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कहानी: बीच में घर एक हिन्दी कहानी

कहानी बीच में घर दोनों के बीच मे अब घर हट गया था. घर के हटते ही दोनों ने अपने - अपने कमरे बंद किए और अलग - अलग दरवाज़े से बाहर निकल गये. घर फिर से बेघर हो गया था. बीच में अब कुछ भी नहीं बचा था. 


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कहानी: बीच में घर एक हिन्दी कहानी

 

कहानी -डॉ अजय अनुरागी


एक थी स्त्री और एक था पुरुष। दोनों पति -पत्नी होने के बावजूद स्त्री-पुरुष में बदल गए थे। वे एक-दूसरे के लिए बने थे,किंतु दोनों एक-दूसरे के बन नहीं पाए थे। दोनों के बीच में था एक घर, जिससे दोनों अच्छे गोंद की तरह चिपके हुए थे। 


घर भी दोनों से चिपक गया था। स्त्री इधर जाती तो घर इधर खिंचा चला आता था। पुरुष उधर जाता तो घर उधर खिंचा चला जाता था। जब लेटते थे,तब पुरुष की बगल में स्त्री होती थी और स्त्री की बगल में घर लेटा हुआ होता था। घर कभी भी उनसे दूर नहीं हुआ करता था। 


पुरुष और स्त्री के बीच स्थिति स्पष्ट थी। पुरुष अक्सर स्त्री को साथ लेकर चलता था। स्त्री अक्सर घर को साथ लेकर चलती थी । इस तरह तीनों साथ चला करते थे । तीनों में अटूट रिश्ता बना हुआ था। 


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एक बार सब ठहर-सा गया। पुरुष से स्त्री छूटने लगी तो स्त्री से घर छूटने लगा। कहा जाता है कि पुरुष बिगड़ता है तो स्त्री के लिए बिगड़ता है और स्त्री बिगड़ती है तो घर के लिए बिगड़ती है। सत्य यह है कि जब पुरुष बिगड़ता है तो पीटता है और स्त्री बिगड़ती है तो पिटती है । 


इस स्थिति का जिम्मेदार भी घर ही होता है। पुरुष पीटता है तो घर के लिए। स्त्री पिटती है तो घर के लिए। 


कथा के पुरुष और स्त्री के बीच में घर का होना अजीब परेशानी पैदा कर रहा था। जो घर उनसे चाहकर भी छूटता न था,अब दोनों ही उस घर से निजात पाना चाहते थे। कथा का पुरुष बिगड़ने के लिए बना था और बिगाड़ने के लिए आतुर रहता था। कथा की स्त्री बनने के लिए बनी थी और बनाने के लिए आतुर रहती थी । 


आम धारणा है कि पुरुष बिगड़ने पर भी बनने वाला माना जाता है और स्त्री बनने पर भी बिगड़ने वाली मानी जाती है  पुरुष अब स्त्री को छोड़ना चाहता था,पर घर को छोड़ना नहीं चाहता था। स्त्री अब पुरुष को छोड़ना चाहती थी परंतु घर उससे छूटता न था । 


एक अजीब कशमकश थी घर को लेकर पुरुष व स्त्री के बीच। देखने वालों को लगता था कि दो पाटों के बीच में घर पिसा जा रहा है, मगर पिसे दोनों पाट जा रहे थे। घर सही सलामत था ।


इस घर के दो दरवाजे थे। पुरुष और स्त्री ,दोनों अलग -अलग दरवाजों से आते -जाते थे। घर में दो कमरे थे,दोनों अलग-अलग कमरों में सोते थे। रसोई एक थी। बाथरूम एक था। दोनों बारी बारी से इनका इस्तेमाल किया करते थे । 


स्त्री अपना खाना खुद बनाती थी और जाते समय टिफिन साथ ले जाती थी। पुरुष बाहर से टिफिन मंगवाया करता था और फिर खाया करता था, क्योंकि बनाने में उसे आलस आता था । 


शाम को स्त्री चाय बनाती थी और अपने कमरे में बैठकर पीती थी। पुरुष अपने लिए चाय बनाता और अपने कमरे में बैठकर पीया करता। 


एक महीने बाद पानी-बिजली का बिल आया। पुरुष ने टेबल पर बिजली पानी के बिल की आधी-आधी राशि बिलों के ऊपर रख दी। स्त्री ने भी पानी बिजली के बिल की आधी-आधी राशि बिलों के ऊपर रख दी । 


दो-तीन दिन राशि यूं ही रखी रही। सवाल था जमा कौन करवाएगा ? एक दिन जाते समय स्त्री पानी का बिल जमा करवाने साथ ले गई। 


पुरुष समझ गया कि उसे बिजली का बिल जमा करवाना है ,इसलिए वह बिजली का बिल जमा करवाने ले गया। जो घर दोनों को जोड़े हुआ था,वह खुद दोनों के बीच में फंस गया था। अब वह दोनों के बीच में से निकल जाना चाहता था। किंतु फंसी हुई चीज आसानी से निकलती नहीं है । 


घर दोनों के बीच में फंसा रहा और कसमसाता रहा। यह अनबोलापन बहुत दिन नहीं चल सकता था , इसलिए नहीं चला। एक दिन घर में सफाई को लेकर दोनों के बोल फूट पड़े। बोल ऐसे फूटे कि हाथापाई हुई और हाथ - पैर फूट गए । 


चीख-पुकार मचने के काफी देर बाद घर में शांति हुई और अनबोलापन फिर पसर गया। आज स्त्री ने खाना नहीं बनाया। पुरुष ने भी टिफिन लौटा दिया। चुपचाप दोनों अपने अपने कमरे में पड़े रहे । घर सांय-सांय करता रहा 


आज की घटना से तय हो गया कि .. अब घर को अकेले ही रहना होगा। स्त्री इस घर में एक पल भी नहीं रहना चाहती थी। पुरुष भी ऐसे घर में एक पल नहीं रुकना चाहता था । दोनों घर को छोड़ देना चाहते थे । 


दोनों के बीच में से अब घर हट गया था । घर के हटते ही दोनों ने अपने-अपने कमरे बंद किए और अलग-अलग दरवाजों से बाहर निकल गए। घर फिर से बेघर हो गया था। बीच में अब कुछ भी नहीं बचा था।


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