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चाणक्यनीति: अध्याय सातवाँ [हिंदी में] | Chanakya Niti Chapter-7 in Hindi

चाणक्य नीति सातवाँ अध्याय [हिंदी में ] Chanakya Niti Chapter-7 In Hindi: चाणक्य नीति में आचार्य कौटिल्य ने Chanakya Neeti के सातवें अध्याय मे निम्नलिखित श्लोकों का वर्णन किया है। अतः यहाँ पर आपको सुविधा के अनुसार आचार्य Chanakya की Chankya Niti Chapter Seventh को संस्कृत श्लोकों के हिन्दी अर्थों के साथ-साथ English Meaning के साथ जानकारी दी गई  है। जिससे आपको अपनी भाषा के अनुरूप पढ़ने मे सुविधा हो। 


Chanakya Neeti में आचार्य विष्णुगुप्त (कौटिल्य) "चाणक्य" ने अपने विचारों को प्रस्तुत किया है जिसे हम चाणक्य नीति के नाम से जानते है।  तो आइये जानते है- आचार्य चाणक्य नीति Seventh Chapter, Chanakya Niti Seventh Chapter हिंदी में, Chanakya Niti Chapter 7 In Hindi, चाणक्य नीति सात अध्याय [हिंदी में ], Chanakya Chapter-7, Chanakya Niti Seven Adhyay. चाणक्य नीति हिंदी में सातवां अध्याय | Chanakya Neeti [In Hindi] Seven Chapter .


चाणक्य नीति सातवाँ [हिंदी में] | Chanakya Niti 7th Chapter in hindi 


चाणक्य नीति सातवाँ अध्याय [हिंदी में ] Chanakya Niti Chapter-7 In Hindi : चाणक्य नीति में आचार्य कौटिल्य ने Chanakya Neeti के सातवें अध्याय मे निम्नलिखित श्लोकों का वर्णन किया है। अतः यहाँ पर आपको सुविधा के अनुसार आचार्य Chanakya की Chankya Niti Chapter seventh को संस्कृत श्लोकों के हिन्दी अर्थों के साथ-साथ  English meaning के साथ जानकारी दी गई  है। जिससे आपको अपनी भाषा के अनुरूप पढ़ने मे सुविधा हो।


अर्थनाशं मनस्तापं गृहिणीचरितानि च । 
नीचवाक्यं चाऽपमानं मतिमान्न प्रकाशयेत् ।।१।। 

एक बुद्धिमान व्यक्ति को निम्नलिखित बातें किसी को नहीं बतानी चाहिए: उसकी दौलत खो चुकी है, उसे क्रोध आ गया है, उसकी पत्नी ने जो गलत व्यवहार किया, लोगो ने उसे जो गालिया दी और वह किस प्रकार बेइज्जत हुआ है।


A wise man should not reveal his loss of wealth, the vexation of his mind, the misconduct of his own wife, base words spoken by others, and disgrace that has befallen him.




धनधान्मप्रयोगेषु विद्यासंग्रहणेषु च ।
आहारे व्यवहारे च त्यक्तलज्जा सुखी भवेत् ।।२।।

जो व्यक्ति आर्थिक व्यवहार करने में, ज्ञान अर्जन करने में, खाने में और काम-धंदा करने में शर्माता नहीं है वो सुखी हो जाता है।


He who gives up shyness in monetary dealings, in acquiring knowledge, in eating and in business, becomes happy.




स्न्तोषामृततृप्तानां यत्सुखं शान्तिरेव च ।
न च तध्दनलुब्धानामितश्चेतश्च धावताम् ।।३।।

जो सुख और शांति का अनुभव स्वरुप ज्ञान को प्राप्त करने से होता है, वैसा अनुभव जो लोभी लोग धन के लोभ में यहाँ वहा भटकते रहते है उन्हें नहीं होता।


The happiness and peace attained by those satisfied by the nectar of spiritual tranquillity is not attained by greedy persons restlessly moving here and there.




