पगडंडी: कहानी | Pagdandi Hindi Story
कहानी पगडंडी: अब तक स्वरा को केवल पैसों की मुश्किल ही समझ में आ रही थी। लेकिन शांता मासी की बातों ने उसे यकायक अहसास करा दिया कि दरअसल निराशा भावनात्मक ख़ालीपन और संबल के अभाव की होती है । ये मिल जाएं , तो कोई मुश्किल टिक नहीं सकती .
पगडंडी कहानी | Pagdandi Hindi Story
अपने कस्बे को महानगर से जोड़ती कच्ची - पक्की सड़क पर लगभग छह घंटे हिचकोले खाती बस की यात्रा के बाद स्वरा पहली बार मुंबई स्थित अपने कॉलेज आई थी । बस से उतरते ही उसे पूरी धरती डोलती - सी महसूस हुई । वो जल्दी अपने हॉस्टल के रूम के बाथरूम में पहुंची और उल्टी करने लगी ।
देखते ही देखते उसके कपड़े और पूरा बाथरूम गंदा हो गया । उसकी रूममेट भी नाक बंद कर मुंह बिचकाती हुई मासी को भेजने का कहकर वहां से निकल गई । कुछ देर बाद लटक - मटक सी एक गोरी - चिट्टी स्त्री रूम में आई । ' क्या हुआ बेबीजी ? मुझे बताया इस रूम में किसी का तबियत बिगड़ गया है । '
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' हां , मेरी रूममेट किसी शांता बाई को बुलाने गई है , वो अभी आती ही होगी । '
' मैं इज शांता बाई है । ' कहते हुए उसने अपने दुपट्टा लपेट कर उसका सिरा अपनी कमर में खोंस लिया । अगर उसने स्वयं अपना परिचय ना दिया होता तो स्वरा तो यही समझी थी कि ये हॉस्टल की वॉर्डन है ।
शांता बाई ने कैंटीन से लाकर उसे नींबू पानी पिलाया और बाथरूम की साफ़ - सफ़ाई में जुट गई । कुछ देर बाद वह उसी मुस्कराहट के साथ जाने लगी । स्वरा ने उन्हें सौ रुपए देने चाहे तो उन्होंने लेने से इंकार कर दिया ।
उसके बाद वह हर दो - तीन दिन में स्वरा से टकरा ही जाती , कभी हॉस्टल में किसी रूम या बाथरूमों की सफ़ाई करते और कभी कैंटीन में समोसा या ब्रेड पकौड़ा खाते । शायद वह उड़ीसा से थीं और मुंबई में रहकर उड़िया मिश्रित मराठी बोलने लगी थीं । उन्हें लेकर कॉलेज में कई दंतकथाएं प्रचलित थीं- मसलन वह बदचलन है , अपने बच्चे और पति को छोड़ दूसरे मर्द के साथ रहती है ।
कभी - कभी वो स्वरा से हजार - दो हजार रुपए भी मांगने आ जाती और पगार मिल जाने पर लौटा देती । उसकी सीनियर्स को इस बात का पता चलने पर उन्होंने टोका भी , ' उसकी चिकनी - चुपड़ी बातों में मत आना । वो तो नया मुर्गा फंसाने की ताक में ही रहती है । देखा नहीं , हर समय कैसी बनठन कर घूमती है । ' पर पता नहीं क्यों स्वरा उसे ना नहीं कह पाती थी ।
फिर पिछले साल रातों - रात कॉलेज बंद करने की नौबत आ गई । इसके बाद के दो सेमिस्टर ऑनलाइन ही निकल गए । जब हालात सामान्य होने लगे , कॉलेज खुलने का मेल आया तब तक तो स्वरा बहुत कुछ या कहें सबकुछ खो चुकी थी । पिता का साया तो पहले से ही सिर पर नहीं था कोरोना में मां भी साथ छोड़कर चली गईं ।
सारी जमा - पूंजी मां के इलाज में खर्च हो गई । अब तो उसके पास कॉलेज और हॉस्टल का खर्चा उठाने जितने भी पैसे नहीं थे । मेडिकल की पढ़ाई महंगी थी और प्रैक्टिकल के लिए हॉस्टल में रहना भी जरूरी था । उसने मेडिकल की पढ़ाई बीच में ही अधूरी छोड़ आर्ट्स लेने की सोची , जिससे वह घर रहकर भी पढ़ सकती थी ।
