Type Here to Get Search Results !

बिना दवा डायबिटीज का प्रभावशाली उपचार कैसे करें

बिना दवा मधुमेह ( डायबिटीज ) का प्रभावशाली उपचार कैसे करें , Cause of Diabetes, दुष्परिणाम, उपचार ओर योगासन बतलाये गए है जो आपके मधुमेह के रोकथाम में मील का पत्थर साबित होगी - सबसे पहले डायबिटीज के कारणों को जानना होगा 

मधुमेह का कारण,मधुमेह के दुष्परिणाम, मधुमेह रोगी का भोजन कैसा हो ? ,पेन्क्रियाज को सक्रिय बनाने का सरल उपाय,

मधुमेह का कारण What is the Cause of Diabetes?

शरीर को स्वस्थ रखने एवं समुचित विकास हेतु भोजन में अन्य तत्त्वों के साथ संतुलित प्रोटीन , वसा तथा कार्बोहाइड्रेट आदि तत्त्वों की विशेष आवश्यकता होती है । जब इनमें से कोई भी या सारे तत्त्व भोजन में शरीर को संतुलित मात्रा में नहीं मिलते अथवा शरीर उन्हें पाचन के पश्चात् पूर्ण रूप से ग्रहण नहीं कर पाता तो शरीर में विविध रोग होने लगते हैं । 

शरीर में पेन्क्रियाज एक दोहरी ग्रन्थि होती है जो पाचन हेतु पाचक रस और इंसुलिन नामक हारमोन्स को पैदा करती है । इंसुलिन भोजन में से कार्बोहाइड्रेटस् का पाचन कर उसको ग्लूकोज में बदलती है । कोशिकाएँ ग्लूकोज के रूप में ही पोष्टिक तत्त्वों को ग्रहण कर सकती है , अन्य रूप में उनको शोषित नहीं कर सकती । इंसुलिन रक्त में ग्लूकोज की मात्रा का भी नियंत्रण करती है ।

ग्लूकोज रक्त द्वारा सारे शरीर में जाता है तथा कोशिकाएँ उसको ग्रहण कर लेती है , जिससे उनको ताकत मिलती है । ग्लूकोज का कुछ भाग यकृत ( लीवर ) , ग्लाइकोजिन में बदलकर अपने पास संचय कर लेता है , ताकि आवश्यकता पड़ने पर पुन : ग्लुकोज में बदलकर कोशिकाओं के लिये उपयोगी बना सके ।

इंसुलिन की कमी के कारण पाचन क्रिया के पश्चात् आवश्यक मात्रा में ग्लूकोज नहीं बनता और कार्बोहाइड्रेट्स तत्त्व शर्करा के रूप में रह जाते हैं , जिसके परिणाम स्वरूप जिन - जिन कोशिकाओं को ग्लूकोज नहीं मिलता वे निष्क्रिय होने लगती हैं । उनकी कार्य क्षमता कम होने लगती है एवं मधुमेह का रोग हो जाता है । चन्द अपवादों को छोड़कर अधिकांश मधुमेह के रोगियों का पेन्क्रियाज पूर्ण रूप से खराब नहीं होता , परन्तु उसके द्वारा निर्मित इंसुलिन का सही उपयोग न होने से मधुमेह के रोग की स्थिति बनती है । 

मानसिक तनाव , शारीरिक श्रम का अभाव , गलत खान - पान अथवा पाचन के नियमों का पालन न करना और अप्राकृतिक जीवन शैली इस रोग के मुख्य कारण होते हैं । अतः इन कारणों को दूर कर मधुमेह से मुक्ति पायी जा सकती है । कभी - कभी यह रोग वंशानुगत भी होता है । 

प्राणायाम क्या है ? प्राणायाम के प्रकार,लाभ,सावधानियां करने का सही समय

मधुमेह के दुष्परिणाम What is the Side Effects of Diabetes?

शरीर में लगातार अधिक शर्करा रहने से अनेक जैविक क्रियाएँ हो सकती है । अधिक मीठे रक्त से रक्त वाहिनियाँ की दीवारों मोटी हो जाती है और उसका लचीलापन कम होने लगता है । रक्त का प्रवाह बाधित हो सकता है । जब यह स्थिति हृदय में होती है तो हृदयघात और मस्तिष्क में होने पर पक्षाघात हो सकता है । पिण्डलियों में होने पर वहाँ भयंकर दर्द तथा प्रजनन अंगों पर होने से प्रजनन क्षमता प्रभावित हो सकती हैं । 

रक्त वाहिनियों के बाधित प्रवाह से पैरों में संवेदनाओं में कमी आ सकती है तथा जाने अनजाने मामूली चोटे भी घाव जल्दी न भरने के कारण गम्भीर रूप धारण कर सकती है । शरीर के सभी अंगों को क्षमता से अधिक कार्य करना पड़ सकता है , जिससे पैरों में कंपन , स्वभाव में चिड़चिड़ापन , तनाव आदि के लक्षण प्रकट हो सकते हैं । संक्षेप में प्रभावित कोशिकाओं से संबंधित रोग के लक्षण प्रकट होने लगते हैं ।

स्वास्थ्य हेतु स्वयं की क्षमताओं का सदुपयोग आवश्यक 

स्वस्थ रहने के लिये उन सभी कारणों को जानना और समझना आवश्यक होता है जो प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से हमारा स्वास्थ्य बिगाड़ने में सहायक बनते हैं । हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता को घटाते हैं । शरीर , मन और आत्मा के विकारों को बढ़ाते हैं । 

उनका आपसी सन्तुलन बिगाड़ते हैं । स्वस्थ रहना भी एक कला है , एक विज्ञान है , एक दृष्टि , सोच अथवा चिन्तन का प्रतिफल है , जिसके लिये विवेकपूर्ण उचित ज्ञान , साधना और सम्यक् पुरुषार्थ अनिवार्य होता है । प्राप्त क्षमताओं का अधिकाधिक प्राथमिकता के आधार पर उपयोग कर तथा मधुमेह को प्रभावित करने वाले विकारों से अपने आपको बचाकर ही हम मधुमेह से बच सकते हैं ।

Can diabetes be alone in the Body?

मानव शरीर दुनिया की सर्वश्रेष्ठ मशीनरी है जो पाँचों इन्द्रियों और मन जैसी अमूल्य सम्पदाओं से न केवल परिपूर्ण ही होता है अपितु , उसके सारे अंग उपांग पूर्ण तालमेल व आपसी सहयोग व समन्वय से अपना - अपना कार्य करते हैं । यदि शरीर के किसी भी भाग में कोई तीक्ष्ण कांटा , सुई अथवा पिन चुभ जाए तो उस समय न तो आँख को अच्छे से अच्छा दृश्य देखना अच्छा लगता है और न कानों को मन पसन्द गीत सुनना । 

यहाँ तक दुनिया भर में चक्कर लगाने वाला हमारा चंचल मन क्षण मात्र के लिए अपना ध्यान वहां केन्द्रित कर देता है । जिस शरीर में इतना तालमेल और अनुशासन हो , क्या उस शरीर में कोई अकेला मधुमेह जैसा रोग उत्पन्न हो सकता है ? 

यह भी पढ़िए - वॉकिंग | रोजाना 10 हजार कदम हमें क्यों चलना चाहिए ? | वर्कआउट 7 बड़े फायदे

मानव शरीर अपने आप में परिपूर्ण होता है । इसमें अपने आपको स्वस्थ रखने की पूर्ण क्षमता होती शरीर में मधुमेह के साथ सैकड़ों अप्रत्यक्ष सहायक रोग भी होते हैं । शरीर में मधुमेह का रोग अकेला नहीं हो सकता , परन्तु शरीर में उस स्थिति में जो रोग होते हैं उसका मधुमेह मुख्य रोग होता है ।

जनतंत्र में सहयोगियों को अलग किये बिना जिस प्रकार नेता को नहीं हटाया जा सकता , सेना को जीते बिना सेनापति को कैद नहीं किया जा सकता , ठीक उसी प्रकार सहयोगी रोगों की उपेक्षा कर मधुमेह से स्थायी रूप से छुटकारा नहीं पाया जा सकता । 

अत : उपचार करते समय न केवल पूर्ण शरीर अपितु मन एवं आत्मा को एक इकाई मानकर उपचार किया जावे तथा अप्रत्यक्ष सहयोगी रोग जिनके लक्षण स्पष्ट रूप से भले ही प्रकट नहीं हुए हों उनका भी उपचार कर मधुमेह का चन्द दिनों में ही स्थायी प्रभावशाली उपचार संभव हो सकता हैं । शरीर मात्र शरीर ही नहीं है इसके साथ आत्मा भी है । भाव , मन एव वाणी भी हमारे स्वास्थ्य को प्रभावित करते हैं । 

आहार , शरीर , इन्द्रिय , श्वासोच्छवास , भाषा एवं मन के रूप में जो छ : पर्याप्तियाँ ( ऊर्जा के मूल स्रोत ) हमें प्राप्त होते हैं , उनका संयम रखने से सभी असाध्य रोग ठीक हो जाते हैं । शरीर , मन और आत्मा विकारों से मुक्त होने लगती है , तब मधुमेह के बने रहने का तो प्रश्न ही नहीं उठता । क्या शरीर में इंसुलिन की आवश्यकता को नियन्त्रित किया जा सकता है ? 

