Char Rupayon ka Hisab Hindi Moral Kahani
एक बादशाह संध्या के समय वेश बदलकर घूमने निकले । उनके साथ कुछ सिपाही थे ,जो दूर रहकर उनकी रक्षा करते थे । एक स्थान पर एक इमारत का निर्माण कार्य चल रहा था । मजदूर क़तार में मजदूरी लेने के लिए खड़े थे ।
एक मजदूर ने अपनी मजदूरी ली , जेब में रखी और गुनगुनाता हुआ चला । बादशाह ने उसे रोक लिया , पूछा , ' मुझसे कुछ बातें करोगे ? '
क्यों नहीं ? ' मजदूर रुककर बोला , ' कहो , क्या कहना चाहते हो ? '
आओ , उधर पेड़ के नीचे बैठ जाएं । मैं तुम्हारा अधिक समय न लूंगा । मुझे मालूम है पूरा दिन काम करके तुम थक चुके होंगे , बस थोड़ी देर के लिए मेरे साथ बातें करो । '
ऐसी कोई बात नहीं । ' मजदूर हंसकर बोला । ' मैं अभी आठ घंटे और काम कर सकता हूं । '
दोनों पेड़ के नीचे जाकर बैठ गए ।
तुम्हें जो मजदूरी मिलती है , क्या वो तुम्हारे लिए पर्याप्त है ? ' बादशाह ने पूछा ।
Read More Kahani:-
दृष्टि दान: रबिन्द्रनाथ टैगोर की श्रेष्ठ कहानी
देन -लेन: रबीन्द्रनाथ टैगोर की कहानी
कहानी व्यवधान: रबीन्द्रनाथ टैगोर
हां , काफ़ी है । ' मजदूर ने कहा ।
कितना कमा लेते हो ?
चार रुपए प्रतिदिन ।
उन्हें ख़र्च कैसे करते हो ?
मजदूर हंसकर बोला , ' बड़ी आसानी से ख़र्च करता हूं । सीधा हिसाब है । एक रुपया मैं खाता हूं , एक रुपया क़र्ज देता हूं , एक रुपया क़र्ज लौटाता हूं और एक रुपया फेंक देता हूं । ये सीधा हिसाब है । '
बादशाह उलझ कर बोले , ' मेरी समझ में कुछ नहीं आया । '
मजदूर ठठाकर हंस पड़ा । बोला , ' मैं पढ़ा - लिखा नहीं हूं भाई ! बस पहेलियों में बात करने का शौक है , सो बात बना दी । '
पहेली है पहेली का जवाब बता दो । ' बादशाह ने आग्रह किया । मजदूर ने स्पष्टीकरण किया , ' एक रुपया खाता हूं अर्थात अपने परिवार के भोजन के लिए ख़र्च करता हूं । एक रुपया कर्ज देता हूं अर्थात अपने बच्चों पर खर्च करता हूं , ताकि वृद्धावस्था में वो हमारा ख़्याल रखें ।
एक रुपया कर्ज़ लौटाता हूं अर्थात अपने बूढ़े माता - पिता पर ख़र्च करता हूं , क्योंकि उन्होंने मेरा पालन - पोषण किया है । एक रुपया फेंक देता हूं , अर्थात दान कर देता हूं । ' बादशाह मजदूर की प्रतिभा से बहुत प्रभावित हुए , बोले , ' तुमने अभी जो मुझे बताया है वो और किसी को न बताना । '
कोई पूछेगा तो अवश्य बताऊंगा । ' मजदूर हंस कर बोला । ' इसमें छिपाने की क्या बात है ! तुम कोई हमारे बादशाह हो कि तुमने आज्ञा दी और मैंने मानी । '
हां , हम बादशाह ही हैं । ' बादशाह ने अपना परिचय कराया , ' हम दरबार में ये पहेली पेश करेंगे और फिर देखेंगे कि कौन इस पहेली को सुलझाता है ? थोड़ा आनंद लेंगें । लो , ये अशर्फ़ियां रखो । तुम्हारा इनाम है । '
मजदूर घबराकर खड़ा हो गया बोला , ' इनाम की जरूरत नहीं , मैं आपकी आज्ञा का पालन करूंगा । '