सन्तोषस्त्रिषु कर्तव्यः स्वदारे भोजने धने ।
त्रिषु चैव न कर्त्तव्योऽध्ययने जपदानयोः ।।४।।

व्यक्ति नीचे दी हुए ३ चीजो से संतुष्ट रहे; खुदकी पत्नी, वह भोजन जो विधाता ने प्रदान किया और उतना धन जितना इमानदारी से मिल गया।


One should feel satisfied with the following three things; his own wife, food given by Providence and wealth acquired by honest effort.




विप्रयोर्विप्रह्नेश्च दम्पत्यॊः स्वामिभृत्ययोः ।
अन्तरेण न गन्तव्यं हलस्य वृषभस्म च ।।५।।

लेकिन व्यक्ति को नीचे दी हुई ३ चीजो से संतुष्ट नहीं होना चाहिए; अभ्यास, भगवान का नाम स्मरण और परोपकार


But one should never feel satisfied with the following three; study, chanting the holy names of the Lord (japa) and charity.




पादाभ्यां न स्पृशेदग्नि गुरुं ब्राह्मणमेव च ।
नैव गां च कुमारीन न वृध्दं न शिशुं तथा ।।६।।

इन दोनों के मध्य से कभी ना जाए; दो ब्राह्मण, ब्राह्मण और उसके यज्ञ में जलने वाली अग्नि, पति पत्नी, स्वामी और उसका चाकर एवं हल और बैल।


Do not pass between two brahmanas, between a brahmana and his sacrificial fire, between a wife and her husband, a master and his servant, and a plough and an ox.




हस्ती हस्तसहस्त्रेण शतहस्तेन वाजिनः ।
श्रृड्गिणी दशहस्तेन देशत्यागेन दुर्जनः ।।७।।

अपना पैर कभी भी इनसे न छूने दे; अग्नि, अध्यात्मिक गुरु, ब्राह्मण, गाय, एक कुमारिका, एक उम्र में बड़ा आदमी और एक बच्चा।


Do not let your foot touch fire, the spiritual master or a brahmana; it must never touch a cow, a virgin, an old person or a child.




हस्ती अंकुशमात्रेण बाजी हस्तेन ताड्यते ।
श्रृड्गि लकुटहस्ते न खड्गहस्तेन दुर्जनः ।।८।।

हाथी से हजार गज की दुरी रखे, घोड़े से सौ की, सिंग वाले जानवर से दस की लेकिन दुष्ट जहाँ हो उस जगह से ही निकल जाए।


Keep one thousand cubits away from an elephant, a hundred from a horse, ten from a horned beast, but keep away from the wicked by leaving the country.




तुष्यन्ति भोजने विप्रा मयूरा घनगर्जिते ।
साधवः परसम्पत्तौ खलाः परविपत्तिषु ।।९।।

हाथी को अंकुश से नियंत्रित करे, घोड़े को थप थपा के, सिंग वाले जानवर को डंडा दिखा के और एक बदमाश को तलवार से।


An elephant is controlled by a goad (Ankush), a horse by a slap of the hand, a horned animal with the show of a stick, and a rascal with a sword.




अनुलोमेन बलिनं प्रतिलोमेन दुर्जन्म् ।
आत्मतुल्यबलं शत्रुः विनयेन बलेन वा ।।१०।।

ब्राह्मण अच्छे भोजन से तृप्त होते है, मोर मेघ गर्जना से, साधू दुसरो की सम्पन्नता देखकर और दुष्ट दुसरो की विपदा देखकर।


Brahmanas find satisfaction in a good meal, peacocks in the peal of thunder, a sadhu in seeing the prosperity of others, and the wicked in the misery of others.




बाहुवीर्य बलं राज्ञो ब्रह्मवित् बली ।
रूप-यौवन-माधुर्य स्त्रीणां बलमनुत्तमम् ।।११।।

एक शक्तिशाली आदमी से उसकी बात मानकर समझौता करे, एक दुष्ट का प्रतिकार करे और जिनकी शक्ति आपकी शक्ति के बराबर है उनसे समझौता विनम्रता से या कठोरता से करे।


Conciliate a strong man by submission, a wicked man by opposition, and the one whose power is equal to yours by politeness or force.




