे संस्कार, स्वभाव और स्वस्थ सन्तान को जन्म दें तो उन्हें गर्भाधान हेतु किये जाने वाले सहवास को मात्र यौन क्रीड़ा की भांति नहीं बल्कि इसे एक संस्कार या यज्ञ की भांति, मन व शरीर को स्वस्थ पवित्र रखते हुए, अच्छे वातावरण में ही सम्पन्न करना चाहिए । 


तो सवाल लड़का या लड़की होने का इतना महत्त्वपूर्ण नहीं है जितना यह कि जो भी सन्तान हो वह अच्छी स्वस्थ, सुन्दर और मनपसन्द गुण स्वभाव वाली हो । इसके लिए हमें पहले से ही मानसिक और शारीरिक रूप से तैयारियां करनी होंगी । तो आइये जानते हैं मनचाही संतान सन्तान कैसे पाएँ? Manchahi Santan Kaise Paye, Manchahi Santan Prapti Ke Upay


स्त्रीपुंसयोरव्यापन्न शुक्रशोणित गर्भाशयोः श्रेयसीप्रजामिच्छ तोस्तदर्थाभिनिर्वृत्तिकरं कर्मोपदेक्ष्यामः ॥-चरक संहिता  


श्रेष्ठ सन्तान उत्पन्न करने की इच्छा रखने वाले स्त्री-पुरुष के लिए जिनके शुक्र, आर्तव, योनि-प्रदेश व गर्भाशय शुद्ध व स्वस्थ, परिपक्व हों । 


Manchahi santan prapti ke upay


1- उचित आहार-विहार और पौष्टिक पदार्थों का सेवन कर शरीर को स्वस्थ और निरोग रखें और जब ऐसी स्थिति हो तभी ' गर्भाधान संस्कार ' करें । अस्वस्थ शरीर और चिन्ताग्रस्त मानसिक स्थिति हो, तब न करें । साधारण सामान्य रूप से अपना स्वास्थ्य ठीक रखें, पाचन शक्ति और पेट ठीक रखें । 


2- जब पत्नी को ऋतुस्राव ( माहवारी ) हो तब वह 4 दिन सबसे अलग रह कर कोई काम काज न कर पूर्ण विश्राम करे, मन से प्रसन्न रहे, पति से सम्पर्क न करे, विचार शुद्ध सात्विक रखे । ऋतुस्राव समाप्त होने पर सुगन्धित उबटन लगा कर स्नान करे और सर्वप्रथम अपने पति को देखे या दर्पण में स्वयं को देखे । इन दिनों में स्त्री को हर्षित, उत्साहित और अच्छे विचारों से युक्त रहना चाहिए । शास्त्र का कहना है - 


' गर्भोपपत्तौ तु मनः स्त्रियां यं जन्तुं व्रजेत्तत्सदृशं प्रसूते ' 


यानी गर्भाधान समय स्त्री का मन जिस प्रकार के विचारों वाला होता है और जिस तरफ आकर्षित रहता है वह उसी प्रकार की सन्तान को जन्म देती है । गर्भाधान और गर्भकाल के दौरान स्त्री जैसी भावना और विचारधारा रखती है, उसी के अनुरूप सन्तान के मन, स्वभाव और संस्कारों का निर्माण होता है ।इसलिए पति-पत्नी को गर्भाधान के समय अपनी मानसिक स्थिति अच्छे विचार वाली, परस्पर प्रीतियुक्त तथा सात्विक रखनी चाहिए । 


3- पुत्र प्राप्ति की इच्छा से किया जाने वाला गर्भाधान ऋतुकाल की आठवीं, दसवीं बारहवीं, चौदहवीं और सोलहवीं रात्रि को ही किया जाना चाहिए । जिस दिन मासिक ऋतुस्राव शुरू हो उस दिन व रात को प्रथम मान कर गिनती करनी चाहिए । 


आठवीं, दसवीं आदि सम रात्रियां पुत्र उत्पत्ति के लिए और नवमी, ग्यारहवीं आदि विषम रात्रियां पुत्री की उत्पत्ति के लिए होती " हैं अतः जैसी सन्तान की इच्छा हो उसी रात्रि को गर्भाधान करना चाहिए । इस सम्बन्ध में एक बात का ध्यान और रखना चाहिए । इन रात्रियों के समय शुक्ल पक्ष वाला पखवाड़ा भी हो, यह अनिवार्य है यानी कृष्ण पक्ष की रातें हों तो परिवार नियोजन के साधन अपनाने चाहिएं । शुक्ल पक्ष में जैसे-जैसे तिथियां बढ़ती हैं वैसे-वैसे चन्द्रमा की कलाएं बढ़ती हैं । 


इसी प्रकार रात्रियों का क्रम जैसे-जैसे बढ़ता है वैसे-वैसे गर्भाधान होने की सम्भावना बढ़ती है यानी आठवीं रात की अपेक्षा दशमी, दशमी की अपेक्षा बारहवीं और बारहवीं की अपेक्षा चौदहवीं रात अधिक उपयुक्त होती है यदि शुक्ल पक्ष और ऋतुकाल का प्रारम्भ साथ ही साथ या 1-2 दिन आगे पीछे भी शुरू हो तो दसवीं या बारहवीं रात के समय तिथि और चन्द्रमा कलाएं भी बढ़ी हुई होंगी । 


यह संयोग बन जाए और पूरी मानसिक तैयारी से पुत्र की कामना करते हुए सफलता पूर्वक गर्भाधान क्रिया सम्पन्न करें तो निश्चित रूप से पुत्र की उत्पत्ति होती है लेकिन पूरे मास में इस विधि से किये गये सहवास के अलावा पुनः सहवास नहीं करना चाहिए वरना घपला भी हो सकता है । 


4- गर्भाधान वाले दिन व रात्रि में आहार विहार एवं आचार-विचार शुभ, पवित्र रखते हुए मन में हर्ष व उत्साह रखना चाहिए । पूरे गर्भकाल में भी स्त्री को अपना आचार-विचार अच्छा रखना चाहिए । 


5- गर्भाधान के दिन से ही स्त्री को चावल की खीर, दूध, भात जैसे मधुर आहार का सेवन करना शुरू कर देना चाहिए । प्रातः मक्खन मिश्री 1-1 चम्मच ज़रा सी पिसी काली मिर्च मिला कर चाट लें । ऊपर से कच्चा नारियल व सौंफ खाना बहुत अच्छा रहता है । 


यह प्रयोग पूरे गर्भकाल में अवश्य करना चाहिए । जो गर्भवती स्त्री पूरे नौ मास तक नियमपूर्वक प्रातः काल मक्खन मिश्री, काली मिर्च, कच्चा नारियल व सौंफ का सेवन करती रहेगी वह निश्चित ही बहुत ही गौरवर्ण की स्वस्थ व सुडौल सन्तान को जन्म देगी । 


6- गर्भवती महिला को रात को चंद्रमा व सुबह उगते हुए सूरज के दर्शन अवश्य करने चाहिएं, इससे उसकी होने वाली संतान चंद्रमा सुंदर व सूर्य के समान ओजस्वी पैदा होती है । याद रखना चाहिए कि सोने वाले कमरे में अश्लीलचित्र, फिल्मी हीरो हीरोइनों के ऊल-जलूल चित्र नहीं लगे होने चाहिएं । इसकी जगह पर भगवान राम - कृष्ण के बालरूप के चित्र या अपने इष्ट देवों, गुरुओं के चित्र लगाएं और सुबह उठ कर उनके दर्शन करें ।


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