मदद के मायने: शार्ट स्टोरी | Madad ke Mayne Moral Story in Hindi
Short Moral Story in Hindi: जो सक्षम होते हैं, वे मदद कर सकते हैं। लेकिन सीमित सामर्थ्य वाले जब हाथ बढ़ाते हैं, तो मदद असली मायने में सामने आती है ...
मदद के मायने: शार्ट स्टोरी | Madad ke Mayne Moral Story in Hindi
Short Story: सालों से घर के पास ही खाली प्लॉट बारिश में भर जाता था । मच्छर, कीड़े मकोड़े और यहां तक कि सांप भी पानी में तैरते नजर आते थे । एक दिन प्लॉट के मालिक को भूमि पूजन करते हुए देख राहत महसूस हुई ! पड़ोसी तो होंगे ही साथ ही मच्छर, गंदगी से भी बचाव ! पर वहां लगा मजदूरों का जमघट वह भी कोरोना काल में ।
खैर, मकान बनेगा तो मजदूर तो होंगे ही, झोपड़ी भी होगी । इस सच से समझौता कर लिया ! धीरे-धीरे मजदूरों को समझाने की कोशिश की मास्क लगाओ, ध्यान रखो लेकिन उनके कान पर तो जूं भी नहीं रेंगी ! हरदम यह कहकर बात टाल देते हमें कोरोना- वोरोना नहीं हो सकता। यही सोच पर चुप रह गए कि हम ही अपना ख्याल रख लें !
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पर बाहर से हर रात बच्चे की रोने की आवाज आती तो मन द्रवित हो जाता। इतनी सर्दी में कैसे यह मजदूर छोटी-सी झोपड़ी में अपने आप को सुरक्षित रखते हैं । उस दिन रहा नहीं गया, तो पतिदेव ने एक रजाई और एक गद्दा निकाला और बाहर उन्हें देने के लिए कहा ।
मैंने बाहर जाकर उन मजदूर दंपति से पूछा 'रजाई लोगे?' मजदूर मां ने झट से ले ली। पता चला उसका डेढ़ महीने का बच्चा है, उसके साथ दिन भर मजदूरी करती है ! एहसास हुआ कि कितनी कठिन जिंदगी है ! मैं भी मजदूर दंपति से बातचीत करने लगी । वह मास्क लगाने लगे थे !
एक दिन गैस पाइपलाइन वालों ने पाइपलाइन डालने के लिए खुदाई की तो उनकी झोपड़ी आधी तोड़ दी ! सुबह से शाम तक कॉन्क्रीट के टीले पर मासूम से बच्चे को लेकर धूप सेकती रही लेकिन उस मजदूर मां के चेहरे पर कहीं शिकन नहीं ! मुझसे रहा नहीं गया, शाम होते-होते मैंने उस मजदूर दंपति से कहा, ' मैं खाना बना देती हूं पर बिना लहसुन प्याज का होगा, तुम लोग खा लोगे ना ? '
उस मजदूर ने बड़ी दयनीयता से जवाब दिया ‘आप हमारे लिए क्यों परेशान होते हो! अभी थोड़ा ही काम बचा है फिर हम अपनी झोपड़ी बनाकर खाना बना लेंगे ! हमारे लिए आप खाना बनाओगे ?' उसे बड़ा आश्चर्य हुआ पर मेरे जोर देने पर उन्होंने खाने के लिए हां कर दी ।
उन्हें भरपेट खाना खिलाकर बहुत ही ख़ुशी मिली। रोज उनके चेहरे पर मुस्कराहट देखकर मैंने भी उनसे सीखा कि मुश्किलें आती हैं, चली जाती हैं पर हमें हिम्मत से हंसते हुए ही उनका सामना करना चाहिए ।
एक दिन वो मजदूरन बोली, 'आंटी, मेरे लिए लड्डू बना दोगे क्या ! मेरी सास ने बना कर दिए थे, वो ख़त्म हो गए ! सामान मेरे पति ले आए हैं । पर मुझे बनाना नहीं आता।'
मैं सोच में पड़ गई क्योंकि लड्डू तो ज्यादा मात्रा में बनाने थे और मुझे टेनिस एल्बो और फ्रोजैन शोल्डर की प्रॉब्लम है जिसकी वजह मैं अपने आप को कुछ असमर्थ महसूस कर रही थी ।
मैं सोच ही रही थी इतने में मेरी कामवाली बाई ने कहा, 'मैं आटा कल घर से सेक लाऊंगी । उसमें ही हाथ ज्यादा दुखता है बाकी आप मेवों को मिक्सी में एकसार कर देना। लड्डू मैं बांध दूंगी ! ' सच उसकी भलाई की पहल चौंकाने वाली थी ।
मासूम और उसकी मां की तकलीफ़ को विपन्न घरेलू कामगार ने भी समझा। स्वादिष्ट लड्डू भी बने और मजदूरन ने उसे सहर्ष स्वीकारा ! निस्वार्थ भाव से मदद कर संतुष्टि तो सभी को होती है ।
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