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माता-पिता की सेवा कैसे हो? किसे चुनें पत्नी करियर या माँ बाप

Parents day Essay in Hindi: माता पिता की सेवा कैसे हो? किसे चुनें, पत्नी, करियर या माँ-बाप, क्या पति है क्या पति सास-ससुर और पत्नी के बीच सेतु का कार्य करते हुए अपने कर्तव्यों को निभाता है, क्या पति पत्नी-पत्नी, माँ-बाप ये सब एक इकाई है, और क्या मनोरंजन व टेक्नोलॉजी परिवार से बड़े है।


आज हम आपके लिए ईन सभी विषयों पर लेख लेकर आए है जिनका अगर आप अपने जीवन मे उतार ले तो आपका घर परिवार एक आदर्श व सुखी परिवार बन सकता है -


माता-पिता की सेवा परम धर्म है इस विषय पर अपने विचार लिखिए, माता-पिता की सेवा पर निबंध, पत्नी , माँ - बाप और आप एक ही इकाई,माता पिता की सेवा,

पत्नी, माँ-बाप और आप एक ही इकाई

 

शादी के बाद युवाओं में अंतर्दृद्र पैदा हो जाता है कि जीवन भर साथ देने वाली और वंशबेल बढ़ाने वाली पत्नी श्रेष्ठ है या जन्म दे पालन पोषण करने वाले माँ-बाप? वास्तव में ये प्रश्न ही निरर्थक है या कह लें हमारी अज्ञानता की उपज है। शास्त्र अनुसार जब इस कथित प्रश्न की विवेचना करेंगे तो पता चलेगा कि इस प्रश्न का अस्तित्व ही नहीं है जो आज समाज में परिवारों के विभाजन का कारण बन रहा है।



संतान अपने माता-पिता के अस्तित्व का ही विस्तार है। हर इंसान की रंगों में अपने पिता का खून और माता का दूध दौड़ता है। दूसरे शब्दों में कह दें तो माता-पिता अतीत और संतान भविष्य है। दोनों में भेद नहीं, आत्माएं अलग हैं परंतु शरीर एक ही हैं। 


दूसरी ओर भगवान शिव का अर्धनारीश्वर चित्र सभी ने देखा होगा जिसमें पार्वती को शिव के आधे रूप में दिखाया गया है। इसका संदेश और हमारे शास्त्रों की मान्यता है कि पत्नी अपने पति का आधा अंग है। तभी पत्नी को हम अर्धांगिनी कहते हैं।


पत्नी उस शरीर का आधा अंग कहलाती है जो पति के माँ-बाप के शरीर का विस्तार है। इस संबंध से पुत्रवधू भी अपने सास - ससुर के शरीर का ही अंग है, वह सास ससुर की धर्म की पुत्री है। 


पुत्रवधू के लिए सास-ससुर धर्म के माता-पिता भी हैं। इसका सार हुआ कि माता-पिता, आप और पत्नी धर्म के शरीर अनुसार एक ही हैं, अलग नहीं। जब सारा परिवार एक ही शरीर है तो कौन सा अंग श्रेष्ठ और कौन सा हीन?


माता-पिता की सेवा करना क्यों जरूरी है, हमें माता-पिता की सेवा करनी चाहिए।, माता-पिता की सेवा करना किस धर्म का प्रतीक है


पति है सास-ससुर और पत्नी के बीच सेतु 


शास्त्र अनुसार पारिवारिक संबंधों का विवेचन करने पर सामने आता है कि घर में पति को पत्नी और सास ससुर के बीच संपर्क सूत्र या सेतु की भूमिका निभानी होती है। सेतु जितना सशक्त और योग्य होगा परिवार में संपर्क उतना ही मजबूत होगा। 


शिव परिवार में शामिल नंदी बैल, पार्वती का वाहन सिंह , शिव का कण्ठहार नाग, गणेश की सवारी मूषक ( चूहा ), कार्तिकेय का वाहन म्यूर ( मोर ) प्राकृतिक रूप से परस्पर घोर दुश्मन हैं, लेकिन शिव के रूप में मज़बूत सूत्र के चलते सभी एक ही छत के नीचे रहते हैं। विवाहित युवक को बेटा और पति की दोहरी भूमिका एक साथ निभानी पड़ती है। 



यह कार्य जितनी दक्षता से होगा परिवार उतना ही सुखी , समृद्ध तथा मजबूत होगा। इसके लिए माता-पिता व पत्नी में किसी की भी उपेक्षा या पक्षपात न करें। दोनों की आवश्यकताओं का ध्यान रखें। विवाद होने पर इस तरह निर्णय करें कि दोनों पक्षों को न्याय होता दिखे। झगड़े में किसी एक का पक्ष न लें, निष्पक्ष दिखें। 


