आभूषण - चिकित्सा Aabhushan Chikitsa
Aabhushan Chikitsa: भारतीय समाज में स्त्री - पुरुषों में आभूषण पहनने की परम्परा प्राचीनकाल से चली आ रही है । आभूषण धारण करने का अपना एक महत्त्व है । जो शरीर और मन से जुड़ा हुआ है । स्वर्ण के आभूषणों की प्रकृति गर्म है तथा चाँदी के गहनों की प्रकृति शीतल है । यही कारण है कि ग्रीष्म ऋतु में जब किसी के मुँह में छाले पड़ जाते हैं तो प्रायः ठंडक के लिये मुँह में चाँदी रखने की सलाह दी जाती है । इसके विपरीत सोने का टुकड़ा मुँह में रखा जाये तो गर्मी महसूस होगी ।
स्त्रियों पर सन्तानोत्पत्ति का भार होता है । उसकी पूर्ति के लिए उन्हें आभूषणों द्वारा ऊर्जा व शक्ति मिलती रहती है । सिर में सोना और पैरों में चाँदी के आभूषण धारण किये जायें तो सोने के आभूषणों से उत्पन्न हुई बिजली पैरों में तथा चाँदी के आभूषणों से उत्पन्न होने वाली ठंडक सिर में चली जाएगी क्योंकि सर्दी गर्मी को खींच लिया करती है ।
इस तरह से सिर को ठंडा व पैरों को गर्म रखने के मूल्यवान चिकित्सकीय नियम का पूर्ण पालन हो जाएगा । इसके विपरीत यदि सिर में चाँदी के तथा पैरों में सोने के गहने पहने जायें तो इस प्रकार के गहने धारण करने वाली स्त्रियाँ पाग़लपन या किसी अन्य रोग की शिकार बन सकती हैं । अतैव सिर में चाँदी के व पैरों में सोने के आभूषण कभी नहीं पहनने चाहिएं । प्राचीन काल की स्त्रियाँ सिर पर स्वर्ण के एवं पैरों में चाँदी के वज़नी आभूषण धारण कर दीर्घजीवी , स्वस्थ व सुन्दर बनी रहती थीं ।
जिन धनवान परिवारों की महिलाएँ केवल स्वर्णाभूषण ही अधिक धारण करती हैं तथा चाँदी पहनना ठीक नहीं समझतीं वे इसी वजह से स्थायी रोगिणी रहा करती हैं ।
विद्युत् का विधान अति जटिल है । तनिक - सी गड़बड़ में परिणाम कुछ- का - कुछ हो जाता है । यदि सोने के साथ चाँदी की भी मिलावट कर दी जाये । तो कुछ और ही प्रकार की विद्युत् बन जाती है । जैसे गर्मी से सर्दी के ज़ोरदार मिलाप से सरसाम हो जाता है तथा समुद्रों में तूफान उत्पन्न हो जाते हैं , उसी प्रकार जो स्त्रियाँ सोने के पतरे का खोल बनवाकर भीतर चाँदी , ताँबा या जस्ते की धातुएँ भरवाकर कड़े , हंसली आदि आभूषण धारण करती हैं , वे हकीकत में तो बहुत बड़ी त्रुटि करती हैं । वे सरेआम रोगों एवं विकृतियों को आमंत्रित करने का कार्य करती हैं ।
आभूषणों में किसी विपरीत धातु के टाँके से भी गड़बड़ी हो जाती है अतः सदैव टाँकारहित आभूषण पहनना चाहिएं अथवा यदि टाँका हो तो उसी धातु का होना चाहिए जिससे गहना बना हो ।
विद्युत् सदैव सिरों तथा किनारों की ओर से प्रवेश किया करती है । अत : मस्तिष्क के दोनों भागों को विद्युत् के प्रभावों से प्रभावशाली बनाना हो तो नाक और कान में छिद्र करके सोना पहनना चाहिये । कानों में सोने की बालियाँ अथवा झुमके आदि पहनने से स्त्रियों में मासिक धर्म संबंधी अनियमितता कम होती है , हिस्टीरिया रोग में लाभ होता है तथा आँत उतरने अर्थात् हर्निया का रोग नहीं होता है । नाक में नथुनी धारण करने से नासिका संबंधी रोग नहीं होते तथा सर्दी - खाँसी में राहत मिलती है ।
पैरों की अँगुलियों में चाँदी की बिछिया ( चुटकी ) पहनने से स्त्रियों में प्रसवपीड़ा कम होती है , साइटिका रोग एवं दिमाग़ी विकार दूर होकर स्मरणशक्ति में वृद्धि होती है । पायल पहनने से पीठ , एड़ी एवं घुटनों के दर्द में राहत मिलती है , हिस्टीरिया के दौरे नहीं पड़ते तथा श्वास रोग की सम्भावना दूर हो जाती है । इसके साथ ही रक्तशुद्धि होती है तथा मूत्ररोग की शिकायत नहीं रहती ।
हाथ की सबसे छोटी अँगुली में अँगूठी पहनने से छाती के दर्द व घबराहट से रक्षा होती है तथा ज्वर , कफ , दमा आदि के प्रकपों से बचाव होता है । स्वर्ण के आभूषण पवित्र , सौभाग्यवर्धक तथा संतोषप्रदायक हैं । गुरु शुक्राचार्य के अनुसार पुत्र की कामना वाली स्त्रियों को हीरा नहीं पहनना चाहिए ।