ये अशर्फ़ियां तुम्हारी अक़्लमंदी का इनाम हैं । अब तुम हमसे वादा करो कि तुम जब तक सौ बार हमारा चेहरा नहीं देख लोगे , किसी को पहेली का हल नहीं बताओगे । ' मजदूर ने इनाम लेकर वादा कर लिया ।
दूसरे रोज बादशाह ने दरबार में पहेली पेश की , ' एक मज़दूर है । उसे प्रतिदिन चार रुपए मज़दूरी मिलती है । इनमें एक रुपया वो खाता है , एक कर्ज़ देता है । एक रुपया क़र्ज़ चुकाता है और एक रुपया फेंक देता है । बताओ कि वे चार रुपए कैसे और कहां खर्च करता है ? '
दरबार में मौन छा गया । बादशाह बहुत निराश हुए । कहा , ' इसका अर्थ ये हुआ कि हमारे दरबार में कोई बुद्धिमान व्यक्ति नहीं है । हम कल तक का समय देते हैं । हमें पहेली का हल चाहिए । '
एक मंत्री बहुत होशियार था । उसने बादशाह के सुरक्षा कर्मियों से मिलकर पता लगाया कि बीते दिनों में बादशाह कहां - कहां गए थे । उसने न केवल मज़दूर को तलाश कर लिया बल्कि पहेली का हल भी जान लिया । दूसरे दिन मंत्री ने दरबार में पहेली का हल पेश कर दिया ।
बादशाह के क्रोध की सीमा न रही । उन्होंने सिपाही भेजकर मजदूर को पकड़कर बुलवाया । पूछा , ' तुमने इन्हें पहेली का हल बताया है ? '
जी हां , बताया है । ' मजदूर ने स्वीकार किया ।
हमने तुमसे वादा लिया था कि किसी को हल नहीं बताओगे । तुमने वादा क्यों तोड़ा ? ' बादशाह क्रोधित होकर बोले ।
मैंने ऐसा कुछ नहीं किया । आपने कहा था न कि जब तक सौ बार आपका चेहरा न देख लूं , किसी को पहेली का उत्तर न बताऊं ? तो मैंने सौ बार आपका चेहरा देखा और वज़ीर जी को उत्तर बता दिया । '
क्या कहते हो ?
तुमने हमारा चेहरा कहां देखा ? उस दिन के बाद आज अभी तुम हमारे सामने आए हो । '
मजदूर ने भयभीत हुए बिना कहा , ' जहांपनाह , मैं आपको पूरी बात बताता हूं । आपके ये मंत्री मुझ तक पहुंचे । दस अशर्फ़ियां मेरे सामने रखीं और पहेली का उत्तर मांगा , मैंने इंकार कर दिया । '
फिर ? '
इन्होंने फिर दस अशर्फ़ियां रखीं । मैंने इंकार कर दिया । '
फिर ?? '
मैंने पहेली का उत्तर बताने से इंकार कर दिया । '
फिर ... ? '
ये दस - दस अशर्फ़ियां बढ़ाते गए । जब सौ अशर्फ़ियां मेरे सामने आ गईं तो मैंने उत्तर बता दिया । '
सौ अशर्फ़ियां लेकर तुमने वादा तोड़ दिया । ' बादशाह ने गुस्से से कहा , ' यही है तुम्हारा वादा ? ' .
नहीं , मैंने बेईमानी नहीं की । अशर्फ़ियों पर आपका चेहरा है , सौ बार आपका चेहरा देखा और फिर उत्तर बताया । ये वादा तोड़ना तो नहीं हुआ जहांपनाह ' मजदूर ने कहा । बादशाह चकित रह गए । उन्होंने तो ये बात सोची ही नहीं थी ।
मजदूर ने अपनी बुद्धि के बल पर सौ अशर्फ़ियां और कमा ली थीं । बादशाह ने मुक्त हृदय से मजदूर की प्रशंसा की तथा उसे अपने दरबार में रख लिया ।
Read More Kahani:-
मंडप के नीचे: Short Story in Hindi
कैक्टस दिल को छू लेने वाली एक कहानी