त्याग की भावना से जीवन निर्वहन करें, अधिकार आपको स्वतः मिल जाएंगे। जब आप सफल संपर्क सूत्र बन जाएंगे तो आपके माता-पिता की यह सबसे बड़ी सेवा होगी। झगड़ों की वजह से परिवार को अलग नहीं होना पड़ेगा, न ही तलाक की नौबत आएगी और न ही किसी को वृद्धाश्रम जाने की। 


 परिवार

 

पत्ता तब तक सलामत है जब तक वो पेड़ से जुड़ा है, इंसान तब तक सलामत है जब तक वो परिवार से जुड़ा है, परिवार से अलग होकर आजादी तो मिल जाती है, लेकिन संस्कार चले जाते हैं।

 

किसे चुनें, करियर या माँ-बाप 


आज के श्रवण के सम्मुख बहुत सी चुनौतियां हैं। उसे करियर बनाना है, आगे बढ़ना है। नौकरी के लिए माँ-बाप को छोड़े या माता-पिता के लिए नौकरी। अकसर माँ-बाप का ही त्याग होता देखा जाता। दूर होते ही बढ़ जाती है दिल की दूरियां भी। माँ - बाप तरसते हैं बेटे-बहू और बच्चों के दर्शन को। लेकिन करियर की मजबूरी, नौकरी या बिज़नेस जो करना है। कई बार रोटी के लिए मिट्टी छोड़नी ही पड़ती है। 


प्रश्न उठता है कि इन परिस्थितियों में क्या किया जाए? प्रथम प्रयास तो यही रहे कि स्थानीय स्तर पर ही रोजगार ढूंढा जाए और बाहर जाना पड़े तो माता-पिता को भी साथ लेकर जाएं। यह संभव नहीं है तो सप्ताह में, पंद्रह दिनों बाद माता-पिता से मिलना और उनके साथ समय बिताना ज़रूर हो। फोन पर हर रोज़ माँ-बाप से बात करें। उन्हें सुकून मिलेगा। अपने किसी बच्चे को माता-पिता के पास छोड़ा जा सकता है। 


माता-पिता को भी चाहिए कि वह अपने बच्चों से मिलने के लिए समय समय पर आते-जाते रहें। वार, त्यौहार, किसी की बरसी या जन्मदिन अपने माता-पिता के साथ ही मनाएं। उन्हें दूरी का एहसास न होने दें। याद रखें जितना ज़रूरी आपका करियर है उतने ही ज़रूरी माता-पिता भी हैं। कमाई के लिए कुटुंब न त्यागें। 


पेड़ और जड़ 

 

जब तू पैदा हुआ कितना मजबूर था, ये जहां तेरी सोच से भी दूर था पांव भी तब तेरे अपने न थे, तेरी आंखों में कोई सपने न थे तुझ को आता केवल रोना ही था, काम दूध पीना और सोना ही था तू हुआ बड़ा अपने पैरों पर खड़ा, माँ-बाप को कहें तुम्हें अक्ल नहीं जरा जिसने तुझे चलना सिखलाया, तू उनको क्या सिखलाएगा पेड़ न कभी जड़ों से बड़ा हुआ है, और न ही किसी युग में हो पाएगा

 

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माता-पिता की सेवा कैसे हो ? 


  • माता-पिता का सम्मान करें। भूल से भी उनका अपमान न करें ।
  • उनकी बात को न काटें। अगर सहमत नहीं हैं तो अपना पक्ष ज़रूर रखें परंतु उन्हें नीचा दिखाने का प्रयास न करें । 
  • उनकी ज़रूरतों व आदतों का ध्यान रखे। कई बार माँ या बाप में ऐसी आदत होती है जो आपको पसंद न हो या बुरी हो। इसको लेकर झगड़ें नहीं। जीवन में एक अवस्था ऐसी आती है जब व्यक्ति चाह कर भी अपनी आदत नहीं छोड़ सकता। इसका ध्यान रखें । 
  • कितनी भी व्यस्तता हो, माता-पिता के पास समय अवश्य बिताएं । 
  • काम पर निकलते समय व घर आने पर माता-पिता से बात अवश्य करें। इससे आपको अपने अपने घर के बारे बहुत से समाचार व घर की ज़रूरतों के बारे में जानकारी मिलेगी जो गृहस्थी चलाने में आपके लिए सहायी होगी ।
  • रात को भोजन व संध्या आरती या पाठ पूरा परिवार मिल कर करें । 
  • परिवार में कोई संकट, परेशानी या झगड़ा हो तो सभी मिल बैठ कर विवाद को हल करें। सभी की बात सुनें और न्याय करें ।
  • माता-पिता अस्वस्थ हों तो उनकी दवा व इलाज का समुचित प्रबंध करें । 
  • जीवन में उनसे मार्गदर्शन या सलाह मांगते रहें। इससे उनके जीवन अनुभव का आपको लाभ ही मिलेगा । 
  • तीर्थ यात्रा या घूमने-फिरने जाएं तो माता पिता को भी साथ लेकर जाएं । 

