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बात जो दिल को छू गई : Short Story | Dil Ko Chhune Wali Baate Short Story

बात जो दिल को छू गई :-' हमारा ट्रांसफर शिमला हुआ।  नई जगह जा कर, नए लोगों का नया पड़ोसी बनना था। शिमला अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर एक विश्व प्रसिद्ध पर्यटन स्थल है, जहाँ हमें जाकर अब बसना था,परन्तु दिल-दिमाग में एक ही बात बार-बार घर कर रही थी की जहाँ हम जा रहे है वहां पर हमलोगों के पडोसी कैसे होंगे । 


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मैंने कहीं पढ़ा था कि अच्छे पड़ोसी मुश्किल से मिलते हैं।  तो अगर ऐसे खुश मिजाज पडोसी मिल जाए तो वे किसी रिश्तेदार की तुलना में से श्रेष्ठ,उत्तम सहयोगी, मित्र व कुलीन साबित होते हैं ।  तब जीवन काटा नहीं,जीया जाता है । 


पैकिंग जारी थी, हमारे बहुत से मित्रगण जानने वाले आते व नौकरी में होने वाले ट्रांसफर व जिंदगी में बनने वाले पड़ोसियों के बारे में अपने मूल्यवान अनुभवों को हमसे बांटते ।  हमें भी सहज लगता, आ रहे समय के लिए लाभदायक फीडबैक भी मिलता । एक परिचित ने अपना अनुभव बताया जब उन का ट्रांसफर अपरिचित शहर में हुआ था। 


सामान ले कर, थकेमांदे, रात को पहुंचे तो लगा सर्दी के मौसम में अभी कोई पड़ोसी कम से कम गरमगरम चाय तो पिला ही देगा। मगर समाज में आए प्रोग्रेसिव बदलाव के कारण सभी बेहद व्यस्त रहे। किसी ने उन्हें  एक गिलास पानी तक के लिए भी नहीं पूछा। पीने के लिए पानी मांगना पड़ा तो सुरक्षा संस्कृति में गिरफ्तार पड़ोसी ने की


खिड़की से ही निबटा दिया। हमें यह जान कर सचमुच हैरानी भरी खुशी हुई कि हमारे परिचित ने सैटल होते ही 3-4 दिन बाद अपने व्यस्त पड़ोसियों को चाय पर बुलाया और वे समय निकाल कर आए। पड़ोस में आए एक अपरिचित ने सही पड़ोसीधर्म की शुरुआत की। 


यह बात सही है की, हर जगह अलग-अलग तरह के लोग होते हैं।  मगर हमारे पड़ोसी पता नहीं कैसे होंगे, यह प्रश्न तो मन में भटक ही रहा था। ठंड का मौसम था। सामान लोड होते, मिलते, निकलते देर हो गई रात को 8 बजे शिमला पहुंचे। इस बीच हमारे  नये पड़ोसी ने, जो नायाब भूमिका हमारे लिए अदा की वह अनुकरणीय है। 


श्रीमती शर्मा ने हमें पूरे अदब से रजाई में बैठाया, चायपानी पिलाया । जब तक पूरा सामान पहुंच नहीं गया, शर्माजी मेन रोड पर सामान के पास खड़े रहे । रात को जब हम अपने फ्लैट में जाने लगे तो श्रीमती शर्मा बोलीं, 'आप यहीं सोएंगे, आधी रात हो गई है। ठंड है, चाय पी कर रेस्ट कीजिए, थक गए होंगे । 

"हर किसी की अपनी अलग आदत होती है, जैसे हमारी हम लोग कभी सोते समय कभी चाय नहीं पिया करते, मगर उनके इस प्यार और सत्कार को मना कैसे करते सो हमने चाय ख़ुशी से  पिली। सुबह बेड टी के बाद सामान अरेंज करने लगे तो आफिस जा रही श्रीमती शर्मा ने कहा नाश्ता तैयार है और लंच भी उन के यहां खाना होगा । 


"हमने उन्हें इस तकलीफ के लिए शुक्रिया कहा,की आपने पहले ही इतना सब कुछ किया है "


परन्तु वह यह सुनकर बोली, " की जनाब अगर आप हमारे इस निवेदन को हीं मानेंगे तो हम कैसे आप के घर आएंगे और खाना खा पाएंगे ।" 