चीनी पंच तत्त्व के सिद्धान्तानुसार , तिल्ली - आमाशय परिवार का सदस्य होता है । अर्थात् पेंक्रियाज की गड़बड़ी का तिल्ली पर सीधा प्रभाव पड़ता हैं । अतः यदि तिल्ली बियोल मेरेडियन में किसी विधि द्वारा प्राण ऊर्जा का प्रवाह बढ़ा दिया जाये तो पेन्क्रियाज की कार्य क्षमता ठीक हो सकती है । 

तिल्ली का आमाशय पूरक अंग होता है । अतः पेन्क्रियाज के बराबर कार्य न करने से तिल्ली - आमाशय का संतुलन बिगड़ जाता है । पाचन तंत्र बराबर कार्य नहीं करता । अतः पाचन के नियमों का दृढ़ता से पालन कर पाचन तंत्र की कार्य प्रणाली सुधारी जा सकती है जिससे पाचन हेतु अधिक इंसुलिन की आवश्यकता नहीं पड़ती।

हृदय , तिल्ली का मातृ अंग होता है और फेंफड़ा पुत्र अंग । तिल्ली , यकृत से नियन्त्रित होता है और गुर्दों को नियन्त्रित करता है । अतः पेन्क्रियाज के बराबर कार्य न करने से प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से हृदय , फॅफड़े , गुर्दे , यकृत आदि भी प्रभावित हो सकते हैं , जिसका प्रभाव उनके पूरक अंगों छोटी आंत , बड़ी आंत , मूत्राश और पित्ताशय पर भी पड़ सकता है । 

जो अंग जितना - जितना असक्रिय होता है , उसी के अनुपात में उससे संबंधित रोगों के लक्षण प्रकट होने लगते हैं । इसी कारण सभी मधुमेह के रोगियों के बाह्य लक्षण एक जैसे नहीं होते । किसी को भूख और प्यास अधिक लगती है , तो किसी को अधिक पेशाब । किसी की त्वचा खुश्क एवं खुरदरी हो जाती है या चर्म रोग होते हैं तो किसी के बाल झड़ने लगते हैं । किसी में यकृत , गुर्दा , हृदय या फेंफड़ों संबंधित रोगों के लक्षण प्रकट होने लगते हैं । 

यदि लक्षणों के आधार पर संबंधित अंगों में प्राण ऊर्जा के प्रवाह को बियोल ऊर्जा संतुलन पद्धति द्वारा संतुलित कर दिया जाये तो असाध्य समझा जाने वाला मधुमेह चंद दिनों में ही बिना दवा ठीक किया जा सकता है ।

यह भी पढ़िए एक्सरसाइज़ करते हुए म्यूजिक सुनने से दूर होती है मानसिक थकान 

Why does the Pancreas get Diseased?

मधुमेह का रोग पेन्क्रियाज ग्रन्थि द्वारा आवश्यक इंसुलिन के स्राव न बनाने के कारण होता है । पिछले 15-20 सालों के चिकित्सा अनुभवों के आधार पर मेरी यह स्पष्ट धारणा है कि 50 प्रतिशत के लगभग मधुमेह के रोगियों का कारण पेन्क्रियाज द्वारा इंसुलिन का कम निर्माण होना नहीं होता , परन्तु उसका सही उपयोग नहीं होना होता है । पेन्क्रियाज आवश्यक इंसुलिन क्यों नहीं बनाता ? 

क्या वास्तव में पेन्क्रियाज इंसुलिन कम बनाता है ? क्या जो इंसुलिन बनता है उसका हम पूर्ण सदुपयोग करते हैं ? कहीं तनाव अथवा अप्राकृतिक जीवन शैली तथा पाचन के नियमों का पालन न करने से हमें आवश्यकता से अधिक मात्रा में इंसुलिन की आवश्यकता तो नहीं होती है ? 

पेन्क्रियाज रोग ग्रस्त क्यों होता है ? उसके रोग ग्रस्त होने से कौन - कौन से अंग अथवा अवयव प्रभावित होते हैं ? पेन्क्रियाज के कार्य को सहयोग देने वाले शरीर में कौन - कौनसे अंग , उपांग , ग्रन्थियाँ और तंत्र होते हैं ? पेन्क्रियाज की क्षमता को कैसे बढ़ाया जा सकता है ? 

यदि इन सहयोगी अंगों को ठीक कर दिया जाये तथा पेन्क्रियाज की कार्य क्षमता बढ़ा दी जाये , पाचन में इंसुलिन का जो अनावश्यक दुरुपयोग होता है , उसको नियंत्रित कर दिया जाय तथा जो कार्य बिना इंसुलिन अन्य अवयवों द्वारा किये जा सकते हैं , कराये जायें तो मधुमेह का उपचार बहुत ही सरल , प्रभावशाली एवं स्थायी हो सकता है । 

शरीर में अधिकांश कार्यों की वैकल्पिक व्यवस्था होती है शरीर में कोई अंग , उपांग , अवयव , पूर्ण रूप से अकेला कार्य नहीं करता । उसके कार्य में प्रत्यक्ष परोक्ष रूप से कोई न कोई शरीर का अन्य अवयव अवश्य सहयोग करता है । उसके आंशिक विकल्प के रूप में कार्य करता है । शरीर में पेन्क्रियाज एक अन्तः श्रावी ग्रन्थि है । सारी ग्रन्थियाँ सामूहिक जिम्मेदारी , तालमेल और आपसी समन्वय से कार्य करती है । अत : पेन्क्रियाज की गड़बड़ी होने पर अन्य ग्रन्थियों को अधिक कार्य करना पड़ता है । 

अतः यदि एक्यूप्रेशर अथवा अन्य किसी विधि द्वारा पेन्क्रियाज के साथ - साथ अन्य ग्रन्थियों को सक्रिय कर दिया जाये तो मधुमेह से मुक्ति मिल सकती है । कहने का आशय यह है कि शरीर में रोग के अनुकूल दवा बनाने की क्षमता होती है और यदि उन क्षमताओं को बिना किसी बाह्य दवा और आलम्बन विकसित कर दिया जाता है तो मधुमेह का उपचार अधिक प्रभावशाली , स्थायी एवं भविष्य में पड़ने वाले दुष्प्रभावों से रहित होता है । मधुमेह की स्वावलम्बी चिकित्सा क्यों प्रभावशाली 

प्राय : प्रत्येक चिकित्सा पद्धतियों में मधुमेह का उपचार किया जाता है , परन्तु रोग के मूल कारण एवं सहयोगी रोगों की उपेक्षा होने से रोगी दवा की दासताओं से प्रायः मुक्त नहीं होता । चिकित्सा पद्धति की सबसे महत्त्वपूर्ण आवश्यकता होती है , उसकी प्रभावशालीता , तुरन्त राहत पहुँचाने की क्षमता तथा दुष्प्रभावों से रहित स्थायी रोग मुक्ति । 

इन मापदण्डों को जो चिकित्सा पद्धतियाँ पूर्ण नहीं करतीं , वे रोग से राहत भले ही दिला दें , स्थायी उपचार नहीं कर सकती । स्वावलम्बी चिकित्सा में मधुमेह के साथ - साथ उनके अन्य सहायक रोगों को बिना दवा , बिना डॉक्टर , स्वयं द्वारा स्थायी उपचार कैसे किया जा सकता है ? उनमें से सरलतम चन्द पद्धतियों का तर्कसंगत विवेचन यहां प्रस्तुत किया जा रहा है । 

यह भी पढ़िए- पाचन तंत्र की तकलीफों से बचाए ,बेल लाभकारी औषधीय गुण

उपचार पूर्णतया स्वावलम्बी , अहिंसात्मक , प्रभावशाली , सहज , सरल , सस्ता , प्रकृति के सनातन सिद्धान्तों पर आधारित होता है । जिसका आधार है रोग के संबंध में स्वयं का स्वाध्याय , रोग के कारणों एवं उपचार के बारे में स्वयं की समीक्षा , चिन्तन , मनन एवं समझपूर्वक सम्यक् आचरण । ताकि उपचार अंधेरे में न हो । 

