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उत्तराखंड स्वतंत्रता आन्दोलन | Freedom Movements of Uttarakhand

उत्तराखंड स्वतंत्रता आन्दोलन freedom  movements  of  uttarakhand 


1857 की क्रांति - 1857 के आंदोलन का असर राज्य मैं बहुत कम था,क्योकि अंग्रेज शासन यहाँ के लोगों को गोरखा शासन  की अपेक्षा अधिक सुधारवादी लग रहा था


उत्तराखंड स्वतंत्रता आन्दोलन | freedom  movements  of  uttarakhand


कुमाऊं कमिश्नर रैमजे काफी कुशल और उदार शासक था,टिहरी नरेश की अंग्रेजों के प्रति भक्ति थी,और राज्य मैं शिक्षा,संचार तथा यातायात के साधनों की कमी थी। उपरोक्त बातों के बावजूद राज्य में कुछ छिट-पुट कुछ आंदोलन हुए थे,स्वतंत्रता आन्दोलन मैं उत्तराखंड का भी विशेष स्थान रहा है जो निम्नलिखित इस प्रकार से है। 


चंम्पावत जिले के बिसुंग (लोहाघाट )गाँव के कालू सिंह महरा ने कुमाऊ क्षेत्र मैं गुप्त संगठन (क्रांतिवीर ) बनाकर अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन चलाया। इनको उत्तराखंड का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम सेनानी होने का गौरव प्राप्त है.कुमाऊ क्षेत्र मैं ही हल्द्वानी में 17 सितंबर 1857 को राज्य के लगभग एक हजार क्रान्तिकारियों ने हल्द्वानी अधिकार कर लिया था। 


1857 क्रांति के बाद 


1870 मेंअल्मोड़ा में डिबेटिंग क्लब की स्थापना तथा 1871 से अल्मोड़ा अख़बार से राज्य में राजनैतिक चेतना का विस्तार हुआ. 


कलकत्ता कांग्रेस अधिवेशन 1886 में कुमाऊ से ज्वाला दत्तजोशी सहित दो नेताओ ने हिस्सा लिया


पंडित गोविन्द बल्लभ पंत ने 1903 में हैप्पी क्लब नाम की संस्था बनाई 


1911 से 1970 के बीच अल्मोड़ा,गढ़वाल,नैनीताल जनपदों मैं वन नीति के विरोध व्यापक जन आंदोलन हुए 


1912 में  अल्मोड़ा कांग्रेस की स्थापना हुई राज्य मैं आंदोलन को संगठित करने के लिए 


विक्टर मोहन जोशी,बद्रीनाथ पांडेय, चिरंजीलाल और हेमचन्द्र आदि ने मिलकर राज्य मैं होमरूल लीग आंदोलन चलाया


1916 मैं गाँधी जी ने दक्षिण अफ्रीका से आने के बाद देहरादून की यात्रा पर गए


गोविन्द बल्लभ पंत,हरगोविंद पंत,बद्रीदत्त पांडेय,आदि नेताओ ने 1916 में कुमाऊ परिषद् का गठन किया,आगे चलकर कुली बेगार,कुली उतार,जंगलात कानून,बंदोबस्त प्रणाली आदि स्थानीय समस्याओं के साथ ही स्वतंत्रता आंदोलन मैं भी इस परिषद् ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाने लगा,1926 में इसका विलय कांग्रेस मैं हो गया 


1918 में बैरिस्टर मुकंदीलाल और अनुसूया प्रसाद बहुगुणा के प्रयास से गढ़वाल कांग्रेस कमेटी का गठन हुआ 


1919  में अमृतसर कांग्रेस मैं भी बैरिस्टर मुकंदीलाल और अनुसूया प्रसाद बहुगुणा ने भाग लिया


1921 मैं बद्रीनाथ पांडेय, चिरंजीलाल और हरगोविन्द पंत के नेतृत्व में 40 हजार स्वतंत्रता सेनानियों ने बागेश्वर मैं सरयू के तट पर कुली बेगार न करने की शपथ ली और सम्बंधित सभी रजिस्टर नदी में बहा दिए थे 


14 जून से 2 जुलाई तक 1929 मैं गाँधी और नेहरू ने कुमाऊ के हल्द्वानी,भवाली,ताड़ीखेत, अल्मोड़ा,बागेश्वर,कौसानी आदि स्थानों की राजनैतिक यात्राएं की .


