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Healthy living routine: स्वस्थ जीवन का आधार व्यवस्थित दिनचर्या

Healthy living routine in Hindi 


न त्वहं कामये राज्यं न स्वर्गं ना पुनर्भवम् । 

कामये दुःख तप्तानां प्राणिनामार्तिनाशनम् ॥ 


अर्थ: - मुझे न तो राज्य पाने की कामना है और न ही स्वर्ग या मोश्च पाने की कामना है । केवल यही इच्छा है कि मैं तो प्राणीमात्र की पीड़ा हरने का कल्याणकारी कार्य करता रहूं । 


व्यवस्थित दिन चर्या, healthy and life routine in Hindi, daily dinchadya


यह कामना है भारत की मनीषा तथा उन अनासक्त कर्मयोगियों की जो निष्काम सेवा भाव से अपने कर्तव्यों का पालन करते हैं और कर्तव्यपालन करने में ही आत्मसुख का अनुभव करते हैं । इसी दृष्टिकोण को ही मद्देनजर रखते हुए हम भी अपने कर्तव्यमार्ग पर अग्रसर है । 


देखने में आ रहा है कि चिकित्सा जैसा कल्याणकारी कार्य अब पूरी तरह व्यावसायिक हो चुका है और लूटमार मचाने वाली विदेशी दवा कंपनियों के हाथों में आता जा रहा है । 


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डाक्टरों की कैंची - छुरीयां मरीज़ का इलाज करती हुई कम और जेबें काटती हुईं अधिक दिखाई दे रही हैं । दवा कंपनियों का उद्देश्य लोगों के स्वास्थ्य की चिंता नहीं बल्कि अधिक से अधिक धन लूटना है । इसी के चलते आज छोटी - मोटी बीमारी का इलाज भी आम आदमी की पहुंच के दूर हो चुका है । 


भारतीय चिंतन के विपरीत चिकित्सक अपने आप को सेवक की बजाय सर्विस प्रोवाइडर व रोगी को ईश्वर की बजाय कस्टमर समझते हैं जो अनुचित है । ऋषियों ने आयुर्वेद का प्रकाश धर्म ( कर्तव्य ) का पालन करने के लिए ही किया था , धनोपार्जन या विशेष कामना की सिद्धि के लिए नहीं । 


नाथार्थं नापि कामार्थमथ भूत दयां प्रति । 

वर्तते यश्चिकित्सायां स सर्वमति वर्तते ॥ 


अर्थात् धर्मकार्य में तत्पर और अक्षर पद प्राप्त करने की कामना वाले ऋषियों ने आयुर्वेद का प्रकाश धर्म के ही लिए किया, धनोपार्जन या विशेष कामना की सिद्धि के लिए नहीं, परंतु आज डाक्टरी लाइन में जो चल रहा है वह चिंता का विषय है ।


Health Tips: स्वास्थ्य चालीसा


इदमुदकं पिबेतेत्यब्रवीतनेदं वा घा पिबता मुञ्जनेञ्जनम् । सौधन्वता यदि तन्नेव हयथ तृतीय घा सवने मादयाध्वै ॥ 


ऋग्वेद में वैद्यों व माता - पिता को निर्देश दिया गया है कि वे रोगियों व अपनी संतान को शारीरिक व आत्मिक सुख के लिए उचित व अनुचित व्यवहार, खाद्य पदार्थ, जीवन पथ का ज्ञान करवाएं ताकि वे निरोगी व सुखमयी जीवन जी सकें ।


पश्चिमी जीवन प्रणाली के चलते हमारी दिनचर्या ही गड़बड़ा चुकी है जो रोगों का कारण बन रही है । अब दिन के समय लोग सोते हैं और रात को जागते हैं । पहले घर में खाते थे और बाहर शौच जाते थे परंतु, आज बाहर होटलों में खाते हैं और अपने घर में शौच जाते हैं । फास्टफूड, डिब्बाबंद भोजन, ज़हरीले कोल्ड ड्रिंक्स, नशों का प्रचलन बढ़ रहा है । 


सबकुछ उलटा - पुलटा होने से बीमारियां स्वतः ही घरों में अड्डे जमाने लगी हैं । इन बीमारियों से छुटकारा पाने के लिए महंगी दवाओं का प्रयोग बढ़ता जा रहा । ये दवाएं वे दवाएं हैं जो एक रोग ठीक करती है तो चार नए रोगों का कारण बनती हैं, परंतु हर्ष का विषय यह है कि समाज अब सच्चाई को मानने लगा है, यही कारण है कि आज आयुर्वेद व  का प्रचलन बढ़ रहा है । 


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भारतीय दर्शन में स्वास्थ्य का अर्थ रोगों अनुपस्थिति नहीं बल्कि प्राणवान शरीर, मन व आत्मा से लिया गया है । रोग तो हमारे जीवन में आई अनियमितता का परिचायक हैं । इनसे दूर रहने के लिए हमें अपने जीवन नियमित करना पड़ेगा । सूर्य विश्व में ऊर्जा का मुख्य स्रोत है और इसकी उपस्थिति में हमें जीवन की गतिविधियों को संचालित करना चाहिए । 


अर्थात हमें रात को जल्दी सो कर सुबह ब्रह्ममुहूर्त ( गुरु नानक देव जी अनुसार अमृतबेला ) में उठना चाहिए । सुबह अपने इष्ट देव , माता - पिता, बुजुर्गों को नमन कर अपनी दिनचर्या शुरू करनी चाहिए । 


