गणेश भगवान् बुद्धि ,सफलता ,समृद्धि ,एक नई शुरुआत और बाधाओं को दूरकरने वाले है। ये माता पार्वती और भोलेनाथ शिव के छोटे पुत्र है इनकी पत्नी रिद्धि- सिद्धि जो की भगवान विस्वकर्मा की बेटियाँ है। इन्हे कई और नामो से भी जाना जाता है जैसे-विनायक ,गणपति ,गजानन ,गौरीपुत्र गणपति सिद्धविनायक आदि।
भगवान श्री गणेश के बारे में अक्सर सवाल पूछे जाते है जैसे -गणेशजी प्रथम पूज्य क्यों हैं ? ,गणेशजी वाणी के देवता क्यों कहे गए ?, लिखने से पहले श्री गणेशाय नमः क्यों ?, गणपति को सिद्धिदाता क्यों कहा जाता है ? , कलाओं का देवता क्यों कहा गया है ? ,गणेशजी मंगलमूर्ति क्यों कहलाते हैं । ,गणेशजी गज , उनका वाहन चूहा क्यों ? जैसे अन्य प्रश्न जिनका जवाब आपके लिए जानना जरुरी है तो आइये जानते है-भगवान श्री गणेश से जुड़े 10 सवालों के उत्तर -
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श्री गणेश भगवान से जुड़े 10 प्रश्नों के उत्तर
1 ) गणेशजी प्रथम पूज्य क्यों हैं ?
क्योंकि , इन्हें शिव का वरदान है , जलतत्व के अधिपति और सभी देवताओं का इनमें निवास है शिव महापुराण में उल्लेख है , मां पार्वती के द्वारपाल गणेशजी का सिर शिवजी ने काट दिया था और फिर उनके शरीर पर हाथी का सिर जोड़ा ।
जब पार्वतीजी ने ' शिवजी से इस रूप में पुत्र की पूजा पर प्रश्न उठाया तब शिवजी ने वरदान दिया कि सभी देवी - देवताओं में सर्वप्रथम गणेश की पूजा होगी । गीता प्रेस के गणेश अंक में महामंडलेश्वर अनंत श्री स्वामी ने लिखा है- गणेशजी जलतत्व के अधिपति होने से प्रथम पूज्य हैं , क्योंकि सृष्टि में सबसे पहले सभी तरफ जल था ।
2 ) गणेशजी वाणी के देवता क्यों कहे गए ?
क्योंकि , वे बुद्धि को सत्य , वाक्य को शक्ति देते हैं , ऋग्वेद में वा के स्वामी कहे गए हैं बुद्धि के दो आयाम हैं । एक , यदि बुद्धि सत्य का पालन नहीं करती तो वह नुकसानदायक होती है । दो , वह सत्य पर चलती है , तो शुभ होती है । ऐसे ही हर वाक्य का आधार है सत्य ।
वाक्य के तत्व गणेश हैं और आधारभूत शक्ति सरस्वती हैं । चूंकि गणेश और सरस्वती दोनों हमेशा साथ ही हैं इसलिए गणेश वाणी के देवता कहलाते हैं । ऋग्वेद में गणेशजी को ब्रह्मणस्पति कहा गया है । ब्रह्मण शब्द का अर्थ है- वाक या वाणी । इसलिए ब्रह्मणस्पति का अर्थ हुआ , वाणी का स्वामी । गणेश बुद्धि के भी देवता हैं ।
3) लिखने से पहले श्री गणेशाय नमः क्यों ?