प्रत्येक व्यक्ति स्वास्थ्य के अलग - अलग स्तर पर जीता है और उनके स्वास्थ्य के अपने - अपने अलग - अलग मापदण्ड होते हैं । अलग - अलग आवश्यकताएँ , प्राथमिकताएँ एवं सोच होता है । अतः स्वास्थ्य हेतु सभी के लिए एक जैसा मापदण्ड , परामर्श , निर्देश और आचरण न तो उचित ही होता है और न सम्भव । 

रोग में रोगी की भूमिका एवं सकारात्मक सोच आवश्यक होती है । स्वावलम्बी चिकित्सा का आधार होता है अहिंसा । दुःख देने से दुःख ही मिलता है । प्रकृति के न्याय में देर हो सकती है , अंधेर नहीं । चिकित्सा में प्रत्यक्ष परोक्ष हिंसा कर्जा चुकाने हेतु ऊँचे ब्याज पर कर्जा लेने के समान नासमझी है । चिकित्सा पद्धतियां जितनी अधिक अहिंसा के सिद्धान्तों पर आधारित होती है , वे शरीर के साथ - साथ मन और आत्मा के विकारों को भी दूर करने में सक्षम होने के कारण शीघ्र , स्थायी एवं अत्यधिक प्रभावशाली होती है । 

उपचार में रोगी की सजगता महत्त्वपूर्ण-

आधुनिक चिकित्सा में तो मधुमेह के मूल कारण तनाव , पाचन के नियमों का पालन , शरीर में व्याप्त परोक्ष रोगों की उपेक्षा तथा इंसुलिन के कार्य में आंशिक सहयोग , जिन अंतःस्रावी ग्रन्थियों , अंगों , अवयवों द्वारा किया जा सकता है , उस तरह अपेक्षित ध्यान नहीं दिया जाता । येन केन प्रकारेण इंसुलिन की कमी की पूर्ति कर रोग को नियंत्रित रखने का प्रयास होता है । कारण दूर किये बिना स्थायी उपचार न कर पाने के कारण आज मधुमेह को असाध्य बताया जा रहा है , जो सही नहीं है । 

शरीर , मन और आत्मा के बारे में अधिकांश व्यक्तियों को जानने , सोचने समझने की जिज्ञासा ही नहीं होती । स्वास्थ्य के बारे में हमारी सोच पूर्णतया सही नहीं होती । क्या गलत ? क्या सही ? क्या उचित ? क्या अनुचित ? क्या प्राथमिक , अति आवश्यक ? 

क्या साधारण , क्या करणीय ? कया अकरणीय ? प्रत्येक सत्य का कारण एवं मूल क्या ? क्यों ? कब ? कितना जानने का प्रयास करें , समस्या अथवा रोग का पता लग जायेगा । शरीर क्या स्वीकार करता है और क्या नहीं समझ में आ जायेगा ? रोगी में चिकित्सक से उपचार की प्रासंगिकता के बारे में सम्यक् चिन्तन न होने से अपनी शंकाओं का समाधान करने का साहस नहीं होता । मात्र विज्ञापन के आधार पर उपचार में अन्धानुकरण हो रहा है । 

इंसुलिन सेवन से पड़ने वाले दुष्प्रभावों की उपेक्षा हो रही है । इंसुलिन का सेवन , कब , क्यों , कैसे , कितना लेना उसके निर्धारण का मापदण्ड क्या ? रोगी को पता नहीं होता । इतिहास साक्षी है कि अनाथि मुनि ने शुभ संकल्प से अपने असाध्य रोग से मुक्ति पायी । नमि राजर्षि ने सम्यक् चिन्तन से दाह ज्वर से तुरन्त छुटकारा पाया गजसुकुमाल मुनि सकारात्मक सोच से मरणान्तिक कष्ट समभाव पूर्वक सहन कर सके । 

सनत् चक्रवर्ती ने अपनी रोग की सहनशक्ति बढ़ा ली । कहने का तात्पर्य यही है कि मधुमेह के रोगी का सोच सकारात्मक एवं चिन्तन सम्यक् होना चाहिए । सकारात्मक सोच , सम्यक् चिन्तन , समभाव एवं स्वाध्याय करने वालों को मधुमेह परेशान नहीं कर सकता । व्यक्ति उपचार के प्रति जितना सजग होगा , आशंकाओं से परे होगा , अपनी क्षमताओं का सही मूल्याकंन करने वाला होगा , उतना जल्दी वह उस रोग से मुक्त हो सकेगा । 

यह भी पढ़िए-  अम्लपित्त ( Acidity ) के रोग के रोकथाम के कुछ घरेलू प्रयोग

पाचन तंत्र के नियमों का पालन आवश्यक 

शरीर में पेन्क्रियाज एवं आमाशय पति - पत्नि के समान कार्य करते हैं । कभी - कभी पाचन तंत्र के बराबर  कार्य न करने से भी अधिक इंसुलिन की आवश्यकता हो सकती है । इंसुलिन का कार्य भोजन के पाचन में सहयोग करना होता है । अतः मधुमेह के रोगी यदि पाचन के नियमों को दृढ़ता से पालन करें एवं उपलब्ध सीमित इंसुलिन की मात्रा का सही उपयोग करें तो इंसुलिन की कमी से होने वाले दुष्प्रभावों से सहज बचा जा सकता है । 

 What is the Diet of a Diabetic Patient?

भोजन मौसम एवं स्वयं की प्रकृति के अनुकूल पूर्ण सात्विक , पोष्ठिक एवं सुपाच्य होना चाहिये । जिस भोजन को बनाने के लिये उपयोग में आने वाले पदार्थों के निर्माण व तैयार खाद्य पदार्थों की सुरक्षा हेतु स्वास्थ्य को हानि पहुँचाने वाले रसायनिक पदार्थों का उपयोग होता हो , जैसे सफेद चीनी , सफेद गुड़ , वनस्पति घी , रिफाइन्ड तेल आदि से निर्मित भोजन तथा बाजार में बिकने वाले अधिकांश तैयार खाद्य पदार्थ जैसे अचार , चटनियां , मुरब्बे , सॉस आदि अन्य खाद्य पदार्थों का उपयोग बिल्कुल नहीं करना चाहिये । 

बाजार में उपलब्ध भोजन तथा कारखानों में निर्मित खाद्य पदार्थों में , घर में बने भोजन जैसी पवित्रता , स्वच्छता , विवेक एवं उच्च भावों का अभाव होने से , उस भोजन से मात्र पेट भरा जा सकता है , परन्तु शरीर के लिये आवश्यक अवयवों की पूर्ति नहीं होती । 

अपितु अपाच्य पदार्थों के विसर्जन हेतु शरीर को अधिक ऊर्जा खर्च करनी पड़ती है । भोजन में मीठे पदार्थों का सेवन जितना कम कर सकें , करना चाहिये ताकि उनके पाचन हेतु इंसुलिन की कम आवश्यकता पड़े । भोजन में कड़वे स्वाद वाले पदार्थों का सेवन अवश्य करना चाहिये । कड़वे स्वाद मधुर स्वाद के दुष्परिणामों को दूर करते हैं तथा रक्त शुद्धि में सहयोग करते हैं । स्वादों का संतुलन और संयम मधुमेह का प्रभावशाली उपचार होता है । 

भोजन के तुरन्त बाद पानी नहीं पीये

खाना खाते समय भोजन को पचाने हेतु आमाशय में लीवर , पित्ताशय , पेन्क्रियाज आदि के स्राव और अम्ल मिलते हैं , परन्तु पानी पीने से वे पाचक रस पतले हो जाते हैं जिसके कारण भोजन का पूर्ण पाचन नहीं हो पाता । अपाच्य भोजन आमाशय और आंतों में ही पड़ा रहता है जिससे मंदाग्नि , कब्जी , गैस आदि विभिन्न पाचन संबंधी रोगों के होने की संभावना रहती है एवं पाचन हेतु अधिक इंसुलिन की आवश्यकता होती है । 

भोजन के पश्चात जितनी ज्यादा देर से पानी पीयेंगे उतना पाचन अच्छा होता है । भोजन के लगभग दो घंटे पश्चात जितनी आवश्यकता हो , पानी पीना चाहिये । जिससे शरीर में पानी की कमी न हों । 

भोजन करते समय ध्यान रखने योग्य बातें -

भोजन को तनाव रहित वातावरण में धीरे - धीरे चबा - चबा कर खाना चाहिये । जिससे भोजन में थूक और लार मिलने से उसका आंशिक पाचन मुंह में ही सम्पन्न हो सके , आमाशय को पाचन हेतु अधिक ऊर्जा एवं इंसुलिन की आवश्यकता नहीं हों । भूख से कुछ कम , भगवान के प्रसाद की भांति प्रसन्न चित्त भोजन करना मधुमेह की सर्वोत्तम औषधि होती है । 