स्वरा को लग रहा था वह एक बियाबान अंधेरे जंगल में अकेली फंस गई है जहां से बाहर निकलने का कोई रास्ता नहीं सूझ रहा था । इन्हीं दुविधाओं में घिरी , ठिठुरती शाम में वह कॉलेज के बाहर बस स्टैंड पर बैठी बस का इंतजार कर रही थी । रह - रहकर उसकी मां का मुस्कराता चेहरा उसकी स्मृतियों में सजीव हो जाता । तभी उसकी बेंच के पास किसी के पैरों की आहट ने उसकी विचार शृंखला को विराम दिया ।
सिर उठाकर देखा तो शांता मासी थी । उनके गाल और भी भरे हुए और गुलाबी हो गए थे । आंखें छोटी हो गई थीं । ' बेबी जी कैसा है ? बहुत कमजोर लग रहा है । मैंने आपको कल भी देखा था पर आप सर लोग के साथ व्यस्त था , इसलिए मैंने आपको डिस्टर्ब नहीं किया । ' उन्होंने स्वरा के सिर पर स्नेहमय हाथ फेरते हुए कहा ।
स्वरा निरुत्तर थी । सोच रही थी कि मासी उसकी परेशानी क्या समझ पाएगी । पर जब उसकी नज़रें मासी की तीर - सी नजरों का सामना नहीं कर पाई तो उसने नजरें झुका लीं और आंसू की मोटी - सी बूंद उसकी गोद में गिर गई ।
'अपनी मासी को नहीं बताएगा । मैं आपकी मां जैसा है । पूरे कॉलेज का लड़की लोग मुझे शांता बाई या छम्मक छल्लो कहकर मेरा मजाक़ बनाता था , एक आप ही तो था जो मुझे इतना स्नेह और आदर देता था । ' स्वरा ने रोते- रोते सारी बातें शांता बाई को बता दीं ।
' मैं उसी वकत समझ गया था कि कुछ गड़बड़ है जब आपको सर के कमरे से निकलते देखा था । आप कितना उदास था । शायद अपनी नई बेटी के वास्तेज इस साल भगवान ने मुझे इतना बरकत दिया होगा । जब पूरी दुनिया का नौकरी छूट गया था तब मेरा काम और पगार दुगुना हो गया था ।
सब औरत लोग अपने वतन लौट गया था मैं किधर पर को जाता ? प्रिंसिपल सर ने मुझे अपने घर काम के लिए रख लिया । मेरे मर्द का भी नौकरी छूट गया और वह मेरे पास लौट आया । मैंने उसे भी कॉलेज में बगीचे की संभाल का काम दिला दिया । '
' पर कॉलेज की लड़कियां तो तुम्हारे बारे में .. '
'हां बेबी जी , मुझे पता है यहां सब लोग मेरे बारे में कहता है कि मैं लफड़ेबाज है । ' स्वरा की बात पूरी होने से पहले शांता मासी ने कहा ।
‘पर क्या बताऊं बेबीजी , मेरा मर्द दूसरी औरत के साथ रहने लगा था । उसे सबक सिखाने के लिए मैं दिल पर पत्थर रखकर अपने बच्चे का जिम्मेदारी भी उस पर डाल अकेला यहां आ गया । मैं आपसे पैसे लेता था , उससे मेरे बच्चे के लिए कपड़े , मिठाई और किताबें खरीदकर भेजता था ।
बचपन में ही मां गुजर गया । सौतेली मां ने कभी कुछ अच्छा पहनने सजने को नहीं दिया । अब हाथ में दो पैसा आया तो अपना मन की इच्छा को पूरा करने लगा । आप ही बताइए बेबी जी मैं गलत है क्या ? "
स्वरा ने अपना सिर ना में हिला दिया ।
' पर आप अब चिंता मत करो । आपका फीस मैं भरेगी । मेरा जिम्मेदारी । मैं प्रिंसिपल सर की वाइफ़ से भी थोड़ा मदद मांगेगा । वो मुझे बहुत मानता है । वो मुझे ना नहीं करेगा । ' शांता मासी ने उसे आश्वासन दिया ।
शाम ढल चुकी थी । अंधेरे को पाटने के लिए पूरा शहर रंग - बिरंगी रोशनी में नहाने लगा था । स्वरा के भीतर भी रोशनी की एक किरण चमकने लगी । शांता मासी की बातों ने उसे निराशा से बाहर निकलने में मदद कर दी थी । उसे विद्यार्थियों को मिलने वाले ऋण का विचार भी सूझ चुका था ।
अपनी मंजिल तक पहुंचने के लिए एक पगडंडी तो मिल गई थी जिसके सहारे सफ़र की शुरुआत करते हुए वह उस बियाबान जंगल से बाहर निकलने का रास्ता भी खोज ही लेगी , यकीन हो चुका था ।
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