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एनआरआई बेटा हिन्दी कहानी | Nri beta hindi kahani

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एनआरआई बेटा हिन्दी कहानी 


Kahani NRI Beta: धनुष अपने कमरे में स्टडी टेबल के पास रखी कुर्सी पर निराश पसरा हुआ था। लोगों की टिप्पणियों से बेहद आहत । उसके बचपन का दोस्त अर्जुन जो उससे उम्र में थोड़ा ही बड़ा था और दो साल पहले ही अमेरिका में सेटल हुआ था, के पिता डॉ.परमेश्वर जी का निधन हो गया था । 


धनुष अभी अर्जुन के पिता के अंतिम संस्कार से ही घर पहुंचा है। पिछले दो दिन से अर्जुन के पिता मौत से लड़ रहे थे। मगर आज सुबह हार्ट अटैक के कारण इस दुनिया को अलविदा कह दिया । 


हालांकि अमेरिका से अर्जुन ने भी अपने प्रयासों में कुछ कमी नहीं छोड़ रखी थी। उसने वहीं से अपने डॉक्टर मित्रों से कहकर पिता के अच्छे इलाज को सुनिश्चित किया था, जिसके चलते उसे पिता के जल्द ही ठीक होने की पूरी उम्मीद भी थी । वह हर रोज चार-पांच बार हॉस्पिटल के डॉक्टरों और धनुष से बात कर पिता के स्वास्थ्य के बारे में जानकारी भी ले रहा था ।


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मित्रता सिर्फ धनुष और अर्जुन के बीच ही न थी। धनुष के पिता रामदयाल और अर्जुन के पिता डॉ. परमेश्वर दोनों ही प्रोफेसर के पद पर थे। पिछले पच्चीस सालों से दोनों परिवारों के बीच बहुत ही आत्मिक संबंध रहे हैं । अर्जुन मुम्बई से कंप्यूटर साइंस से एमटेक करने के बाद दो साल पहले अमेरिका में सेटल हो गया है । 


अर्जुन की तरक्की हमेशा धनुष के घर में चर्चा का विषय रहती। धनुष के माता-पिता भी यही उम्मीद कर रहे थे कि एक दिन वह भी अर्जुन की ही तरह अमेरिका में सफल कॅरिअर बनाकर घर - परिवार का नाम रोशन करे। उसी नक्शे-कदम पर चलते हुए धनुष भी आईआईटी मुम्बई से ही एमटेक के फाइनल ईयर में है।


कई बार धनुष को लगता था कि जीवन हो तो अर्जुन जैसा। पढ़ाई में अव्वल, अच्छे संस्कार, विदेश में नौकरी। रिश्तेदार, पड़ोसी सभी उसकी हमेशा प्रशंसा किया करते थे। 


तभी यादों में डूबे धनुष ने महसूस किया कि उसके आसपास कोई आहट हुई। मुड़कर देखा तो पीछे उसके पिता रामदयाल जी खड़े हैं । वे भी अपने घनिष्ठ मित्र के जाने से दुखी थे। धनुष ने अपने पिता को देखते ही उन्हें भारी मन से बाहों में भर लिया और फूट-फूट कर रोने लगा। रामदयाल जी समझ रहे थे कि धनुष पर क्या बीत रही है । 


दुखी राम जी भी थे, मगर अर्जुन को समझाने के अंदाज में बोले, बेटा होनी पर किसी का जोर नहीं है। एक दिन हम सबको जाना है । तुम अपने आप को संभालो । मगर धनुष के रोने में अलग ही कष्ट महसूस हो रहा था। रोते समय जिस तरह से धनुष ने उन्हें अपनी बाहों में जकड़ रखा था और वह रोए जा रहा था, वो थोड़ा अजीब था । 


रामदयाल जी ने धनुष को कंधे से पकड़ते हुए आंखों में आंखें मिलाकर पूछना चाहा, आखिर क्या बात है ? धनुष आंसू पोंछते हुए बोला, 'पिताजी आपको क्या लगता है? क्या अर्जुन भाई इतने बुरे हैं ?' रामदयाल जी प्रश्नवाचक मुद्रा में धनुष को देखते ही रह गए । 