इससे मनोवृत्ति सात्विक होती है जो पूरे जीवन को दैवीय गुणों से परिपूर्ण कर हमारे शारीरिक, मानसिक, आत्मिक स्वास्थ्य का आधार बनती है । खाने में कभी बाजारू चीज़ का प्रयोग नहीं करना चाहिए । कहा भी गया है कि पराया धन, बाज़ारू अन्न पहले स्वाद लगता है परंतु जब निकलता है तो कष्टदायक होता है । 


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नियमित दिनचर्या स्वास्थ्य का आधार(Regular routine is the basis of health) 


1. जो गुरुजनों ( बड़ों ) का आदर करता है, उसके आयु, बल, विद्या और यश की वृद्धि होती है । जो इसके विपरीत बड़ों का आदर नहीं करता या उनका तिरस्कार करता है, उसके आयु, बल, विद्या और यश का नाश होता है । 


2. सोते समय दक्षिण या पूर्व की ओर सिर करके सोओ । उत्तर या पश्चिम में सिर करके सोने से आयु क्षीण होती है । दक्षिण मुख करके भोजन करने से भी आयु का ह्रास होता है । 


3. भजन, पूजन, भोजन आदि कर्म पूर्व या उत्तर मुख करके करना हितकारी है । सायंकालीन संध्या पश्चिम मुख करके की जाती है । 


4. स्वस्थ रहने के लिये शरीर की बाहरी और भीतरी स्वच्छता तथा नियमित व्यायाम आवश्यक है । 


क ) दाँतों को नित्य दातुन करके स्वच्छ रखो । दातुन न हो तो मंजन करो । नित्य भली प्रकार स्नान करो । हाथ-पैर धोकर स्वच्छ रखो । नाखून बड़े न रहें और उनमें मैल न रहे, इसका ध्यान रखो । वस्त्रों को मैला मत रखो । अपने बर्तन तथा दूसरी उपयोगी वस्तुएँ और रहने का स्थान स्वच्छ रखो । कूड़ा दूर फेंको और नालियों को गंदा मत रहने दो । जल छान कर पीओ । प्रातः काल सूर्य उगने से पहले उठो । हाथ-मुँह धोकर एक गिलास जल पी लो । 


ख ) पेट साफ रहे, इसका ध्यान रखो । जो वस्तुएँ सरलता से न पच सकें, उन्हें मत खाओ । कब्ज़ होने पर हरड़ या त्रिफला सोते समय खाकर गरम दूध या जल पी लो । 


ग ) खुली वायु में कुछ दूर रोज़ टहल आया करो । कुछ हल्का का व्यायाम नियमपूर्वक करो । 


5. मांस, मछली, अंडे, प्याज, लहसुन तथा बासी और सड़ा भोजन बुद्धि को निश्चय ही मलिन बनाता है और स्वास्थ्य का नाश करता है ।


6. लाल मिर्च, खटाई, तेल के बने पदार्थ, बाजार की पूड़ी मिठाई और चाट स्वास्थ्य के लिये बहुत हानिकारक है । 


7. तम्बाकू, बीड़ी, सिगरेट, चाय, काफी आदि सब प्रकार की नशीली वस्तुएँ, स्वास्थ्य को नष्ट करती हैं ।


8.भोजन सात्त्विक, सुपाच्य तथा मौसम अनुकूल होना चाहिये । 

9 .बहुत गरम भोजन, चाय तथा बहुत गरम दूध पीना अथवा बहुत ठंडा भोजन, बरफ या बरफ पड़े पदार्थ खाना पेट को तो खराब करता ही है, इससे दाँत शीघ्र गिर जाते हैं । पैप्सी, कोका कोला सहित सभी तरह के कोल्ड ड्रिंक्स किसी भी हालत में मत पीओ । ये हानिकारक होते हैं । 


10. तुम्हारे दाँत सुदृढ़ रहें और पेट ठीक काम करे तो पान-तम्बाकू मत खाओ । भोजन जल्दी-जल्दी मत करो, भली प्रकार चबाकर खाओ । 


11. खड़े-खड़े या चलते-फिरते भोजन करना, भोजन करते समय बातें करना ये हानिकारक हैं। बैठकर मौन होकर प्रसन्नता से भोजन करो । 


12. भोजन पवित्रता और शुद्धता से बनाया जाये, शुद्ध और पवित्र होकर शुद्ध स्थान पर किया जाये । भोजन एकान्त में करना चाहिये । उस पर चाहे किसी की दृष्टि पड़ना हानि करता है । 


13. कुल्ला करके हाथ-पैर धोकर गीले पैरों भोजन करने से भोजन ठीक पचता है । भोजन के लिये या तो पालथी मार कर स्थिर बैठो या दाहिने हाथ को दोनों घुटनों के बीच में रख कर भोजन करो । 


14. भोजन के बीच-बीच में आवश्यक हो तो थोड़ा जल पी सकते हो, पर भोजन समाप्त करके तुरंत जल मत पीओ । 


15. ग्रास इस प्रकार उठाओ कि पात्र से भूमि या वस्त्रों पर जूठन न गिरे ।


दिन में बार-बार मुंह जूठा नहीं करना चाहिए और रात को हल्का भोजन ले जल्दी सो जाना चाहिए । सोने से पूर्व दिन में किए गए कार्यों का सिंहावलोकन कर अगले दिन की हल्की सी योजना बना लें और ईश्वर का स्मरण करते हुए सो जाएं । दिन व्यवस्थित करने से साल और साल व्यवस्थित करने से पूरा जीवन व्यवस्थित व स्वस्थ हो जाता है । यह लेख आपको कैसा लगा, कृपया अपनी राय अवश्य भेजें । 


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