नाऽत्यन्तं सरलैर्भाव्यं गत्वा पश्य वन्स्थलीम् ।
छिद्यन्ते सरलास्तत्र कुब्जस्तिष्ठन्ति पादपाः ।।१२।।

एक राजा की शक्ति उसकी शक्तिशाली भुजाओ में है, एक ब्राह्मण की शक्ति उसके स्वरुप ज्ञान में है, एक स्त्री की शक्ति उसकी सुन्दरता, तारुण्य और मीठे वचनों में है ।


The power of a king lies in his mighty arms; that of a brahmana in his spiritual knowledge; and that of a woman in her beauty youth and sweet words.




यत्रोदकस्तत्र वसन्ति हंसा-
स्तथव शुष्कं परिवर्जयन्ति ।
नहंतुल्येन नरेण भाव्यं
पुनस्त्यजन्तः पुनराश्र यन्तः ।।१३।।

अपने व्यवहार में बहुत सीधे ना रहे। आप यदि वन जाकर देखते है तो पायेंगे की जो पेड़ सीधे उगे उन्हें काट लिया गया और जो पेड़ आड़े तिरछे है वो खड़े है।


Do not be very upright in your dealings for you would see by going to the forest that straight trees are cut down while crooked ones are left standing.




उपार्जितानां वित्तानां त्याग एव हि रक्षणम् ।
तडागोदरसंस्थानां परीस्त्र व इवाम्भसाम् ।।१४।।

हंस वहाँ रहते है जहाँ पानी होता है। पानी सूखने पर वे उस जगह को छोड़ देते है। आप किसी आदमी को ऐसा व्यवहार ना करने दे की वह आपके पास आता जाता रहे।


Swans live wherever there is water, and leave the place where water dries up; let not a man act so -- and comes and goes as he pleases.




यस्यार्स्थास्तस्य मित्राणि यस्यार्स्थास्तस्य बान्धवाः ।
यस्यार्थाः स पुमाल्लोके यस्यार्थाः सचजीवति ।।१५।।

संचित धन खर्च करने से बढ़ता है। उसी प्रकार जैसे ताजा जल जो अभी आया है बचता है, यदि पुराने स्थिर जल को निकल बहार किया जाये।


Accumulated wealth is saved by spending just as incoming fresh water is saved by letting out stagnant water.




स्वर्गस्थितानामहि जीवलोके
चत्वारि चिह्नानि वसन्ति देहे ।
दानप्रसंगो मधुरा च वाणी
देवार्चनं ब्राह्मणतर्पणं च ।।१६।।

वह व्यक्ति जिसके पास धन है उसके पास मित्र और सम्बन्धी भी बहुत रहते है। वही इस दुनिया में टिक पाता है और उसी को इज्जत मिलती है।


He who has wealth has friends and relations; he alone survives and is respected as a man.




अत्यन्तकोपः कटुता च वाणी
दरिद्रता च स्वजनेषु वैरम् ।
नीचप्रसड्गः कुलहीनसेवा
चिह्नानि देहे नरकस्थितानाम् ।।१७।।

स्वर्ग में निवास करने वाले देवता लोगो में और धरती पर निवास करने वाले लोगो में कुछ साम्य पाया जाता है।  उनके समान गुण है; परोपकार, मीठे वचन, भगवान की आराधना और ब्राह्मणों के जरूरतों की पूर्ति।


The following four characteristics of the denizens of heaven may be seen in the residents of this earth planet; charity, sweet words, worship of the Supreme Personality of Godhead, and satisfying the needs of brahmanas.




गम्यते यदि मॄगन्द्रमन्दिरं
लभ्यते करिकपीलमौक्तिकम् ।
जम्बुकालयगते च प्राप्यते
वस्तुपुच्छखरचर्मखण्डनम् ।।१८।।

नरक में निवास करने वाले और धरती पर निवास करने वालो में साम्यता: अत्याधिक क्रोध, कठोर वचन, अपने ही संबंधियों से शत्रुता, नीच लोगो से मैत्री और हीन हरकते करने वालो की चाकरी।


The following qualities of the denizens of hell may characterise men on earth; extreme wrath, harsh speech, enmity with one's relations, the company with the base, and service to men of low extraction.