धनुष बोलने लगा, पिताजी, पिछले दो दिनो से मैं हर आदमी से अर्जुन भाई के बारे में गलत ही सुन रहा हूं। कोई कह रहा है अर्जुन अब उनका बेटा नहीं रहा, वह तो अमेरिका का हो गया है । तो कोई उनको ऐसा संवेदनहीन बेटा कह रहा है जो अपने मां -पिता की दुख के समय मदद नहीं करना चाहता है। लेकिन आप और मैं जानते हैं, अर्जुन भाई ऐसे नहीं हैं । 


आखिर उनका अमेरिका से अचानक आना कैसे संभव था? अंतरराष्ट्रीय उड़ान के अपने कुछ नियम होते हैं। किसी भी व्यक्ति को इतनी दूर से इंडिया आने में चौबीस घंटे तो लगेंगे ही। क्या किसी ने अर्जुन भैया के आने तक अंकल जी की बॉडी को रखने का प्रयास किया? नहीं ना? सब अपनी-अपनी जिम्मेदारियों से जल्द ही आजादी चाहते थे और यही सब ने किया भी । 


धनुष ने बोलना जारी रखा, अर्जुन भाई तो कब से कह रहे थे कि वह अंकल की देखभाल के लिए आना चाहते हैं। मगर हर बार हमने ही उनको रोका था। खुद डॉक्टर लोग भी कल तक यही कह रहे थे कि अंकलजी जल्द ठीक हो जाएंगे । इस दौरान अर्जुन भैया की तड़प को मैंने समझा है। आप खुद कह रहे हैं अर्जुन ने पैसों की कमी नहीं होने दी । फिर एक अच्छे बेटे से और क्या उम्मीद करते हैं हम लोग ? 


मेरी नजर में वह आज भी उतने ही निर्मल और प्यार करने वाले बेटे हैं, जितने वह यहां रहकर थे । फिर अचानक पूरे समाज के लोग उनको बुरा-भला क्यों कह रहे हैं? वीडियो कॉल के दौरान अर्जुन भाई किस तरह फूट-फूट कर रो रहे थे? मगर आपके के वे पुराने मित्र सक्सेना अंकल ने अर्जुन को रोते देखकर भी पीछे से कितना बेतुका कमेंट किया था कि अब रोने से क्या फायदा ? जब समय था तब तो आया नहीं । 


धनुष पूछता जा रहा था, क्या विदेश जाने का सपना अकेले अर्जुन भाई ने देखा था? क्या वह सामाजिक प्रतिष्ठा सिर्फ अर्जुन भाई के लिए थी? क्या डॉलर की कमाई अर्जुन भाई अंकल आंटी पर खर्च नहीं कर रहे थे ? 


क्या पिछले दो सालों में हर साल अंकल-आंटी को वह अमेरिका लेकर नहीं गया ? मुझे याद है पिछले साल ही उन्होंने इंडिया आकर सेटल होने की बात कही थी, जिसे खुद अंकलजी ने मना कर दिया था। क्या उन्होंने अपने पिता की बात मानकर कुछ गलत किया ? 


धनुष प्रश्न पर प्रश्न पूछे जा रहा था और रामदयाल जी निरुत्तर थे। वे चुपचाप खड़े अर्जुन की भावनाओं को समझने का प्रयास करते रहे । धनुष अपने पिता से नहीं, मानो पूरे समाज से ही प्रश्न कर रहा था । 


अर्जुन के अमेरिका जाने से परिवार का जो सम्मान बढ़ा है, एक दिन इसकी कीमत भी उससे ले ली जाएगी, यह शायद उसने सोचा भी नहीं होगा। जो लोग अच्छे पैकेज पर उसके अमेरिका जाने पर उसे हीरो की तरह पेश कर रहे थे, अब वे ही विलेन बनाने पर तुले हुए थे । 


कहते-कहते धनुष की आंखों से आंसुओं की धारा एक बार फिर बहने लगी। फिर अचानक धनुष ने अपने आंसू पोंछकर दृढ़ आवाज में कहा, पिताजी आप हमेशा मुझे अमेरिका भेजने के सपने देखने आ रहे हैं। लेकिन आज मैं ऐलान करता हूं कि मैं आपके इस सपने को अब कभी पूरा नहीं करंगा ।


मैं यहां रहकर भी कुछ न कुछ अच्छा कर ही लूंगा, मगर इतनी बड़ी कीमत देने को तैयार नही हूं। मैं एक एनआरआई बेटा नहीं बनना चाहता। इतना कहते हुए धनुष टूटकर अपने पिता के चरणों में जा गिरा 


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