भोजन चलते - फिरते अथवा खड़े - खड़े नहीं करना चाहिये । सूर्य स्वर में भोजन करने से पाचन अच्छा होता है । भोजन करते समय मौन एवं एकाग्रता आवश्यक होती है । बोलते रहने से मुंह में लार कम बनती है । फलतः पाचन हेतु अधिक इंसुलिन की आवश्यकता पड़ती है । 

टी.वी. देखते - देखते ,अखबार पढ़ते - पढ़ते , भोजन नहीं करना चाहिये । मधुमेह के रोगियों को भोजन के पश्चात् जितना ज्यादा वज्रासन में बैठ सकें , बैठने का अभ्यास करना चाहिये । वज्रासन से रोग प्रतिकारात्मक क्षमता बढ़ती है । शरीर और मन में विकार उत्पन्न नहीं होते । भोजन के पश्चात् कुछ समय तक इस आसन में बैठने से पाचन अच्छा होता है । पाचन हेतु इंसुलिन की मात्रा नियन्त्रित होती है । 

बार - बार भोजन करना हानिकारक

बार - बार मुंह में कुछ डालकर पाचन तंत्र को हर समय क्रियाशील नहीं रखना चाहिये । जो कुछ खाना हो एक या दो बार ही खाया जाये , ताकि हमारे आमाशय को बाकी समय पूर्ण आराम मिल जाये । जब हम कोई पदार्थ मुँह में डालते हैं , चाहे उसकी मात्रा बहुत कम ही क्यों न हों , सारे पाचन तंत्र को सजग और सक्रिय हों , कार्य करना पड़ता है । जितनी अधिक बार मुँह में कुछ भी डाला जायेगा उतना अधिक पाचन तंत्र को अधिक कार्य करना पड़ेगा । जितनी कम बार खाया जायेगा उतनी भूख अच्छी लगेगी और पाचन अच्छा होगा । 

हमारे यहां एक लोकोक्ति प्रसिद्ध है- " एक समय खाने वाला योगी , दो समय खाने वाला भोगी , तीन समय खाने वाला रोगी । " मधुमेह के रोगी को चिकित्सक थोड़ा - थोड़ा , बार - बार खाने का परामर्श देते हैं जो तर्क संगत नहीं है । एक समय खाने वालों के मधुमेह प्रायः नहीं होता और जिन्हें है उनके नियन्त्रित रहता है । 

सप्ताह में कम से कम एक बार उपवास अथवा आयंबिल तप ( जिसमें दूध , दही , घी , तेल , नमक एवं मीठे पदार्थो का निषेध होता है ) करने से पाचन तंत्र ठीक रहता है । पाचन संबंधी रोगों के समय नियमित उपवास , आयंबिल अथवा एकासन करने वाला जल्दी स्वस्थ होता है । रोगावस्था में आहार न करने से रोगी नहीं रोग भूखों मरता है । बीमारी में तो किया गया आहार विशेष रूप से रोगी का नहीं , रोग का पोषण करता है । 

सही समय पर भोजन करना आवश्यक

भोजन क्यों , कैसा , कहां , कितना करना चाहिए , उसके साथ कब करना चाहिए ? भी पाचन की दृष्टि से आवश्यक होता है । राम नाम सत्य है , परन्तु शुभ प्रसंगों पर भी राम नाम सत्य है कहना अप्रासंगिक होता है । सही समय पर किया गया भोजन ही अधिक लाभकारी होता है । 

मधुमेह के रोगी को अपनी दिनचर्या का निर्धारण इस प्रकार करना चाहिये जिससे शरीर के अंगों की क्षमताओं का अधिकतम उपयोग हो अर्थात् शरीर में जिस समय जो अंग सर्वाधिक सक्रिय हो , उस समय उस अंग से संबंधित कार्य एवं क्रियाएँ करें । 

शरीर के प्रमुख अंगों में प्रकृति से अधिकतम एवं निम्नतम ऊर्जा प्रवाह का समय 

( सूर्योदय प्रातः 6 बजे एवं सूर्यास्त सायंकाल 6 बजे पर आधारित ) 

अंगों का नाम

अंग में ऊर्जा के सर्वाधिक प्राण प्रवाह का समय

ऊर्जा के निम्नतम प्रवाह का समय

1. फेंफड़ें ( LU )

प्रातः 3 से 5 बजे तक

दोपहर 3 से 5 बजे तक

2. बड़ी आंत ( LI )

प्रात : 5 से 7 बजे तक

सांयकाल 5 से 7 बजे तक

3. आमाशय ( ST )

प्रातः 7 से 9 बजे तक

सांयकाल 7 से 9 बजे तक

4. तिल्ली ( SP)

प्रातः 9 से 11 बजे तक

रात्रि 9 से 11 बजे तक

5. हृदय ( H )

प्रातः 11 से 1 बजे तक

रात्रि 11 से 1 बजे तक

6. छोटी आंत ( SI )

दोपहर 1 से 3 बजे तक

रात्रि 1 से 3 बजे तक

7. मूत्राशय ( UB )

दोपहर 3 से 5 बजे तक

रात्रि 3 से 5 बजे तक

8. गुर्दे ( K )

सांयकाल 5 से 7 बजे तक

प्रातः 5 से 7 बजे तक

9. पेरीकार्डियन ( PC )

रात्रि 7 से 9 बजे तक

प्रातः 7 से 9 बजे तक

10. त्रिअग्री ( TW )

तक रात्रि 9 से 11 बजे तक

दिन में 9 से 11 बजे तक

11. पित्ताशय ( GB )

रात्रि 11 से 1 बजे तक

दोपहर 11 से 1 बजे तक

12. लीवर ( LIV )

रात्रि 1 से 3 बजे तक

दोपहर 1 से 3 बजे तक

 तब हमें स्वाभाविक भूख लगे तब ही भोजन करना चाहिए । भूख का संबंध हमारी आदत पर निर्भर करता है । जैसी हम आदत डालते हैं , हमें उसी समय भूख लगने लग जाती है । अतः हमें भोजन की ऐसी आदत डालनी चाहिये । जिससे कि जब आमाशय में प्रकृति से प्राण ऊर्जा का प्रवाह अपेक्षाकृत अधिक हो , उस समय हमें तेज भूख लगे । 

प्रातः 7 से 9 बजे के बीच प्रकृति से आमाशय में प्राण ऊर्जा का प्रवाह अपेक्षाकृत अधिक होने से यदि उस समय भोजन किया जाये तो भोजन का पाचन सरलता से हो सकता है । जितना अच्छा भोजन का पाचन प्रातः काल में होता है उतना अच्छा प्रायः अन्य समय में सदैव नहीं होता । प्रातः काल बड़ी आंत की सफाई हो जाने से उसके बाद किये गये भोजन का पाचन सरलता से हो जाता है । 

सांयकाल सूर्यास्त के पश्चात भोजन नहीं करना चाहिये क्योंकि उस समय प्रकृति से आमाशय और पेन्क्रियाज को निम्नतम प्राण ऊर्जा मिलने से पाचन क्रिया मंद पड़ जाती है । नाश्ता अधूरा आहार होता है और जब हम आंशिक आहार आमाशय की सर्वाधिक क्षमता के समय करते हैं तो जब हमारा मुख्य भोजन होता है तब आमाशय की क्षमता अपेक्षाकृत अधिक न होने से , उसे अधिक श्रम करना पड़ता है । 

इसीलिए एक प्रचलित कहावत है Take the morning meal lika a King , Afternoon lunch like a Queen & Night dinner like a Beggar . एक अन्य लोकोक्ति भी प्रसिद्ध है- " सुबह का खाना खुद खाओ , दोपहर का दूसरों को खिलाओं और रात्रि का दुश्मन को खिलाओं । " अर्थात् प्रातःकाल पूरा भरपेट खाना खाओ । 

दोपहर में आवश्यकता हो तो हल्का सुपाच्य खाना खाओ और रात में भिखारी की भांति कभी मिल जाये तो खालो अन्यथा अपने आपको संयमित रखें । आज अधिकांश रोगों की जड़ प्रायः पेट होता है , अतः अपने समस्त पूर्वाग्रहों को छोड़ भोजन करने से सही समय का महत्त्व समझना चाहिये । 

कहने का तात्पर्य यही है कि मधुमेह का रोग जिसे असाध्य माना जाता है , प्रकृति के समयानुकूल भोजन कर नियंत्रित रखा जा सकता है । हमारे मानने अथवा न मानने से प्रकृति के सिद्धान्त नहीं बदल जाते । हमारे सुविधानुसार सूर्योदय और सूर्यास्त का समय निर्धारित नहीं होता । परन्तु आज हमारे दिल और दिमाग में यह बातें नहीं बैठती । 

