सिलसिले-दिल छू लेने वाली मॉरल स्टोरी | Silsile Moral Hindi Kahani
कहानी सिलसिले: "सिलसिले" एक हिंदी कहानी है जो एक परिवार के बारे में, माँ और बेटे के प्यार जिसमें प्रेम, विश्वास, और आपसी संबंधों की एक अनूठी कहानी है। भिखमंगों के गिरोह से छुड़ाकर जिस बच्चे को मां ने नई जिंदगी दी, उसकी आंखों में भी अब सपने पलने लगे थे। एक सिलसिला शुरू हो चुका था।
सिलसिले-दिल छू लेने वाली मॉरल स्टोरी | Silsile Moral Hindi Kahani
Hindi Kahani: रोज़ करें पढ़ाई के लिए मां सुबह-सुबह उठा देतीं, तो मुंह धोकर पढ़ने बैठना पड़ता। बड़ा गुस्सा आता पर क्या मुझ अनाथ को अपनाकर मां बनीं, मैं बेटा आज मां की तेरहवीं है। उनकी इच्छा अनुरूप अनाथालय में आडंबर रहित तेरहवीं कार्यक्रम संपन्न किया।
उन्होंने मुझे सड़क पर भीख मांगते देखा, पांच रुपये का नोट थमाकर चली गईं। फिर कभी-कभार आतीं और कुछ न कुछ देकर चली जातीं। बातचीत में मेरी पूरी जानकारी हासिल कर ली।
मुझे स्मरण नहीं, कैसे इन लोगों के चंगुल में आया। धुंधली कोहरे जैसी याद थी। घर के बाजू वाले भैया आइसक्रीम खिलाने लेकर गए थे। घर में आना-जाना था इसलिए आइसक्रीम के लालच में उनके साथ निकल गया फिर वापस अपने घर ना जा पाया। इतना छोटा था कि अपना पता-ठिकाना मालूम नहीं था।
मां ने धीरे-धीरे मुझे समझाया। हमारे उस्ताद के डेरे पर एक दिन अचानक छापा पड़ा। उसको जेल भेजा गया और बच्चों को अनाथ आश्रम। वहीं से मां ने मुझे क़ानूनन गोद लिया।
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तब से मां ही मेरी दुनिया थी। मां काम पर जाती थीं, किसी एन.जी.ओ.में। शुरुआती दौर में स्कूल और पढ़ाई से जी चुराने पर उन्हें बड़ा क्रोध आता लेकिन अत्यंत संयमित लहजे में मुझे अच्छा और बुरा समझातीं।
'पढ़ने से सही-गलत का ज्ञान होता है। अच्छी बातें, अच्छा नजरिया मिलता है। तुम्हें वो लोग याद हैं न, जो अपनी कम समझ के कारण अपराध कर रहे थे। क्या वो दुनिया तुम्हें अच्छी लगी थी?' 'ना' में सिर हिलाते ही ख़ूब प्यार से गले लगातीं।
'बेटा पढ़ाई वह अस्त्र है जिससे दुनिया बदलती है।' प्रेरक किस्से-कहानियां सुनातीं। इस तरह धीरे-धीरे उन्होंने मेरी पढ़ाई में दिलचस्पी जाग्रत करवाई। जब वे उदास होतीं, तो उनको ख़ुश करने के लिए मैं और दिनों की तुलना में ज्यादा मन लगाकर देर तक पढ़ाई
करता। उनकी परेशानी मुझ नादान को समझ न आती। किशोरावस्था में परिस्थितियों को समझने की कोशिश करने लगा। अब अव्वल आने और स्कॉलरशिप हासिल करने का जुनून मेरे सिर पर हो गया था। मैं चाहता था कि मेरी पढ़ाई का उन पर बोझ न आए। कॉलेज के साथ पार्टटाइम नौकरी भी करने लगा जिससे घर में आर्थिक स्थिति काबू में हो।
मां ने इतना डांटा था- 'केवल पढ़ाई में ध्यान लगाओ। पैसों के पीछे भागने का यह समय नहीं ।'
मां की संयमित जीवनशैली देख वैसा ही बनने की कोशिश करने लगा। अच्छी नौकरी हाथ आई तब से मां 'शादी का क्या इरादा है' कहकर जोर डालने लगीं। इनकार करते हुए मैंने अपने विचारों से अवगत करवा दिया।
'आप जैसे ही किसी का जीवन संवारने की इच्छा रखता हूं।' वे मुस्कराईं, पर छुपा दर्द चेहरा झलका गया।
'क्या हुआ मां?' अचानक उनको इतना उदास देखकर चिंता में पड़ गया।
'मैं भी गोद ली हुई संतान थी, लेकिन लड़की थी... । कोई हाथ थामने आगे न आया। सबको कुल-गोत्र जानना था। कुलीन माता-पिता इस दर्द को अपने दिल से लगाकर दुनिया से कूच कर गए। अब समय के साथ मानसिकता ने करवट बदली है। जब तुम मिले और वहां के हालात जानने के बाद बच्चों को आजाद कराने का सोचने लगी ।'
'वही आगे दोहराना चाहते हो तो रोकूंगी नहीं'- शांत भाव से मां ने कहा
अपने लिए तो सब जीते हैं। परमार्थ परम कर्तव्य बोलकर नहीं अपितु निभाकर दिखाया जाता है। दो बच्चों के पालन-पोषण की क़ानूनी कार्यवाही के पश्चात घर ले आया। मां के पास अब भरा-पूरा परिवार था जहां रौनक हमेशा डेरा जमाए बैठी रहती। ये मां के संयम का ही कमाल था कि परिवार के सदस्यों को अपने अनुकूल ढालने में कोई कसर नहीं छोड़ती थीं। अपने स्वास्थ्य की परवाह न करतीं। मां मुझे उपकृत कर उपकार की पथ प्रदर्शक बनीं।
आज मां के जाने पर लगता है उनका शरीर हमें छोड़कर गया है, पर आत्मा हम सब के हृदय में समाकर, उसी संयम को विस्तृ आकाश प्रदान कर रही है, जो नेकी के सिलसिले को चलाए रखेगा।
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