क्योंकि , अक्षरों को गण कहते हैं , गणेश इनके अधिष्ठाता , इनके इस्तेमाल में गलतीनहो गण शब्द व्याकरण में भी आता है । अक्षरों को गण कहा जाता है । अक्षरों के ईश यानी देवता होने के कारण भी गजानन को गणेश कहा जाता है । छन्द शास्त्र में मगण , नगण , भगण , यगण , जगण , रगण , सगण , तगण ये आठ तरह के गण होते हैं । इनके अधिष्ठात्र देवता होने के कारण इन्हें गणेश कहा जाता है ।
इसलिए लेखन , कविता , विद्या आरंभ के समय गणेशजी को सबसे पहले पूजा जाता है । बही खातों से लेकर , चिट्ठी - आमंत्रण पत्रिकाओं में सबसे पहले श्री गणेशाय नमः लिखा जाता है , ताकि लेखन में कोई गलती न हो ।
4 ) गणपति को सिद्धिदाता क्यों कहा गया ?
क्योंकि , वे श्रद्धा और विश्वास से बने हैं , इनके - बिना किसी भी काम में दक्षता संभव नहीं जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी शांतानंद सरस्वती ने गणेश अंक में लिखा है गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामचरित मानस में पार्वती जी को श्रद्धा और शंकर जी को विश्वास का रूप माना है । किसी भी कार्य की सिद्धि यानी पूर्णता और दक्षता के लिए श्रद्धा और विश्वास जरूरी है । श्रद्धा नहीं होगी तो आत्मविश्वास नहीं आएगा ।
विश्वास के अभाव में श्रद्धा टिक नहीं सकती । श्रद्धा यानी पार्वती जी और विश्वास यानी शंकर जी से गणेश बने । जिस शुभ संकल्प से काम शुरू करें उसमें श्रद्धा और विश्वास से उत्पन्न गणेशजी का होना आवश्यक है ।
5 ) कलाओं का देवता क्यों कहा गया है ?
गणेशजी और देवी सरस्वती संयुक्त रूपसे सभी कलाओं में निपुण हैं , वेदक्षता देते हैं यह एक युगपद है । गणेश व सरस्वती संयुक्त रूप से संपूर्ण कलाओं में निपुण माने गए हैं । कला के क्षेत्र में प्रथम स्मरण गणेशजी का और दूसरा स्मरण सरस्वती का किया जाता है । गणेशजी वादन के विशेषज्ञ भी माने जाते हैं ।
वे नृत्य भी करते हैं , इसलिए उनकी नृत्यगणेश की मूर्तियां भी विभिन्न स्थानों पर पाई जाती हैं । वे कवियों की बुद्धि के स्वामी भी माने गए हैं । वे विचार पैदा करते हैं और फिर उन्हें कलात्मक तरीके से व्यक्त करने का सामर्थ्य देते हैं ।
6 ) गणेशजी मंगलमूर्ति क्यों कहलाते हैं ।
क्योंकि वे विनहरते हैं , समृद्धि और शुभ - लाभ लाते हैं , वे मुहूर्त के देवता हैं गणेश मंगल के अधिष्ठाता है । उनकी पलिया सिद्धि और सिद्धि सुख समृद्धि की देवी मानी जाती है । और उनके दो बेटे शुभ और लाभ भी समृद्धि लाते हैं । गणेशजी स्वयं सभी विप्नों को हरने वाले विप्नलता है । इसलिए उनकी प्रतिमा लगाने से सुख - समृद्धि आने के साथ ही सभी प्रकार के विन अपने आप नष्ट हो जाते है ।
भारतीय परंपरा में कोई भी भागलिक कार्य मुहूर्त देखकर किया जाता है । सेकंड , मिनट और पो की तरह मत भी काल की एक इकाई है । 48 मिनट का एक मुहूर्त होता है । ज्योतिष शास्त्र में गणेशजी को नक्षत्रों का स्वामी कहा गया है । वे सभी गणों के देवता है और मांगलिक कार्य के आरंभ में गण देवता को पूजा जाता है ।
7 ) प्रतिमाओं में सूंड दाईं और बाईं ओर क्यों ?