आमाशय के पश्चात् प्रकृति से तिल्ली - पेन्क्रियाज को प्रकृति से अपेक्षाकृत अधिक ऊर्जा मिलने से पेन्क्रियाज सक्रिय रहता है और सहज रूप से उसमें इंसुलिन का निर्माण अपेक्षाकृत अधिक होता है । भोजन जीवन का आधार होता है । आधार हमेशा मजबूत होना चाहिये न कि मजबूरी , लापरवाही , अज्ञान अथवा अविवेकपूर्ण आचरण का भोजन से हमारे विचार , भावनाएँ , चिन्तन , सोच प्रभावित होता है । 

जिस प्रकार कपड़े खोल आमूषणों से शरीर को सजाने वालों पर दुनिया हंसती है ठीक उसी प्रकार स्वाद अथवा शरीर की पोष्टिकता के नाम पर मन और आत्मा को विकारी बनाने वाला भोजन करना अदूरदर्शितापूर्ण आचरण ही होता है । 

भोजन में उपरोक्त नियमों का पालन करने मात्र से मधुमेह के रोग को नियंत्रित किया जा सकता हैं । जिस प्रकार विष की चंद बूंदे टनों दूध को अपेय बना देती है । चिनगारी सारे घास के ढेर को जलाने की क्षमता रखती है । एक सांप के काटने से व्यक्ति मर सकता है । मृत्यु के लिए सौ सर्पों के काटने की आवश्यकता नहीं होती ।ठीक इसी प्रकार भोजन में उपरोक्त तथ्यों में से किसी भी तथ्य की उपेक्षा मधुमेह के रोगी के रोग मुक्ति में बाधक बन सकती है । 

तनाव विसर्जन की सरल विधियों द्वारा मधुमेह का उपचार 

तनाव , चिंता , भय , आवेग आदि भी मधुमेह के प्रमुख कारण होते हैं । अतः मधुमेह के रोगी को उनसे यथा संभव बचने का प्रयास करना चाहिए । उसके उपरान्त भी यदि तनाव जैसी परिस्थिति उत्पन्न हो जाए तो निम्न विधियों द्वारा उन्हें दूर किया जा सकता है । 

1. हास्य चिकित्सा-

मस्कराना तनाव दूर करने का सरलतम उपाय है । जब मुस्कान हंसी में बदल जाती है तो स्वास्थ्यवर्धक औषधि का कार्य करने लगती है । हंसी से शरीर में वेग के साथ आक्सीजन का अधिक संचार होने से मांसपेशियाँ सशक्त होती है । 

जमें हुए विजातीय , अनुपयोगी , अनावश्यक अनावश्यक तत्त्व अपना स्थान छोड़ने लगते हैं , जिससे विशेष रूप से फेंफड़े और हृदय की कार्य क्षमता बढ़ती है । अवरोध समाप्त होने से रक्त का प्रवाह संतुलित होने लगता है । हंसने से शरीर के आन्तरिक भागों की सहज मालिश हो जाती है । अन्तः श्रावी ग्रन्थियाँ और ऊर्जा चक्र सजग और क्रियाशील होने लगते हैं । 

जिससे रोग प्रतीकारात्मक क्षमता बढ़ती है । मन में सकारात्मक चिन्तन , मनन होने लगता है । शुभ विचारों का प्रादुर्भाव होने लगता है । नकारात्मक भावनाएँ समाप्त होने लगती है । हास्य तनाव का विरेचन है और मानसिक रोगों का प्रभावशाली उपचार ।

दुःखी , चिन्तित , तनाव ग्रस्त , भयभीत , निराश , क्रोधी आदि हँस नहीं सकते और यदि किसी भी कारण से हँसी आती है तो उस समय तनाव , चिंता , भय , दुःख , क्रोध आदि रह नहीं सकते , क्योंकि दोनों एक दूसरे के विरोधी स्वभाव के होते है । अतः यदि हम काल्पनिक हँसी भी हँसँगे तो तनाव , चिंता , भय , निराशा आदि स्वतः दूर होने लग जाते हैं । ये ही वे कारण होते हैं जो व्यक्ति को , मधुमेह का रोगी बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते ।

प्रातः काल भूखे पेट , खुले एकान्त , स्वच्छ स्थान पर गहरा श्वास लेकर एक ही श्वास में ठहाका मारते हुए पूर्ण वेग के साथ जितने लम्बे समय तक खुल कर हँस सकें , हँसने का अभ्यास कर सकते हैं । जिसको लोक भाषा में हम अट्टहास कहते हैं । अट्टहास का अपनी क्षमतानुसार अभ्यास किया जा सकता है । अट्टहास का क्षमतानुसार अधिकाधिक पुनरावर्तन करना चाहिये । 

प्रदूषण रहित स्वच्छ एवं खुले प्राण वायु वाले वातावरण में प्रातःकाल उदित सूर्य के सामने , हास्य व्यायाम अधिक प्रभावशाली होता है , क्योंकि हास्य लाभ के साथ - साथ सौर ऊर्जा की भी सहज प्राप्ति हो जाती है । यह प्रयोग दिन - रात कभी भी किये जा सकते हैं । 

जो व्यक्ति खुलकर किसी भी कारणवश अट्टहास न कर सकें , वे मुंह बन्द कर , मन ही मन तीव्र गति से हँसने का प्रयास करें । जिससे योग का लाभ मिल जाता है । मधुमेह का रोगी अपनी क्षमतानुसार जब भी तनाव का प्रसंग हो , जितना ज्यादा हास्य योग करेगा , चेहरे पर मुस्कान रखेगा , उतना जल्दी रोग मुक्त होगा । 

2. स्वर चिकित्सा-

मधुमेह के रोगी के जब भी शरीर में मधुमेह का स्तर बढ़ जाये अथवा तनाव की स्थिति बन जाये उस समय तुरन्त जो स्वर चल रहा हो उसे बदल दें । चन्द मिनटों में ही मधुमेह का प्रभाव कम हो जाता है और रोगी को बाह्य साधनों से इंसुलिन लेने की आवश्यकता नहीं रहती । चन्द्र स्वर एवं सूर्य स्वर को बराबर अवधि तक सजगता

पूर्वक चलाने से मुधमेह के रोग से मुक्ति पायी जा सकती है सजगता का मतलब जो स्वर कम चलता हैं उसको कृत्रिम तरिकों से अधिकाधिक चलाने का प्रयास करना तथा जो स्वर ज्यादा चलता है , उसको कम चलाना । कार्यों के अनुरूप स्वर का नियंत्रण और संचालन करना । 

3. उपयोगी प्राणायाम 

श्वास ही जीवन है । मधुमेह के रोगी को यथा संभव प्रदूषण मुक्त ऑक्सीजन युक्त स्वच्छ एवं शुद्ध वातावरण में रहने का प्रयास करना चाहिये एवं सजगता पूर्वक दीर्घ , गहरे , मंद गति से श्वास लेना चाहिये । दिन भर संभव न हो तो भी जितना संभव हो कुछ समय के लिए तो पूर्ण एवं नियन्त्रित श्वसन अवश्य करना चाहिये । 

जितना अधिक श्वास नियन्त्रित होगा , व्यक्ति मधुमेह में सहयोगी आवेंगों से सहज बच जायेगा । श्वास लेते समय शक्ति अन्दर जा रही है तथा निःश्वास के समय मधुमेह संबंधी विकार बाहर आ रहे हैं , ऐसा चिंतन करना चाहिए । सम्यक् प्रकार से श्वसन क्रिया को संचालित एवं नियन्त्रित करना प्राणायाम होता है । प्राणायाम से शरीर के आन्तरिक अवयवों की शुद्धि होती है । रक्त के विकार दूर होते हैं एवं शरीर के सारे अंग , उपांग , इन्द्रियां अन्तः श्रावी ग्रन्थियां सक्रिय एवं संतुलित ढंग से कार्य करने लगती है । 

कपाल भांति प्राणायाम से मस्तिष्क , श्वसन तंत्र और नासिका मार्ग स्वस्थ होता है । बड़ी मात्रा में कार्बनडाई ऑक्साइड के निष्कासन से रक्त शुद्ध होता है । श्वसन तंत्र पाचन तंत्र एवं रक्त परिभ्रमण तंत्र बराबर कार्य करने लगते हैं । जिससे मधुमेह स्वतः ठीक हो जाता है । 

