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बटन- Batan Short Moral Story In Hindi | बटन दिल छू लेने वाली छोटी कहानी

Short Stories छोटी कहानी: मां की हर छोटी-बड़ी ज़रूरत को लेकर बेहद फिक्रमंद रहने वाले सूरज को मां का फोन लगाने की जिद करना रूला रहा था।


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बटन दिल छू लेने वाली छोटी कहानी 


Hindi Kahani: हमारे देश में माता-पिता और गुरु को देवताओं के समकक्ष रखा गया है। इनमें भी माता का दर्जा सबसे महान माना गया है क्योंकि हर मां हर हाल में अपने बच्चों के उत्थान का दायित्व निभाती ही है। कुछ एक अपवादों को छोड़कर बच्चे भी अपनी माता प्रति कभी कृतघ्न नहीं होते।


इस कहानी का नायक सूरज भी अपनी मां के प्रति अपार श्रद्धा व सम्मान रखने वाले व्यक्तियों में से एक है। यद्यपि सूरज की पत्नी व बच्चे भी बुजुर्ग का उतना ही ध्यान रखते थे मगर फिर भी सूरज अपनी माता की छोटी से छोटी चीज का ध्यान रखता था। मधुमेह तथा उच्च रक्तचाप की मरीज होने के नाते सभी तरह के भोजन उसकी माता श्री के लिए उपयुक्त नहीं थे, फिर भी कुछ भी खाने से पूर्व वह अवश्य पूछता कि मां ने खा लिया या नहीं। और यदि कभी नकारात्मक उत्तर मिलता तो खाना उसके हलक से नीचे नहीं उतरता था। कभी-कभी तो बच्चे कह देते कि दादी को पापा बहुत ज्यादा नाजुक समझते हैं। और यह सही भी था। सूरज मां की परवाह में इतना डूबा था कि उसे कुछ और नहीं दिखता था।



सूरज की मां उन खुशकिस्मत इंसानों में से थीं जिनकी एक आवाज पर तीन-चार लोग दौड़े चले आते हैं। सूरज रात होने से पहले यह पक्का कर लेता था कि मां ने दवाई खा ली है, पीने के लिए ताजा पानी उनकी मेज पर रख दिया गया है और सर्दियों में गर्म पानी की बोतल उनके बिस्तर पर रख दी गई है। यद्यपि ज्यादातर ये सारे कार्य उसकी धर्मपत्नी व बच्चे ही करते थे, मगर सूरज जब तक एक बार उसकी खोज-खबर नहीं ले लेता, उसे चैन नहीं पड़ता।


सूरज की माताश्री का अधिकांश समय पूजा-पाठ में ही निकलता था। उनसे मिलने वाला प्रत्येक व्यक्ति उनके व्यक्तित्व से प्रभावित हुए बिना नहीं रहता था। कारण, वे अत्यंत मिलनसार थीं। यहां तक कि घर में काम करने वाले लोगों, जैसे माली, बर्तन धोने वाली या झाडू-पोंछा करने वाली बाई के सारे दुख-सुख की मां को पूरी मालूमात होती थी। वे अत्यंत सफ़ाई पसंद थीं। मसलन बाथरूम जाने से पहले बाल्टियों को साफ़ करती थीं, अपने पहने हुए कपड़े भी स्वयं ही धोती थीं। पूजा-पाठ के मामले में कोई समझौता नहीं करती थीं। बीमार भी होती थीं तब भी उनका नहाना और पूजा-पाठ सृष्टि नियमों की तरह अटल रहता था।


एक दिन उन्होंने सूरज को बुलाया और बताया कि आज उनकी तबीयत ठीक नहीं है। सूरज ने जैसे ही उनकी नब्ज़ देखी, तो पाया कि उन्हें तेज बुख़ार था। उनकी सांसें तेज़ चल रही थीं। सूरज जल्दी से अपने कमरे में गया और एक बुख़ार की गोली लेकर अपनी मां से बोला, 'आप को बुख़ार है, डॉक्टर को फोन लगाता हूं, तब तक आप ये गोली खा लो।' मां ने सूरज का हाथ पकड़ लिया और अत्यंत स्नेहपूर्वक बोलीं, 'डॉक्टर को रहने दे, गोली खा लेती हूं, पहले मेरी बात ध्यान से सुन, जिस काम के लिए मैंने तुझे बुलाया है। एक फोन लगा दे मेरे लिए। अच्छा, उससे पहले एक और काम कर।' उन्होंने सूरज को एक प्लास्टिक की डिबिया दी और बोलीं, 'इस डिब्बी को संभालकर रख । इसमें मेरे कंगन, अंगूठी व बालियां हैं। ध्यान से रखना।'


मां की यह बात सुनकर सूरज की आंखों में आंसू आ गए। उसने तुरंत डॉक्टर को फोन लगाना चाहा मगर मां ने फिर आदेश दिया, 'जो फोन मैंने कहा है, वो लगा। मेरी लाडो को लगा, मुझे उससे भी कुछ बात करनी है।' सूरज ने किसी तरह अपने को संभालते हुए किसी अनहोनी की आशंका में अपनी छोटी बहन की ससुराल में फोन लगाया। मां एकदम प्रखर स्वर में बोलीं, 'और लाडो कैसी हो ? धीरज कैसा है, बच्चे कैसे हैं? और बता तेरा टब्बर-टीर तो ठीक है ?' मां ने एक ही सांस में कई सवाल एक साथ पूछ लिए। जवाब सुनने के लिए वे थोड़ी देर के लिए रुकीं और फिर उच्च स्वर में बोलीं, 'अरी लाडो! यह बात जरा ध्यान से सुन, कुछ दिन पहले मैंने रज्जू की मां को एक सूट सिलने को दिया था।


अरे, वही सूट जो तेरी मामी ने दिया था, हल्के फिरोजी रंग का, याद आया कि नहीं? रज्जू की मां से कहना, गला ज्यादा डीप न करे और हो सके तो गले के फ्रंट में चार-पांच मैचिंग बटन भी लगा दे।'


सूरज ने अपने आंसू पोंछे और मुस्कराते हुए मां के गहने अलमारी में रखने चला गया।


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