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चैत्र नवरात्रि देवी पूजन के 9 दिन विशेष महत्व

चैत्र नवरात्रि सभी चार नवरात्रियों में सबसे बड़ी मानी गई है , जो इस वर्ष दो अप्रेल से शुरू हो रही है । इसमें व्रत - उपवास से शरीर और मन , दोनों ही डिट

चैत्र नवरात्रि : दोस्तों हमारी सनातन संस्कृति में व्रत -त्योहारों का विशेष महत्व होता है ,इनके द्वारा हम हम अपने धर्म के प्रति सजग रहते है साथ ही इनके माध्यम से हमारा शरीर स्वस्थ और निरोगी भी बना रहता है। तो आइये जानते है -चैत्र नवरात्रि देवी पूजन के 9 दिन विशेष महत्व 

चैत्र नवरात्रि देवी पूजन के 9 दिन विशेष महत्व

चैत्र नवरात्रि सभी चार नवरात्रियों में सबसे बड़ी मानी गई है, जो इस वर्ष दो अप्रेल से शुरू हो रही है । इसमें व्रत-उपवास से शरीर और मन, दोनों ही डिटॉक्स होते हैं। भारतीय पौराणिक मान्यता के अनुसार, सनातन धर्म परंपरा में मान्यताओं का व लोक परंपराओं का अलग महत्त्व है । यह भारतीय दर्शन को अलग - अलग तरह से शक्ति के रंगों में उल्लसित करती है ।

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यदि चर्चा करें तो श्रीमद् देवी भागवत महापुराण, वराह पुराण, भागवत पुराण, विष्णु पुराण आदि में सृष्टि के आरंभ तथा सृष्टि के पालन की स्थिति एवं इसके सिद्धांत सूत्र बताए गए हैं । चैत्र शुक्ल प्रतिपदा, सृष्टि के आरंभ का दिन है । साथ ही यह बसंत नवरात्र का भी प्रथम दिन है और इसे ज्योतिष दिवस के रूप भी मनाया जाता है। यह भी कहा जा सकता है कि वनस्पति तंत्र में इस दिन की बड़ी उपयोगिता है, क्योंकि सृष्टि के आरंभ में शक्ति की अवधारणा आदिशक्ति जगत जननी जगदंबा के संदर्भ को स्पष्ट करती है । 

यही कारण है कि भारतीय सनातन धर्म परंपरा में शक्ति को प्रथम स्थान दिया गया है और संपूर्ण ऊर्जा स्रोत भी इन्हें माना गया है । भारतीय ज्योतिष शास्त्र एवं पौराणिक गणना के अनुसार सृष्टि के आरंभ का पहला दिन चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को माना गया है । यह कल्प तथा वर्ष को आगे बढ़ाने वाला श्रेष्ठ दिन भी है । इसी से वर्ष का अनुक्रम तैयार होता है । यह कहा जा सकता है कि वर्ष की गणना आरंभ तथा अंतिम अवस्था में इसी दिन से मानी जाती है । 

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यह दिन बसंत के मूल केंद्र से मौसम, एवं ऋतु के संचरण का विशेष दिवस है । मानव जीवन में उल्लास के साथ नई ऊर्जा तथा नए विचार का प्रवेश करवाता है । चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से वनस्पत रामनवमी पर्यंत पर एक विशिष्ट प्रकार की ऊर्जा मन तथा बुद्धि में नए विचार के रूप में प्रवेश करते हैं ।

भारतीय ज्योतिष में 60 प्रकार के संवत्सर का उल्लेख है । इस दृष्टि से हर 60 वर्ष बाद संवत्सर का पुनरागमन होता है । इस बार नव संवत्सर का नाम नल है जो एक अलग प्रकार की सृष्टि में प्राकृतिक परिवर्तन का संकेत देगा । यह विज्ञान तथा प्रकृति के संदर्भ का संयुक्त चित्रण वर्ष में दिखाई देगा ।

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बासंती नवरात्रि नई ऊर्जा से परिपूर्ण रखती है । यह मन बुद्धि में एक विशिष्ट प्रकार का संकल्प का संचालन करती है । यह नए-नए योजना कल्प को भविष्य के विकास से जोड़ती है और ऐतिहासिक सत्यता पर भी निर्भर है । चैत्रमास में शुक्लपक्ष में प्रतिपदा से आरंभ कार्य जनहित और राष्ट्रहित का आयाम गढ़ता है । 

नवरात्रि, शक्ति की आराधना के साथ-साथ जीवन में आगे बढ़ने के संकल्प के लिए भी विख्यात हैं । शक्ति के संदर्भ का चित्रण करते हुए ऊर्जा को संयुक्त कर नए कार्य का संकल्प लेने का भी यह सही समय है । मानव जीवन में बिना प्रेरणा के सफलता की प्राप्ति संभव नहीं है । भागवत महापुराण में देवी कथाएं प्रेरित करती हैं । जीवन को नए पथ पर अग्रसर कर जन्म को सफल बनाने के लिए इस दृष्टि से भी सप्तशती के मंत्र का विधान जीवन को आगे बढ़ाने वाला होता है ।

वैज्ञानिक व आर्थिक युग में नयाचार या नवाचार तथा स्वयं को आगे बढ़ाने के साथ-साथ अन्य क्षेत्रों में यदि नए अविष्कार न करें तो जीवन अधूरा माना जाता है । सृष्टि के आरंभ के ये 9 दिन उन्मेष के मान से विशेष प्राकृतिक ऊर्जा प्रदान करते हैं जिनके माध्यम से नवोन्मेष होता है ।

वराह पुराण में देवी के नौ स्वरूपों का अलग-अलग व्याख्यान दिया गया है । शक्ति के 9 विशेष भाग देवी की नौ विशेष नामावली से संचालित होते हैं । साथ ही शक्ति संपन्न भी होते हैं । यही कारण है कि सृष्टि के आरंभ के साथ -साथ शक्ति के माध्यम से जीवन की संकल्पना हुई ।

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