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Abhinav Bindra: रुपए-पैसे आपकी मदद करते हैं पर चैंपियन नहीं बनाते

Abhinav Bindra Motivational speech: अभिनव बिंद्रा, पूर्व ओलिंपियन रुपए पैसे आपकी मदद करते हैं, पर चैंपियन नहीं बनाते,कहीं पढ़ा था कि शब्द मायने नहीं रखते, एक्शन मायने रखता है। पर किताबें, कोच, साथी एथलीट और अपने दिल के कहे शब्द बहुत मायने रखते हैं । 

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Abhinav Bindra Sports Motivational speech

मैं भाग्यशाली था कि मेरे परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी थी । निश्चित तौर पर इसने मेरी काफी मदद की । रुपए-पैसे आपकी मदद कर सकते हैं, पर ये आपको चैंपियन नहीं बनाते । जब तक अंदर ललक नहीं होगी, कोई लक्ष्य हासिल नहीं किया जा सकता ।

मैं कई एथलीट्स को जानता हूं, जो अपनी परिस्थितियों के गुलाम हो गए । मैंने जब शूटिंग सीखने के लिए विदेश जाने का निर्णय लिया, तो मेरे पहले कोच कर्नल ढिल्लो ने इसे स्वीकार किया कि मुझे अतिरिक्त कोचिंग की जरूरत है ।

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ये उनकी बड़ी सोच ही थी, नहीं तो ये स्वीकार करना मुश्किल होता है कि अब आपके पास सिखाने या देने के लिए कुछ खास बचा नहीं है । मुझे लगता है ये स्वीकार करना आना चाहिए । मेरे लिए जर्मनी जाकर शूटिंग सीखना, मतलब अपने कंफर्ट जोन से बाहर आना था ।

कंफर्ट जोन से बाहर निकलने का सोचकर ही डर लगता है । जर्मनी के विजबाडेन में जब शूटिंग करना शुरू की , तो वहां के माहौल में ही एक्सीलेंस था । अपने साथ के शूटर्स को अच्छा प्रदर्शन करता हुए देखकर मेरे अंदर ऊर्जा भर जाती । खेलों में अच्छा करने का यही एक तरीका है ।

अपने से बेहतर खिलाड़ी के साथ खेलना शुरू करें । यूनिवर्सिटी ऑफ कोलोराडो से मैंने पढ़ाई की । वहां 2001 से लेकर तीन साल रहा । यूनिवर्सिटी और यूएस ओलिंपिक कमेटी के बीच एक अनुबंध था । इससे एथलीट्स को सुविधा थी । क्लासेस समय के हिसाब से लचीली थीं और हर कोई ट्रेनिंग कर सकता था ।

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जरूरी नहीं कि खिलाड़ियों को किताबों से भी प्रेम हो, मुझे भी पढ़ाई से लगाव नहीं था । पर मैं हर जगह से सीख रहा था । मैंने देखा कि यहां क्लास में सबसे मेधावी छात्र रेसलर है । इससे मेरा पढ़ाई-लिखाई को लेकर भ्रम टूटा । दूसरी टॉपर छात्रा स्विमर थी ।

ये भ्रम भी चूर हो गया कि पढ़ाई-लिखाई एथलीट का फोकस कम करती है । उन कक्षाओं ने एथलीट्स को सही दिशा में सोचने में मदद की । मैं खुद को बेहतर खिलाड़ी के रूप में देख पा रहा था । कहीं पढ़ा था कि शब्द या बातें मायने नहीं रखते, एक्शन मायने रखता है ।

पर मैं कहूंगा कि शब्द भी मायने रखते हैं । किताबें, कोच, साथी एथलीट और अपने दिल की बातें बहुत मायने रखती हैं । साथी खिलाड़ी हफ्ते में छह दिन पसीना बहाते, तब इन्हीं शब्दों और दिल की आवाज सुनकर मैं सातों दिन पसीना बहाता।

रविवार को भी प्रैक्टिस करता । शायद क्योंकि मेरे कानों-आंखों से गुजर रहे शब्दों को मैं बेहद गंभीरता से ले रहा था । वो वाक्य मेरे अंदर गूंजते थे । वो वाक्य जो यूएस ओलिंपिक सेंटर में हर जगह लिखे हुए थे कि ' ये कोई हर चार साल में होने वाली बात नहीं है, ये हर रोज है।'- हार्पर स्पोर्ट से प्रकाशित अभिनव बिंद्रा की आत्मकथा एशॉट एट हिस्ट्री से साभार

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