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बोधकथा : सच्ची शिक्षा कैसे हासिल होती है | Sacchi Shiksha Kaise Hoti hai Kahani

Bodhkatha (hindi moral story )Sacchi Shiksha Kaise Hoti hai: आप सचमुच कुछ सीख रहे हैं या महज पढ़ रहे हैं । शिक्षित होने और पढ़ाई करने के फर्क को इस

Bodhkatha Sacchi Shiksha Kaise Hoti Hai: आप सचमुच कुछ सीख रहे हैं या महज पढ़ रहे हैं । शिक्षित होने और पढ़ाई करने के फर्क को इस बोधकथा के जरिए समझा जा सकता है । -

बोधकथा : सच्ची शिक्षा कैसे हासिल होती है ? | hindi moral story Bodhkatha (hindi moral story )Sacchi Shiksha Kaise Hoti hai: आप सचमुच कुछ सीख रहे हैं या महज पढ़ रहे हैं । शिक्षित होने और पढ़ाई करने के फर्क को इस बोधकथा के जरिए समझा जा सकता है । -

 बोधकथा : सच्ची शिक्षा कैसे हासिल होती है ? 

राजभवन के बाहर स्थित एक आवासीय विद्यालय में कौरवों और पांडवों की शिक्षा चल रही थी । बालकों की शिक्षा - दीक्षा के लिए भीष्म पितामह ने द्रोणाचार्य जी को नियुक्त किया था । 

बालकों की प्रगति की जानकारी लेने एक बार भीष्म जी कुछ विशिष्ट जनों के साथ पहुंचे । बाह्य अवलोकन के बाद अब बालकों की व्यक्तिगत प्रतिभा दिखाने को आतुर द्रोणाचार्य जी ने युधिष्ठिर को बुलवाया । 

शिक्षक की स्वाभाविक प्रवृत्ति होती है- किसी अधिकारी या अवलोकनकर्ता की उपस्थिति में अपने सर्वश्रेष्ठ विद्यार्थी को जरूर बुलाते हैं । 

युधिष्ठिर पितामह का अभिवादन कर सिर झुका कर खड़े हो गए । 

द्रोणाचार्य जी ने बड़े जोश में आकर कहा- ' वत्स | बताओ , कितने अध्याय पूर्ण हो चुके हैं ? ' 

युधिष्ठिर का सिर थोड़ा सा और झुका और फिर वे धीरे से बोले ' गुरुदेव ! प्रथम अध्याय की प्रथम दो पंक्तियां पूर्ण हो चुकी हैं । ' 

गुरुदेव को काटो तो खून नहीं , ' कहाँ आठ नौ अध्याय अभी तक पढ़ा दिए हैं और इस बालक को तो देखो - दो पंक्तियों की बात कर रहा है । मैं तो इसे बड़ा अनुशासित और सत्यवादी समझता था । ' 

पितामह भीष्म की आंखों में प्रश्न देखकर तो द्रोणाचार्य जी आपे में न रहे । उनकी आग्नेय दृष्टि युधिष्ठिर की तरफ उठ ही गई थी । 

युधिष्ठिर बड़ी निरीह दृष्टि से गुरुजी को देखते हुए बोले-

' तीसरी पंक्ति भी आधी समझ आ रही है गुरुदेव! '

अब गुरुदेव की समझ में आया , क्योंकि वे पंक्तियां थी- सत्यं वदा

 धर्म चरा

 काम क्रोधं च जहि ।

 उन्होंने युधिष्ठिर को अपने हृदय से से लगा लिया , बोले- ' वत्स आज मैंने तुमसे सीखा है , मात्र कंठस्थीकरण शिक्षा नहीं , शिक्षा तो जीवन से जुड़ी है । आचरण में उतारने से ही शिक्षा संपूर्ण होती है । ' 

हजारों वर्षों के बाद आज यह बोध कथा समय की अनिवार्यता के रूप में हमारे सामने खड़ी हो गई है । शिक्षा को आचरण और जीवन से जोड़ने के लिए इस मिसाल को सदा ध्यान में रखना होगा ।

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