Eye Care Tips from Blue Light: भारत मे Mobile Technology का विकास बड़ी तेजी से हो रहा है, जिसके कारण आज भारत मे लगभग 80 करोड़ लोगों के पास Smartphone मौजूद है और ये संख्या यानि Smartphone यूजर्स की संख्या लगातार बढ़ती ही जा रही है ।
साथ ही स्मार्टफोन से होने वाले दुष्प्रभावों में भी बढ़ोतरी हो रही है. ज्यादा स्मार्टफोन यूज करने के कारण आखों से सम्बन्धित समस्याओं में काफी वृद्धि हुई है और हैरानी की बात यह है कि इनमें कम उम्र के बच्चों की संख्या सबसे ज्यादा है । और जिसका प्रमुख कारण है Gadgets Screen से निकले वाली Blue Light तो अब जानते हैं कि ब्लू लाइट क्या है? क्या बच्चो के लिए खतरनाक है ब्लू लाइट यानी गेजेट्स की रोशनी
बच्चों में Screen Exposure का खतरा बढ़ रहा है . इस खतरे को गैजेट्स की रोशनी Blue Light कहा जाता है। ब्लू लाइट कितनी खतरनाक है? रिसर्च गेट के एक शोध के अनुसार 8 साल की उम्र तक के बच्चे 5 घंटे तक मोबाइल पर बिता रहे हैं। बढ़ा हुआ यह स्क्रीन टाइम कई गंभीर बीमारियों का कारण बन सकता है.
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Blue Light क्या है? What is Blue Light?
सभी प्रकार के इलेक्ट्रॉनिक गेजेट्स जैसे-कंप्यूटर,लैपटॉप,स्मार्टफोन,एलसीडी,टीवी,आदि इन सभी Electronic Gadgets के स्क्रीन से एक तरह कि लाइट निकलती है जिसे Blue Light ( नीली रोशनी ) कहा जाता है। यह आँखों के सबसे महत्वपूर्ण हिस्से रेटिना की लाइट रिसेप्टिव सेल्स को बहुत ज्यादा प्रभावित करती है।
बच्चो के लिए खतरनाक है गेजेट्स की नीली रोशनी रोशनी ?
रेटिना को क्षति: विभिन्न शोध में पाया गया है कि लंबे समय तक स्मार्टफोन के इस्तेमाल से ब्लू लाइट रेटिना को क्षति पहुंचाकर हमारी नजर को नुकसान पहुंचा सकती है
कैंसर: रात में ब्लू लाइट के एक्सपोजर और नींद के प्रभावित होने के बीच संबंध पाया गया है । इससे ब्रेस्ट कैंसर और प्रोस्टेट कैंसर का खतरा बढ़ता है ।
मोटापा: मेलाटोनिन और नींद के साथ ही ब्लू लाइट भूख को नियंत्रित करने वाले हार्मोन को भी प्रभावित करती है । इससे मोटापे का खतरा बढ़ता है ।
अवसाद Depression: ब्लू लाइट के कारण जिनका मेलाटोनिन प्रभावित हो चुका है और बॉडी क्लॉक बिगड़ गई है उनमें अवसाद की आशंका सर्वाधिक होती है.
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न्यूरोटॉक्सिन: नींद के लंबे समय से प्रभावित होने के कारण शरीर में न्यूरोटॉक्सिन का निर्माण होने लगता है , जिससे अच्छी नींद की संभावना और कम हो जाती है ।
कमजोर मेमोरी: नींद के प्रभावित होने के कारण ध्यान आसानी से भंग हो जाता है , जिससे याददाश्त प्रभावित होती है ।
आंखों से जुड़ी 3 खराब आदतें
स्क्रीन का बहुत नजदीक होना
इलेक्ट्रॉनिक गैजेट पर बहुत नजदीक से देखने के कारण Blue Light आंख के मैक्युलर को क्षति पहुंचा सकती है । पलकों का झपकना कम होता है । आंखों में ड्राइनेस , दर्द और थकान बढ़ती है । न्यूयार्क के सनी कॉलेज ऑफ ऑप्टोमेट्री के अनुसार गैजेट 40 सेमी की दूरी पर रखें । फॉन्ट बड़ा रखें ।
तनाव भी आंखों के लिए खतरा
स्ट्रेस हार्मोन कॉर्टिसोल रेटिना की कार्य प्रणाली को प्रभावित करता है । इससे सेंटर सीरियस कोरियो - रेटिनोपैथी का खतरा बढ़ता है , जिससे धुंधला दिखाई देने लगता है । ब्रिटेन में हुए एक शोध के अनुसार एक घंटे का म्यूजिक कॉर्टिसोल हार्मोन को 25 % तक घटाता है ।
हरी सब्जियां कम खाना
हरी सब्जियों में लुटीन जैसे न्यूट्रियन्ट्स होते हैं , जो मैक्युलर डिजनरेशन से बचाते हैं । एक शोध के अनुसार एक कप पालक रोज खाने से ग्लूकोमा का खतरा 30 % तक कम होता है । .