नाड़ी शोधन प्राणायाम से सारा नाड़ी तंत्र स्वस्थ होता है एवं रक्त से विजातीय तत्व दूर होते हैं । भ्रामरी प्राणायाम से मानसिक तनाव , चिंता , क्रोध , निराशा में कमी आती है । विधिपूर्वक उपरोक्त प्राणायाम करने से मधुमेह के रोग से स्थायी मुक्ति मिलती है । गहरे श्वास भर लम्बी ध्वनि के साथ ओम् सोहं अथवा णमों अरिहंताणं आदि का कम से कम 21 बार उच्चारण करने से सारे ऊर्जा चक्र सक्रिय होने लगते हैं तथा पेन्क्रियाज की कार्य क्षमता बढ़ने लगती हैं 

4. मधुमेह के उपचार हेतु ध्यान एवं कायोत्सर्ग का महत्त्व - 

ध्यान शरीर , मन एवं मस्तिष्क को स्वस्थ रखने का अच्छा माध्यम है । ध्यान एवं कायोत्सर्ग से शरीर के अंगों को आराम मिलता है । आभा मण्डल शुद्ध होता है । नियमित ध्यान और कायोत्सर्ग करने से शरीर , मन और आत्मा के विकार दूर होने लगते हैं एवं मधुमेह का रोग शीघ्र ठीक हो जाता है । 

5. सद्साहित्य का स्वाध्याय एवं सम्यक् चिन्तन-

नकारात्मक सोच , तनाव , चिन्ता , भय , आवेग आदि मधुमेह के मुख्य कारण होते हैं । मधुमेह का रोगी किसी भी दृष्टि से शारीरिक अथवा मानसिक रूप से अपंग नहीं होता है । अतः उन्हें अपने चिन्तन की दिशा बदल जीवन शैली बदलनी चाहिये । 

संयमित , नियमित अनुशासित दिनचर्या से वे जीवन के किसी भी लक्ष्य को प्राप्त कर सकते हैं । मधुमेह के रोगियों को सद् साहित्य का स्वाध्याय , आध्यात्मिक भजनों का गायन एवं श्रवण , ध्यान , मौन , सद्गुरुओं की सत्संगति एवं सकारात्मक चिन्तन में समय व्यतीत करना चाहिये । 

स्वाध्याय से भाव शुद्धि होती है । अनित्य , अशरण , अशुचि , एकत्व आदि बारह भावनाओं के माध्यम से अपने स्वरूप का चिंतन , निरीक्षण एवं समीक्षा ही सच्ची स्वाध्याय होती है । व्यक्ति की सजगता बढ़ाने , विवेक जागृत करने , सकारात्मक सोच विकसित करने हेतु स्वाध्याय सशक्त उपाय है । सम्यक् चिन्तन एवं स्वाध्याय ही मधुमेह का स्थायी उपचार होता है ।

6 . मस्तिष्क शोधन की प्रक्रिया अथवा सुदर्शन क्रिया से नकारात्मक सोच और तनाव को आसानी से दूर किया जा सकता है । 

7. उदित होते सूर्य के नियमित संविधि दर्शन से भी सकारात्मक सोच विकसित होने लगता है तथा तनाव , भय आदि मन पर हावी नहीं होते । साथ ही शरीर के शारीरिक और मानसिक रोगों का शमन होता है । 

पेन्क्रियाज को सक्रिय बनाने का सरल उपाय 

चैतन्य चिकित्सा हमारी चेतना अथवा प्राण का श्वास के साथ घनिष्ठ संबंध होता है । शरीर में चेतना आंखों के सहयोग से देखने , कानों के सहयोग से सुनने , नाक के सहयोग से सूंघने , मुँह एवं जीभ के सहयोग से खाने और बोलने की क्षमता प्राप्त कर लेती है । 

हमारी अधिकांश प्रवृत्तियां पांचों इन्द्रियों और मन के माध्यम से होती है । प्रत्येक प्रवृत्ति में प्राण ऊर्जा खर्च होती है । अतः यदि इन्द्रियों की अनावश्यक प्रवृतियां न हो तथा सारा ध्यान पेन्क्रियाज पर केन्द्रित कर दिया जाये तो पेन्क्रियाज की कार्य क्षमता बढ़ने लगती है । 

अतः मधुमेह के रोगी की प्रातःकाल जल्दी उठना चाहिये , जिस समय आसपास का वातावरण पूर्णतया शत - प्रतिशत शांत हो । जिससे उसका घर ही शांत और एकान्त स्थान बन जाये । ऐसे समय घर की खुली छत अथवा प्रकृति के शुद्ध वातावरण में स्थिर आसन में बैठे । 

पसलियों के नीचे बांयी तरफ पेन्क्रियाज वाले स्थान पर हथेली से दबाव देकर मूक हंसी हंसने का प्रयास करें । शांत वातावरण के कारण कान , आंख , नाक एवं मुँह के कारण जो ध्यान विचलित होता है , वह नहीं होगा और पेन्क्रियाज से मस्तिष्क की चेतना का सीधा सम्पर्क हो जाता है तथा मन के दूसरे आलम्बन समाप्त हो जाते हैं । 

अन्तः श्रावी ग्रन्थियाँ आवश्यकतानुसार श्राव बनने लगती है । पेन्क्रियाज पर चेतना की एकाग्रता होने से पेन्क्रियाज ताकतवर होने लग जाता है । 20 से 30 मिनट तक थोड़े - थोड़े अन्तराल में इस प्रयोग को चन्द दिनों तक करने से पेन्क्रियाज की कार्यक्षमता बढ़ने लगती है और वह आवश्यकतानुसार इंसुलिन बनाने लगता है । 

मधुमेह में उपयोगी आसन - व्यायाम एवं मुद्रा--

प्रत्येक अंग - उपांग की मांसपेशियों को जितना संभव हो आगे - पीछे , दांये बांये , ऊपर - नीचे घुमाने , खींचने , दबाने , सिकोड़ने और फैलाने से सम्बन्धित अंग की मांसपेशियां सजग और सक्रिय हो जाने से , उस भाग में रक्त परिभ्रमण नियमित होने लगता है । 

नियमित मेरूदण्ड के व्यायाम सविधि करने से नाड़ी , संस्थान सक्रिय रहता है । पेन्क्रियाज पर दबाव देने वाले आसन और व्यायाम मधुमेह के रोगी के लिए बहुत उपयोगी होते हैं । इन व्यायामों से पेन्क्रियाज की मांसपेशियाँ सक्रिय होती है एवं पेन्क्रियाज की कार्य क्षमता बढ़ती है । 

सविधि नियमानुसार प्रत्येक आसन के पश्चात कुछ समय शवासन द्वारा शरीर का शिथिलिकरण अवश्य करना चाहिये । शल्य चिकित्सा करवाने के पश्चात् एवं गर्भवती महिलाओं को ऐसा कोई आसन या व्यायाम नहीं करना चाहिए जिससे संबंधित शरीर का अंग प्रभावित हो । 

मधुमेह के रोगी को अपनी क्षमतानुसार वज्रासन , पदमासन , गोदुहासन में यथा संभव बैठने का प्रयास करना चाहिए एवं अभ्यास द्वारा उसकी अवधि बढ़ानी चाहिए । इन आसनों से शरीर में ऊर्जा केन्द्र जागृत होते हैं । शरीर में रोग प्रतिकारात्मक शक्ति विकसित होती है एवं अन्तः श्रावी ग्रन्थियाँ बराबर कार्य करने लगती है ।

गोदुहासन से मेरुदण्ड का संतुलन बना रहता है तथा शरीर का संवेदन तंत्र अधिक सक्रिय होता है । भगवान महावीर को इसी आसन में ध्यान करते हुए केवल ज्ञान की प्राप्ति हुई । दोनों हाथों की हथेलियों से कोहनी तक मिलाने से बनने वाली नमस्कार मुद्रा का नियमित अभ्यास भी मधुमेह के रोगी को करना चाहिये । नमस्कार मुदा से डायाफ्राम के ऊपर का भाग संतुलित होता है । 

नमस्कार मुद्रा से पांचों महाभूत तत्त्वों का शरीर में संतुलन होने लगता है तथा हृदय , फेंफड़े और पेरिकार्डियन मेरेडियन में प्राण ऊर्जा का प्रवाह संतुलित होने से , इन अंगों से संबंधित रोग दूर होने लगते हैं । गोदुहासन के साथ नमस्कार मुद्रा का अभ्यास करने से पूरा शरीर संतुलित हो जाता है । 

हथेली की सबसे छोटी एवं अनामिका अंगुलि के ऊपरी भाग को अंगुष्ठ के ऊपरी पोरबे को मिलाने से प्राण मुद्रा बनती है । प्राण मुद्रा से शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है । रक्त संचार सुधरता है तथा शरीर सशक्त बनता है । भूख प्यास सहन होने लगती है । 

