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Tips for Healthy Living- स्वस्थ रहने के स्वर्णिम सूत्र

Health Tips: शरीर है तो लोग भी है, लेकिन अपने रहन-सहन खान-पान में यदि हम उचित परिवर्तन लाएं तो अनेक रोगों से बच सकते हैं। इसका सरल सूत्र आयुर्वेद में बताया गया है- आहारों निद्रा ब्रह्मचर्यमिति। संतुलित आहार, अच्छी नींद और ब्रह्मचर्य का पालन हमे स्वस्थ शरीर की गारंटी देता है. तो आइये जानते है स्वस्थ रहने के स्वर्णिम सूत्र Golden Tips for Healthy Living


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Morning awakening The First Formula of Health


मानव का प्रकृति के साथ अविच्छिन्न सम्बन्ध है। प्राकृतिक नियमों के साथ समनव्य बनाये रखना मानव को आवश्यक है । स्वास्थ्य की उत्तमता हेतु प्रातः काल उठना सबसे पहला नियम है । सूर्योदय के पहले चार घड़ीतक ( लगभग डेढ़ घंटा पूर्व ) ' ब्राह्ममुहूर्त ' का समय माना जाता है। उस समय पूर्व दिशा में क्षितिज में थोड़ी-थोड़ी लालिमा दिखायी देती है तथा दो-चार नक्षत्र भी आकाश में दिखायी देते रहते हैं , इस समय को अमृत वेला भी कहा जाता है , यही जागरण का उचित समय है । 



यदि विश्व का सर्वश्रेष्ठ प्राणी मानव आलस्यवश सोता हुआ प्रकृति के इस अनमोल उपहार की अवहेलना कर दे तो उसके लिये कितनी लज्जा की बात है ? प्रातः विलम्ब से उठने वाला मनुष्य सदा दरिद्री रहता है । 


कुचैलिनं दन्तमलोपधारिणं , बहाशिनं निष्ठुरभाषिणं च । 
सूर्योदये चास्तमिते शयानं , विमुञ्जति श्रीर्यदि चक्रपाणिः ॥ 


जिनके शरीर और वस्त्र मैले, दाँतों पर मैल जमा रहता है, बहुत अधिक भोजन करते हैं, सदा कठोर वचन बोलते हैं तथा जो सूर्य के उदय और अस्त के समय सोते हैं, वे महादरिद्र होते हैं, यहाँ तक कि चाहे वह चक्रपाणि अर्थात लक्ष्मीपति विष्णु भगवान् ही क्यों न हों, परंतु उनको भी लक्ष्मी छोड़ देती हैं । भगवान् मनु अपनी मानवसंहिता में लिखते हैं 


ब्राह्ये मुहूर्ते बुध्येत धर्मोर्थो चानुचिन्तयेत् । 
कायक्लेशांश्च तन्मूलान् वेदतत्त्वार्थमेव च ॥ 


अर्थात् ब्राह्ममुहूर्त में उठकर धर्म-अर्थ का चिन्तन करे । प्रथम धर्म का चिन्तन करे यानी अपने मन में ईश्वर का ध्यान करके यह निश्चय करे कि हमारे हाथ से दिन भर समस्त कार्य धर्मपूर्वक हों । अर्थ के चिन्तन से तात्पर्य यह है कि हम दिनभर उद्योग करके ईमानदारी के साथ धनोपार्जन करें, जिससे स्वयं सुखी रहें तथा परोपकार कर सकें ।

स्वस्थ रहने के स्वर्णिम सूत्र Golden Tips for Healthy Living


1.सदा ब्रह्ममुहूर्त ( प्रातः 4-5 बजे ) में उठना चाहिए । इस समय प्रकृति मुक्तहस्त से स्वास्थ्य, प्राणवायु, प्रसन्नता, मेघा, बुद्धि की वर्षा करती है ।


2. बिस्तर से उठते ही मूत्र त्याग के पश्चात बासी मुँह 2-3 गिलास शीतल जल के सेवन की आदत सिरदर्द, अम्लपित्त , कब्ज, मोटापा, रक्तचाप, नेत्र रोग, अपच सहित कई रोगों से हमारा बचाव करती है ।


