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Uttarakhand State History- कत्यूरी शासक और पंवार राजवश

इस पोस्ट में उत्तराखंड के कत्यूरी शासक और पंवार राजवश के हिस्ट्री से सम्बंधित जानकारी दी गयी है. आइये जानते Uttarakhand State History in Hindi कत्यूरी शासक और पंवार राजवश काल की प्रश्नोपयोग जानकारियाँ-


uttarakhand state history- कत्यूरी शासक और पंवार राजवश







कातियूर या कत्यूरी शासक

मध्यकालीन कुमाऊ क्षेत्र के कत्यूरी शासन की जानकारी मौखिक रूप से स्थानीय लोक गाथाओं तथा जागरों से मिलती है लोकगाथाओं से मिली जानकारी के अनुसार कार्तिकेयपुर राजाओं के बाद कुमाऊ क्षेत्र मैं कत्यूरियों का शासन हुआ,और आगे चलकर इनकी कई शाखाये (कत्यूर-बैजनाथ शाखा, पाली-पछाऊँ शाखा, अस्कोट शाखा,डोडी शाखा, सीरा शाखा,सोर शाखा )आदि नामों से शासन करने लगें. कत्यूर के आसंतिदेस वंश, अस्कोट के रजवार, तथा डोडी के मल्ल,इनकी प्रमुख्य शाखाएं थी 


  • आसंतिदेस ने कत्यूर राज्य मैं आसंतिदेस राजवंश की स्थापना की और कुछ समय पश्च्यात इसने अपने राजधानी जोशीमठ से परिवर्तित कर कत्यूर राज्य के रणचूलाकोट मैं स्थापित की 
  • इस वंश का अंतिम शासक ब्रह्मदेव था,जो एक अत्याचारी शासक था, जागरों मैं इसे वीरमदेव कहा जाता है 
  • जियारानी की लोकगाथाओं के अनुसार 1398 ईसवी  मैं तैमूर लंग द्वारा हरिद्वार पर आक्रमण करने पर ब्रह्मदेव ने उसका सामना किया था,और के साथ इस वंश का अंत हुआ 
  • 1191 ईसवी मैं पश्चिमी नेपाल के राजा अशोकचल्ल ने कत्यूरी राज्य पर आक्रमण कर कत्यूरी राज्य को अपने अधिकार मैं ले लिया था
  • 1223 ईसवी मैं दुलू (नेपाल) के शासक कचल्देव ने भी कुमाऊ पर आक्रमण कर कत्यूरी राज्य पर अधिकार किया 

  • कुमाऊं का चन्द राजवंश-कुमाऊ मैं कत्यूरी और चन्द प्रारम्भ मैं समकालीन थे,जिसके कारन इनमें युद्ध होते रहे और अंत मैं चन्द राजवंश विजयी हुआ और 14 वीं शताब्दी के बाद पुरे कुमाऊ क्षेत्र पर चन्द शासन स्थापित हुआ थोहरचन्द ( 1216 ईसवी ) चन्द वंश का संस्थापक था 
  • शुरुआत मैं इस राज्य मैं केवल राजधानी चंपावत के आस-पास का क्षेत्र ही है लेकिन बाद मैं नैनीताल, पिथौरागढ़, अल्मोड़ा, तथा नेपाल के भी कुछ हिस्सा राज्य के अधीन था
  • 1512 से १५३० के मध्य चन्द राजा भीष्मचन्द ने राजधानी चंम्पावत से अल्मोड़ा मैं स्थापित की,जो कल्याण चन्द्र तृतीय के समय (1560 मैं ) बनकर तैयार हुई
  • गरुण ज्ञान चन्द्र  इस वंश का सबसे शक्तिशाली राजा था बाजबहादुर चन्द्र भी इस वंश का एक शक्तिशाली राजा था,इसने तिब्बती आक्रमणों का सफलतापूर्वक सामना किया था  
  • कल्याणचन्द्र चतुर्थ के शासन काल ( 1743 -45 ) मैं कुमाऊं पर रोहिलों का आक्रमण हुआ था,जिसमें गढ़वाल शासक प्रदीपशाह ने काफी सहायता की थी 
  • राजा रूद्र चंद्र ने त्रवेनिकी धर्मनिर्णय उषा रूद्र गोदया और राजा रूप चंद्र ने पक्षी आखेट कला पर स्यैनिक शास्त्र नामक ग्रंथों की रचना की थी
  • कल्याणचन्द्र चतुर्थ (1730 - 48 ) के समय प्रशिद्ध कवि शिव ने कल्याण चन्द्रोमय की रचना की थी
  • चंद्र राजाओं के शासन काल मैं कुमाऊ क्षेत्र मैं अनेक उन्नति के कार्य हुए कुमाऊ क्षेत्र मैं भूमि निर्धारण का कार्य करने के साथ ही ग्राम प्रधान या मुखिया की नियुक्ति करने की परम्परा शुरू हुई
  • चंद्र राजाओं का राज्य चिन्ह "गाय" थी जो की सिक्कों, मुहरों, झंडों,आदि पर अंकित किया जाता था 
  • मुगलकालीन पुस्तकों जहांगीरनामा और शाहनामा से मालूम होता है की चन्द राजाओं का मुगलों से सम्बन्ध था,इसी समय से कुमाऊनी भाषा मैं अनेक अरबी फारसी तथा तुर्की भाषाओँ के शब्दों का समावेश हुआ
  • 1790 ईसवी मैं नेपाल के गोरखाओं ने तत्कालीन चन्द राजा महेंद्र चन्द्र को हवालाबाग यद्ध मैं पराजित कर अल्मोड़ा पर अधिकार कर लिया और राम गंगा के पूर्वी भाग मैं स्थित समस्त कुमाऊ पर अधिकार करलिया और इस प्रकार चंद वंश का अंत हुआ