16-से 24 अक्टूबर तक गाँधी जी ने गढ़वाल क्षेत्र की यात्रा की

 

कौसानी मैं अपने प्रवास (12 दिन) के दौरान गाँधी जी ने अनाशक्ति योग नाम से गीता की भूमिका लिखी 


26 जनवरी 1930 को टिहरी रिहासत को छोड़ कर पुरे उत्तराखंड मैं जगह जगह तिरंगा फहराया गया


1930 मैं गाँधी जी के साथ 78 सत्याग्रहियों मैं तीन (ज्योतिराम कांडपाल,भैरव दत्त जोशी,और गोरखावीर खड़क बहादुर ) उत्तराखंड से थे 


ब्रिटिश गढ़वाल (पौड़ी गढ़वाल के दुगड्डा)मैं पहला राजनीतिक सम्मेलन 1930 मैं हुआ 


23 अप्रैल 1930 को पेशावर में 2 /18 गढ़वाल राइफल के सेनिको ने चन्द्रसिंह गढ़वाली के नेतृत्व में निहत्थे अफगान स्वतंत्रता सेनानियों पर गोली चलाने से इनकार कर दिया था ! इतिहास में  यह घटना "पेशावर काण्ड"से प्रसिद्ध है 


पेशावर काण्ड सेप्रभावित होकर मोतीलाल नेहरू ने पुरे देश मैं गढ़वाल दिवस मनाने की घोषणा की 


1930 के गाड़ोदिया स्टोर डकैत काण्ड में  राज्य के कई उग्र राष्ट्रवादी युवक सम्मिलित थे जिनमें मुख्य थे भवानी सिंह 


सोमेश्वर (अल्मोड़ा) के नजदीक चनौदा में 1937 में शांतिलाल त्रिवेदी के प्रयास से गाँधी आश्रम की स्थापना हुई


ये भी देखें :

उत्तराखण्ड प्रागैतिहासिक काल
आद्यैतिहासिक काल
Difference between Kerala and Uttarakhand in Hindi
Difference between tourist place between Uttarakhand and Karnataka


भारत छोड़ो आंदोलन 


अगस्त 1942 मैं उत्तराखंड मैं भी जगह-जगह प्रदर्शन हुए,देघाट (अल्मोड़ा) मैं पुलिस ने आंदोलनकारियों पर गोलिया चलाई जिसमें हीरामणि,हरिकृष्ण,बद्रीदत्त,कांडपाल शहीद हुए


अल्मोड़ा के धामद्यो (सालम )मैं 25 अगस्त 1942 को सेना व् जनता के बीच गोलियां चली जिसमें टीका सिंह,व् नरसिंह धानक शहीद हुए 


अल्मोड़ा सल्ट में 5 सितम्बर 1942 को खुमाड़ नामक स्थान पर ब्रिटिश सेना व् जनता के बीच गोलियाँ चली और गंगाराम तथा खीमादेव नामक दो सगे भाई शहीद हो गए गोलियों से बुरी तरह घायल चूड़ामणि व् बहादुर सिंह कुछ दिन बाद शहीद हो गए 


स्वाधीनता आंदोलन मैं सल्ट की भूमिका के लिए इसे महात्मा गांधी ने "कुमाऊ का बारदोली " कहा और आज भी प्रत्येक वर्ष 5 सितम्बर को शहीद स्मृति दिवस मनाया जाता है 


आंदोलन क दौरान सिलोगी (गढ़वाल)में सदानंद कुकरेती ने राष्ट्रीय विद्यालय खोला,देवकी नंदन पांडेय एवं भागीरथी पांडेय ने ताड़ीखेत में प्रेम विद्यालय की स्थापना की 



महिलाओं की भूमिका - स्वतंत्रता आंदोलन में  महिलाएं सक्रिय रूप से जुड़ी रही,इस दौरान कुंती देवी,पदमा जोशी,कुंतीदेवी रावत,दुर्गावती पंत,भागीरथी देवी वर्मा,तुलसी देवी रावत,भिवडी देवी,भक्ति देवी,भागुली देवी,जानकी देवी,मंगला देवी,रेवती देवी,और सकुंतला देवी आदि विशेष रूप से सक्रिय थी


अल्मोड़ा के नगर पालिका भवन पर विशनी देवी साह के नेतृत्व में कुंती देवी,जीवंती,मंगला,व् रेवती,आदि ने नमक सत्याग्रह के दौरान तिरंगा फहराया 