श्वानपुच्छमिच व्यर्थ जीवितं विद्यया विना ।
न गुह्यगोपने शक्तं न च दंशनिवारणे ।।१९।।

यदि आप शेर की गुफा में जाते हो तो आप को हाथी के माथे का मणि मिल सकता है। लेकिन यदि आप लोमड़ी जहाँ रहती है वहाँ जाते हो तो बछड़े की पूछ या गधे की हड्डी के अलावा कुछ नहीं मिलेगा।


By going to the den of a lion pearls from the head of an elephant may be obtained; but by visiting the hole of a jackal nothing but the tail of a calf or a bit of the hide of an ass may be found.




वाचा शौचं च मनसः शौचमिन्द्रियनिग्रहः ।
सर्वभूते दया शौचमेतच्छौचं परार्थिनाम् ।।२०।।

एक अनपढ़ आदमी की जिंदगी किसी कुत्ते की पूछ की तरह बेकार है। उससे ना उसकी इज्जत ही ढकती है और ना ही कीड़े मक्खियों को भागने के काम आती है।


The life of an uneducated man is as useless as the tail of a dog, which neither covers its rear end, nor protects it from the bites of insects.




पुष्पे गन्धतिले तैलं काष्ठे वह्नि पयो घृतम् ।
इक्षौ गुडं तथा देहे पश्याऽऽत्मानं विवेकतः ।।२१।।

यदि आप दिव्यता चाहते है तो आपके वचन, मन और इन्द्रियों में शुद्धता होनी चाहिए। उसी प्रकार आपके ह्रदय में करुणा होनी चाहिए।


Purity of speech, of the mind, of the senses, and a compassionate heart are needed by one who desires to rise to the divine platform.




जिस प्रकार एक फूल में खुशबु है, तील में तेल है, लकड़ी में अग्नि है, दूध में घी है, गन्ने में गुड है, उसी प्रकार यदि आप ठीक से देखते हो तो हर व्यक्ति में परमात्मा है।


As you seek fragrance in a flower, oil in the sesamum seed, fire in wood, ghee (butter) in milk, and jaggery (guda) in sugarcane; so seek the spirit that is in the body using discrimination.




Note: चाणक्य द्वारा रचित "चाणक्य नीति" के कुछ विचार महिलाओं या तथाकथित निम्न जाति में पैदा हुए हिंदुओं के लिए आक्रामक हो सकते हैं। मैं पुरुष और महिला के बीच पूर्ण समानता में विश्वास करता हूं और हम हिंदू जाति व्यवस्था से घृणा करते हैं। हमने चाणक्य नीति (Chanakya Niti) उनके विचारों को ठीक वैसे ही प्रकाशित करने का निर्णय लिया है जैसा आचार्य चाणक्य ने लिखा है। हम महिलाओं से, और किसी और से, जो आहत हो सकते हैं, क्षमा चाहते हैं।


आर्य चाणक्य की नीतियाँ पढ़ें:-


Chanakya Niti In Hindi | सम्पूर्ण चाणक्य निति 
चाणक्य नीति: प्रथम अध्याय 
चाणक्य नीति: दूसरा अध्याय 
चाणक्य नीति अध्याय 3 
चाणक्य नीति - अध्याय 4 
चाणक्यनीति पांचवा अध्याय 
चाणक्य नीति छठवां अध्याय 
चाणक्य नीति अध्याय आठवां 
चाणक्य नीति अध्याय नवां 
चाणक्य नीति अध्याय दसवां 
चाणक्य नीति अध्याय ग्यारवाँ 
चाणक्य नीति: बारहवां अध्याय 
चाणक्य नीति: तेरहवाँ अध्याय
चाणक्य नीति: चौदह अध्याय 
चाणक्य नीति: 15 अध्याय 
चाणक्य नीति: सोलहवाँ अध्याय
चाणक्य नीति: सत्रहवां अध्याय

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