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3. स्नान सदा सामान्य शीतल जल से करना चाहिए । ( जहाँ निषेध न हो )


4. स्नान के समय सर्वप्रथम जल सिर पर डालना चाहिए, ऐसा करने से मस्तिष्क की गर्मी पैरों से निकल जाती है ।


5. दिन में 2 बार मुँह में जल भरकर, नेत्रों को शीतल जल से धोना नेत्र दृष्टि के लिए लाभकारी है । 


6 नहाने से पूर्व, सोने से पूर्व एवं भोजन के पश्चात् मूत्र त्याग अवश्य करें । यह आदत कमर दर्द, पथरी तथा मूत्र सम्बन्धी बीमारियों से बचाती है।


7. सरसों, तिल के तेल की मालिश नित्यप्रति करने से वात विकार, बुढ़ापा, थकावट नहीं होती है । त्वचा सुन्दर दृष्टि स्वच्छ एवं शरीर पुष्ट होता है।


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8. शरीर की क्षमतानुसार प्रातः भ्रमण, योग, व्यायाम करना चाहिए ।


9.दिनभर में 3-4 लीटर जल थोड़ा-थोड़ा करके पीते रहना चाहिए । 


10.भोजन के प्रारम्भ में मधुर-रस ( मीठा ), मध्य में अम्ल, लवण रस ( खट्टा, नमकीन ) तथा अन्त में कटु, तिक्त, कषाय ( तीखा, चटपटा, कसेला ) रस के पदार्थों का सेवन करना चाहिए ।


11.भोजन के उपरान्त वज्रासन में 5-10 मिनट बैठना तथा बांयी करवट 5-10 मिनट लेटना चाहिए ।


12. भोजन के तुरन्त बाद दौड़ना, तैरना, नहाना, मैथुन करना स्वास्थ्य के बहुत हानिकारक है। 


13.भोजन करके तत्काल सो जाने से पाचनशक्ति का नाश हो जाता है जिसमें अजीर्ण, कब्ज, अम्लपित्त जैसी व्याधियाँ हो जाती है।


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14. शरीर एवं मन को तरोताजा एवं क्रियाशील रखने के लिए औसतन 6-7 घन्टे की नींद आवश्यक 


15. गर्मी के अलावा अन्य ऋतुओं में दिन में सोने एवं रात्री में अधिक देर तक जगने से शरीर में भारीपन, ज्वर, जुकाम, सिर दर्द एवं अग्निमांध होता है।


16. दूध के साथ दही, नीबू, नमक, तिल उड़द, जामुन, मूली, मछली, करेला आदि का सेवन नहीं करना चाहिए


17. स्वास्थ्य चाहने वाले व्यक्ति को मूत्र, मल, शुक्र, अपानवायु, वमन, छींक, डकार, जंभाई, प्यास, आँसू, नींद और परिश्रमजन्य श्वास के वेगों को उत्पन्न होने के साथ ही शरीर से बाहर निकाल देना चाहिए । इनको रोकना नहीं चाहिए।


18. रात्री में सोने से पूर्व दाँतों की सफाई, नैत्रों की सफाई एवं पैरों को शीतल जल से धोकर सोना चाहिए। 


19. रात्री में शयन से पूर्व अपने किये गये कार्यों की समीक्षा कर अगले दिन की कार्य योजना बनानी चाहिए । तत्पश्चात् गहरी एवं लम्बी सहज श्वास लेकर शरीर को एवं मन को शिथिल करना चाहिए।


20. सोने से पहले कुछ अच्छा साहित्य पढ़ना चाहिए । इससे नींद अच्छी आती है और मानसिक व आध्यात्मिक विकास तेजी से होता है


21. शान्त मन से अपने दैनिक क्रियाकलाप, तनाव, चिन्ता, विचार सब परात्म चेतना को सौंपकर निश्चिंत भाव से निद्रा की गोद में जाना चाहिए । 


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