स्वतंत्रता आंदोलन में महिलाओं के बढ़ते योगदान को दबाने के लिए फरवरी 1932 मैं राज्य की 8 महिलाओं को फतेहगढ़ और  पदमा जोशी को लखनऊ जेल में और कुन्ती वर्मा को जिन्दा या मुर्दा पकड़ने के आदेश दिए गए 


1941 में सरला बहन जो इंग्लैंड की मूल की थी और उनका पूर्व नाम 'हाइलामन' था ने अल्मोड़ा कौसानी मैं लक्ष्मी आश्रम की स्थापना की 


लक्ष्मी आश्रम से जुडी दो सगी बहने (कमला और बसंती) ने सूर्योदय के प्रचार-प्रसार मैं अहम् भूमिका निभाई


मीरा बहन जो की गाँधी जी की शिष्या थी उन्होंने ऋषिकेश मैं पशुलोक की स्थापना की.


पत्र -पत्रिकाओं का योगदान- स्वतंत्रता आंदोलन में उत्तराखंड से प्रकासित होने वाले पत्र -पत्रिकाओं ने आंदोलन को व्यापक बनाने मैं महत्वपूर्ण भूमिका निभाई कुमाउँनी भाषा मैं पहला अख़बार 'अल्मोड़ा अखबार' था जिसका प्रकाशन 1871 मैं शुरू हुआ !इस अख़बार ने राज्य मैं आंदोलन को नई दिशा दी ! 1918 के होली के अंक मैं संपादक बद्रीदत्त पांडेय ने गजल के माध्यम से तात्कालिक कमिशनर पर प्रहार किया,जिससे पेपर पर जुर्माना लगा दिया और पेपर बंद हो गया !


1918 मैं अल्मोड़ा अखबार के बंद होने के बाद बद्रीदत्त पांडेय ने 'शक्ति ' नाम से एक साप्ताहिक का प्रकाशन किया 


1905 मैं टिहरी रिहासत मैं विश्वम्भर दत्त चंदोला ने 'गढ़वाली' नामक अखबार शुरू किया 


1939 मैं लैंसडौन से 'भक्तदर्शन' और भैरवदत्त के संपादन मैं प्रकाशित 'कर्मभूमि' तथा 1941 मैं देहरादून से प्रकाशित होने वाली मासिक पत्रिका 'युगवाणी' ने आंदोलन मैं नई चेतना भरी  


आजाद हिन्द फौज मैं योगदान-आजाद हिन्द फौज के कुल सैनिकों मैं से 12 प्रतिशत ( लगभग 2500 ) सैनिक अकेले उत्तराखंड के थे! वुद्धिशरण रावत नेताजी के निजी सहायक थे तथा पितृशरण रतूड़ी कर्नल थे 


अन्य जन-आंदोलन 


कुली बेगार आंदोलन 


अंग्रजी शासन काल मैं जब कोई अधिकारी एक स्थान से दूसरे स्थान जाते थे तो उनके सामान को गांव वालों को ढोना पड़ता था,इसके खिलाफ उत्तराखंड की जनता 1921 से पहले से इस कुप्रथा का विरोध कर रहे थे, यह आंदोलन सर्वप्रथम खव्याड़ी गाँव ( अल्मोड़ा ) से शुरू हुआ


13-14 जनवरी 1921 को बागेश्वर के सरयू के किनारे उत्तरायणी मेले मैं बद्रीदत्त पांडेय,हरगोविंद पंत,चिरंजीलाल के नेतृत्व मैं 40 हजार आंदोलनकारियों ने बेगार न देने का संकल्प लिया और इस कुप्रथा का अंत हुआ 

टिहरी राज्य आंदोलन 


प्रजातंत्रतारात्मक शासन की मांग को लेकर टिहरी रिहासत मैं 20 वीं शताब्दी के तीसरे दशक मैं जान आंदोलन होने लगे थे। 1939 मैं देवसुमन,दौलतराम,नागेंद्र सकलानी,एवं वीरचंद्र सिंह गढ़वाली के प्रयासों से प्रजामण्डल की स्थापना हुई 


25 जुलाई 1944 को 84 दिन के भूख हड़ताल के बाद श्रीदेवसुमन की मृत्यु हो गई 


  • श्रीदेवसुमन की मृत्यु के बाद आंदोलन की बागडोर दौलतराम,भोलूराम नौटियाल,नागेंद्र सकलानी, ने संभाली 
  • भारत के स्वतंत होते ही टिहरी के सकलाना मैं राज्य के खिलाफ विद्रोह फुट पड़ा
  • 1948 के कीर्तिनगर आंदोलन से राजसत्ता हिल गई,और भोलूराम और नागेंद्र शहीद हो गए 