हथेली की तर्जनी अंगुलि को अगुष्ठ के मूल में स्पर्श कर अंगूठे के ऊपरी पोरबे का अनामिका और मध्यमा से स्पर्श करने से अपान वायु मुद्रा बनती है । इस मुद्रा से पाचन संस्थान के सभी अंगों लीवर , तिल्ली , पेन्क्रियाज , आमाशय , छोटी आंत की कार्य क्षमता सुधरती है । 

खाली पेट उड्डियान बंध करने से आमाशय का सम्पूर्ण भाग स्पंज की भांति निचोड़ा जाता है जिससे नाभि केन्द्र , एड्रीनल एवं पेन्क्रियाज ग्रन्थियाँ बराबर कार्य करने लगती है । पेन्क्रियाज पर चुम्बक के सक्रिय ध्रुव का स्पर्श डायाफ्राम के नीचे बांयी तरफ पेन्क्रियाज पर चुम्बक का सक्रिय ध्रुव कुछ समय दिन में 3-4 बार स्पर्श करने एवं Clockwise घुमाने से पेन्क्रियाज सशक्त होने लगता है जिससे मधुमेह नियन्त्रित होने लगता है । 

पेन्क्रियाज पर मसाज-

5 से 10 मिनट प्रतिदिन 2-3 बार वाइब्रेटर से पेन्क्रियाज पर Clockwise मसाज करने से उस पर जमे विजातीय तत्त्व दूर होने लगते हैं । फलतः उसकी मांसपेशियां सजग और सक्रिय होने लगती है एवं पेन्क्रियाज में रक्त परिभ्रमण नियमित होने से पेन्क्रियाज बराबर कार्य करने लगता है । 

दाणा मैथी द्वारा उपचार 

दाणा मैथी रक्त शोधक , दर्द नाशक , वात एवं कफ का शमन करने वाली शक्तिदायक ऊर्जा का स्रोत होती है । ये सब कार्य मधुमेह रोग निवारण हेतु सहायक होते हैं । मेथी जो कार्य पेट में जाकर करती है , उससे अधिक एवं शीघ्र लाभ उसके बाह्य प्रयोग से भी संभव होता है , क्योंकि उसमें उसका रोग ग्रस्त भाग से सीधा सम्पर्क होता है । 

पेन्क्रियाज पर दाणा मेथी स्पर्श कर रखने से मेथी की प्रभावशाली तरंगों से पेन्क्रियाज सशक्त होने लगता है जिससे पेन्क्रियाज की कार्य क्षमता बढ़ जाती है । आज्ञा चक्र , विशुद्धि चक्र , सूर्य केन्द्र एवं नाभि पर भी मेथी का स्पर्श कर रखने से ये सारे केन्द्र सक्रिय हो जाते हैं , जिससे उनसे संबंधित अंग , उपांग , अवयव संबंधी रोग दूर होने लगते हैं ।मधुमेह अथवा अन्य किसी कारण से शरीर के किसी भाग में दर्द , जलन , सूजन अथवा खुजली हो तो उस स्थान पर मेथी लगाने से तुरन्त आराम मिलने लगता है ।

तिल्ली ( Spleen ) पेन्क्रियाज की ताकत बढ़ाना 

चीनी पंच तत्त्व के सिद्धान्तानुसार पेन्क्रियाज , तिल्ली , आमाशय परिवार का सदस्य होता है । अतः मध्यमा अंगुलि में तिल्ली बियोल मेरेडियन में प्राण ऊर्जा के प्रवाह की दिशा में पहले बटन चुम्बक का उत्तरी ध्रुव एवं बाद में दक्षिणी ध्रुव स्पर्श कर रखने से तिल्ली में प्राण ऊर्जा बढ़ती है । पेन्क्रियाज का तिल्ली से सीधा संबंध होने से उसकी भी क्षमता बढ़ने लगती है और मधुमेह से तुरन्त मुक्ति मिल सकती है । 

चीनी पंच तत्त्वों से विभिन्न अंगों का आपसी संबंध 

तिल्ली का मात्र अंग हृदय और पुत्र अंग फेंफड़ा होता है । अतः यदि हृदय और फेंफड़े को अधिक क्रियाशील बना दिया जाये तो तिल्ली - पेन्क्रियाज अपने आप सशक्त होने लगते हैं । तिल्ली , यकृत ( लीवर ) से नियंत्रित होती है और गुर्दों को नियन्त्रित करती है । अत : पेन्क्रियाज के बराबर कार्य न करने से प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से हृदय , फॅफड़े , गुर्दे , यकृत आदि भी प्रभावित हो सकते हैं , जिनका प्रभाव उनके पूरक ( यांग ) अंगों छोटी आंत , बड़ी आंत , मूत्राशय और पित्ताशय पर भी पड़ सकता है । 

जो अंग जितना - जितना असक्रिय होता है , उसी के अनुपात में उससे संबंधित रोगों के लक्षण प्रकट होने लगते हैं । लक्षणों के अनुरूप उपरोक्त चर्चित उपचार विधियों से उपचार करने से सहयोगी रोग दूर होने लगते हैं एवं मधुमेह से स्थायी रूप से चंद दिनों में ही मुक्ति मिल सकती है । 

विकारों को दूर कर प्राण ऊर्जा के प्रवाह को संतुलित करने के उपाय 

एक्यूप्रेशर द्वारा मधुमेह का उपचार 

मधुमेह के रोगी को हथेली और पगथली में आगे पीछे सूक्ष्म से सूक्ष्म भाग में अर्थात् पूरी हथेली और पगथली के पूरे क्षेत्रफल में अंगुलियों या अंगूठे से जितना सहन हो सके , पेन्क्रियाज एवं अन्य अन्तः श्रावी ग्रन्थियों के प्रतिवेदन बिन्दुओं पर नियमित एक्यूप्रेशर करने से पेन्क्रियाज सक्रिय होने लगता है एवं मधुमेह नियन्त्रित होने लगता है । 

सारे दर्द वाले प्रतिवेदन बिन्दु प्रत्यक्ष परोक्ष रूप से मधुमेह से संबंधित होते हैं । जहां असहनीय दर्द आता है , वे प्रतिवेदन बिन्दु उस व्यक्ति के मधुमेह एवं उसके सहायक रोगों के मुख्य बिन्दु होते हैं । 

सभी दर्द वाले प्रतिवेदन बिन्दुओं पर दिन में एक बार 20 से 30 सैकण्ड एक्यूप्रेशर करने से उन प्रतिवेदन बिन्दुओं पर विजातीय तत्व दूर होने लगते हैं एवं कुछ दिनों में ही मधुमेह रोग ठीक हो जाता है । इस सरल विधि द्वारा पूरे शरीर के रोगों का निदान और प्रभावशाली उपचार हो जाता है । 

कम से कम प्रतिदिन हथेली और पगथली की अंगुलियों और अंगुठे के अंतिम भाग में आने वाले दर्दस्थ प्रतिवेदन बिन्दुओं का उपचार तो अवश्य कर लेना चाहिए । जहां - जहां दर्द ज्यादा आता है वहां एक्यूप्रेशर के साथ - साथ दाणामेथी को लगाने से और अधिक अच्छे परिणाम मिलते हैं । 

नाभि का संतुलन 

मधुमेह के रोगी का नाभि केन्द्र अपने स्थान पर प्राय : नहीं रहता , जिससे पेन्क्रियाज को आवश्यक प्राण ऊर्जा नहीं मिलती । अतः उसकी सक्रियता कम हो जाती है । नाभि में हमारे प्राणों का संचय होता है एवं यही से शरीर में कार्यरत प्राण ऊर्जाओं का नियंत्रण होता है । 

नाभि के स्पन्दन को अपने स्थान पर लाने के लिये भारत में अनेकों प्रचलित विधियां है । अतः किसी भी विधि द्वारा नाभि क्षेत्र में एकत्रित तत्त्वों को दूर करने एवं नाभि केन्द्र को अपने स्थान पर स्थिर रखने से पेन्क्रियाज को आवश्यक प्राण ऊर्जा मिलने लगती है एवं वह आवश्यकतानुसार इंसुलिन बनाने लगता है ।

पैर , गर्दन एवं मेरूदण्ड का संतुलन 

हमारा शरीर दायें - बायें , बाह्य दृष्टि से लगभग एक जैसा लगता है परन्तु मधुमेह एवं अन्य रोगों के कारण कभी - कभी एक पैर से छोटा हो जाता है तो कभी - कभी मेरुदण्ड के मणकों के पास विजातीय तत्त्वों के जमा हो जाने अथवा नाड़ी के दब जाने या मणके के अपने स्थान से हट जाने से प्राण ऊर्जा का प्रवाह शरीर में बाधित होने लगता है तथा नाड़ी संस्थान बराबर कार्य नहीं करता । 

