power of positivity: जीवन में नकारात्मकता के सामने सकारात्मक सच भी होता है
The Power of Positive Thinking: हम खुद से नकारात्मक बातचीत ( सेल्फ टॉक ) का एक पैटर्न विकसित कर लेते हैं। बचपन में माता-पिता, शिक्षकों की नकारात्मक बातें याद रखते हैं। दोस्तों की नकारात्मक टिप्पणियों को याद रखते हैं, जिससे हम अपने बारे में क्या महसूस करते हैं, उसका महत्व कम हो जाता है।
सालों तक ये संदेश हमारे दिमाग में चलते रहते हैं और गुस्सा, डर, ग्लानि और नाउम्मीदी की खुराक बनते जाते हैं। यहां सकारात्मकता एक एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। उस नकारात्मक संदेश को पहचानकर उसे अच्छी बातों और अपने बारे में अच्छा महसस करके रिप्लेस किया जा सकता है।
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अगर बचपन की कोई बात रह रहकर परेशान करती है, तो उन यादों और संदेशों को कागज पर लिख लें। मुमकिन हो, तो बुरी यादों के लिए जिम्मेदार रहे किसी करीबी को इस प्रक्रिया में शामिल करें। अब अपने जीवन की सकारात्मक सच्चाईयों से उन बुरी यादों का मुकाबला करें।
जीवन से जुड़ा हुआ कोई सच तुरंत दिखाई न भी दे तो धैर्य रखें। हर नकारात्मक संदेश के सामने जीवन का सकारात्मक सच जरूर होता है। चुनौती बस इसे खोजने की है। ये सत्य हमेशा मौजूद रहते हैं, उन्हें तब तक खोजते रहें, जब तक पा न लें।
हर बार जब भी आप कोई गल्ती करते हैं, वह नकारात्मक संदेश दिमाग में रिप्ले की तरह चलता रहता है। अगली बार जब आप कोई गलती करें, तो असफलता के बारे में याद दिलाते किसी पुराने मैसेज को सकारात्मक मैसेज से बदल दें। खुद से कहें,' मैं इसे स्वीकार करता हूं और गलतियों से सीखकर आगे बढ़ेगा।
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जैसे-जैसे मैं अपनी गलतियों से सीखता चलूंगा, बेहतर इंसान बनता जाऊंगा। 'इस प्रक्रिया के दौरान गलतियां, अवसरों में बदल जाती हैं। अपने आप से सकारात्मक बातचीत करना खुद को धोखा देना नहीं है। ये सच से आंख मूंदना नहीं है। बल्कि सेल्फ टॉक तो उन हालातों में, और खुद में छुपे हुए सच को पहचानने के बारे में है। एक सच ये भी है कि आप गलतियां करेंगे। जिंदगी में संपूर्णता की उम्मीद करना छोड़ दें। स्रोत-ग्रेगरी एल जान्न , सायकोलॉजी टुडे
Be Positive Thoughts
बुद्धिमान व्यक्ति आराम से फैसले लेता है, लेकिन वह अपने निर्णयों का पालन जरूर करता है।
जहां हैं, वहीं से शुरू करें। जो भी है, उसका इस्तेमाल करें। आप क्या कर सकते हैं, करें। -आर्थर ऐश, अमेरिकी टेनिस खिलाड़ी
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