उन के ट्रांसपैरेंट व्यवहार के कारण हम चुप हो कर सोचने लगे , क्या ऐसे लोग सचमुच अभी हैं दुनिया में। हमें उन के सद्व्यवहार के सामने नतमस्तक होना पड़ा । दिलचस्प यह है कि उस दिन शर्मा जी का जन्मदिन था लगभग 2 बरस हो रहे हैं उनके पड़ोसी धर्म की सघनता जरा भी कम नहीं हुई मेरा यह अनुभव जिंदगी की किताब का अनूठा हिस्सा रहेगा । 


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कंपनी द्वारा संचालित विद्यालय में मेरी नई-नई नियुक्ति हुई थी ।कंपनी मैनेजर बेहद प्रभावशाली, अनुशासनप्रिय, दबंग व्यक्ति थे । उन की कोठी का पिछला आंगन हमारे विद्यालय भवन के साथ ही लगा था। कभी-कभी विद्यालय आतेजाते उन से दुआसलाम हो जाती थी। उन दिनों जिलास्तरीय खेल प्रतियोगिताएं चल रही थीं ।


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हमारा विद्यालय बढ़चढ़ कर हिस्सा ले रहा था और हमारी टीमें लगातार जीत रही थीं। उत्साह चरम पर था। उस दिन कुछ अधिक देर हो गई थी । ठंड का मौसम था और अंधेरा घिरने लगा था। जब मैं विद्यालय से घर जाने के लिए निकली, मैनेजर साहब बाहर ही मिल गए । उन्होंने हालचाल पूछे तो मैं ने खेलों का पूरा ब्योरा सुना दिया।  

काफी देर सुनने के बाद उन्होंने केवल एक प्रश्न पूछा, "आप घर कैसे जाएंगी ?" 


मैं इस प्रश्न के लिए बिलकुल भी तैयार नहीं थी अतः सकपका गई। 


उन्होंने कहा, "काफी देर हो चुकी है।  मेरी गाड़ी आप को घर तक छोड़ आएगी । " 


उन के शालीन व्यवहार से मैं गद्गद हो उठी । वास्तव में आदमी का व्यक्तित्व ही उसे महान बनाता है । वह छोटी सी बात आज भी मेरे दिल को छू लेती है। 


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मेरी भानजी देखने में जितनी सुंदर है उतनी ही बातूनी भी । कभीकभी उस का अत्यधिक ।  बोलना हम परिवार वालों को अखरता था। उस की शादी पक्की हुई तो उस ने मुझ से पूछा , “मौसी, मुझे घबराहट हो रही है, मेरे स्वभाव को तो आप भलीभांति जानती हैं, राकेश का स्वभाव गंभीर है, सुखी जीवन का एकाध टिप बताओ न?" उस समय मैं हंस पड़ी और बोली," कुछ कम बोला कर, ज्यादा बोलने से कुछ प्रोब्लम्स हो सकती हैं । " 


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शादी के कुछ दिनों बाद वह अपने पति को ले कर हमारे घर मिलने आई।  देखा तो वह उतनी ही बातूनी थी, जितनी कि पहले । 


रसोई में मैं चाय बना रही थी तो वह नाश्ते की ट्रे सजाने लगी।  


मैं ने पूछा, "तेरी बातें तो बरकरार हैं ?" 


वह मुसकराई और मेरे गले में बांहें डाल कर बोली, "मौसी, जिस दिन सुहागरात थी, उस समय मैं खामोश थी तो राकेश ने ही चुप्पी तोड़ी और पूछा, 'नाराज हो क्या ? इतनी चुप तो कभी नहीं रहतीं ? '


"मैं ने कहा 'मायके में मुझे सब लोग बातूनी कहते हैं, उन लोगों ने मुझे चुप रहने की सलाह दी है । '


"तब राकेश ने कहा कि मैं ने तुम्हें शादी से पहले जैसे पसंद किया था वैसी ही रहना, हमेशा के लिए ।  मैं तुम्हारे स्वभाव में किसी प्रकार का चेंज नहीं चाहता । 


"उन्हें मेरा यही स्वभाव बहुत पसंद है । अब वह खुद भी बोलने लगे हैं । " यह बात मेरे दिल को छू गई। 


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