सकलाना और कीर्तिनगर आंदोलन हुए 1947 व् 1948  मैं 


राजा मानवेन्द्र शाह ने 1949 मैं विलीनीकरण प्रपत्र पर हस्ताक्षर किया और 1 अगस्त 1949 को टिहरी उत्तरप्रदेश का एक जिला बना 

डोला पाल की आंदोलन 


शिल्पकारों (दलितों ) ने सामाजिक व्यवस्था के खिलाफ आंदोलन छेड़ा ,इस आंदोलन से पहले दलितों को शादी या अन्य अवसर पर डोला पालकी पर बैठने का हक़ नहीं था 
यह व्यवस्था केवल उच्च वर्ण के लोगों के लिए ही थी,दलित वर्ग के दूल्हा और दुल्हन पैदल ही जाते थे,जयानंद भारतीय के नेतृत्व मैं 1930 के आस-पास शिल्पकारों (दलितों )को यह अधिकार मिला 

  • 1911 मैं हरिप्रसाद ने यहां के दलितों को शिल्पकार शब्द प्रयुक्त किया 

सड़क आन्दोलन -1940 के लगभग गढ़वाल क्षेत्र मेंजनता ने सड़क के लिए व्यापक आन्दोलन किये,इन आन्दोजन का उद्देश्य गरुड़ से कर्णप्रयाग व् लैंसडोन से पौड़ी तक सड़क व्यवस्था के लिए  

कनकटा बैल बनाम भ्रष्टाचार आन्दोलन-अल्मोड़ा के बडियार रैत (लमगड़ा ) गांव मैं एक बैल के दोनों कानों पर फुलली लगा कर ऋण लिया गया। बाद मै उस बैल के दोनों कान काटकर उसे दो बार मरा घोषित कर कर बीमा की धनराशि हड़प ली गई  

  • उत्तराखंड संघर्ष वाहिनी ने ऐसे भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाई और भ्रष्टाचार के प्रतीक के रूप में उस कनकटे बैल को अल्मोड़ा,नैनीताल,व् अन्य जनपदों मैं घुमाया गया और बैल को दिल्ली ले जाकर भ्रष्टाचार को उजागर किया गया 

कोटा खर्रा आन्दोलन -इस आन्दोलन का उद्देश्य राज्य के तराई क्षेत्रों में सीलिंग कानून को लागू कराकर भूमिहीनों तथा किसानों को भूमि वितरण करना था। यह आंदोलन किसान संगठनों का नेतृत्व मैं चलाया गया था 

शराब विरोधी आन्दोलन - स्वतंत्रता के बाद से ही राज्य की महिला संगठनों ने नशामुक्त उत्तराखण्ड के उद्देश्य को लेकर आन्दोलन करना शुरू कर दिया था,क्योकि पुरुषों के अत्यधिक शराब सेवन का सर्वाधिक दुष्परिणाम महिलाओं को भुगतना पड़ता है आज भी  

  • इस आंदोलन को देखते हुए कहीं बार उत्तरप्रदेश सरकार ने कही बार शराब बंदी की और फिर चालू करती रही  
  • 'नशा नहीं रोजगार 'दो का नारा लेकर 1984 मैं उत्तराखण्ड संघर्ष वाहिनीं ने इस आंदोलन का नेतृत्व किया और  पुरे राज्य मैं फैलाया 
  • 1984 में अल्मोड़ा,नैनीताल व् आदि जिलों मैं शराब बंदी कर दी गयी और आन्दोलन ठंडा पड़ते है पुनः शराब की बिक्री होने लगी 

विश्व विद्यालय आन्दोलन - राज्य मैं विश्व विद्यालय क लिए छात्रों ने आन्दोलन शुरू कर दिया जिसे देखते हुए एन.डी.तिवारी ने उ.प्र विधान सभा मैं 1955-56 मैं वि.वि सम्बन्धी एक प्रस्ताव रखा 

  • सरकार ने  नैनीताल मैं वि.वि खोलने का मन बनाया तो गढ़वाल क्षेत्र से आंदोलन शुरू हो गया वि.वि स्थापित करने के लिए 
  • बाद मैं सरकार ने इन दोनों क्षेत्रों मैं एक-एक वि.वि खोलने का प्रस्ताव रखा ,1973 मैं कुमाऊ वि.वि की स्थापना नैनीताल व् गढ़वाल विश्व विद्यालय की स्थापना श्रीनगर मैं की गई 

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