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Ashish Vidyarthi: हम रोजाना थोड़ा-थोड़ा बदलते हैं | Ashish Vidyarthi Motivational speech

Ashish Vidyarthi Motivational speaker: वेब एमडी नाम की वेबसाइट एक रिसर्च के हवाले से बताती है कि हम जिनके साथ घुलते-मिलते हैं, हमारा सोचने और खुद के बारे में महसूस करने का तरीका भी उनके हिसाब से हो जाता है।- आशीष विद्यार्थी अभिनेता व प्रेरक वक्ता

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Ashish Vidyarthi: हम रोजाना थोड़ा-थोड़ा बदलते हैं | Ashish Vidyarthi Motivational speech in Hindi

Motivational Speaker: निंदा बहुत जरूरी है, यह हमारे अंदर कुछ फर्क लाती है। इसलिए मिलिए और चुनिए उन लोगों को, जिनके साथ आप घुलना-मिलना चाहते हैं, जो आपका असल हित चाहें। बहुत जरूरी है कि हम लोग इस चुनाव में बहुत मुस्तैद रहें। क्योंकि जिंदगी हर रोज बन रही है। हर रोज हमारे अंदर फर्क आ रहा है। तो क्यों न ऐसी चीजें अपनाई जाएं जो अच्छी तब्दीली लाएं।

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कभी आपने सोचा है कि लोगों के साथ घुलना मिलना कितना जरूरी है। मैं बहुत सारे दोस्तों से मिलना पसंद करता हूं, पर कितनों के साथ घुलता मिलता हूं। 'घुलना-मिलना...' इस शब्द में ही उसका गूढ़ अर्थ छिपा हुआ है। 

जब हम किसी से मेल मुलाकात करते हैं और इसके बाद वह चले जाते हैं, तो यह मुलाकात घुलने-मिलने तक नहीं पहुंच पाती। लेकिन जब कुछेक लोगों से मिलते हैं और फिर घुलने के लिए तैयार हो जाते हैं, तो उसका अर्थ क्या है? 

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अपनी जिंदगी में मैंने पाया है कि मुझे अलग-अलग किस्म के लोग मिले हैं। उनमें से कई मुझे बहुत पसंद आए हैं। पर जरूरी नहीं कि मुझे जो पसंद आए हैं, वो लोग वही बात करें जो मुझे अच्छी लगती है। क्या आपने ऐसा महसूस नहीं किया कि जो वाकई आपके अच्छे दोस्त होते हैं, वो कुछ ऐसी बात कह देते हैं, जिससे आपको उस समय थोड़ी दिक्कत होती है। 

आप असहज हो सकते हैं। वो आपके हित की बात हो सकती है, लेकिन आपको सुनने में अच्छी नहीं लगती। लेकिन उससे दुखी होने के बजाय जब हम उन विचारों को अपने साथ घुलने देते हैं, तो हमारे अंदर कुछ सकारात्मक तब्दीली आती है। और यह बदलाव अच्छे के लिए होता है। 

जिंदगी ऐसे लोगों से भी भरी पड़ी है, जो आपके सामने हमेशा मीठा बोलते हैं। वे ऐसी चीजें कहते हैं, जो हमें बड़ी अच्छी लगती हैं। उनकी बात सुनकर लालच होता है। पर अगर हम ऐसे लोगों को अपने अंदर घुलने देते हैं, तो फिर से हमारे अंदर तब्दीली आना शुरू हो जाती है, लेकिन यह सही दिशा में नहीं होती। आगे चलकर अहसास होता है कि शायद हमने गलत राह पकड़ ली। 

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घुलने-मिलने की चॉइस हमारे ऊपर है। मैंने अपनी जिंदगी बहुत सोच-समझकर दोस्त बनाए हैं। मिलता बहतों से लेकिन दोस्त चुनकर बनाता हूं। क्योंकि मैं जानता हूं कि जिनके साथ भी में समय बिताता हूं, मैं सिर्फ उनसे मिलता ही नहीं हूं। अपना कुछ उनमें छोड़ देता हूं, जो उनमें घुल जाता है और बहुत कुछ उनसे अपने अंदर घुलने देता हूं। 

जिसकी वजह से मेरा कल बनना है। हमारे माता-पिता कहते थे कि जिंदगी में ध्यान से दोस्त बनाओ, कंपनी क्या है तुम्हारी। अपनी 56 साल की उम्र में भी मैं चुनता हूं कि किन लोगों के साथ उठना-बैठना है, घुलना-मिलना है।क्योंकि मैं अपनी जिंदगी में जो कुछ करना चाहता हूं, हासिल करना चाहता हूं, उसमें हर एक का कुछ न कुछ योगदान है। हमें चुनना है कि हम कौन से योगदान को अपने साथ रखें। 

कबीर का दोहा याद रखिए- 'निंदक नियरे राखिए, आंगन कुटी छवाय, बिन पानी, साबुन बिना, निर्मल करे सुभाय।' निंदा बहुत जरूरी है, इससे बिल्कुल न घबराएं। क्योंकि यह हमारे अंदर कुछ फर्क लाती है। इसलिए मिलिए और चुनिए उन लोगों को, जिनके साथ आप घुलना-मिलना चाहते हैं। 

बहुत जरूरी है कि हम लोग इस चुनाव में बहुत मुस्तैद रहें, बहुत फोकस रहें। क्योंकि याद रखिए आपकी और हमारी जिंदगी हर रोज बन रही है। हर रोज हमारे अंदर कुछ न कुछ फर्क आ रहा है, अंदर तब्दीली हो रही है। यह आप पर निर्भर करता है कि किस तरह का बदलाव चाहते हैं। 

तो क्यों न ऐसी चीजें अपनाई जाएं जो हमारे अंदर अच्छी तब्दीली ला पाएं। अपनी उन्नति के लिए-दूसरों की उन्नति के लिए सोच-समझकर घुलिए-मिलिए। आपकी ही जिंदगी है।

यूट्यूब- Ashish VidyarthiActorVlogs 

ट्विटर- Ashish Vidyarthi

वेबसाइट- avidmier.com

Thoughts of the day

छोटी-छोटी बातों में विश्वास रखें क्योंकि इनमें ही आपकी शक्ति निहित है. यही आगे ले जाती है.- मदर टेरेसा

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