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गढ़वाल का पंवार राजवश 


 9 वीं शताब्दी तक गढ़वाल क्षेत्र मैं छोटे-बड़े 54 ठकुरी राजाओं (खसियों) का शासन था,सैन्यशक्ति के अभाव मैं इन राजाओं ने अपंने-अपने गढ़ ( किले ) बना लिए थे,इनमें से सबसे शक्तिशाली राजा चांदपुरगढ़ का भानुप्रताप था 


  • 887 ईसवी मैं धार ( गुजरात ) का शासक कनकपाल तीर्थाटन पर आया था,भानुप्रताप ने कनकपाल का स्वागत किया और अपनी पुत्री का विवाह उसके साथ कर दिया ,कनकपाल द्वारा 888 ई.मैं चांदपुरगढ़ (चमोली )  मैं परमार वश की नींव पड़ी  888 ईसवी से अगस्त 1949 तक कुल 60 परमार राजाओं ने राज किया
  • प्रारम्भ मैं ये कार्तिकेयपुरीय राजाओं के सामन्त रहे,लेकिन 10 वीं  11 वीं  सदी के आसपास ये रक स्वतंत्र राजनैतिक शक्ति के रूप मैं स्थापित हुए 
  • इस वश के 37 वे राजा अजयपाल ( 1500 -1519 ) ने अपने समस्त गढ़ों को जीत लिया और ररराजधानी ( चांदपुरगढ़ ) को पहले देवलगढ़ फिर 1517  मैं श्रीनगर  स्थापित किया,इसी राजा ने कत्यूरी शासकों के सोने का सिंहासन छीन लिया था
  • परमार शासकों को लोदी वंश के शासक बहलोल लोदी ने शाह की उपाधि से नवाजा था,सबसेपहले बलभद्रशाह नामक राजा ने शाह की उपाधि अपने नाम के आगे लगाया था
  • तब गढ़वाल राज्य मैं हिमांचल प्रदेश के थ्योंग मथन ,रवाई गढ़, डोडराक़्वरा, और रामीगढ़ तक क्षेत्र समलित था
  • 1636 मैं मुग़ल (शाहजहां ) सेनापति नवाजतखां ने दूनघाटी हमला किया तब राज्य की संरक्षिका महारानी कर्णावती ने मुग़ल सैनिकों को पकड़वाकर उनकी नाक कटवा दी थी,इसी घटना के बाद महारानी कर्णावती 'नाककटी रानी " ने नाम से प्रशिद्ध हुई
  • परमार राजा पृथ्वीपतिशाह ने मुग़लशहजादा दाराशिकोह के पुत्र सुलेमान शिकोह को अपने यहाँ आश्रय दिया था,इस बात से ओरंजेब नाराज हुआ था  
  • गढ़वाल क्षेत्र कभी मुगलों के अधीन नहीं लाया जा सका
  • राजा मानशाह और महीपतिशाह ने तिब्बती हमलों का अपने अपने समय सफलतापूर्वक सामना किया था 
  • 1790 मैं कुमाऊ के चंदों को पराजित कर अल्मोड़ा पर अधिकार करने के बाद गोरखाओं ने 1791  मैं गढ़वाल पर भी आक्रमण किया लेकिन हार गए,और एक संधि के तहत 25000 रूपए का वार्षिक कर लगाया और वचन लिया की कभी गढ़वाल पर आक्रमण नहीं करंगे,परन्तु फरवरी 1803 अमरसिंह थापा और हस्तीदल चोतरिया ने भयंकर आपदा से ग्रस्त गढ़वाल  आक्रमण कर उसके काफी हिस्से पर कब्ज़ा  
  • गोरखाओं के आक्रमण के दौरान गढ़वाल की जनता ने राजा का पूरा सहयोग दिया,राजा प्रद्दुम्नशाह ने भी सहारनपुर मैं अपने सभी आभूषण बेचकर सेना को पुनः संगठित किया,14 मई 1804 को देहरादून के खुड़बुड़ा मैदान मैं गोरखाओं से हुए निर्णायक युद्ध मैं प्रधुमन शाह वीरगति को प्राप्त हो गए और गढ़वाल और कुमाऊ पर नेपाली गोरखाओं का अधिकार हो गया 
  • प्रधुमन शाह के एक पुत्र कुँवर प्रीतमशाह को गोरखाओं ने बड़ी बनाकर काठमांडू भेज दिया ,जबकि दूसरे पुत्रः सुदर्शनशाह हरिद्वार मैं रहकर स्वतंत्र होने का प्रयास करते रहे। उनकी मांग पर अंग्रेज गवर्नर जनरल लार्ड हेंस्टिग्गंज ने अक्टूबर 1814 मैं गोरखों के विरद्ध अंग्रेजी सेना भेज दी 1815 मैं गढ़वाल स्वतंत्र हो गया  
  • युद्ध के बदले अंग्रेजों ने गढ़वाल के पृर्वी भाग का आधा राज्य ले लिया,सुर्दशनशाह ने 28 दिसंबर 1815 को अपनी राजधानी श्रीनगर ने हटाकर टिहरी मैं स्थापित की,1 अगस्त 1949 तक टिहरी गढ़वाल पर राज करते रहे तथा भारत मैं विलय के बाद टिहरी राज्य को उत्तरप्रदेश का एक जनपद बना दिया गया 
  • पंवार राजाओं के काल मैं मानोदय काव्य,गढ़राजवंश काव्य,सुदर्शननोदय आदि,इनमें सबसे प्राचीन काव्य मानोदय है जिनकी रचना भरत कवि,राजा सुदर्सनशाह ( सूरत कवि ) की रचना 'सभासार है  




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