दाईं ओर सूंड वाली प्रतिमा सिद्धि विनायक और बाईं तरफ वाली विघ्न विनाशक जिस प्रतिमा में गणेश की संड दाई ओर होती है , उसे सिद्धि विनायक का स्वरूप माना जाता है , जबकि बाई तरफ की सूंड वाले गणेश को विघ्न विनाशक कहते हैं । सिद्धि विनायक को घर के अंदर स्थापित करने की परंपरा है । विघ्न विनाशक घर के बाहर द्वार पर स्थापित करते हैं , ताकि घर के अंदर किसी तरह के विघ्न प्रवेश न करें ।
एक मान्यता है कि दाई सूंड वाली प्रतिमा पिंगला स्वर ( सूर्य ) की मानी जाती है । बाई सूंड वाली गणेश प्रतिमा इड़ा नाड़ी ( चंद्र ) का प्रतीक है । सीधी सूंड वाली प्रतिमा सुषुम्ना स्वर की मानी जाती है । संत समाज इस प्रतिमा की पूजा अधिक करता है ।
8 ) गणेशजी गज , उनका वाहन चूहा क्यों ?
क्योंकि , गज सुबुद्धि और मूषक कुबुद्धि का प्रतीक , सुबुद्धि से कुबुद्धि पर नियंत्रण करना संभव श्रीशरणानंदजी महाराज ने गणेश अंक के लेख ' गणेश तत्व का महत्व ' में लिखा है , गीता में सभी प्राणियों में समान ईश्वर का भाव समझना सुबुद्धि माना गया है । प्राणियों में हाथी सबसे बुद्धिमान है ।
इसलिए प्राणियों से इंसान की समानता को प्रकट करने के लिए गणेशजी को हाथी के मुख वाला दिखाया गया है । मूषक अच्छी - बुरी , काम की बेकार चीजों का अंतर नहीं समझता । वो कुतर्क बुद्धि का प्रतिनिधित्व करता है । गणेशजी के विशाल और चूहे के छोटे शरीर के पीछे संकेत यह है कि सुबुद्धि विशाल है तो कुबुद्धि पर नियंत्रण कर लेते हैं ।
9 ) वाहन में गणेशजी क्यों लगाए जाते हैं ?
क्योंकि , वे शुभंकर हैं , दिशाओं के देवता हैं , सभी ओर से आ रही विपत्तियों से रक्षा करते हैं गणेशजी मंगल के देवता हैं , इसलिए किसी भी प्रकार के अमंगल से बचने के लिए लोग वाहनों में गणेशजी की मूर्ति लगाते हैं । वे एक शुभंकर भी हैं ।
महर्षि पाणिनि के अनुसार दिशाओं के स्वामी यानी अष्टवसुओं के समूह को गण कहा जाता है । इनके स्वामी गणेश हैं । गणपति अथर्वशीर्ष में गणेशजी से प्रार्थना की गई है कि वे सभी दिशाओं में- उत्तर , दक्षिण , पूर्व , पश्चिम और आकाश - पाताल में हमारी रक्षा करें । वे हमें सही दिशा दें ।
10 ) घरों , मंदिरों में द्वार पर गणेश क्यों विराजित ?
क्योंकि , वे स्वस्तिक और ॐकी तरह सबसे बड़े शुभंकर हैं , सबसे सशक्त रक्षक हैं गणेशजी मांगलिक कार्य के शुभंकर भी माने जाते हैं । चूंकि ये देवताओं में प्रथम पूज्य हैं । श्रेष्ठ हैं इसलिए इन्हें सर्वत्र स्थापित किया जाता है । ठीक इसी तरह स्वस्तिक और ओम भी हमारे शुभंकर है ।
ओम जिसे अनहद नाद कहा जाता है , इससे सृष्टि की उत्पत्ति मानी गई है । इस तरह तीन तरह के शुभंकर माने गए हैं । पहला है ओम , दूसरा स्वस्तिक और तीसरा गणेश । असल में ग्रंथों में ओम और स्वस्तिक को भी गणेश के ही रूप में व्यक्त किया गया है । गणेश जी को विघ्नहर्ता कहा गया है । वे आने वाले संकटों से रक्षा करते हैं ।
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