जिस प्रकार खेत में बीच बोने से पूर्व खेत की सफाई , उसमें हल जोतना और खाद देना आवश्यक होता है , ठीक उसी प्रकार पैर , गर्दन एवं मेरुदण्ड को संतुलित करने से नाड़ी संस्थान बराबर कार्य करने लगता है एवं उपचार प्रभावशाली हो जाता है । नाड़ी तंत्र के ठीक होते ही मधुमेह का रोग चंद दिनों में ही बिना दवाई नियंत्रित हो जाता है । 

शिवाम्बु का सेवन 

स्वमूत्र स्वयं द्वारा स्वयं के शरीर से रोगों की आवश्यकतानुसार निर्मित ऐसी दवा है जिसका प्रयोग मधुमेह के उपचार हेतु बेहिचक किया जा सकता है । रोगी को अपने स्वमूत्र का ही सेवन करना चाहिये , भले ही मधुमेह के कारण मूत्र में सुगर जाता हो । शिवाम्बु से शरीर की रोग प्रतिकारात्मक क्षमता बढ़ती है । किसी भी प्रकार की शंका अथवा प्रतिक्रिया होने पर अनुभवी शिवाम्बु चिकित्सक से परामर्श कर लेना चाहिए । अन्य चिकित्सा पद्धतियों के विशेषज्ञों से शिवाम्बु के संबंध में परामर्श लेना न्याय संगत नहीं होता । 

प्रातःकालीन पहला , रात्रि में सोने से पूर्व एवं खाना खाने के पश्चात् शिवाम्बु का सेवन विशेष लाभकारी होता है । उषापान करने वालों को प्रातः शिवाम्बु पीने के लगभग 15-20 मिनट पश्चात् बिना दांतुन किये अपनी क्षमतानुसार पानी पीना चाहिये , जिससे आंतों में जमा हुआ मल दूर हो जाता है । परिणाम स्वरूप पाचन तंत्र बराबर कार्य करने लगता है एवं पाचन हेतु अधिक इंसुलिन की आवश्यकता नहीं होती और मधुमेह का रोग ठीक हो जाता है । 

सूर्यमुखी तेल का गंडूस 

रक्त विकार शरीर में अनेक रोगों का मुख्य कारण होता है । सूर्यमुखी तेल में सूर्य की ऊर्जा के विशेष गुण होते हैं । जिस प्रकार चुम्बक लोहे को आकर्षित करता है , ठीक उसी प्रकार सूर्यमुखी तेल में रक्त के विकारों को रक्त से अलग करने की क्षमता होती है । रक्त सारे शरीर में परिभ्रमण करता है । चेहरे , जीभ और दांतों का संबंध शरीर के सभी प्रमुख अंगों से सीधा होता है । 

सूर्यमुखी तेल को मुंह में एक चम्मच भरकर 15 से 20 मिनट घुमाने से रक्त में आये विकार अलग होने लगते हैं । जिससे रक्त विकार संबंधी सभी रोगों में लाभ होता है । दिन में 2 से 3 बार चंद दिनों तक इस प्रक्रिया को करने से रक्त संबंधी अनेक सहयोगी रोग ठीक होने से , मधुमेह स्वतः नियंत्रित होने लगता है । 

उपसंहार 

यदि मधुमेह का रोगी सात्विक सुपाच्य भोजन सही समय पर करे पाचन के नियमों का सजगता एवं स्वविवेक से पालन करे , भूत की स्मृतियों तथा भविष्य की कल्पनाओं से अनायास परेशान न हो । 

वर्तमान में तनाव के कारणों को चर्चित तरीकों के अभ्यास द्वारा दूर करे , चैतन्य चिकित्सा , दाणा मैथी स्पर्श चिकित्सा , चुम्बकीय चिकित्सा एवं उपयोगी आसन और मसाज द्वारा पेन्क्रियाज को सशक्त बना , एक्युप्रेशर जैसी स्वावलंबी उपचार पद्धति द्वारा शरीर से विजातीय तत्त्वों को हटाकर , सूर्यमुखी तेल गंडूस के द्वारा रक्त में आये विकारों को अलग कर , नाभि , पैर , गर्दन एवं मेरूदण्ड के संतुलन द्वारा नाड़ी संस्थान को सक्रिय कर तिल्ली को

सुजोक बियोल मेरेडियन में बटन चुम्बक द्वारा ताकत बढ़ा , प्राण ऊर्जा के प्रवाह को संतुलित कर मधुमेह के रोग से मुक्ति पा सकता है । उपचार की उपरोक्त अनेक स्वावलंबी चिकित्सा पद्धतियां है । मधुमेह का रोगी रोग की स्थिति , कारण एवं उपस्थित लक्षणों के आधार पर स्वविवेक से कुछ विधियों को समझकर उपचार कर सकता है एवं मधुमेह से मुक्ति पा सकता है । समझकर किया गया उपचार प्रभावशाली होता है । 

मधुमेह शारीरिक से ज्यादा मानसिक रोग है । आधुनिक चिकित्सकों द्वारा उसको असाध्य बतलाने के कारण , रोगी यह स्वीकार करने को तैयार नहीं होता कि मधुमेह ठीक भी हो सकता है । किसी तथ्य को बिना सोचे समझे स्वीकारना , विश्वास करना अन्धविश्वास होता है , तब किसी अनुभूत सत्य को अज्ञानवश , जानकारी के अभाव में नकारने वालों को कैसे बुद्धिमान समझा जायें ? 

अनेक रोगियों को उपचार करते समय लेखक ने अनुभव किया कि उपचार के पश्चात् मधुमेह के सारे लक्षण दूर हो जाने के बावजूद रोगी अपने आपको मधुमेह का रोगी मानते रहते हैं । परन्तु जो सम्यक् चिन्तन एवं वैज्ञानिक तर्कों के आधार पर रोग के मुल कारणों को समझ स्वावलम्बी उपचारों की प्रामाणिकता से अपना विवेक जागृत कर लेते हैं उन्हें स्थायी रूप से दवाओं से मुक्ति मिलती है । 

कहने का आशय यह है कि मधुमेह का प्रभावशाली उपचार स्वावलम्बी चिकित्सा पद्धतियों से संभव होता है क्योंकि वहाँ पर रोग के मूल कारणों को दूर किया जाता है । फैसला मधुमेह के रोगियों को ही करना है कि जीवन भर दवाईयाँ खाकर मधुमेह के रोगी बने रहें अथवा स्वावलम्बी उपचारों के द्वारा अपने आपको उससे मुक्त करें । . 

मधुमेह के लिए घरेलू उपचार Home Demedies for diabetes

  • खीरा , करेला और टमाटर एक एक की संख्या में लेकर जूस निकाल कर , सुबह खाली पेट पीने से मधुमेह नियन्त्रित होता है । 
  • जामुन की गुठली का पाउडर करके , एक - एक चम्मच सुबह - शाम खाली पेट पानी से लेने से मधुमेह नियन्त्रित होता है । 
  • 7 पत्ते नीम के सुबह खाली पेट चबा कर अथवा पीस कर पानी के साथ लेने से मधुमेह में आराम मिलता है ।  
  • सदाबहार के 7 फूल खाली पेट जल के साथ चबा कर सेवन करने से भी मधुमेह में लाभ मिलता है । 
  • गिलोय , जामुन , कुटकी , निम्ब पत्र , चिरायता , कालमेघ , सूखा करेला , काली जीरी , मेथी इनको समान मात्रा में लेकर चूर्ण कर लें । यह चूर्ण 1-1 चम्मच सुबह - शाम खाली पेट पानी के साथ सेवन करने से मधुमेह में विशेष लाभ मिलता है । 
  • खाना खाने के तुरंत बाद पेशाब करने जाएं । इससे न केवल मधुमेह नियंत्रित रहेगा बल्कि गुर्दे की भी कोई बीमारी नहीं होगी । 

मंडूकासन 

मधुमेह के लिए मंडूकासन रामबाण है ।। किसी योग्य यागाचार्य के मार्गदर्शन में इसे आसानी से सीखा जा सकता है । बताया जाता है कि इस आसन से शरीर में इंसुलीन दोबारा बनना शुरू हो जाता है । इंसुलीन न बनना ही मधुमेह व शूगर का कारण बताया जाता है । इस आसन से कई लोगों को लाभ होते हुए सुना गया है ।

" नोट : - उपचार के बारे में विस्तृत जानकारी हेतु डॉ चंचलमन चोरडिया की पुस्तक " आरोग्य आपका " का अवश्य अध्ययन करें ।

ये भी देखें - 

Thanks for Visiting Khabar's daily update. For More हैल्थ, click here.

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ
* Please Don't Spam Here. All the Comments are Reviewed by Admin.