पन्चाग्न्यो मनुष्येण परिचर्याः प्रयत्नतः । 
पिता माताग्निरात्मा च गुरुश्च भरतर्षभ ।। 

अर्थ: भरतश्रेष्ठ! पिता, माता, अग्नि, आत्मा और गुरु, मनुष्य को इन पांच अग्नियों की बड़े यत्न से सेवा करनी चाहिए ।- विदुर नीति 


  • परिवार के बड़े फैसले जैसे शादी विवाह, रिश्तेदारी में लेन देन उन्हें ही करने दें। आप अपना सुझाव दे सकते हैं । 
  • कोई काम, नया व्यवसाय, नए लोगों से लेन देन करते समय, बड़ी खरीददारी करते समय माता पिता से सलाह ज़रूर लें। 
  • माता पिता के लिए रुचि व ज़रूरत अनुसार खाने पीने, पहनने की व्यवस्था करें। 
  • जीवन में कभी ग़लती हो जाए तो माता पिता से माफी मांगने में देरी या शर्म न करें। कहते हैं कि माफी मांगने से पहले ही माता पिता अपनी संतान को माफ करने के लिए तैयार रहते हैं । 
  • माता पिता कभी रिश्तेदारी में लेन देन करते हैं तो उसमें टोका टाकी न करें। उनका निकट संबंधी, मित्र या परिचित आता है तो उनका भी पूरा सम्मान करें। 
  • जायदाद या संपत्ति के लिए माता पिता को परेशान न करें । अपने कर्म पर , अपने बाहुबल पर विश्वास रखें। माता-पिता की जायदाद अंतत आपको ही मिलनी है । 
  • कहा जाता है कि अगर व्यक्ति अपनी कमाई माँ को सुपुर्द करता है तो वह सवाई हो जाती है। माँ बाप को अपनी आय व्यय के बारे में अवश्य बताएं । वेतन मिलने पर या आय होने पर उसे माता पिता को सुपुर्द कर आशीर्वाद लें। इससे आपकी आय बढ़ेगी व घर में बरकत आएगी । 
  • माँ -बाप की सेवा के लिए हर समय तत्पर रहें । 

मुखिया मुखु सो चाहिऐ खान पान कहुँ एक ।
पालइ पोषइ सकल अंग तुलसी सहित बिबेक ।। 

अर्थ : तुलसीदास जी कहते हैं कि मुखिया मुख के समान होना चाहिए जो खाने पीने को तो अकेला है, लेकिन विवेकपूर्वक सब अंगों का पालन पोषण करता है ।


मनोरंजन व टेक्नॉलोजी परिवार से बड़े नहीं 


देखने में आ रहा है कि आधुनिक टेक्नॉलोजी परिवार में दूरियों का कारण बन रही हैं। बच्चे पढ़ाई व खेलने के हिस्से का समय कंप्यूटर, वीडियो गेम्स व मोबाईल पर खर्च कर रहे हैं। युवा ट्विटर, फेसबुक, चैटिंग पर ज़रूरत से ज्यादा समय दे रहे हैं जिससे उनके माता पिता उपेक्षित महसूस कर रहे हैं । 


माँ बाप को शिकायत होने लगी है कि मोबाईल पर घंटों बतियाने वाले उनके बच्चों के पास उनसे दो बोल बोलने तक का समय नहीं। यहां तक कि इसका असर पति व पत्नी के रिश्तों पर भी पड़ रहा है, कहने का भाव कि यह परेशानी शयनकक्ष तक पहुंच चुकी है। 


फेसबुक पर कुछ लोगों के हज़ारों मित्र हैं, परंतु पड़ौसी से वे मिलते तक नहीं। इसी तरह आज की पीढ़ी अपना अधिक समय परिवार की बजाय टी.वी. को दे रही है। मित्रो, इसमें कसूर टेक्नॉलोजी का नहीं बल्कि उसको प्रयोग करने वालों का है। कोई भी टेक्नॉलोजी जीवन को सुधारने, उसे सुगम करने के लिए होती है न कि जीवन में परेशानी पैदा करने के लिए । 


हमें नई से नई टेक्नॉलोजी का प्रयोग करना चाहिए, यह बहुत ज़रूरी है परंतु विवेक अनुसार इस बात का ध्यान रखा जाना चाहिए कि इससे हमारे पारिवारिक व सामाजिक रिश्ते कमज़ोर न होने पाएं। जीवन ऐसा जीएं कि सभी रिश्ते भी निभाए जाएं और टेक्नॉलोजी की दृष्टि से भी आप अपडेट रहें । 


बिगरी बात बने नहीं, लाख करो किन कोय । 
रहिमन फाटे दूध को, मथे न माखन होय । 

अर्थ: किसी कारणवश यदि बात बिगड़ जाती है तो फिर उसे बनाना कठिन होता है, जैसे यदि एक बार दूध फट गया तो लाख कोशिश करने पर भी उसे मथ कर मक्खन नहीं निकाला जा सकेगा।- रहीम


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