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power of positivity: उदासी या दुख में पलायन नहीं, उसका सामना करें

Power Positive Thinking: विख्यात लेखक एक्हार्ट टॉल्ल लिखते हैं कि प्राचीन ग्रीस के एक दार्शनिक को जब यह बताया गया कि उनका पुत्र एक दुर्घटना में मारा गया है तो उनका जवाब था, ' मैं जानता था कि वह अमर नहीं हैं।' क्या यह समर्पण है? ऐसी कुछ स्थितियां होती हैं जिनमें यह समर्पण अस्वाभाविक, अप्राकृतिक और अमानवीय लगता है। 


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Power of Positivity: उदासी या दुख में पलायन नहीं, उसका सामना करें


यहां सकारात्मकता की बात भी बेमानी हो जाती है। अपनी भावनाओं से कट जाना समर्पण नहीं है। हो सकता है कि कुछ चरम स्थितियों में 'अब' को स्वीकार करना आपके लिए संभव न हो। लेकिन समर्पण में आपको इसके लिए एक और अवसर तो मिल ही जाता है। यह जानने के बाद कि जो हो गया है, उसे वैसा ही नहीं किया जा सकता।


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उसके बाद आप वह करें जो आपको करना है, वह करें जो उस स्थिति की आवश्यकता है। अगर आप स्वीकारने की इस अवस्था में ठहरे रहते हैं तो आप कोई और नकारात्मकता, कोई और कष्ट क्लेश, कोई और दुख सृजित नहीं करते हैं। तब आप अप्रतिरोध की अवस्था में संघर्ष से मुक्त रहते हैं। 


बहरहाल आपके मन में सवाल उठेगा कि कोई दुख के प्रति समर्पण कैसे कर सकता है। कुछ देर के लिए समर्पण को भूल जाइए। जब आपका दुख-दर्द गहरा होता है तब ये समर्पण-वमर्पण की तमाम बातें बिल्कुल बेकार और बेमानी लगती हैं।


जब आपका दुख दर्द गहरा होता है तब अधिक संभावना इस बात की ही रहती है कि उसके प्रति समर्पण करने के बजाय आप उससे पलायन करें, उससे दूर होने की इच्छा आपमें रहती है। लेकिन, बच निकलने का कोई रास्ता नहीं होता। परिस्थिति का सामना करके ही उसका हल खोजा जा सकता है।


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